26 जुलाई 2021

रामनारायण पासी - एक छदम लेखक का संघर्ष

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको जानकारी दे रहे हैं लेखक श्री रामनारायण पासी जी के जीवन और उनके संघर्ष के बारे में जिन्होंने विनय प्रभाकर के नाम से बहुत सारे उपन्यास लिखे | जी हाँ, वही विनय प्रभाकर जिनके लिखे उपन्यासों को बहुत से पाठको ने पढ़ा भी और सराहा भी |

रामनारायण पासी जी के बारे में इस जानकारी को शेयर करने के लिए श्री राजेश पासी जी का बहुत बहुत धन्यवाद | 


श्री रामनारायण पासी


तो साथियों, अब आगे की कहानी राजेश जी के ही शब्दों में:- 

वह विनय प्रभाकर भी है और रामनारायण पासी भी और मेरे पापा है !

एक समय था जब मनोरंजन का मुख्य साधन था - उपन्यास। वेद प्रकाश शर्मा और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे कई उपन्यास लेखक उस समय एक स्टार थे।  

इन्हीं में से एक थे विनय प्रभाकर। विनय प्रभाकर द्वारा लिखे उपन्यास की काफ़ी माँग थी । बहुत से लोग उन्हें पढ़ा करते थे ।

बहुत कम लोगों को पता है विनय प्रभाकर के नाम से लिखने वाले अधिकतर उपन्यास श्री राम नारायण पासी जी ने लिखे थे। विनय प्रभाकर की मेजर नाना पाटेकर सीरीज के तो सारे उपन्यास रामनारायण पासी जी ने ही लिखे थे ।

बहुत कम लोगों को पता है और मैंने भी कभी पब्लिक प्लेटफार्म पर इसका ज़िक्र नहीं किया कि विनय प्रभाकर के नाम से उपन्यास लिखने वाले रामनारायण पासी जी मेरे पिताजी है ।

विनय प्रभाकर के नाम से तक़रीबन सभी उपन्यास पापा ने ही लिखे थे । इसके अलावा कुछ उपन्यास अर्जुन पंडित और दूसरों के नाम से भी लिखे थे । थ्रिलर और सस्पेंस के साथ साथ प्रकाशक जो भी विषय कहते, हर उस सब्जेक्ट पर लिखने में महारत हासिल थी पापा को ।

पापा ने काफ़ी प्रयास किया कि कुछ उपन्यास उनके नाम से भी छपे, इसलिए प्रकाशकों ने जो कहा वह लिखते गए पर प्रकाशकों ने सिर्फ़ आश्वासन दिया ।

पापा कई पत्र-पत्रिकाओं में भी उस समय लिखते रहते थे । मुंबई में थे तो फ़िल्मों और TV सीरियल के लिए भी उन्होंने प्रयास किया। कई साल फ़िल्म राइटर असोसियशन के मेम्बर भी थे । पर हमारे समाज में पापा के पीढ़ी के लोग बहुत स्वाभिमानी होते है चाहे जो हो जाए, किसी के सामने झुकेंगे नहीं स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगे। और फ़िल्मी दुनिया में तो जगज़ाहिर है अपने स्वाभिमान को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ सकते और अगर आप SC समाज से है तो फिर तो कहाँ की बात। पापा को किसी के सामने झुकना, चापलूसी करना, जी हजुरी पसंद नहीं था नतीजा वहाँ भी धोखा मिला । कोई सहायता करने वाला भी नहीं था । इसलिए उन्होंने लिखना ही छोड़ दिया ।

पिछले साल 2019 में पापा रिटायर हुए है और अब मुंबई से जाकर वह हमारे गाँव प्रतापगढ़, सांगीपुर में खेती में कुछ रीसर्च कर रहे है । पापा ने कहा अब लिखने के क्षेत्र में नहीं जाना है, खेती के क्षेत्र में कुछ रीसर्च करने का शौक़ है ।

पापा हमेशा ही कुछ नया सीखने में व्यस्त रहते है । रिटायर होने के कुछ साल पहले कम्प्यूटर और लैप्टॉप चलाने में भी दक्षता हासिल कर ली । अभी कुछ महीना पहले कार ड्राइविंग करना भी सिख लिया है, वह भी बिना ड्राइविंग क्लास गए ।

पापा की वजह से मैं भी थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ । और मेरा लिखा भी लोग पसंद करते है । बचपन से ही उन्हें बहुत पढ़ते और लिखते देखता रहा । पापा की वजह से ही लिखने पढ़ने में मुझे भी इंट्रेस्ट हुआ और पापा की वजह से ही मुझमें भी लेखन के थोड़े गुण आ गए है।

उस समय पापा को कोई सहयोग करने वाला नहीं था इसलिए तक़रीबन 40 से ज़्यादा किताबें लिखने के बावजूद पापा को कोई पहचान नहीं मिल पाई। विनय प्रभाकर, अर्जुन पंडित जैसे नाम को तो लोग देश भर में जानते थे पर रामनारायण पासी को लोग नहीं जानते और इस तरह समाज की एक और प्रतिभा दब गई।



