16 मई 2022

महाआतंक - राजभारती

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम दिवंगत हिंदी उपन्यासकार राजभारती के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "महाआतंक" के बारे में आपको बताने जा रहे हैं! 

"महाआतंक" उपन्यास का एड राजभारती जी के उपन्यास महाकांड के अंतिम कवर पृष्ठ पर दिया गया था और एड के अनुसार उपन्यास के धीरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होने की संभावना थी। परंतु ये उपन्यास कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ!

इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आलेखों को चेक करने के पश्चात भी इस उपन्यास के प्रकाशित होने या ना होने के बारे में कही कोई जानकारी नहीं मिलती।
अब ये जानकारी सही है या गलत - इस बारे में या तो राजभारती जी के परिवार का कोई सदस्य बता सकता है या फिर कोई पुराना प्रकाशक या फिर कोई पाठक जो इस बारे में कुछ जानता हो!

मेरी राय में अगर राजभारती जी ये उपन्यास लिखते और उपन्यास प्रकाशित होता तो निश्चय ही पाठक इस उपन्यास को पढ़ने के प्रति अपनी दिलचस्पी प्रदर्शित करते!

क्या यह उपन्यास लिखा ही नहीं जा सका? 
क्या उपन्यास का लेखन कार्य किसी कारणवश अधूरा ही रह गया? 
अगर उपन्यास पूरा लिखा जा चुका था तो फिर प्रकाशित क्यों नहीं हो पाया? 
ये सब प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं।

उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर आपके पास इस बारे में कोई जानकारी हो तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते हैं |

14 मई 2022

एक साथ तीन प्रेत - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

लघु उपन्यास : एक साथ तीन प्रेत 
लेखक : जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा 
श्रेणी : जासूसी एंव भूत-प्रेत
पृष्ठ संख्या : 67
प्रकाशक : राधा पॉकेट बुक्स

यह लघु उपन्यास लेखक के "भाभी" उपन्यास में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के कथानक सूत्र के अनुसार जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा ने अपने एक पुराने रिटायर्ड मेजर मित्र सूरतवाला से सुनी हुई मेरठ छावनी की वर्षों पुरानी किवदंतियों के आधार पर इस लघु उपन्यास की रचना की है। 

उपन्यास के प्रारंभ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
 सुबह की सैनिक परेड छः बजे आरंभ होती थी और बिगुलवादक पहला बिगुल 5 बजे अपने घर की छत से ही बजाता था। फिर वह बिगुल सहित उस स्थान पर पहुंच जाता जहां बहुत पहले 1857 में उन अंग्रेजों के स्मारक थे और आज रेलवे लाइन पटरी है। 

कहानी कुछ इस प्रकार शुरू होती है कि एक सुबह एक जंगली भैंसा छावनी में अंग्रेज मेजर रॉबसन के बंगले के अहाते की दीवार तोड़कर फुलवारी को नष्ट करने लगता है। मेजर रॉबसन भैंसे को बंदूक से गोलियां मारकर खत्म कर देता है। अगली सुबह सैनिक परेड के निर्धारित समय पर बिगुलवादक बिगुल बजाकर परेड मैदान में बने अंग्रेजों के स्मारक वाले चबूतरे पर बैठ जाता है। अचानक एक पागल जंगली भैंसा उस पर आक्रमण कर देता है। बिगुलवादक घबराकर भागता है। तभी सामने से मेजर रॉबसन घोड़े पर आता है और जंगली भैंसे का सामना करता है। लड़ाई के दौरान क्रुद्ध भैंसा मेजर रॉबसन, बिगुलवादक और घोड़े को खत्म कर देता है। 

बिगुलवादक को रौंदते हुए भैंसे ने घोड़े पर अपने सींगों से वार करते हुए घोड़े का पेट फाड़ दिया। घोड़ा गिरा साथ ही रॉबसन भी।
और परिणाम...! 
तलवार के कुछ वार से भैंसा घायल तो अवश्य हुआ, परंतु उसने तीन जान ले लीं। 

