उपन्यास : असफल अभियान
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक
पेज संख्या : 182 (किंडल)
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का नौवां अध्याय !!
उपन्यास "असफल अभियान" के आरंभ से लिया गया एक छोटा सा अंश:
इमारत में या उसके आसपास कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं थी। आसपास सैकड़ों गज तक कोई दूसरी इमारत भी नही दिखाई दे रही थी।
विमल कई क्षण इमारत के सामने ठिठका सा खड़ा रहा था।
प्रत्यक्षत: उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि वह सही जगह पहुंच गया था या नहीं।
उस समय वह अपने फेमस हिप्पी परिधान में था।
पिछले उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" के अंत में किस्मत से ही विमल की जान बचती है और वो अपना बहुरूप धारण करके आगरा से सुरक्षित निकल जाता है, हालांकि लूट का माल़ आखिरी मौके पर उसके हाथ से फिसल जाता है।
उपन्यास "असफल अभियान" की शुरुआत होती है सोनपुर की एक दोमंजिली इमारत से जहां द्वारकानाथ की कही एक बात को मानकर विमल डॉक्टर स्लेटर से मिलने आता है ताकि वो प्लास्टिक सर्जरी से एक नया चेहरा हासिल कर सके और अपनी पुरानी जिंदगी से छुटकारा पा सके। पर विमल के पास डॉक्टर स्लेटर की फीस भरने लायक धन नहीं होता अतः वो निराश होकर वापिस लौटता है।
"छोड़िए ।" - विमल उठता हुआ बोला - "थैंक्यू फोर एवरीथिंग, डॉक्टर स्लेटर ।
"मतलब ?" डॉक्टर स्लेटर सकपकाया ।
"मतलब यह कि आपके अक्षत यौवन की मुझे जरूरत नहीं और आपसे हासिल होने वाला नया चेहरा शायद मेरी किस्मत में नही लिखा ।
वापिस लौटते समय सोनपुर के स्टेशन पर विमल की मुलाकात एक आदमी जगमोहन से होती है। जगमोहन भी इसी काम के लिए आया होता है और उसके साथ भी यही समस्या होती है। तुरंत धन प्राप्त करने का और कोई हल न होने के कारण विमल जगमोहन के साथ राजनगर चला जाता है क्योंकि उसके पास पैसे कमाने की एक तरीका होती है ।
"सॉरी । मैंने समझा था कि जब तुमने मेरा जयपुर वाला काम पकड़ा है तो मेरे कामों से मेल खाती कोई योजना भी तुम्हारे दिमाग में होगी।"
"यह बात नही है ।"
"तो फिर तुम्हारे दिमाग में क्या है ?"
"मेरे दिमाग में है.........."
जगमोहन की बात सुनने के बाद विमल को विचार अच्छा तो लगता है पर थोड़ा खतरनाक भी! विमल योजना बनाने के लिए और योजना पर पर काम करने के लिए मान जाता है । योजना बनाने के पश्चात विमल जगमोहन के साथ मिलकर तुरंत जरूरी तैयारियां करने और उपयुक्त साथियों की खोज करने में लग जाता है ।
"गुरु ।" - जगमोहन मंत्रमुग्ध स्वर में बोला - "तुम्हारे कहने के ढंग से तो यह मुझे चुटकियों में हो जाने वाला मामूली काम लग रहा है।"
"अगर हमारी तकदीर ही हमें दगा न दे गई और हमने पूरी सावधानी और पूरी निष्ठा से काम किया" - विमल बोला - "तो यह काम मामूली ही साबित होगा। मेरी योजना की यही विशेषता है कि......"
साथियों, यहां आप सोच रहे होंगे कि राजनगर तो ब्लास्ट अखबार के खोजी रिपोर्टर सुनील का कार्यक्षेत्र है! ऊपर से विमल भी राजनगर में ही एक नए हंगामे की तैयारी कर रहा है। ऐसे में आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि जब 2 मुख्य नायक विमल और सुनील एक साथ इस उपन्यास में आएंगे तब कहानी में क्या होगा !
कौन था जगमोहन और क्या था उसका इतिहास ?
क्या था जगमोहन का विचार जो विमल को योजना बनाने के लिए अच्छा लगा ?
क्या विमल और जगमोहन अपनी योजना के लिए उपयुक्त साथियों को ढूंढ पाए ?
क्या सुनील और विमल की आपस में भेंट हो सकी और फिर क्या हुआ उनके बीच ?
क्या वास्तव में ही विमल और जगमोहन का अपनी योजना को फलीभूत करना इतना सीधा और सरल था?
कौन था फोस्टर और क्या था उसका राज ?
क्या सुनील को विमल की योजना के बारे में पता लग पाया?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा।
पिछले अधिकांश उपन्यासों में तो विमल को अक्सर दूसरे अपराधियों के दबाव में आकर डकैती या लूट में उनका सहयोगी बनना पड़ा था परंतु इस उपन्यास में विमल स्वयं अपनी इच्छा से योजना का लीडर बनता है। ये बात पिछले उपन्यासों से अलग लगी। साथ ही पिछले उपन्यास में द्वारकानाथ से सीख लेने के बाद इस उपन्यास में विमल पहले की अपेक्षा अधिक जागरूकता से निर्णय लेता है।
सुनील अपने चिर-परिचित खोजी पत्रकार वाले अंदाज में ही काम करता नजर आता है।
विमल, जगमोहन और सुनील के बाद इस उपन्यास में सहायक पात्रों की भरमार है। आप इस उपन्यास में डॉक्टर स्लेटर, सोलंकी, हेल्गा, मंगलू, रमाकांत, पोपली, महेंद्रनाथ, फोस्टर, डियाना, दाताराम, इंस्पेक्टर बंसल, एल्बुकर्क, रोज़ी एवं चार्ली आदि पात्रों से मिलेंगे।
मुझे पोपली और जगमोहन के पात्र अच्छे लगे। महेंद्रनाथ को छोड़कर अन्य सहायक पात्र अपनी जगह पर अधिकतर सही लगे। महेंद्रनाथ का स्वभाव कहानी के हिसाब से थोड़ा-सा अनुपयुक्त लगा।
उपन्यास की कहानी मनोरंजक है, हालांकि कहानी कुछ ही जगहों पर रोचक मोड़ लेती है क्योंकि इस उपन्यास का अधिकतर भाग विमल और जगमोहन द्वारा योजना से जुड़ी तैयारियों में, उपयुक्त साथियों की खोज करने और कहानी के विभिन्न हिस्सों का आपस में संबंध स्थापित करने में ही चला जाता है। कहानी की गति सामान्य लगी।
मेरे विचार से यह उपन्यास पाठकों को एक बार पढ़ना चाहिए।
यह उपन्यास वर्ष 1981 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था ।
उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन में कुछ ही शाब्दिक त्रुटियां हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए यहां बताना चाहता हूं कि यह कहानी दो उपन्यासों की श्रृंखला में लिखी गई है। कहानी "असफल अभियान" उपन्यास से शुरु होती है और "खाली वार" उपन्यास में समाप्त होती है।
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