तो ये थी श्री रामनारायण पासी जी के जीवन तथा उनके संघर्ष की कहानी उनके बेटे राजेश पासी जी के शब्दों में |


उम्मीद है कि इस पोस्ट को पढ़कर आपका उपन्यास जगत के एक अलग तरह के चेहरे से परिचय हुआ होगा |  

आप कमैंट्स के माध्यम से हमें अपनी राय से अवगत करवा सकते है|


10 जुलाई 2021

मायाजाल - राज भारती

उपन्यास: मायाजाल

लेखक: राज भारती जी

पेज संख्या: 440

प्रिंट रेट: 399 रुपये

प्रकाशक: धीरज पॉकेट बुक्स (मेरठ) तथा अजय पॉकेट बुक्स (दिल्ली)


"मायाजाल एक उपन्यास नहीं एक ख्वाब है |

ऐसा ख्वाब जिसे देखते देखते इंसान आतंकित और भयभीत हो उठ बैठे..

पर फिर देखने की आस में आँखें बंद कर ले.."


नया उपन्यास कवर


पुराना उपन्यास कवर


मायाजाल उपन्यास एक वृहद् फैंटसी सीरीज "अग्निपुत्र सीरीज" का प्रथम उपन्यास है और काफी साल पहले लिखा गया था, इसलिए नए पाठकों की जानकारी के लिए यहां बताना चाहूंगा कि राज भारती जी ने अग्निपुत्र सीरीज की रचना एक ऐसे किरदार 'अग्निपुत्र' को केंद्र में रखकर की थी जो कि उपन्यास जगत में सामान्यतया प्रस्तुत किए गए अन्य मुख्य नायकों से अलग है | 

इस उपन्यास को धीरज पॉकेट बुक्स (मेरठ) तथा अजय पॉकेट बुक्स (दिल्ली) द्वारा संयुक्त रूप से दुबारा प्रकाशित किया गया है | राज भारती जी ने अग्निपुत्र सीरीज में लगभग 70 उपन्यास लिखे हैं जिनकी सूची आप इसी ब्लॉग पर पोस्ट "राज भारती (प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार)" में देख सकते हैं |


अब आते हैं उपन्यास की कहानी पर | कहानी आरम्भ होती है एक हवाई जहाज में निश्चिन्त बैठे यात्रियों के दृश्य से जिनकी यात्रा एक घंटे में पूरी होने वाली है | अचानक एक बहुत ही भयानक तूफ़ान हवाई जहाज को अपने आगोश में ले लेता है जिससे बचना लगभग असंभव होता है | 

जहाज का एक पायलट अपने साहस से जहाज को किसी तरह तूफ़ान से बाहर निकाल लेता है पर जहाज एक बेहद वीरान बर्फीले क्षेत्र में बुरी तरह से क्रैश हो जाता है | क्रैश में कुछ यात्री एवं विमान परिचारिकाएं भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं |

यहां से शुरू होता है इन बचे हुए जहाज कर्मियों और यात्रियों का बर्फीली मृत्यु के साथ लम्बा जानलेवा संघर्ष जो इस वीरान और बेहद ठंडे इलाके में हर तरफ मुंह फैलाये खड़ी थी | 

यात्री प्रोफेसर दयाल और उनकी 2 सुंदर-सुशील बेटियाँ बाला और कविता कड़े संघर्ष के बाद किसी तरह मौत के जबड़े से बाहर निकल तो आते हैं पर इस अनजान, सुनसान और बर्फीले क्षेत्र में जिंदगी की उम्मीद अभी भी उन्हें कहीं नजर नहीं आती है | 

कुछ और मेहनत के बाद प्रोफेसर दयाल आखिरकार उस सुनसान क्षेत्र में एक पीने लायक पानी का झरना और एक ऐसी जगह ढूंढ लेता है जो देखने में बाहर से तो ठीक-ठाक पर अंदर से सुरंग जैसी होती है | अंदर प्रवेश करते ही प्रोफेसर और उसकी बेटियां उस सुरंग को अंदर से साफ़-सुथरी और सजी-धजी देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं | परन्तु वहां एक शीशे के ताबूत में एक विचित्र से सुनहरे रंग के आदमी को सोया देखकर तो वो लोग बुरी तरह से चौंक पड़ते हैं | प्रोफेसर किसी तरह से इस सुनहरी रंग वाले इंसान को गहरी नींद से जगाने में सफल हो जाता है |


!! जी हाँ, ये विचित्र से सुनहरी रंग वाला इंसान ही तो है अग्निपुत्र !!

परन्तु....

कौन है अग्निपुत्र ?

क्यों गहरी नींद में सो रहा था अग्निपुत्र ?

क्या परिणाम हुआ प्रोफेसर द्वारा अग्निपुत्र को गहरी नींद से जगाने का ?

