26 दिसंबर 2021

असफल अभियान - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : असफल अभियान 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 182 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का नौवां अध्याय !!

उपन्यास "असफल अभियान" के आरंभ से लिया गया एक छोटा सा अंश:
इमारत में या उसके आसपास कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं थी। आसपास सैकड़ों गज तक कोई दूसरी इमारत भी नही दिखाई दे रही थी। 
विमल कई क्षण इमारत के सामने ठिठका सा खड़ा रहा था।
प्रत्यक्षत: उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि वह सही जगह पहुंच गया था या नहीं।
उस समय वह अपने फेमस हिप्पी परिधान में था।

                                     उपन्यास कवर

पिछले उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" के अंत में किस्मत से ही विमल की जान बचती है और वो अपना बहुरूप धारण करके आगरा से सुरक्षित निकल जाता है, हालांकि लूट का माल़ आखिरी मौके पर उसके हाथ से फिसल जाता है।

उपन्यास "असफल अभियान" की शुरुआत होती है सोनपुर की एक दोमंजिली इमारत से जहां द्वारकानाथ की कही एक बात को मानकर विमल डॉक्टर स्लेटर से मिलने आता है ताकि वो प्लास्टिक सर्जरी से एक नया चेहरा हासिल कर सके और अपनी पुरानी जिंदगी से छुटकारा पा सके। पर विमल के पास डॉक्टर स्लेटर की फीस भरने लायक धन नहीं होता अतः वो निराश होकर वापिस लौटता है। 

"छोड़िए ।" - विमल उठता हुआ बोला - "थैंक्यू फोर एवरीथिंग, डॉक्टर स्लेटर । 
"मतलब ?" डॉक्टर स्लेटर सकपकाया ।
"मतलब यह कि आपके अक्षत यौवन की मुझे जरूरत नहीं और आपसे हासिल होने वाला नया चेहरा शायद मेरी किस्मत में नही लिखा ।

वापिस लौटते समय सोनपुर के स्टेशन पर विमल की मुलाकात एक आदमी जगमोहन से होती है। जगमोहन भी इसी काम के लिए आया होता है और उसके साथ भी यही समस्या होती है। तुरंत धन प्राप्त करने का और कोई हल न होने के कारण विमल जगमोहन के साथ राजनगर चला जाता है क्योंकि उसके पास पैसे कमाने की एक तरीका होती है । 

"सॉरी । मैंने समझा था कि जब तुमने मेरा जयपुर वाला काम पकड़ा है तो मेरे कामों से मेल खाती कोई योजना भी तुम्हारे दिमाग में होगी।"
"यह बात नही है ।"
"तो फिर तुम्हारे दिमाग में क्या है ?"
"मेरे दिमाग में है.........."

जगमोहन की बात सुनने के बाद विमल को विचार अच्छा तो लगता है पर थोड़ा खतरनाक भी! विमल योजना बनाने के लिए और योजना पर पर काम करने के लिए मान जाता है । योजना बनाने के पश्चात विमल जगमोहन के साथ मिलकर तुरंत जरूरी तैयारियां करने और उपयुक्त साथियों की खोज करने में लग जाता है । 

"गुरु ।" - जगमोहन मंत्रमुग्ध स्वर में बोला - "तुम्हारे कहने के ढंग से तो यह मुझे चुटकियों में हो जाने वाला मामूली काम लग रहा है।" 
"अगर हमारी तकदीर ही हमें दगा न दे गई और हमने पूरी सावधानी और पूरी निष्ठा से काम किया" - विमल बोला - "तो यह काम मामूली ही साबित होगा। मेरी योजना की यही विशेषता है कि......"

साथियों, यहां आप सोच रहे होंगे कि राजनगर तो ब्लास्ट अखबार के खोजी रिपोर्टर सुनील का कार्यक्षेत्र है! ऊपर से विमल भी राजनगर में ही एक नए हंगामे की तैयारी कर रहा है। ऐसे में आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि जब 2 मुख्य नायक विमल और सुनील एक साथ इस उपन्यास में आएंगे तब कहानी में क्या होगा !

