25 जनवरी 2022

विमल का इंसाफ - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : विमल का इंसाफ
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 264 (किंडल)
एमेजॉन लिंक : उपन्यास लिंक

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का बारहवां अध्याय !!

                            उपन्यास कवर 

जहां पिछले उपन्यास "हार जीत" ने बखिया पुराण की नींव रखी थी, वही इस उपन्यास 'विमल का इंसाफ' में बखिया पुराण की महागाथा आरंभ होती है। 

बखिया पुराण - विमल सीरीज के अंतर्गत चार उपन्यासों में फैली हुई एक रोमांचक और जबरदस्त महागाथा! 
बखिया पुराण के चारों उपन्यास विमल सीरीज में सबसे सफल और पाठकों द्वारा बेहद सराहे गए उपन्यासों की सूची में शामिल है। 
1984 के समय में बखिया पुराण को रचकर लोकप्रिय हिंदी साहित्य में बतौर क्राइम एवं थ्रिलर लेखक, सुरेंद्र मोहन पाठक ने प्रसिद्धि के एक नए शिखर को छू लिया था।

उपन्यास "विमल का इंसाफ" से लिया गया एक छोटा सा अंश: 

“पहले मेरी पूरी बात सुनो, स्टूपिड ।” - विमल क्रूर स्वर में बोला ।
“यस, सर ।” - रिसैप्शनिस्ट हड़बड़ा गया - “सारी, सर ।”
“जवाब देना है । कोई मेरी बाबत पूछताछ करे तो उसे सही, मुनासिब और मुकम्मल जवाब देना है ।”
“लेकिन सर, आपने तो कहा था कि…..” 

इस उपन्यास का आरंभ पिछले उपन्यास 'हार जीत' के अंतिम दृश्य से ही होती है। सुइट नंबर 42 में डोगरा का खून करने के बाद विमल होटल नटराज की चौथी मंजिल के गलियारे में खड़ा होता है। डोगरा को मारने से पूर्व विमल को उससे पचास हजार रुपयों की राशि की जगह सिर्फ ढाई हजार रुपए ही मिल पाते हैं। 

 उसके खून से कालीन का लाल रंग और लाल हो गया था और उसका भेजा उसके इर्द-गिर्द सारे कालीन पर बिखरा पड़ा था।
लाश पर निगाह डाले बिना उसने आगे बढकर पलंग के पहलू में रखी एक मेज पर पड़ा टेलीफोन उठाया ।
तुरन्त दूसरी ओर से टेलीफोन आपरेटर की आवाज आई |
“मेरा नाम..... 

विमल के लिए ये राशि अब तक नाक का सवाल बन चुकी होती है। वो सुलेमान से फोन पर बात करता है और कंपनी से बाकी के साढ़े सैंतालीस हजार रुपए चुकाने की मांग करता है, क्योंकि मरते समय डोगरा कंपनी का ओहदेदार था और सालों पहले इलाहाबाद में वो पचास हजार रुपया डोगरा ने कंपनी में ही जमा करवाया था। 

“आपकी जाती हैसियत में आपसे नहीं बल्कि आपकी कम्पनी के एक ओहदेदार की हैसियत में आपसे। आपकी कम्पनी के नाम से जानी जाने वाली आर्गेनाइजेशन से।आपके बाप बखिया से।”
“लेकिन क्यों ?”
"क्योंकि डोगरा मर चुका है और मरते वक्त वह इतनी रकम
* का मेरा कर्जदार था। क्योंकि जिस रकम का वह मेरा देनदार था, वह उसने आपको सौंपी थी।” 

सुलेमान विमल की इस मांग को मानने से मना कर देता है और दोनो में बहस हो जाती है। इस बहस के दौरान सुलेमान विमल के सामने कंपनी की ताकत और बंबई में कंपनी के दबदबे का बखान करता है। प्रत्युत्तर में विमल सुलेमान को चेतावनी देता है कि अगर उसे कंपनी से उसके हक के साढ़े सैंतालीस हजार रुपए नहीं मिले तो वो बंबई में कंपनी को पूरी तरह से ध्वस्त कर देगा। 