क्या थी अग्निपुत्र की गाथा ?

क्या-क्या रहस्य थे अग्निपुत्र की गुफा में जिन्होंने प्रोफेसर दयाल और उसकी पुत्रियों को स्तब्ध कर दिया था ?

क्या परिणाम हुआ था हवाई जहाज के यात्रियों के संघर्ष का, उस सुनसान बर्फीले क्षेत्र में ?

किस तरह से पायलट्स ने यात्रियों को बचाया था उस भयानक तूफ़ान से ?

इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आपको राज भारती जी के रचे हुए मायाजाल में प्रवेश करना होगा |


कुल मिलाकर उपन्यास की कहानी अच्छी लगी | अगर आपको भी फैंटसी उपन्यास पढने में दिलचस्पी है तो एक बार इस उपन्यास को जरूर पढ़कर देखें |

तूफ़ान और हवाई जहाज के क्रैश के दृश्य, पायलट्स की सूझ-बूझ, मीलों तक फैली बर्फ में यात्रियों का मानसिक अंतर्द्वंद, प्रोफेसर दयाल की नेतृत्व क्षमता, अग्निपुत्र की रहस्मयी कहानी, लेखक द्वारा उपन्यास में पुराने और ऐतिहासिक दृश्यों का विवरण कई जगहों पर अच्छा बन पड़ा है | अग्निपुत्र का किरदार उत्सुकता पैदा करता है |

उपन्यास की प्रूफ रीडिंग अन्य उपन्यासों के मुकाबले बेहतर है और शाब्दिक गलतियां कम ही हैं | जो थोड़ी बहुत गलतियां है वो भी उपन्यास को पढ़ने में कोई अधिक रुकावट पैदा नहीं करती हैं |

 

रेटिंग: 9/10


रहस्यमयी आवाज - वेद प्रकाश कांबोज


उपन्यास का नाम: रहस्यमयी आवाज

लेखक: वेद प्रकाश कांबोज

पेज: 198

मूल्य: 225 रुपये

उपन्यास खरीदने का लिंक - एमेजॉन लिंक

वेद प्रकाश कांबोज जी की लेखनी से निकला सिंगही सीरीज का एक बेहद सनसनी खेज और रोमांचक उपन्यास जिसने अपने समय में लोकप्रियता की सीमायें तोड़ दी थीं।




कहानी की शुरुआत होती है एयरपोर्ट से, जहां पर विजय अपने मित्र जैकी को लेने आया हुआ होता है। जैकी, उसकी वाइफ और बेटे को लेकर विजय अपनी कोठी पर आता है पर वहां पर आते ही उसे रघुनाथ मिलता है जो काफी परेशान होता है। 

रघुनाथ विजय को बताता है कि फलां बिल्डिंग के ऊपर से एक रहस्यमयी आवाज आ रही है परंतु आवाज करने वाला कहीं दिखाई नही दे रहा और वह आवाज एक चेतावनी भी दे रही है:- 

'इमारत को खाली करके सब लोग इमारत से बाहर हो जाए। दो बजे यह इमारत तबाह हो जायेगी।'


बस फिर यहीं से होती है विजय की जासूसी की शुरुआत और इसके साथ ही शुरू होते है टकराव के सिलसिले जिनमे जब नाम खुलकर सामने आते है तो खेल और भी खतरनाक हो जाता है।


क्या विजय इस रहस्यमयी आवाज का पता लगा पाएगा ?

क्या वो रहस्यमयी आवाज इसी तरह से बिल्डिंगो को तबाह करती रहेगी?

आखिर कौन था इन सभी परिस्थितियो के पीछे जो विजय के साथ ये खेल खेल रहा था?

विजय, सिंगही, तानसी, गिल्बर्ट, जैकी, हैरी, रघुनाथ और तमाम सीक्रेट सर्विस के बीच खेले जाने वाले खूनी खेल का अंत क्या हुआ?

विजय की कोठी को मावे में बदलने के बाद बॉस सिंगही के बेटे तानसी ने जब विजय को पागल कर दिया, तो क्या पागल विजय सिंगही को हरा पाया?


अब कहानी की बात करूं तो कहानी अच्छी है। एक बार पढ़ कर देख सकते है। उस समय के हिसाब से पढ़े तो काफी रोचक है। अब बात करूं कमी की, तो प्रूफ रीडिंग की तरफ़ कम ध्यान दिया गया है। उम्मीद है भविष्य में प्रूफ रीडिंग की तरफ अधिक ध्यान दिया जाएगा। अभी के पाठक वर्ग को शायद कुछ कम पसंद आए शायद।


साथ ही एक और उपन्यास के अंदर लेखकीय मिस किया। उम्मीद करता हूं आगे के भागो में लेखकीय पढ़ने को मिलेगा। प्रकाशक से अनुरोध है कि अगर अभी के पाठकों की समीक्षा के अनुसार लेखकीय न मिले तो उस समय के पाठकों के लेखकीय जरूर दें।

रेटिंग 7/10