06 दिसंबर 2021

बैंक वैन रॉबरी - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास: बैंक वैन रॉबरी
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या: 183 (किंडल)

                               उपन्यास कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का छठवां अध्याय!!

यह उपन्यास वर्ष 1978 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था | उपन्यास से लिया गया एक अंश :

वही स्कर्ट वाली युवती केबिन में बैठी थी ।
“हल्लो !” युवती मादक स्वर में बोली ।
“हल्लो !” प्रहलाद फंसे स्वर में बोला ।
युवती की आवाज में ऐसी खनक थी कि जैसे मन्दिर की
घण्टी खनखनाई हो, जैसे जलतरंग बजी हो, जैसे शीशे से
बर्फ टकराई हो । उसके होठों पर ऐसी दिलफरेब मुस्कुराहट
प्रकट हुई थी कि प्रहलाद सब भूल गया कि अभी एक क्षण
पहले कितनी मुश्किलें और दुश्वारियां उसके जहन में थी ।

पिछले उपन्यास "आज कत्ल होकर रहेगा" के अंत में विमल स्थानीय गैंगवार खत्म करके और अपनी जान बचाने के लिए नारंग का खात्मा करके अलफांसो की मदद से किसी तरह रातोंरात गोवा से बाहर निकल जाता है | 

                              ऑडियो बुक कवर 

इस उपन्यास "बैंक वैन रॉबरी" का पहला दृश्य पाठकों को जयपुर के एक गैराज में ले जाता है जहां पर प्रहलाद कुमार नाम का एक पढ़ा-लिखा ट्रक चालक अपने बिगड़ा हुआ ट्रक ठीक करवाने आता है | मैकेनिक तीरथ सिंह ट्रक की मरम्मत का खर्चा ज्यादा बताता है पर प्रहलाद के पास पैसे की तंगी होती है | तीरथ सिंह उसे मदद का आश्वासन देकर एक फोन करने चला जाता है |

“पुर्जे और मजदूरी दोनों मिलकर यही कोई ढाई-तीन हजार
रूपये ।”
“ढाई तीन हजार रूपये !” प्रहलादकुमार के छक्के छूट गये
“ओ भैया, मेरे पास तो सौ रूपये भी नहीं ।”

गोवा से निकलने के बाद ये गैराज ही अब विमल का नया ठिकाना बन चुका है | विमल शांतिपूर्वक 6 महीने से बसंत कुमार के नाम से जयपुर में ये गैराज चला रहा है जिसमे प्रहलाद अपना ट्रक ले के आया है |

लेकिन विमल उर्फ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल की जिंदगी में इत्मीनान कहां!! 

अचानक एक दिन एक इंस्पेक्टर ठाकुर शमशेर सिंह उसके गैराज में मोटरसाइकिल ठीक करवाने आता है और विमल की असलियत पहचान लेता है | इंस्पेक्टर शमशेर सिंह फांसी की सजा की धमकी देकर विमल को अपने साथ एक बैंक वैन को लूटने की योजना में शामिल होने के लिए मजबूर करता है ताकि रिटायरमेंट के बाद इंस्पेक्टर ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके | 'मरता क्या न करता' की तर्ज पर विमल उसका साथ देने के लिए मान जाता है | 

“तुम्हारे गैरेज में बीकानेर बैंक की रुपया होने वाली बख्तबन्द गाड़ी सर्विसिंग के लिये आती है न ?”
“हां, आती है, लेकिन...”
“उसी गाड़ी के सन्दर्भ में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“कैसी मदद ?”
“वक्त आने पर बता दिया जायेगा, लेकिन पहले यह बताओ
कि तुम मेरी मदद के लिये तैयार हो या नहीं ?”
“अगर मैं इन्कार करू तो ?”
“तो मैं अभी तुम्हें गिरफ्तार करके ले जाऊंगा | सरदार साहब, पलक झपकते ही अपने आपको फांसी के तख्ते पर
खड़ा पाओगे ।"

इंस्पेक्टर विमल को उसकी आंखों से ओझल न होने की धमकी देकर गैराज से चला जाता है | फिर इंस्पेक्टर अपनी योजना के अगले कदम के मुताबिक प्रहलाद को भी अपनी योजना में शामिल कर लेता है |  