कौन था जगमोहन और क्या था उसका इतिहास ? 
क्या था जगमोहन का विचार जो विमल को योजना बनाने के लिए अच्छा लगा ? 
क्या विमल और जगमोहन अपनी योजना के लिए उपयुक्त साथियों को ढूंढ पाए ? 
क्या सुनील और विमल की आपस में भेंट हो सकी और फिर क्या हुआ उनके बीच ?  
क्या वास्तव में ही विमल और जगमोहन का अपनी योजना को फलीभूत करना इतना सीधा और सरल था? 
कौन था फोस्टर और क्या था उसका राज ? 
क्या सुनील को विमल की योजना के बारे में पता लग पाया? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा।

पिछले अधिकांश उपन्यासों में तो विमल को अक्सर दूसरे अपराधियों के दबाव में आकर डकैती या लूट में उनका सहयोगी बनना पड़ा था परंतु इस उपन्यास में विमल स्वयं अपनी इच्छा से योजना का लीडर बनता है। ये बात पिछले उपन्यासों से अलग लगी। साथ ही पिछले उपन्यास में द्वारकानाथ से सीख लेने के बाद इस उपन्यास में विमल पहले की अपेक्षा अधिक जागरूकता से निर्णय लेता है। 
सुनील अपने चिर-परिचित खोजी पत्रकार वाले अंदाज में ही काम करता नजर आता है। 
विमल, जगमोहन और सुनील के बाद इस उपन्यास में सहायक पात्रों की भरमार है। आप इस उपन्यास में डॉक्टर स्लेटर, सोलंकी, हेल्गा, मंगलू, रमाकांत, पोपली, महेंद्रनाथ, फोस्टर, डियाना, दाताराम, इंस्पेक्टर बंसल, एल्बुकर्क, रोज़ी एवं चार्ली आदि पात्रों से मिलेंगे। 
मुझे पोपली और जगमोहन के पात्र अच्छे लगे। महेंद्रनाथ को छोड़कर अन्य सहायक पात्र अपनी जगह पर अधिकतर सही लगे। महेंद्रनाथ का स्वभाव कहानी के हिसाब से थोड़ा-सा अनुपयुक्त लगा।

उपन्यास की कहानी मनोरंजक है, हालांकि कहानी कुछ ही जगहों पर रोचक मोड़ लेती है क्योंकि इस उपन्यास का अधिकतर भाग विमल और जगमोहन द्वारा योजना से जुड़ी तैयारियों में, उपयुक्त साथियों की खोज करने और कहानी के विभिन्न हिस्सों का आपस में संबंध स्थापित करने में ही चला जाता है। कहानी की गति सामान्य लगी।
 
मेरे विचार से यह उपन्यास पाठकों को एक बार पढ़ना चाहिए।

यह उपन्यास वर्ष 1981 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 
उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन में कुछ ही शाब्दिक त्रुटियां हैं।

                            टू इन वन उपन्यास कवर

पाठकों की जानकारी के लिए यहां बताना चाहता हूं कि यह कहानी दो उपन्यासों की श्रृंखला में लिखी गई है। कहानी "असफल अभियान" उपन्यास से शुरु होती है और "खाली वार" उपन्यास में समाप्त होती है। 

साथियों, हमेशा की तरह आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवगत करवा सकते हैं | हमें आपकी राय का इंतजार रहेगा ।
 
रेटिंग: 7/10

23 दिसंबर 2021

दिन दहाड़े डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : दिन दहाड़े डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 241 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का आठवां अध्याय !!