अगर यह रकम सीधे से मुझे हासिल न हुई तो आपका यह बम्बई शहर मौत का ऐसा नाच देखेगा जैसा कभी किसी ने कहीं न देखा होगा । मैं यहां जहन्नुम का वो नजारा पेश करूगा कि आपकी और आपकी समूची आर्गेनाइज़ेशन की आत्मा त्राहि-त्राहि कर उठेगी । मैं
राजबहादुर बखिया की ईंट से ईंट बजा दूंगा। 

सुलेमान की ना सुनने के पश्चात विमल नीलम के साथ मिलकर योजना बनाता है और कंपनी के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर देता है। भला कंपनी जैसी शक्तिशाली, सुदृढ़ और सुसंगठित आपराधिक संस्था भी कहां चुप बैठने वाली थी! एक-दूसरे को परास्त करने के लिए दोनो पक्ष चाल पर चाल चलने लगते हैं। शीघ्र ही ये लड़ाई एक ऐसी खतरनाक गैंगवार में बदल जाती है जिससे पूरी बंबई का अंडरवर्ल्ड थर्रा उठता है और बच्चे-बच्चे की आंखें इस गैंगवार पर आ टिकती हैं।

 जो जिहाद तुमने “कम्पनी’ के खिलाफ छेड़ा है, बम्बई के अण्डरवर्ल्ड के बच्चे-बच्चे को उसकी वाकफियत है । अण्डरवर्ल्ड में तुम्हारी भी कोई कम जय-जयकार नहीं है | क्रिमिनल वर्ल्ड में तुम“वन मैन आर्गेनाइजेशन’ के नाम से जाने जाते हो । अण्डरवर्ल्ड की निगाह में बखिया को अपना मैच अभी मिला है इसलिए हर कोई सांस रोक इस मुकाबले के नतीजों का इन्तजार कर रहा है । 

बंबई में कंपनी जैसी खतरनाक क्राइम आर्गेनाइजेशन के खिलाफ किसी को सर उठाता देखकर पुलिस भी एक बार सोच में पड़ जाती है। बंबई की सड़कों पर खून-खराबा बढ़ता देखकर पूरे पुलिस विभाग के साथ स्वयं पुलिस कमिश्नर भी सक्रिय हो जाता है और सारे घटनाक्रम की तह तक पहुंचने में जुट जाता है।

.... खुद पुलिस कमिश्नर बोरीवली पहुंचा। वह घटना आम दिनों से हुई होती तो शायद कमिश्नर तक उसकी खबर भी नहीं पहुंचती, लेकिन उन दिनों शहर में सोहल की ऐसी हवा थी कि शहर में घटी हर असाधारण घटना का रिश्ता स्वयंमेव ही सोहल और उसकी बखिया की आर्गेनाइजेशन के खिलाफ छेड़ी गई गैंगवार से जोड़ लिया जाता था । 

विमल ने कंपनी से टकराने और उसे ध्वस्त करने का निर्णय क्यों लिया?
कंपनी से टकराने के लिए विमल और नीलम ने क्या योजना बनाई?  
सोहल बनाम कंपनी की लड़ाई ने इतनी खतरनाक गैंगवार का रूप कैसे ले लिया? 
क्या कंपनी विमल और नीलम पर पलटवार कर सकी? 
क्या विमल और नीलम अपने ऊपर मंडराते अंजान खतरों से स्वयं को बचा पाए?  
क्या कंपनी के खिलाफ इस लड़ाई में विमल और नीलम को कोई सहायता प्राप्त हो सकी?
विमल और कंपनी की इस गैंगवार में पुलिस की क्या भूमिका रही? 
कौन-कौन शिकार हुआ दिल दहला देने वाली इस गैंगवार का? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिलेंगे। 

विमल सीरीज का यह उपन्यास बहुत बढ़िया लिखा गया है। मेरी राय में अगर आप उपन्यास पढ़ना शुरू करेंगे तो एक ही बार में उपन्यास को पूरा करना चाहेंगे - न सिर्फ उपन्यास को बल्कि बखिया पुराण को भी! 

