उपन्यास: मौत का खेल
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक
पेज संख्या: 117 ( किंडल अनुसार )
प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "मौत का खेल", विमल सीरीज का पहला उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और इस उपन्यास का प्रथम एडिशन वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था |
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का प्रथम अध्याय!!
कहानी की शुरुआत बम्बई के विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन के रात के एक दृश्य से होती है जहां फटेहाल कपड़ों में दो दिनों से भूखा-प्यासा विमल कुमार खन्ना एक बेंच पर बैठा हुआ कोई तरकीब सोचने की कोशिश कर रहा था जिससे बिना भीख मांगे और बिना अपराध किये अपने पेट की आग बुझाई जा सके |
तभी एक आदमी आकर उसे कहता है कि अगर विमल रात से ही लाइन में लगकर सुबह टिकट विंडो खुलते ही उसके लिए रेलगाड़ी का टिकट ले ले तो वो उसे दो रुपये देगा | विमल दो रुपये एडवांस में मांगता है ताकि वो खाना खाकर आ सके और टिकट लाइन में लग जाये | आदमी मान जाता है और उसे दो रुपये दे देता है | विमल तुरंत एक सस्ते से होटल में जाकर खाने का आर्डर देता है और खाना आते ही उस पर टूट पड़ता है |
इसी बीच लाल हैंडबैग लिए एक खूबसूरत फैशनेबुल युवती उसी होटल के पीसीओ में फ़ोन करने आती है जिस पर विमल की निगाह भी टिक जाती है | जब वो पीसीओ से बाहर निकलती है तो विमल देखता है कि युवती के पास हैंडबैग नहीं है | खाना ख़त्म करते ही विमल उत्सुकतावश पीसीओ में जाता है और वहां पड़े लाल हैंडबैग को खोल कर देखता है | उसमे सौ सौ के नोटों की दस हजार रुपये की एक गड्डी पड़ी होती है |
"दायें हाथ से मैंने हैंड बैग को खोला और टेलीफोन बूथ की छत पर लगी रोशनी के प्रकाश में मैंने हैंड बैग के भीतर झांका। मेरा मुंह सूख गया ।
किसी महिला के बैग में अपेक्षित साधारण सौन्दर्य प्रसाधनों के ऊपर सौ-सौ के नोटों की नई नकोर बैंक की अनखुली गड्डी मौजूद थी ।
मेरी सांस तेज हो गई । मेरा शरीर पसीने से नहा गया ।"
न चाहते हुए भी विमल लालचवश उस गड्डी को अपनी जेब में सरका लेता है | तभी युवती हैंडबैग ढूंढती हुई पीसीओ में वापिस आती है और विमल को पीसीओ मे खड़ा देखकर हैंडबैग के बारे में पूछती है | घबराया हुआ विमल हैंडबैग उसे दे देता है पर होटल का मालिक युवती को हैंडबैग चैक करने को कहता है क्यूंकि उसे विमल की फटेहाल हालत के कारण उस पर चोरी का शक होता है | विमल तब हक्का-बक्का रह जाता है जब युवती कहती है कि हैंडबैग में सब कुछ ठीक-ठाक है |
युवती विमल को एक अच्छे होटल में ले जाती है | चोरी के अपराध से डरा हुआ विमल चुपचाप उसके साथ चला जाता है | बातचीत के दौरान युवती उसे बताती है कि उसका नाम शांता है और वो बम्बई के एक जाने-माने धनवान सेठ गोकुलदास की पत्नी है | शांता विमल को अपने यहां नौकरी करने का प्रस्ताव देती है | विमल मन ही मन हैरान होता है पर मान जाता है | शांता अपने घर का पता देती है और अगली सुबह उसे वहां पहुँचने का बोल कर चली जाती है | विमल स्टेशन वाले आदमी को उसके पैसे वापिस करता है | अगली सुबह विमल अपना हुलिया ठीक करके शांता के बताये हुए पते पर जाता है |
"स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम में अटेण्डेण्ट को एक रुपया रिश्वत देकर मैं फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम के बाथरूम में घुस गया । मैं मल-मलकर नहाया । कितने दिनों की मैल मेरे जिस्म से उतर रही थी। अन्त में मैं नये कपड़े पहनकर और बाकी का सामान एयरबैग में डालकर बाहर निकल आया ।