                               उपन्यास कवर

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" से लिया गया एक अंश:

विमल ने अपने समीप से गुजरते एक डिब्बे का हैंडल थाम लिया और साथ ही उसके पायदान पर छलांग लगा दी ।
उसके सारे जिस्म को एक जोर का झटका लगा, लेकिन उसने अपने हाथ से सूटकेस निकलने न दिया ।
तभी एकाएक गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई ।
विमल ने घूमकर पीछे देखा ।

पिछले उपन्यास "मौत का फरमान" के अंत में कंचन के कत्ल के इल्जाम से विमल बेगुनाह साबित होता है पर ठीक उसी समय पुलिस द्वारा बीकानेर बैंक रॉबरी वैन की बरामदगी की खबर उसे अखबार में पढ़ने को मिलती है ।

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" की शुरुआत होती है उस दृश्य से, जहां विमल तुरंत जयपुर छोड़ने की तैयारी कर रहा है । अपना हिप्पी रूप धारण करके जैसे ही वो निकलता है, उसे एहसास होता है कि कोई उसके पीछे लगा है । उसका अंदेशा सही साबित होता है और बचने के लिए वो दिल्ली जा रही ट्रेन में चढ़ जाता है ।

मिर्जा इस्माइल रोड पर स्थित अपने गैरेज से निकलते ही विमल के मन में यह आशंका घर कर गई थी कि वह किसी की निगाहों में था ।
फुलेरा के पास से बीकानेर बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी बरामद होने की खबर पढते ही उसने फैसला कर लिया था कि अब उसका एक क्षण के लिए भी जयपुर में ठहरे रहना खतरनाक साबित हो सकता था ।

पर अफसोस ! विमल कुछ अनजान पर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों द्वारा धोखे से गुड़गांव के स्टेशन पर उतार लिया जाता है । इन लोगों का मुखिया अपना नाम द्वारकानाथ बताता है और बाकी लोगों से विमल का परिचय करवाता है । द्वारकानाथ उसे पुलिस के हवाले करने की धमकी देकर अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देता है । 

द्वारकानाथ ने साफ-साफ कुछ नहीं कहा था लेकिन विमल को उसमें किसी जयशंकर की, किसी अजीत की, किसी मायाराम बावा की, किसी ठाकुर शमशेरसिंह की साफ झलक मिल रही थी ।
नये शिकारी ! नया जाल !
दाता !

फिर द्वारकानाथ विमल को बताता है कि उसे विमल की जरूरत क्यों पड़ी और इस बात का भी खुलासा करता है कि वो विमल को लूट में साथ देने के लिए मजबूर नहीं करेगा पर अगर विमल उसका साथ देता है तो विमल का एक ऐसा बड़ा फायदा हो सकता है जो उसे जुर्म की जिंदगी और पुलिस के चक्कर से काफी हद तक छुटकारा दिला सकता है। 

“बिल्कुल । सरदार साहब, मैं तुम्हारा यही फायदा कर सकता हूं कि मैं तुम्हें ऐसा रास्ता सुझा सकता हूं, जिससे तुम अपने इस निश्चित अंजाम से बच सकोगे ।”
“ऐसा क्या कर सकते हो तुम ?”

साथ ही द्वारकानाथ विमल को समाज में पैसे वालों के रूतबे, पैसे की ताकत और दुनियादारी के कड़वे पर असली तरीकों के बारे में समझाता है । विमल से ऐसी बातें पहले कभी किसी ने नहीं की थी । द्वारकानाथ की बातें सुनकर विमल सोच में पड़ जाता है और प्रभावित होकर द्वारकानाथ का साथ देने का फैसला कर लेता है।

“शाबाश । देखकर खुशी हुई कि मैंने जो इतनी देर भाषण दिया है, उसका तुम पर कोई असर हुआ है ।”
“बहुत असर हुआ है ।”
“जानकर खुशी हुई ।”
“एक बात कहना चाहता हूं, द्वारका ।”
“क्या ?”
“मैंने तुम्हारे जैसा दादा नहीं देखा ।

