20 नवंबर 2021

65 लाख की डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : 65 लाख की डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 256

                                  उपन्यास कवर 
                    
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का चौथा अध्याय !!

उपन्यास "65 लाख की डकैती" विमल सीरीज के सबसे प्रसिद्ध और पाठकों द्वारा सर्वाधिक सराहे गए उपन्यासों में से एक है | यह उपन्यास वर्ष 1977 में प्रथम बार गाइड पॉकेट बुक्स, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ था और अब तक विभिन्न प्रकाशक इसे 17 बार हिंदी में और 1 बार इंग्लिश में भिन्न-भिन्न कवर (मुखपृष्ठों) के साथ रीप्रिंट कर चुके हैं | 

                          अंग्रेजी में प्रकाशित उपन्यास कवर

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया शुरूआती अंश : 

"मायाराम ने एक नया सिग्रेट सुलगाया और अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली। वक्त हो गया था।
वह यह बात पहले ही मालूम करके आया था कि करनैल सिंह की मेहता हाउस से किस वक्त छुट्टी होती थी।
मेहता हाउस लारेंस रोड पर स्थित एक विशाल चारमंजिला इमारत थी और उसमें वह बैंक स्थित था जिसके वाल्ट पर डाका डालने के असम्भव कृत्य को सफल बनाने के सपने मायाराम देख रहा था। वह उसकी जिंदगी का आखिरी दांव था। उसमें असफल होने का मतलब था कि उसकी मौत जेल में एड़‍ियां घिस-घिस कर ही होने वाली थी।"

                               उपन्यास कवर

अब बढ़ते हैं कहानी की ओर | पिछले उपन्यास "इश्तिहारी मुजरिम" में विमल मौत के मुंह से बाल-बाल बच कर निकलता है | इस उपन्यास में विमल अमृतसर में एक साल से शांतिपूर्वक रह रहा था और काफी व्यस्त रहने वाले धनवान सेठ लाला हवेलीराम के यहां ड्राइवर की नौकरी कर रहा है | सेठानी सेठ से आयु में बीस साल छोटी थी और विमल से कार ड्राइविंग के अलावा दूसरी सेवाएं भी प्राप्त करना चाहती थी इसलिए उसने अधेड़ या बूढ़े ड्राइवरों की जगह जवान खूबसूरत विमल की सिफारिश की थी | 
क्रूर किस्मत ने यहां भी विमल को नहीं बख्शा ! एक बार फिर जुर्म की दुनिया से वास्ता रखने वाले मायाराम ने उसे पहचान लिया और अपने साथियों द्वारा विमल की निगरानी करनी शुरू कर दी | जब तक विमल को ये बात पता लगी, तब तक देर हो चुकी थी और मायाराम उसके सर पर आ खड़ा हुआ था | न चाहते हुए भी विमल एक बार फिर अपराध की दलदल में उतरने को मजबूर था | 

“मैंने अर्ज किया था, सरदार साहब, कि तशरीफ ले जा रहे हैं?”
“सरदार साहब!” — वह होंठों में बुदबुदाया — “तुम पागल तो नहीं हो? मैं तुम्हें सरदार दिखायी देता हूं ?”
“हां। तुम मुझे सरदार दिखायी देते हो। मेरे ज्ञानचक्षु तुम्हें सरदार सुरेंद्र सिंह सोहल की सूरत में देख रहे हैं।”
उसने एक गहरी सांस ली।
“इधर आओ।” — वह बोला।
सिगरेट वाला उसके सामने आ खड़ा हुआ। वह अभी भी बड़े मैत्रीपूर्ण ढंग से मुस्कुरा रहा था।
“कौन हो तुम?”
“बंदे को मायाराम बावा कहते हैं लेकिन लोग मुझे उस्ताद के नाम से ज्यादा जानते हैं।"

जैसा कि उपन्यास के नाम से ही जाहिर है, मायाराम ने बैंक वॉल्ट से 65 लाख की डकैती की योजना बना रखी थी और योजना की बहुत सी गोटियां भी पहले ही सही जगहों पर फिट कर रखी थी | 

“ 'बल्ले, भई!' — विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला — 'नईं रीसां तेरियां।' 
अब उसे लगने लगा था कि मायाराम कुछ कर गुजरेगा।"