मेजर रॉबसन की जवान और खूबसूरत पत्नी एवलिन यह समाचार सुनते ही बेहोश हो जाती है। छावनी का द्वितीय सीनियर अफसर कैप्टन नेल्सन पादरी को बुलाकर मेजर रॉबसन और बिगुलवादक को कब्र में दफनाने का प्रबंध करवाता है। परंतु अगली ही रात उनकी कब्रें हुई खुदी मिलती हैं। परेशान नेल्सन कब्रें ठीक करवाकर वहां 25 सैनिकों का पहरा लगा देता है। इधर अचानक एवलिन का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है और दिनोंदिन उसका चेहरा पीला पड़ने लगता है। डॉक्टर को एवलिन की बिगड़ती हालत का कारण समझ नहीं आ पाता। 

 ...साथ ही दवा के रूप में टानिक भी देता था। परंतु एवलिन पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था, डॉक्टर ने नोट किया कि उसके चेहरे का पीलापन कम नही हो रहा था और कम हो रहा था उसका वजन। 

दो माह बाद कलकत्ता से जॉर्ज साइमन मेरठ छावनी में मेजर रॉबसन का स्थान लेने के लिए आता है। साइमन मेजर रॉबसन का भाई होता है। छावनी का कार्यभार संभालते ही वो एवलिन से मिलता है। जब एवलिन साइमन को अपनी बुरी दशा का कारण बताती है तो वो हैरान रह जाता है। साइमन ये भी देखता है कि नेल्सन और छावनी के सारे सैनिक अक्सर थके-थके से रहते हैं। नेल्सन से इसका कारण जानकर उसका दिमाग घूम जाता है। उसे समझ ही नहीं आता कि किस बात को माने और किस बात को नहीं! वो तुरंत एवलिन की सुरक्षा का और साथ ही फादर जेफरसन को छावनी में बुलवाने का प्रबंध करता है। 

जंगली भैंसे ने मेजर रॉबसन, बिगुलवादक और घोड़े को कैसे मार गिराया? 
मेजर रॉबसन और बिगुलवादक की कब्रें किसने खोदीं? 
एवलिन का स्वास्थ्य दिनोंदिन कैसे बिगड़ने लगा?  
नेल्सन और छावनी के सारे सैनिक थके हुए क्यों रहते थे? 
एवलिन और नेल्सन ने ऐसा क्या बताया कि साइमन स्तब्ध रह गया? 
कौन थे फादर जेफरसन? 
साइमन ने फादर जेफरसन को छावनी क्यों बुलाया? 
आखिर क्या रहस्य था इस सारे घटनाक्रम के पीछे? 
क्या साइमन, नेल्सन और फादर जेफरसन मिलकर इस गुत्थी को सुलझा पाए? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर ही प्राप्त कर पाएंगे। 

पात्रों की बात करें तो इस उपन्यास में मेजर रॉबसन, एवलिन, बिगुलवादक, कैप्टन नेल्सन, डॉक्टर जेम्स, जॉर्ज साइमन, फादर जेफरसन, दुर्गा बाबू, रामचंद्र, शंकर सिंह, संन्यासी जैसे पात्र पढ़ने को मिलते हैं। 
साइमन, फादर जेफरसन, नेल्सन और संन्यासी के पात्र मुझे काफी अच्छे लगे। अन्य सहायक पात्र अपनी जगह सही रहे।

मुझे कहानी पढ़ने में बहुत रोचक लगी। कहानी में जासूसी और भूत-प्रेत धाराओं का सम्मिश्रण बढ़िया बन पड़ा है। पात्रों का ताल-मेल भी लेखक ने अच्छा बनाए रखा है। आप एक बार इस लघु उपन्यास को जरूर पढ़ें।

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

11 मई 2022

धमाकों का शहर - राज


उपन्यास: धमाकों का शहर
लेखक: राज
पेज संख्या: 272 
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स

हमारे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार "राज" नाम राजा पॉकेट बुक्स द्वारा रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क था। किसी प्रेत लेखक द्वारा ये उपन्यास लिखे जाते थे और फिर राजा पॉकेट बुक्स द्वारा "राज" नाम से प्रकाशित किए जाते थे। 