फिर द्वारकानाथ विमल और अपने बाकी साथियों कूका, गंगाधर को स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी को लूटने की योजना विस्तार से समझाता है। विमल भी बारीकी से योजना का विश्लेषण करता है। लूट को अंजाम देने के लिए जरूरी सामान का इंतजाम कर लिया जाता है और लूट की बाकी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं। शीघ्र ही लूट के लिए निर्धारित किया हुआ दिन भी आ पहुंचता है।

क्या थी द्वारकानाथ की योजना? 
क्या स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी लूटी जा सकी? 
ऐसा क्या फायदा बताया द्वारकानाथ ने, जो विमल की जिंदगी बदल सकता था? 
क्या था वो सबक जिसे सुनकर विमल द्वारकानाथ से प्रभावित हो गया? 
क्या लूट का पैसा द्वारकानाथ और विमल के हाथ आया या फिर उसे कोई और ही उस पैसे पर हाथ साफ कर गया? 
ऐसा क्या खतरा था जिससे अपनी जान बचाना विमल के लिए भी मुश्किल था? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे |

यह उपन्यास वर्ष 1980 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 

उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन की प्रूफ रीडिंग पर अच्छा ध्यान दिया गया है।

इस उपन्यास में पहली बार विमल अपनी खुद की मर्जी से लूट की योजना का हिस्सा बनना स्वीकार करता है हालांकि आरंभ में उसे मजबूर किया जाता है।

विमल का किरदार इस उपन्यास में पसंद आया। द्वारकानाथ का किरदार भी कहानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विमल और द्वारकानाथ की जोड़ी बढ़िया बन पड़ी है। खासकर द्वारकानाथ का विमल को दुनियादारी का सबक देने वाला पार्ट बेहतरीन लगा। सहायक किरदारों के रूप में कूका, गंगाधर, राजेंद्र कुलश्रेष्ठ,  शैलजा और सरोज के किरदार पढ़ने को मिलते हैं। इनमे से कूका और सरोज का किरदार ही मुझे ज्यादा अच्छा लगा। 
कहानी की बात करें तो कुल मिलाकर कहानी मनोरंजक है । इस उपन्यास की कहानी में अधिक घुमाव नहीं है पर कहानी अपनी पकड़ बनाए रखती है और घटनाक्रम में हल्का-सा सस्पेंस भी बरकरार रहता है । कहानी सामान्य गति से ही आगे बढ़ती दिखी।

मेरी हिसाब से आप इस उपन्यास को एक बार पढ़ सकते हैं, आपको निराशा नहीं होगी।
 
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रेटिंग: 7/10

15 दिसंबर 2021

वर्दी वाला फरिश्ता - वेद प्रकाश शर्मा

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं वेद प्रकाश शर्मा के अब तक अप्रकाशित उपन्यास " वर्दी वाला फरिश्ता " के बारे में ! 

                       उपन्यास वर्दी वाला फरिश्ता का विज्ञापन 

"वर्दी वाला फरिश्ता" उपन्यास का विज्ञापन वेद प्रकाश शर्मा जी के 157वें उपन्यास के तौर पर दिया गया था और विज्ञापन के अनुसार उपन्यास के तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित होने की संभावना थी। परंतु ये उपन्यास कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ!

इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आलेखों को चेक करने के पश्चात प्राप्त हुई संक्षिप्त जानकारी के अनुसार वेद जी "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास की भारी सफलता के बाद से ही एक ऐसा उपन्यास लिखना चाहते थे जिसमे पुलिस की अच्छी और नायक वाली छवि दिखाई जा सके। "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास में पुलिस की भूमिका अधिकांशत: नकारात्मक ही थी। 
अब ये जानकारी सही है या गलत - इस बारे में या तो वेद जी के परिवार का कोई सदस्य बता सकता है या फिर कोई पुराना प्रकाशक या फिर कोई पाठक जो इस बारे में कुछ जानता हो!