चूंकि बखिया पुराण की कहानी विस्तृत है इसलिए कहानी में पात्रों की संख्या भी अधिक है। पात्रों की बात करें तो आप इस उपन्यास में विमल और नीलम के साथ सुलेमान, घोरपड़े, शिवाजी राव, मिसेज पिंटो, संध्या, दंडवते, जॉन रोडरीगुएज, पालकीवाला, तुकाराम, शांतिलाल, जीवाराम, बालेराम, देवाराम, कांति देसाई, मोटलानी, जिमी जैसे पात्रों की उपस्थिति पाएंगे। खलनायक पात्रों में से जॉन रोडरीगुएज, सुलेमान और दंडवते की भूमिका बढ़िया लगी। घोरपड़े और मिसेज पिंटो भी कहानी के अनुसार सही लगे। संध्या का किरदार छोटा पर काफी अच्छा है। तुकाराम और उसके भाई कहानी में और जान डाल देते हैं। विमल कंपनी के खिलाफ जबरदस्त एक्शन में नजर आता है और अपने पांसे बहुत अच्छे से फेंकता है।

उपन्यास में सिर्फ एक ही कमी लगी कि कंपनी के अधिकतर आदमी कोई भी काम करने से पहले या काम के दौरान काफी बातचीत (डायलोगबाजी) करते हैं जिस कारण कुछ जगहों पर उनके संवाद अनावश्यक रूप से खिंचे हुए प्रतीत होते हैं।

यह उपन्यास वर्ष 1984 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के रिप्रिंट एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है। शाब्दिक गलतियां भी छोटी-मोटी ही हैं अतः कहानी पढ़ने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। 

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

रेटिंग: 9/10

7 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने तो अपनी जिंदगी में इतने वर्षों में कभी भी एसएमपी को रीड नहीं किया है
    पर अब लगता है विमल सीरीज को पढ़ना ही पड़ेगा आपने तो सस्पेंस पैदा कर दिया
    बाकी का रिव्यू तो पढ़ने के बाद ही दूंगा

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  2. बहुत शानदार समीक्षा की है भाई जी आपने 👌👌👌👌👌
    मैंने अभी तक विमल सीरीज नहीं पढ़ी है लेकिन आपकी समीक्षा को पढकर अब जरूर पढूंगा ।

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  3. बखिया पुराण मील का पत्थर है लुगदी साहित्य में,
    विमल पर ना भूतों ना भविष्यति वाली कहावत चरितार्थ होती है,
    इस सीरीज ने कई आयाम तय किये उस समय मे और ये आज भी बम्पर हिट है ,आल टाइम पठनीय है हर आयु वर्ग के लिए,
    लुगदी साहित्य में विमल ना पढ़ा तो क्या पढ़ा,
    अविस्मरणीय महागाथा

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  4. सुनील जी वैसे तो मैं SMP के नोवेल्स नही पढ़ता हूँ पर आपने इतनी शानदार समीक्षा पेश की है अब ये उपन्यास पढ़े बिना रहा नही जाएगा। और भी ऐसे ही शानदार उपन्यासों के बारे में अवगत कराते रहें। आपकी एक समीक्षा ने ही मेरी दिलचस्पी राजभारती जी के नोवेल्स में पैदा की थी। धन्यवाद

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  5. मैंने बखिया पुराण की सभी उपन्यास पढ़ी है। सब एक से बढ़कर एक है। बिमल सीरीज अविस्मरणीय है। सचमुच "न भूतों न भविष्यति". आप की समीक्षा न्यायसंगत लगी। धन्यवाद।

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  6. Ye vastav me ek jabardast novel hai. apki samiksha bi lajwab hai. Aise hi hame badhia novels ke bare me batate rahe.

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  7. bakhyia ko best villain bataya smp ne puri Vimal series mein bakhyia ki story mein shamil hona ek naya interest jagta hai reder ke man mein
    achhi samiksha ek achha lekh

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