         उपन्यास का कवर 

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 

*कुछ मुल्कों की तो सरकारें तक उससे आतंकित थी। कहीं-कहीं उसने अपनी जड़ों को इतनी गहराई तक पहुंचा दिया था कि वहां की सरकारें उसके रहमोकरम पर थी।
वहीं कुख्यात हस्ती उस समय हिंदुस्तान में पड़ाव डाले हुए थी।
यहां भी उसके आपराधिक निजाम की जड़ें काफी गहराई तक पहुंची हुई थी।* 

उपन्यास का आरंभ होता है अंडरवर्ल्ड के बादशाह अम्बा और मंत्री जयंती प्रसाद की मुलाकात के दृश्य से जिसमे जयंती प्रसाद अपनी सेक्रेटरी अर्चना गोखले के साथ एक सहायता प्राप्त करने के लिए अम्बा के पास आता है। अम्बा उसे एक योजना बताता है जिससे उसका काम हो जाए। जयंती प्रसाद और अम्बा दोनों योजना के क्रियान्वन में लग जाते हैं। 

*उसके हाथ में एक रोल किया हुआ कागज था। 
*वह अम्बा के सामने सिर झुकाकर खड़ा हो गया।
"टोनी!"
"यस बॉस!"
"मंत्रीजी को अपनी स्कीम समझाओ।" अम्बा ने आदेश दिया।...*

इधर एक अन्य जगह पर विवेक नंदी नाम का एक कैश कलेक्टर अपने बॉस जसराज मथानी के पास रोज की तरह पैसा जमा करवाने आता है पर बीस हजार रुपए कम निकलने पर मथानी क्रोधित हो उठता है। मथानी उसे रुपया वापस करने के लिए 24 घंटे की अवधि देता है। डरा हुआ विवेक रुपया प्राप्त करने की कोशिशों में लग जाता है मगर इसी बीच कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे विवेक नंदी की दुनिया ही उजड़ जाती हैं। 

*...चारों ओर का काफी बड़ा इलाका मानवरहित हो चुका था और उस मानवरहित इलाके में विनोद नंदी अकेला था।
वह उस ओर ही दौड़ रहा था जहां साक्षात मौत तांडव कर रही थी। 
लोग उससे दहशत खाकर भाग रहे थे, वह उसी ओर जा रहा था।*

वहीं रिसर्च एनालिसिस विंग (रॉ) की स्पेशल ब्रांच के ऑफिस में डायरेक्टर जयंत रमन्ना को देश पर मंडरा रहे एक गंभीर खतरे की सूचना मिलती है। वो अपने सबसे विश्वसनीय और योग्य एजेंट अजीत विश्वकर्मा को उसी समय मीटिंग के लिए बुला डालते हैं। पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद रमन्ना और अजीत विश्वकर्मा मिलकर एक प्लान बनाते हैं। फिर अजीत विश्वकर्मा इस खतरे को समाप्त करने के लिए एक गुप्त मिशन पर तुरंत ही पाकिस्तान के लिए रवाना हो जाता है ताकि वो उस खतरे का खत्म कर सके। परंतु घटनाक्रम कुछ इस तरह से आगे बढ़ता है कि अजीत और रमन्ना के साथ-साथ बाकी सब लोग भी खतरे में पड़ जाते हैं और सबकी जान पर बन आती है । 

*"मेरी भरसक कोशिश होगी सर कि" - विश्वकर्मा ने कहा - "मैं आपके विश्वास की रक्षा कर सकूं।"
"मगर यह काम उतना आसान नहीं है मिस्टर विश्वकर्मा" - रमन्ना ने गंभीर स्वर में कहा - "इसमें खतरे कदम-कदम पर तुम्हारा स्वागत करेंगे।"*

जयंती प्रसाद को ऐसी क्या सहायता चाहिए थी अम्बा से? 
क्या खतरनाक योजना थी अम्बा की? 
ऐसा क्या घटित हुआ था जिसने विवेक नंदी की दुनिया ही उजाड़ दी? 
डायरेक्टर जयंत रमन्ना को किस गंभीर खतरे की सूचना मिली थी? 
अजीत विश्वकर्मा को तुरंत किस मिशन पर निकलना पड़ा? 
क्या अजीत का मिशन सफल हो सका? 
ऐसा क्या हुआ कि सबकी जान खतरे में पड़ गई? 
क्या अजीत को किसी प्रकार की मदद प्राप्त हो पाई? 
इस सारे घटनाक्रम में कौन बचा और किसे अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी? 
क्या हुआ जयंती प्रसाद और अम्बा का? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं। 