मेरी राय में अगर वेद जी पुलिस की अच्छी छवि और किसी पुलिस वाले को मुख्य सकारात्मक भूमिका में रखकर ये उपन्यास लिखते और उपन्यास प्रकाशित होता तो निश्चय ही पाठक इस उपन्यास को पढ़ने के प्रति अपनी दिलचस्पी प्रदर्शित करते!

क्या यह उपन्यास लिखा ही नहीं जा सका? 
क्या उपन्यास का लेखन कार्य किसी कारणवश अधूरा ही रह गया? 
अगर उपन्यास पूरा लिखा जा चुका था तो फिर प्रकाशित क्यों नहीं हो पाया? 
ये सब प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं।

अगर आपके पास इस बारे में कोई जानकारी हो तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते हैं |

12 दिसंबर 2021

मौत का फरमान - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : मौत का फरमान
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 162 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का सातवां अध्याय !!

                           नया उपन्यास कवर 

पिछले उपन्यास "बैंक वैन रॉबरी" के अंत में विमल इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और मीना से अपना हिसाब बराबर करने के बाद जयपुर में ही टिका रहता है और अपना गैराज का काम चालू रखता है | 

उपन्यास "मौत का फरमान" से लिया गया एक छोटा सा अंश:

हर आने वाले दिन मैं उस मोटर मैकेनिक गैरेज में अपने-आपको पहले से ज्यादा सुरक्षित पाता था ।
लेकिन मेरी जिन्दगी में सुरक्षा का क्या काम ! सुख, चैन और इत्मीनान का क्या काम ! वाहे गुरु अपने गुनहगार बन्दों को सुरक्षा, सुख, चैन और इत्मीनान का सांस कहां आने देता है !
इस बार तकदीर ने मुझे ऐसी पटखनी दी कि मेरे होश उड़ गये ।

उपन्यास "मौत का फरमान" की शुरुआत जयपुर में थाने के एक कमरे के दृश्य से होती है जहां पर पुलिस विमल से एक औरत कंचन के रेप और कत्ल के बारे में कड़ी पूछताछ कर रही है | विमल मना करता है पर पुलिस उस पर ये आरोप स्वीकार करने के लिए लगातार दबाव डाल रही है | कोई और चारा न चलता देखकर विमल गोवा में अलफांसो को सहायता के लिए फोन करता है | 

                             ओल्ड उपन्यास कवर

अल्फांसो से बात हो जाने के बाद न जाने क्यों मुझे राहत महसूस होने लगी थी ।
सारी दुनिया में केवल दो ही शख्स थे जिनसे मैं किसी मदद को कोई उम्मीद कर सकता था - गोवा में मैगुअल अल्फांसो और चण्डीगढ में नीलम ।

अलफांसो परिस्थिति की गंभीरता को समझ जाता है और उसी समय अल्बर्टो को विमल की सहायता हेतु जयपुर के लिए रवाना कर देता है | अल्बर्टो जयपुर पहुंचते ही विमल के पास जयपुर के सबसे अच्छे वकील को भेजता है | 

वह आदमी मेरी बगल में बैठ गया और मुस्कराता हुआ बोला - “मेरा नाम ठाकुर कृपालसिंह है । मैं जयपुर का सबसे नामी वकील माना जाता हूं । आपके दोस्त मिस्टर अल्बर्टो ने अदालत में आपके केस की पैरवी करने के लिए मुझे चुना है ।”

इसी बीच पुलिस विमल को वैन में कंचन के कत्ल वाली जगह पर लेकर जाती है पर रास्ते में ही एक खतरनाक अपराधी दिलावर विमल को पुलिस से छुड़वाकर ले जाता है | विमल सोचता है कि अल्बर्टो ने उसे छुड़वाया है पर दिलावर से परिचय होने पर वो हक्का बक्का रह जाता है | दिलावर उससे किसी माल़ के बारे में पूछता है पर विमल कहता है कि उसे कुछ नहीं पता | दिलावर क्रोधित हो उठता है और दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो जाते है | विमल घायल हो जाता है पर अपनी जान बचाकर निकल जाता है | 

