10 नवंबर 2021

दौलत और खून - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : दौलत और खून 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 177

प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "दौलत और खून", विमल सीरीज का दूसरा उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और यह उपन्यास वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था |

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का दूसरा अध्याय !!

                               नया उपन्यास कवर

                            टू इन वन उपन्यास कवर

उपन्यास में से ही एक अंश : 
"जयशंकर ने उसके अभिवादन का उत्तर दिया और फिर बोला - “मिस्टर, मैं ज्यादा बोलना पसन्द नहीं करता इसलिये मैं अपनी बात फौरन और कम से कम शब्दों में कहने जा रहा हूं ।”
“क्या मतलब ?” - युवक हैरानी से बोला ।
“मतलब यह कि तुम्हारी हकीकत मुझ पर खुल चुकी है ।” - जयशंकर धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर में बोला - “तुम वही विमल कुमार खन्ना हो जिसकी बम्बई की पुलिस को लेडी शान्ता गोकुलदास की हत्या के सिलसिले में तलाश है । लेकिन तुम्हारा वास्तविक नाम विमल कुमार खन्ना भी नहीं है । तुम्हारा वास्तविक नाम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल है और तुम इलाहाबाद सैन्ट्रल जेल के फरार मुजरिम हो ।”
युवक फौरन अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ । उसने केबिन के द्वार की ओर कदम बढ़ाया ।
“चुपचाप अपनी जगह पर बैठ जाओ ।” - उसके कानों में जयशंकर का सांप की तरह फुंफकारता हुआ स्वर पड़ा । उसने देखा, जयशंकर के हाथ में एक साइलेन्सर लगी रिवॉल्वर चमक रही थी ।"

इस उपन्यास की कहानी पिछले उपन्यास "मौत का खेल" की कहानी से आगे बढती है और एक नया ही मोड़ ले लेती है | पिछले उपन्यास में विमल उर्फ़ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल मोटरबोट के द्वारा बम्बई से बाहर निकल जाता है और इस उपन्यास में वो मद्रास (अब चेन्नई) जा पहुंचता है | 

मोटरबोट को ठिकाने लगाने के बाद वो कुछ दिन तक तो छिपा रहता है पर पैसा ख़त्म होने के कारण उसे बम्बई में सेठ गोकुलदास के घर से से चुराया हुआ मोतियों का हार बेचने के लिए बाहर निकलना पड़ता है | विमल, गिरीश कुमार वर्मा बनकर वीरप्पा से हार का सौदा करने के लिए मुलाकात करता है पर हाय रे विमल की किस्मत - वीरप्पा अपनी बम्बई की पुरानी जानकारी के आधार पर विमल को पहचान लेता है और झूठ बोलकर उसे जयशंकर नाम के एक आदमी से मिलवाता है | 

जयशंकर एक कुख्यात अपराधी है जो कई बार जेल जा चुका है | जयशंकर ने सत्तर लाख रूपये लूटने का एक मास्टर प्लान बनाया होता है जिसमें उसे कामयाबी की तो पूरी गारन्टी है पर लूट में साथ के लिए एक पांचवे साथी की जरुरत होती है । जयशंकर की मुलाकात जब विमल से होती है तो जैसे जयशंकर की मन की मुराद पूरी हो जाती है | जयशंकर पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर विमल से हार छीन लेता है और विमल को अपने जुर्म में शामिल कर लेता है ।

जयशंकर उसे बाकी साथियों से मिलवाता है और अपने प्लान की जानकारी देता है | प्लान फाइनल होने के बाद जल्द ही वो दिन आ जाता है जब लूट करनी होती है | जयशंकर, विमल और बाकी साथी प्लान के अनुसार निर्धारित समय पर लूट की जगह पर पहुँचते है और अपना अपना काम शुरू कर देते हैं |

जयशंकर का मास्टर प्लान क्या था? 
क्या सत्तर लाख की ये लूट सफल हो सकी या उसमे कोई नया ही पेच फंस गया? 
क्या विमल की किस्मत ने उसका साथ दिया और उसे लूट के पैसे में से उसका हिस्सा मिल पाया? 
क्या विमल जयशंकर से अपना पीछा छुड़वा पाया? 
इस सारे चक्कर में विमल को क्या-क्या पापड बेलने पड़े? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिल जायेंगे! 

उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत कम है इसलिए कहानी के प्रवाह में कोई बाधा नहीं आती | 
लूट और डकैती को आधार बनाकर काफी उपन्यास लिखे जा चुके हैं इसलिए लूट से सम्बंधित कथानक में कुछ नया अनुभव होने की संभावना कम ही है ! परन्तु कहानी में जो घुमाव डाले गए हैं, वो रोचक हैं और उत्सुकता बनाये रखते हैं | 
उपन्यास के शुरुआत में जयशंकर की प्रधानता दिखाई गयी है और विमल का किरदार इस उपन्यास में बाद में उभर कर सामने आता है | ये भी इस उपन्यास का एक रोचक पहलू है |
इस उपन्यास की कहानी पिछले भाग "मौत का खेल" से बेहतर लगी | उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है |

ये उपन्यास वर्ष 1971 में लिखा गया है अतः पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास पढ़ते समय समयधारा का ध्यान अवश्य रखें | 

रेटिंग: 7/10

8 टिप्‍पणियां:

  1. विमल सीरीज के शुरुआती उपन्यासों में से एक। बहुत साल पहले पढ़ा था।

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  2. वास्तव में पुस्तक रोचक है ।यह विमल का शुरुआती उपन्यास है
    ।विमल का कहर बाद में शुरू होता है जो पाठकों को एक अलग ही दुनिया मे ले जाता है जहाँ विमल और उससे जुड़े पात्र उसे अपने परिवार की तरह लगने लगते हैं ।
    समीक्षाकार ने बहुत ही बढ़िया लिखा है।कम शब्दों में कथ्य की झलक प्रस्तुत करना जिससे रोचकता का अहसास हो श्रमसाध्य है जिसके लिए वे निश्चय ही बधाई के पात्र हैं ।

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  3. Bahut hi acchi aur rochak samiksha. Kafi samay se ye upanyas meri to do list me hai. Ab agla reading number is upanyas ka

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  4. रोचक उपन्यास है... काफी पहले शायद 2016 में पढ़ा था... जहाँ पहले उपन्यास ने मुझे मुतमइन नहीं किया वहीं इस उपन्यास ने विमल के दूसरे उपन्यास पढ़ने के लिए प्रेरित कर दिया था....मेरा लेख : दौलत और खून

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  5. ek time tha jab Surendra Mohan Pathak ke novels chaye rahe naam se log kharid lete they
    vimal series ke ye novel aaj bhi padhne mein rochak hai fir us time to mst lage
    padhkar pta chalta hai vimal seies meiñ dum hai

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  6. बहुत जबरदस्त समीक्षा, इस ब्लॉग पर पढ़कर ही विमल का पहला नावेल पढा अब ये भी शुरू करूँगा कुछ दिन में।

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  7. Rochak sameeksha. Aise hi achchhi achchhi jaankaari dete rahe. :)

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