इस उपन्यास में मुख्य पात्र अजीत विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा के अलावा अम्बा, जयंती प्रसाद, अर्चना गोखले, विनोद नंदी, मथानी, अखिलेश नंदी, स्वाति नंदी, सुलेमान कसूरी, दिलावर खान, चंपा, जयंत रमन्ना, कंचन जोशी, जाहिदा मालिक, डॉक्टर हैदर, असलम खान, मेजर अंसारी, रशीद, अजरा जैसे पात्र उपन्यास में मिलेंगे। 

मुझे मुख्य पात्र अजीत विश्वकर्मा की भूमिका ठीक-ठाक लगी। जयंत रमन्ना का किरदार अच्छा लगा। अन्य सहायक पात्रों में स्वाति नंदी, कंचन जोशी, सुलेमान कसूरी और जाहिदा सही लगे। 

उपन्यास की कहानी कुल मिलाकर साधारण ही लगी। लेखक ने कहानी को घुमावदार बनाने की कोशिश तो की है पर सफल नहीं हो पाए। कहानी नॉन-स्टॉप एक्शन से भरपूर है और कहीं-कहीं द्विअर्थी संवादों का भी उपयोग किया गया है। 
कुछ कमियां कहानी को कमजोर बना देती हैं जैसे कि पूरे शहर की संपूर्ण व्यवस्था को ही ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट और लाचार दिखा देना, पुलिस तथा सभी जांच एजेंसियों का बेखबर सोए रहना और फिर अचानक जाग उठना, घटनाओं के तालमेल में गड़बड़ इत्यादि! 

उपन्यास की प्रिंटिंग गुणवत्ता सही है और शाब्दिक गलतियां भी कम हैं।

अगर आपको अच्छी कहानी से अधिक रुचि नॉन-स्टॉप एक्शन एवं कुछ द्विअर्थी संवाद पढ़ने में है तो ये उपन्यास आपके लिए कुछ हद तक मनोरंजक हो सकता है अन्यथा निराशा होने की संभावना ही अधिक है।

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 5/10

04 मई 2022

भाभी - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

उपन्यास : भाभी 
लेखक : जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा 
श्रेणी : सामाजिक / पारिवारिक
पृष्ठ संख्या : 173
प्रकाशक : राधा पॉकेट बुक्स

           राधा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित भाभी उपन्यास कवर

      हाल ही में नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित उपन्यास 

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
 प्रत्येक सांझ की भांति आज प्रभा के चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान नही थी। 
आज वह पूरी तरह गंभीर थी। 
मुस्कुराते हुए मोहन ने कहा - "एक शेर सुनाना चाहता हूं - हंसते खेलते महफिल में आए थे 'फिराक'।
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।"

उपन्यास का आरंभ गुलाब रेस्तरां के दृश्य से होता है जहां प्रेमी युगल मोहन और प्रभा अपनी शादी की तारीख निश्चित होने की खुशी मनाने के लिए मिलते हैं। बातचीत के दौरान मोहन अपनी भाभी पद्म, उनकी सादगी और उनके स्वभाव के बारे में प्रभा को बताता है। 

"भाभीजी क्या क्या जानती है, यह तो तुम तभी जानोगी जब इस घर में आ जाओगी। यह सही है कि घर बड़ा था और उसमें रसोई आदि के अतिरिक्त दस कमरे थे। परंतु साठ वर्ष पहले बना हुआ पुराने ढंग का घर था। धीरे-धीरे भाभीजी ने उसे एकदम आधुनिक ढंग का घर बनवा दिया है।"