अंधेरा होने तक मैं उन्हीं झाड़ियों में लेटा रहा ।
दिलावर सिंह फिर उस रास्ते वापस नहीं लौटा । लेकिन वह जंगल में कहीं भी हो सकता था । मेरे बहुत पास । मुझसे बहुत दूर ।
अन्त में मैं अपने स्थान से उठा ।

घायल और थका-हारा विमल किसी तरह अल्बर्टो से संपर्क साधता है और उससे मिलकर इस सारे बखेड़े से बाहर निकलने की योजना बनाना आरंभ करता है | जब विमल इस सारे मामले की गहराई में उतरने का प्रयास करता है, तब उसे एहसास होता है कि ये मामला जरूरत से ज्यादा ही खतरनाक है तथा कैसे मौत का साया हर घड़ी उसके और अल्बर्टो के सिर पर मंडरा रहा है | 

“तुमने कहा था, तुम मेरी मदद करोगी । मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है । सख्त जरूरत । फौरन ।”
“क्या हो गया है ?”
“मुझे... मुझे गोली लग गयी है ।” - मैं बड़ी मुश्किल से कह पाया - “और इस शहर में मेरा कोई मददगार नहीं ।”

एक तरफ पुलिस से पकड़े जाने का खतरा, दूसरी तरफ दिलावर, तीसरी तरफ कंचन के कत्ल की गुत्थी और उससे जुड़ा हुआ अनजाना खतरा - विमल इन सबमें उलझता ही चला जाता है |

कौन थी कंचन और क्यूं हुआ उसका कत्ल? 
विमल कैसे फंस गया कंचन के कत्ल के जुर्म में? 
क्या पुलिस को विमल की असलियत पता चल सकी? 
कौन था दिलावर और किस माल के लिए विमल के पीछे लगा था? 
कौनसा अनजाना खतरा विमल के सिर पर मंडरा रहा था? 
क्या अल्बर्टो विमल की कोई सहायता कर पाया या खुद भी उस अनजाने खतरे में फंस गया? 
इस सारे घटनाक्रम के लिए कौनसे लोग जिम्मेदार थे?
क्या विमल इन सारी गुत्थियों को सुलझा पाया? 
क्या इस बार विमल को कोई सच्ची सहायता प्राप्त हो सकी या वो अकेला ही इन सारे खतरों से जूझता रहा? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपके लिए इस उपन्यास में उपलब्ध हैं |

यह उपन्यास वर्ष 1978 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 
उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन में शाब्दिक गलतियां बेहद कम हैं जिससे कहानी धाराप्रवाह बनी रहती है |

विमल का पात्र जहां पिछले उपन्यास में सामान्य ही लगा था वहीं इस उपन्यास में विमल जबरदस्त संघर्ष करता हुआ दिखाया गया है जो कि बढ़िया लगा | अन्य पात्रों में अल्बर्टो और शीतल महत्त्वपूर्ण और बेहद दिलचस्प लगे । दिलावर सिंह, कंचन, महिपालसिंह और रूप सिंह शेखावत के पात्र भी अच्छे बन पड़े हैं । 
एक चीज और इस उपन्यास में अलग लगी - पिछले अधिकांश उपन्यासों में विमल को मजबूरीवश लूट या डकैती में शामिल होना पड़ता था पर इस बार उपन्यास का कथानक अलग था ।
कहानी बढ़िया, मनोरंजक और घुमावों से परिपूर्ण है । कहानी में लगभग हर थोड़े अंतराल पर विमल लगातार नए हालातों से जूझता नजर आता है जिस कारण एक बार तो विमल से हमदर्दी का एहसास भी होने लगता है | 
पिछले उपन्यास के मुकाबले यह उपन्यास अधिक पठनीय और रोचक लगा | मेरी राय में इस उपन्यास को एक बार जरूर पढ़ें और कहानी का आनंद उठाएं ।
 
आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवगत करवा सकते हैं |
 
रेटिंग: 7.5/10

06 दिसंबर 2021

बैंक वैन रॉबरी - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास: बैंक वैन रॉबरी
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या: 183 (किंडल)

                               उपन्यास कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का छठवां अध्याय!!