विमल जैसे अनुभवी इंसान के योजना में शामिल होने से अब मायाराम की योजना पूर्ण हो गयी थी और अब उसे अपनी योजना पूरी तरह से सफल होती दिखाई दे रही थी | 

क्या थी मायाराम की डकैती की योजना और विमल की क्या भूमिका थी उस योजना में ?  
बैंक वॉल्ट से 65 लाख लूटना क्या इतना ही आसान था ? 
जयशंकर के साथ पिछली बार की लूट के अनुभव से जो सबक विमल ने सीखे, इस बार क्या वो उन पर अमल कर पाया ?
क्या इस बार भी विमल की जान पर बन आयी ?
क्या कोई और भी रहस्य था जिससे विमल अनजान था? 
क्या पिछली बार की तरह इस बार भी विमल को खून से अपने हाथ रंगने पड़े ?
इस सारे घटनाक्रम में विमल और मायाराम को कहाँ-कहां धक्के खाने पड़े ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे! 

इस उपन्यास में पृष्ठों की संख्या पिछले उपन्यासों से अधिक है | उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत ही कम हैं जो कि अच्छी प्रूफ रीडिंग का परिणाम है | लेखक ने उपन्यास में ज़रा सा हास्य रस भी डाला है खासकर किरदार लाभ सिंह का जगह जगह "लाभ सिंह मटर पनीर" के नाम से पुकारा जाना अनायास ही होंठों पे मुस्कान ला देता है | 
कहानी की गति सही है और पाठकों पर अधिकांश समय तक पकड़ बनाये रखती है | बीच-बीच में कहानी रोचक मोड़ भी लेती है | उपन्यास के सहायक पात्रों में से लाभ सिंह का पात्र ही मनोरंजक लगा, बाकी पात्रों की कुछ ख़ास भूमिका नहीं है | मायाराम और विमल दोनों का तालमेल और परिस्थितियों के साथ जूझने का जज्बा अच्छा बन पड़ा है |

उपन्यास में एक-दो जगह पर पाठकों को विमल का फिर से वही गलती दोहराना और इतने हादसों से बच निकलने के बाद भी अपना कोई बैकअप (बचाव का रास्ता) तैयार न रखना कुछ खल सकता है | हर बार विमल को मजबूर करके उसे लूट या डकैती में शामिल करना भी थोड़ा उबाऊ सा लगता है | 

कुल मिलाकर उपन्यास बढ़िया लिखा गया है और पाठकों को मनोरंजन की उम्दा खुराक देने में सक्षम है | 

चूंकि ये उपन्यास वर्ष 1977 में लिखा गया है अतः उपन्यास पढ़ते हुए समयधारा का ध्यान अवश्य रखें - खासकर तकनीक और उपकरण उस जमाने में इतने मॉडर्न (अत्याधुनिक) नहीं थे और 65 लाख रुपये की रकम आज के हिसाब से इतनी अधिक नहीं है पर उस समय एक बड़ी रकम मानी जाती थी | 

रेटिंग: 8.5/10

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी समीक्षा । इस उपन्यास से विमल के चरित्र की एक नई बानगी देखने को मिलती है , जो उसके आगामी जीवन मे भी रहेगी।

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  2. Vimal series ka ye ek shuruaati novels mein se ek Reding mein mst
    vimal ki kismat ki wo her baar na chahte huye jurm ke chakravyuh me fasta hai
    yahi vimal aage ke novels mein Robin hud type character ban jata hai

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    1. उपन्यास रोचक है। विमल सीरीज के उपन्यास मैंने कम ही पढ़े हैं लेकिन यूँ एक के बाद एक नहीं पढ़े। ये एक अलग अनुभव होगा।

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    2. जी बीच में एक दो उपन्यासों का गैप देकर पढ़ रहे हैं बाकी विमल सीरीज पूरी होने के बाद बाकी जो बीच में पढ़े गए हैं उनके बारे में आपनी राय से आपको जरूर अवगत करवाएंगे।

      साथ ही आदरणीय आपको शुभकामनाए आपकी एक कहानी तहकीकात के लिए चुनी गई है जिसके बारे में भी अपनी राय जरूर देंगे..

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    3. बाकी उपन्यासों के प्रति आपकी राय का इंतजार रहेगा। तहकीकात में मेरे द्वारा किया गया अनुवाद शामिल हुआ है। आभार आपका। आपकी राय का इंतजार रहेगा।

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  3. It is a very famous novel. You have written a good review about it. Thank you.

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