मोहन अच्छी तनख्वाह पर दिल्ली में सरकारी नौकरी में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। मोहन के परिवार में उसका बड़ा भाई बलदेव, भाभी पद्म और उनकी छोटी सी बेटी मधु है। बलदेव की पुरानी दिल्ली में फैंसी कपड़ों की बड़ी दुकान है तथा घर पर फैंसी कपड़े बनाने का कारखाना है। 
मोहन की होने वाली पत्नी प्रभा एक बेहद संपन्न परिवार से है और बचपन से ही सुख-सुविधाओं में पली-बढ़ी है। प्रभा के परिवार में उसके माता-पिता, बड़ा भाई सुबोध, भाभी माया और उनके बच्चे हैं। 
शादी होने के बाद प्रभा मोहन के साथ घर आती है और पद्म प्रेमपूर्वक नई दुल्हन का स्वागत करती है। संपन्न परिवार की प्रभा पद्म और बलदेव की संतोषी प्रवृति और उनके सादगी भरे परिवार को देख एक बार तो विस्मित रह जाती है। 
रीति-रिवाज के अनुसार प्रभा पहला फेरा लगाने मायके जाती है और उसके बाद नियमित रूप से मायके जाने लगती है। परंतु मायके के हर चक्कर के साथ ही प्रभा के व्यवहार में कुछ बदलाव आने लगता है और शीघ्र ही परिस्थितियां अलग मोड़ लेने लगती हैं। 

परंतु क्या हमेशा ही वातावरण शांत रहना था?
कहा जाता है कि जब रेगिस्तान में जबरदस्त आंधी आने को होती है, उससे पूर्व साधारण हवा भी लगभग बंद हो जाती है। अगर कहा जाए कि कुछ ऐसा ही था तो गलत न होगा।

बढ़िया व्यापार होने के बावजूद बलदेव और पद्म संतोष और सादगी भरे जीवन में कैसे प्रसन्न थे? 
मायके के हर चक्कर के साथ ही प्रभा के व्यवहार में बदलाव क्यों और कैसे आने लगा? 
क्या परिणाम निकला प्रभा के व्यवहार में हो रहे निरंतर बदलाव का? 
कैसा था प्रभा का परिवार और कैसे थे उनके विचार? 
शादी के बाद क्या बदलाव आया मोहन की जिंदगी में? 
बदलती हुई परिस्थितियों का बलदेव और पद्म पर क्या असर पड़ा? 
फिर बलदेव और पद्म ने क्या किया? 
ऐसे हालात में क्या प्रभा का परिवार कुछ कर पाया?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर ही प्राप्त कर पाएंगे। 

पात्रों की बात करें तो इस उपन्यास में प्रभा, मोहन, बलदेव, पद्म, मधु, सुबोध, माया, नरेश कुमार सेन, सकलानी, यासीन, भोला पंडित, अनवर, मेहता, अजीज, थामस, बिशन सिंह, सोराबजी और डॉक्टर चाची जैसे पात्र पढ़ने को मिलेंगे। 
पद्म और बलदेव के किरदार बहुत अच्छे बन पड़े हैं। मोहन और प्रभा भी सही लगे। सहायक पात्रों में नरेश कुमार सेन, माया और सोराबजी बढ़िया लगे।

उपन्यास की कहानी अच्छी है और पारिवारिक मूल्यों के महत्त्व को समझाती है। लेखक ने कहानी में भावुकता को सही तथा नियंत्रित रूप से दर्शाया है। उपन्यास की कहानी यह संदेश भी देती है कि चाहे कोई खुद को कितना ही चतुर माने, गलती उससे भी हो ही जाती है। लेखक के संवादों ने कहानी में कसावट बनाए रखी है और पात्रों को मजबूती प्रदान की है। 

मनोरंजन की दृष्टि से सामाजिक और पारिवारिक उपन्यास पढ़ने वाले पाठकों को ये उपन्यास बिल्कुल निराश नहीं करेगा।

मुझे उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन सही लगा। उपन्यास की प्रिंटिंग गुणवत्ता ठीक है परंतु कहीं-कहीं पर शाब्दिक गलतियां हैं। 

इस उपन्यास के अंत में लेखक ने 67 पृष्ठों का एक लघु उपन्यास "एक साथ तीन प्रेत" भी प्रस्तुत किया है। हॉरर और जासूसी श्रेणी का ये उपन्यास भी पठनीय है। इसकी समीक्षा हम अगले पोस्ट में प्रस्तुत करेंगे।

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 7.5/10