उपन्यास : इश्तिहारी मुजरिम
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक
पृष्ठ संख्या : 154
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव की तलाश करते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की जीवन गाथा का तीसरा अध्याय!!
पिछले उपन्यास "दौलत और खून" में विमल मद्रास (अब चेन्नई) में सत्तर लाख की सफल लूट कर लेता है पर वो लूट के इस माल को अपने पास नहीं रखता बल्कि इसकी जानकारी पुलिस को देने के बाद वो जयशंकर की कार में तुरंत मद्रास से दूर निकल जाता है |
आगे की कहानी इस उपन्यास में शुरू होती है दिल्ली के चांदनी चौक से जहां पर एक तांगेवाला बनवारीलाल अपने तांगे में सवारी बिठाने के लिए आवाजें लगा रहा होता है | बनवारीलाल असल में विमल का ही नया रूप और नया नाम होता है जो कि वो मद्रास से किसी तरह दिल्ली आकर पुलिस से बचने के लिए रख लेता है और इसी बहुरूप में 6 महीने से दिल्ली में तांगा चला रहा होता है |
"दिल्ली मैं इसलिए आया था क्योंकि मद्रास के बाद मुझे कहीं तो जाना ही था और किसी छोटी जगह के मुकाबले में महानगर मुझे ज्यादा सुरक्षित मालूम होते थे । दिल्ली की चालीस लाख से ज्यादा की आबादी में एक मामूली तांगे वाले की ओर ध्यान देने की किसे फुरसत थी ।"
एक बार फिर विमल का दुर्भाग्य कि न सिर्फ एक लड़की रश्मि उसकी असली हस्ती पहचान लेती है बल्कि धोखे से उसे अपने साथी अजीत से भी मिलवाती है |
“अब बनने से कोई फायदा नहीं होगा, सुरेन्द्रसिंह सोहल” - रिवॉल्वर वाला कर्कश स्वर से बोला - “तुम्हारी हकीकत हम पर खुल चुकी है ।”
अजीत ने अपने दो साथियों रश्मि और नासिर के साथ मिलकर डकैती की एक योजना बना रखी होती है और सारी तैयारी भी लगभग पूरी कर रखी होती हैं | योजना को अंजाम देने के लिए उन्हें एक और साथी की जरुरत होती है | विमल को पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर वो लोग विमल को अपने साथ काम करने के लिए मजबूर कर लेते हैं | अब तक विमल की खबर दो राज्यों से फरार इनामी मुजरिम के रूप में देश-भर के मुख्य अखबारों में छप चुकी होती है |
"तुम्हारी गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा की जा चुकी है । तुम आज तक बचे हुए हो केवल इसलिए कि पुलिस को तुम्हारे बिना दाढ़ी मूंछ और पगड़ी वाले हुलिए की जानकारी नहीं है । मैं अधिक देर तुम्हारी ‘बनवारीलाल तांगे वाले’ वाली रट नहीं सुनूंगा । तुमने फिर यही बात दोहराई तो मैं अभी तुम्हें ‘गिरफ्तार’ करवा दूंगा और इनाम की रकम हासिल कर लूंगा ।”
इस प्रकार विमल के रूप में अजीत, रश्मि और नासिर को डकैती की योजना के लिए अपना मनवाँछित चौथा साथी मिल जाता है | विमल की वक्ती तौर पे शांत चल रही जिंदगी में दुबारा हलचल मच जाती है | ये हलचल इतनी जल्दी एक ऐसे भयानक तूफ़ान का रूप ले लेती है कि विमल को अंदाजा भी नहीं लग पाता और वो खुद को इस तूफ़ान में बुरी तरह से फंसा हुआ पाता है !
क्या योजना थी अजीत, रश्मि और नासिर की ?
क्या डकैती की योजना कामयाब हो पाई ?
कैसा तूफ़ान था वो जिसने विमल के होश उड़ाकर रख दिए ?
विमल कैसे उस तूफ़ान से बाहर निकल पाया ?
विमल के लिए क्या मुसीबत सिर्फ डकैती तक ही सीमित थी या कोई और पेंच भी फंसा हुआ था इस पूरे घटनाक्रम में ?
अजीत, रश्मि और नासिर का क्या हुआ ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए आप इस उपन्यास को पढ़ें !
मेरी राय में इस उपन्यास की कहानी की गति अच्छी रखी गई है और कहानी में कई रोचक घुमाव हैं | कहानी में हास्य रास लगभग न के बराबर है और कहानी बीच में २ या ३ जगहों पर गति भी खो देती है | कुल मिलकर मनोरंजन की दृष्टि से यह उपन्यास बेहतर बन पड़ा है |
आपराधिक तत्वों के साथ काम करते हुए विमल की अनुभवहीनता साफ़ झलकती है जिस कारण वो कुछ गलतियां कर बैठता है - ये इस उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है | रश्मि का किरदार भी उपन्यास की कहानी में फिट बैठता है | इस उपन्यास में विमल को जिंदगी का एक कड़वा सबक भी सीखने को मिलता है |
यह उपन्यास 1976 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था अतः उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए पढ़ें | ये उपन्यास इसी सीरीज के पिछले उपन्यास "दौलत और खून" के लगभग साढ़े चार से पांच वर्ष बाद प्रकाशित हुआ था जो कि एक ही सीरीज के दोनों उपन्यासों में एक लम्बा अंतराल है |
रेटिंग : 7/10
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा भाई जी
बहुत अच्छी समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी समीक्षा।
जवाब देंहटाएंआपराधिक तत्वों के साथ काम करते हुए विमल की अनुभवहीनता साफ़ झलकती है जिस कारण वो कुछ गलतियां कर बैठता है - ये इस उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, बहुत ही अच्छी पंक्तियों के चुनाव किया है आपने, ये उपन्यास विमल सीरीज के शुरुआती उपन्यासों में से है , जिससे ये भी पता चलता है कि वो एक आम इंसान है जो केवल वक्त की मार से सताया हुआ है, न कि एक शातिर मुजरिम।
bhuhut hi achhi aur sahi samiksha novel ki
जवाब देंहटाएंlikhi hai
aaj jab chote shahron mein novels ki dhukan ya novel milna lagbhag namumkin sa hi hai tab bhi kisi kisi shop jo der kitaben rakhti hai wahna par Surendra Mohan Pathak ke novel dusre famous shahiyak aur great thinkers ki books ke sath rakha hota hai is se pata chalta Surendra Mohan Pathak ki lokpriyata ka
vimal series ke novel ki kya kahun naam se hi bik jate the ek time jab books hi manoranjan ka mukhya sadhan rahi
मैं तो पाठक जी का बहुत बड़ा फैन हूं
जवाब देंहटाएंGood job on this review.
जवाब देंहटाएंPublished in 1976 year means one pretty old novel.
Storyline is good and main character Vimal aka Sardar Surender Singh Sohal is very interesting.