यह उपन्यास वर्ष 1978 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था | उपन्यास से लिया गया एक अंश :

वही स्कर्ट वाली युवती केबिन में बैठी थी ।
“हल्लो !” युवती मादक स्वर में बोली ।
“हल्लो !” प्रहलाद फंसे स्वर में बोला ।
युवती की आवाज में ऐसी खनक थी कि जैसे मन्दिर की
घण्टी खनखनाई हो, जैसे जलतरंग बजी हो, जैसे शीशे से
बर्फ टकराई हो । उसके होठों पर ऐसी दिलफरेब मुस्कुराहट
प्रकट हुई थी कि प्रहलाद सब भूल गया कि अभी एक क्षण
पहले कितनी मुश्किलें और दुश्वारियां उसके जहन में थी ।

पिछले उपन्यास "आज कत्ल होकर रहेगा" के अंत में विमल स्थानीय गैंगवार खत्म करके और अपनी जान बचाने के लिए नारंग का खात्मा करके अलफांसो की मदद से किसी तरह रातोंरात गोवा से बाहर निकल जाता है | 

                              ऑडियो बुक कवर 

इस उपन्यास "बैंक वैन रॉबरी" का पहला दृश्य पाठकों को जयपुर के एक गैराज में ले जाता है जहां पर प्रहलाद कुमार नाम का एक पढ़ा-लिखा ट्रक चालक अपने बिगड़ा हुआ ट्रक ठीक करवाने आता है | मैकेनिक तीरथ सिंह ट्रक की मरम्मत का खर्चा ज्यादा बताता है पर प्रहलाद के पास पैसे की तंगी होती है | तीरथ सिंह उसे मदद का आश्वासन देकर एक फोन करने चला जाता है |

“पुर्जे और मजदूरी दोनों मिलकर यही कोई ढाई-तीन हजार
रूपये ।”
“ढाई तीन हजार रूपये !” प्रहलादकुमार के छक्के छूट गये
“ओ भैया, मेरे पास तो सौ रूपये भी नहीं ।”

गोवा से निकलने के बाद ये गैराज ही अब विमल का नया ठिकाना बन चुका है | विमल शांतिपूर्वक 6 महीने से बसंत कुमार के नाम से जयपुर में ये गैराज चला रहा है जिसमे प्रहलाद अपना ट्रक ले के आया है |

लेकिन विमल उर्फ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल की जिंदगी में इत्मीनान कहां!! 

अचानक एक दिन एक इंस्पेक्टर ठाकुर शमशेर सिंह उसके गैराज में मोटरसाइकिल ठीक करवाने आता है और विमल की असलियत पहचान लेता है | इंस्पेक्टर शमशेर सिंह फांसी की सजा की धमकी देकर विमल को अपने साथ एक बैंक वैन को लूटने की योजना में शामिल होने के लिए मजबूर करता है ताकि रिटायरमेंट के बाद इंस्पेक्टर ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके | 'मरता क्या न करता' की तर्ज पर विमल उसका साथ देने के लिए मान जाता है | 

“तुम्हारे गैरेज में बीकानेर बैंक की रुपया होने वाली बख्तबन्द गाड़ी सर्विसिंग के लिये आती है न ?”
“हां, आती है, लेकिन...”
“उसी गाड़ी के सन्दर्भ में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“कैसी मदद ?”
“वक्त आने पर बता दिया जायेगा, लेकिन पहले यह बताओ
कि तुम मेरी मदद के लिये तैयार हो या नहीं ?”
“अगर मैं इन्कार करू तो ?”
“तो मैं अभी तुम्हें गिरफ्तार करके ले जाऊंगा | सरदार साहब, पलक झपकते ही अपने आपको फांसी के तख्ते पर
खड़ा पाओगे ।"

