23 दिसंबर 2021

दिन दहाड़े डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : दिन दहाड़े डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 241 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का आठवां अध्याय !!

                               उपन्यास कवर

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" से लिया गया एक अंश:

विमल ने अपने समीप से गुजरते एक डिब्बे का हैंडल थाम लिया और साथ ही उसके पायदान पर छलांग लगा दी ।
उसके सारे जिस्म को एक जोर का झटका लगा, लेकिन उसने अपने हाथ से सूटकेस निकलने न दिया ।
तभी एकाएक गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई ।
विमल ने घूमकर पीछे देखा ।

पिछले उपन्यास "मौत का फरमान" के अंत में कंचन के कत्ल के इल्जाम से विमल बेगुनाह साबित होता है पर ठीक उसी समय पुलिस द्वारा बीकानेर बैंक रॉबरी वैन की बरामदगी की खबर उसे अखबार में पढ़ने को मिलती है ।

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" की शुरुआत होती है उस दृश्य से, जहां विमल तुरंत जयपुर छोड़ने की तैयारी कर रहा है । अपना हिप्पी रूप धारण करके जैसे ही वो निकलता है, उसे एहसास होता है कि कोई उसके पीछे लगा है । उसका अंदेशा सही साबित होता है और बचने के लिए वो दिल्ली जा रही ट्रेन में चढ़ जाता है ।

मिर्जा इस्माइल रोड पर स्थित अपने गैरेज से निकलते ही विमल के मन में यह आशंका घर कर गई थी कि वह किसी की निगाहों में था ।
फुलेरा के पास से बीकानेर बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी बरामद होने की खबर पढते ही उसने फैसला कर लिया था कि अब उसका एक क्षण के लिए भी जयपुर में ठहरे रहना खतरनाक साबित हो सकता था ।

पर अफसोस ! विमल कुछ अनजान पर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों द्वारा धोखे से गुड़गांव के स्टेशन पर उतार लिया जाता है । इन लोगों का मुखिया अपना नाम द्वारकानाथ बताता है और बाकी लोगों से विमल का परिचय करवाता है । द्वारकानाथ उसे पुलिस के हवाले करने की धमकी देकर अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देता है । 

द्वारकानाथ ने साफ-साफ कुछ नहीं कहा था लेकिन विमल को उसमें किसी जयशंकर की, किसी अजीत की, किसी मायाराम बावा की, किसी ठाकुर शमशेरसिंह की साफ झलक मिल रही थी ।
नये शिकारी ! नया जाल !
दाता !

फिर द्वारकानाथ विमल को बताता है कि उसे विमल की जरूरत क्यों पड़ी और इस बात का भी खुलासा करता है कि वो विमल को लूट में साथ देने के लिए मजबूर नहीं करेगा पर अगर विमल उसका साथ देता है तो विमल का एक ऐसा बड़ा फायदा हो सकता है जो उसे जुर्म की जिंदगी और पुलिस के चक्कर से काफी हद तक छुटकारा दिला सकता है। 

“बिल्कुल । सरदार साहब, मैं तुम्हारा यही फायदा कर सकता हूं कि मैं तुम्हें ऐसा रास्ता सुझा सकता हूं, जिससे तुम अपने इस निश्चित अंजाम से बच सकोगे ।”
“ऐसा क्या कर सकते हो तुम ?”

साथ ही द्वारकानाथ विमल को समाज में पैसे वालों के रूतबे, पैसे की ताकत और दुनियादारी के कड़वे पर असली तरीकों के बारे में समझाता है । विमल से ऐसी बातें पहले कभी किसी ने नहीं की थी । द्वारकानाथ की बातें सुनकर विमल सोच में पड़ जाता है और प्रभावित होकर द्वारकानाथ का साथ देने का फैसला कर लेता है।

“शाबाश । देखकर खुशी हुई कि मैंने जो इतनी देर भाषण दिया है, उसका तुम पर कोई असर हुआ है ।”
“बहुत असर हुआ है ।”
“जानकर खुशी हुई ।”
“एक बात कहना चाहता हूं, द्वारका ।”
“क्या ?”
“मैंने तुम्हारे जैसा दादा नहीं देखा ।

फिर द्वारकानाथ विमल और अपने बाकी साथियों कूका, गंगाधर को स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी को लूटने की योजना विस्तार से समझाता है। विमल भी बारीकी से योजना का विश्लेषण करता है। लूट को अंजाम देने के लिए जरूरी सामान का इंतजाम कर लिया जाता है और लूट की बाकी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं। शीघ्र ही लूट के लिए निर्धारित किया हुआ दिन भी आ पहुंचता है।

क्या थी द्वारकानाथ की योजना? 
क्या स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी लूटी जा सकी? 
ऐसा क्या फायदा बताया द्वारकानाथ ने, जो विमल की जिंदगी बदल सकता था? 
क्या था वो सबक जिसे सुनकर विमल द्वारकानाथ से प्रभावित हो गया? 
क्या लूट का पैसा द्वारकानाथ और विमल के हाथ आया या फिर उसे कोई और ही उस पैसे पर हाथ साफ कर गया? 
ऐसा क्या खतरा था जिससे अपनी जान बचाना विमल के लिए भी मुश्किल था? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे |

यह उपन्यास वर्ष 1980 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 

उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन की प्रूफ रीडिंग पर अच्छा ध्यान दिया गया है।

इस उपन्यास में पहली बार विमल अपनी खुद की मर्जी से लूट की योजना का हिस्सा बनना स्वीकार करता है हालांकि आरंभ में उसे मजबूर किया जाता है।

विमल का किरदार इस उपन्यास में पसंद आया। द्वारकानाथ का किरदार भी कहानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विमल और द्वारकानाथ की जोड़ी बढ़िया बन पड़ी है। खासकर द्वारकानाथ का विमल को दुनियादारी का सबक देने वाला पार्ट बेहतरीन लगा। सहायक किरदारों के रूप में कूका, गंगाधर, राजेंद्र कुलश्रेष्ठ,  शैलजा और सरोज के किरदार पढ़ने को मिलते हैं। इनमे से कूका और सरोज का किरदार ही मुझे ज्यादा अच्छा लगा। 
कहानी की बात करें तो कुल मिलाकर कहानी मनोरंजक है । इस उपन्यास की कहानी में अधिक घुमाव नहीं है पर कहानी अपनी पकड़ बनाए रखती है और घटनाक्रम में हल्का-सा सस्पेंस भी बरकरार रहता है । कहानी सामान्य गति से ही आगे बढ़ती दिखी।

मेरी हिसाब से आप इस उपन्यास को एक बार पढ़ सकते हैं, आपको निराशा नहीं होगी।
 
आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवगत करवा सकते हैं |
 
रेटिंग: 7/10

2 टिप्‍पणियां:

  1. Surendra Mohan Pathak ki vimal series jo kafi hit huyi vimal series se logo ka interest vaise hi jud chuka tha 1980 ke time ke hisab se badhiya novel hai
    fir ye baat suspense to jagati hai ki jo vimal police record mein bhuhut bada criminal mana jata hai wo kabhi apni marzi se kisi bhi jurmo mein Shamil nahi huaa
    Wo ab khud Shamil Ho raha loot mein
       Aakhir dwarkanath ne aisi kya duniya ki sacchi batayi vimal ko

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  2. Thanks for sharing the review. Your review is on the spot. Vimal and Dwarkanath have made this novel a good one to read.

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