वेटिंगरूम के एक खम्भे के साथ एक आदमकद शीशा लगा हुआ था । मैंने उसमें अपनी सूरत देखी तो खुद मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । मेरा एकदम काया-पलट हो गया था । कौवा हंस बन गया था ।
महीनों से अपनी मनहूस सूरत, जो मैं कभी-कभार शीशे में देखता आया था, गायब हो गई थी।"
विमल को वहां ड्राइवर + सहायक की नौकरी मिल जाती है और साथ ही उसे बताया जाता है कि सेठ गोकुलदास एक गंभीर एक्सीडेंट के बाद से बिस्तर पर ही हैं और बहुत ही नाजुक हालत में हैं | एक डॉक्टर अक्सर सेठजी का चेकअप करने आता था और एक नर्स सेठजी की देखभाल के लिए घर में ही रोज ड्यूटी पर आती थी | विमल का मुख्य काम सेठजी की देखभाल करना, उनको उठाना-लिटाना, व्हील चेयर पे घुमाना, नर्स की सहायता करना और जरुरत पड़ने पर कार या मोटर बोट को ड्राइव करना होता है |
नौकरी के दौरान विमल को पता चलता है कि उससे पहले एक गोवानी आदमी बोस्को को इस नौकरी से निकाल दिया गया था क्यूंकि उसकी लापरवाही से सेठजी की जान जाते जाते बची थी | सेठ जी की एक बेटी माधुरी भी होती है जो सेठ जी से मिलने के लिए दशहरा की छुट्टी में घर आने वाली होती है |
जैसे-जैसे समय गुजरता जाता है, वैसे-वैसे घटनाएं कुछ इस प्रकार घटती हैं कि विमल को उस घर में षड़यंत्र की बू आने लगती है जिसकी कड़ियाँ शांता से जुडी होती हैं और ना चाहते हुए भी विमल को उस षड़यंत्र का एक हिस्सा बनना पड़ता है |
आखिर कौन था विमल और इस फटेहाल हालत में क्यों था?
शांता ने अचानक विमल को इस तरह नौकरी पर क्यों रख लिया?
सेठ गोकुलदास की ऐसी हालत क्यों हो गयी थी?
ऐसा क्या षड़यंत्र था जिसकी विमल को गंध मिल रही थी?
क्या उस षड़यंत्र का पर्दाफाश हो पाया?
विमल उस षड़यंत्र में कैसे फंस गया और क्या अंजाम हुआ विमल का?
इन सब सवालों के जवाब आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिलेंगे !
कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है | कहानी में ज्यादा घुमाव तो नहीं हैं पर कहानी कसी हुई है | विमल के किरदार और उसकी मानसिक हालत को समझने में ये उपन्यास अच्छी भूमिका निभाता है |
चूंकि उपन्यास 1971 में लिखा गया है इसलिए नए पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए ही पढ़ें |
जिन पाठकों ने पहले से ही काफी सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास पढ़ रखे हैं, मेरे ख्याल से उन्हें ये उपन्यास औसत ही लगेगा |
रेटिंग :- 6.5/10
मैंने भी इस उपन्यास को पढ़ा है।उपन्यास अच्छा और तेज रफ्तार है।एक बार अवश्य पढ़ें। थैंक्स
जवाब देंहटाएंरोचक समीक्षा। इस उपन्यास के प्रति मेरे विचार भी आपके जैसे ही थे। मुझे यह औसत से थोड़ा ही बेहतर लगा था।
जवाब देंहटाएंमेरे विचार: मौत का खेल समीक्षा
बहुत बेहतरीन समीक्षा❤️
जवाब देंहटाएंMaine ye upyans bhuhut kafi time pehle padha tha
जवाब देंहटाएंtha smp ke vimal series ke ek do novel bhuhut
rochak lage baki aage bhi vimal seies ko padh
Kar pata chalta hai ki ye series kyon itni hit
rahi
उपन्यास रोचक है लेकिंन पूरा कथानक और घटनाक्रम चेज़ के एक उपन्यास से उठाया गया है।
जवाब देंहटाएंक्या सर आप उस उपन्यास का नाम बता सकते है। अगर आप यहां नही बताना चाहते तो आप मुझे मेल कर सकते हैं या फिर आप मुझे 7497070299 पर व्हाट्सएप के माध्यम से भी जानकारी दे सकते हैं।
हटाएंI think "just another sucker " james nearly ka wo novel hain jiski copy ki hain
हटाएंWow! good information.
हटाएंAapki baton se lagta hai ki Vimal ka ye novel James Headley Chase ke novel 'Just Another Sucker' se inspired hai or lekhak ne hindi paathako ke hisaab se kahaani me jaroori badlaav karke likha hai.
The Wary Transgressor hai us novel ka naam
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