इंस्पेक्टर विमल को उसकी आंखों से ओझल न होने की धमकी देकर गैराज से चला जाता है | फिर इंस्पेक्टर अपनी योजना के अगले कदम के मुताबिक प्रहलाद को भी अपनी योजना में शामिल कर लेता है |  

“क्या तरीका है ?” प्रहलाद ने उत्सुक भाव से पूछा ।
फिर धीरे धीरे ठाकुर शमशेरसिंह, एस एच ओ मानक चौक
पुलिस स्टेशन, उसे समझाने लगा कि मालामाल होने को क्या
तरीका था ।"

थोड़े ही समय पश्चात इंस्पेक्टर एक सुरक्षित जगह पर एक मीटिंग रखता है जहां लूट की योजना में शामिल सब साथी एक दूसरे से मिलते है | यहां इंस्पेक्टर, विमल का परिचय राकेश, मीना, प्रहलाद और तीरथ सिंह से करवाता है | 

जी हां दोस्तो ! वही तीरथ सिंह जो विमल के गैराज में मैकेनिक था !!

इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और राकेश सबको बीकानेर बैंक वैन को लूटने की योजना के बारे में बताते हैं। साथ ही और किसको क्या करना है, ये भी समझाते हैं।

"डकैती के माल को घटनास्थल से फौरन दूर पहुंचा देने का पूरा प्रोग्राम भी हमने निर्धारित किया हुआ है ।”
”क्या प्रोग्राम है ?”
ठाकुर धीरे-धीरे उस सारी योजना का समझाने लगा ।"

लूट के दिन से पहले ही सारी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं और जल्दी ही वैन लूटने का दिन भी आ जाता है | 

विमल जयपुर में गैराज का मालिक कैसे बना? 
इंस्पेक्टर शमशेर सिंह को विमल के बारे में कैसे पता लगा? 
क्या थी बीकानेर बैंक वैन की लूट की योजना? 
क्या बीकानेर बैंक वैन की लूट सफल हो सकी? 
लूट के पैसे का क्या हुआ और किसको कितना हिस्सा मिला? 
क्या सब कुछ इतना ही सीधा और साफ था जितना सबको लग रहा था या परदे के पीछे कोई और खेल भी चल रहा था? 
क्या एक बार फिर विमल के साथ धोखा हुआ और उसे इस बार भी खून-खराबा करने पर उतारू होना पड़ा? 
क्या भाग्य ने एक बार फिर विमल को किसी नए ठिकाने की तलाश में भटकने के लिए अकेला और बेसहारा छोड़ दिया? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको ये उपन्यास पढ़ना होगा |

उपन्यास के रीप्रिंट की प्रूफ रीडिंग सही है इसलिए गलतियां बहुत ही कम हैं |
किरदारों की बात करें तो इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और मीना के किरदार पढ़ने में अच्छे लगे | नीलम का किरदार इस उपन्यास में दुबारा देखने को मिलता है पर संक्षिप्त रूप से | विमल भी इस उपन्यास में कुछ खास नया या अलग हटकर नहीं करता है |
उपन्यास में अधिकतर किरदारों के संवाद सामान्य ही है | 
उपन्यास की कहानी की गति वैसे तो अच्छी है पर कुछ जगहों पर थोड़ी धीमी होती लगी | कहानी में घुमाव तो जरूर हैं परंतु कुछ नयापन नहीं है | उपन्यास का अंत अच्छा लगा | उपन्यास औसत से थोड़ा ही अधिक मनोरंजक लगा और एक बार पढ़ा जा सकता है |  
 
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