“क्या तरीका है ?” प्रहलाद ने उत्सुक भाव से पूछा ।
फिर धीरे धीरे ठाकुर शमशेरसिंह, एस एच ओ मानक चौक
पुलिस स्टेशन, उसे समझाने लगा कि मालामाल होने को क्या
तरीका था ।"

थोड़े ही समय पश्चात इंस्पेक्टर एक सुरक्षित जगह पर एक मीटिंग रखता है जहां लूट की योजना में शामिल सब साथी एक दूसरे से मिलते है | यहां इंस्पेक्टर, विमल का परिचय राकेश, मीना, प्रहलाद और तीरथ सिंह से करवाता है | 

जी हां दोस्तो ! वही तीरथ सिंह जो विमल के गैराज में मैकेनिक था !!

इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और राकेश सबको बीकानेर बैंक वैन को लूटने की योजना के बारे में बताते हैं। साथ ही और किसको क्या करना है, ये भी समझाते हैं।

"डकैती के माल को घटनास्थल से फौरन दूर पहुंचा देने का पूरा प्रोग्राम भी हमने निर्धारित किया हुआ है ।”
”क्या प्रोग्राम है ?”
ठाकुर धीरे-धीरे उस सारी योजना का समझाने लगा ।"

लूट के दिन से पहले ही सारी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं और जल्दी ही वैन लूटने का दिन भी आ जाता है | 

विमल जयपुर में गैराज का मालिक कैसे बना? 
इंस्पेक्टर शमशेर सिंह को विमल के बारे में कैसे पता लगा? 
क्या थी बीकानेर बैंक वैन की लूट की योजना? 
क्या बीकानेर बैंक वैन की लूट सफल हो सकी? 
लूट के पैसे का क्या हुआ और किसको कितना हिस्सा मिला? 
क्या सब कुछ इतना ही सीधा और साफ था जितना सबको लग रहा था या परदे के पीछे कोई और खेल भी चल रहा था? 
क्या एक बार फिर विमल के साथ धोखा हुआ और उसे इस बार भी खून-खराबा करने पर उतारू होना पड़ा? 
क्या भाग्य ने एक बार फिर विमल को किसी नए ठिकाने की तलाश में भटकने के लिए अकेला और बेसहारा छोड़ दिया? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको ये उपन्यास पढ़ना होगा |

उपन्यास के रीप्रिंट की प्रूफ रीडिंग सही है इसलिए गलतियां बहुत ही कम हैं |
किरदारों की बात करें तो इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और मीना के किरदार पढ़ने में अच्छे लगे | नीलम का किरदार इस उपन्यास में दुबारा देखने को मिलता है पर संक्षिप्त रूप से | विमल भी इस उपन्यास में कुछ खास नया या अलग हटकर नहीं करता है |
उपन्यास में अधिकतर किरदारों के संवाद सामान्य ही है | 
उपन्यास की कहानी की गति वैसे तो अच्छी है पर कुछ जगहों पर थोड़ी धीमी होती लगी | कहानी में घुमाव तो जरूर हैं परंतु कुछ नयापन नहीं है | उपन्यास का अंत अच्छा लगा | उपन्यास औसत से थोड़ा ही अधिक मनोरंजक लगा और एक बार पढ़ा जा सकता है |  
 
आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमे अवगत करवा सकते हैं |
 
रेटिंग: 6.5/10

2 टिप्‍पणियां:

  1. acchi samiksha, jo log ye novel ka ansh padhkar vichar kar rahe ji 100 rupaye bhi nahi truck driver ke pass wo ye jaan le ki 1978 mein 100 rupaye bhi shayad 10000 ya 15000 ke barabar rahe kuchh is time ke logo ne bataya sarkari teacher ki payment bhi 300,400 Rupaye milte they jo 1 monty ka kharch chalane ke baad bhi rupaye bach jate rahe
    isliye story ko 1978 ke time ka anuman laga kar padhiye

    जवाब देंहटाएं
  2. Interesting review. After reading it, I also noticed - it is just an average novel.

    जवाब देंहटाएं