14 फ़रवरी 2022

27 सेकेंड - अनिल मोहन


उपन्यास: 27 सेकंड 
उपन्यास सीरीज: देवराज चौहान सीरीज
लेखक: अनिल मोहन 
पेज संख्या: 270
 
                         उपन्यास कवर 

"उस तबाही को आने में सिर्फ 27 सेकंड ही बचे थे"
उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर पेज) पर प्रिंट की गई उपरोक्तलिखित टैग लाइन एक उत्सुकता सी जगाती है!

उपन्यास से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
** "गुड! जैसा हमने प्लान बनाया था, वैसा ही हो रहा है।" घड़ी में से निकली आवाज कानों में पड़ी।
"यस सर।" 
"कार पर नजर रख रहे हो?" 
"जब तक वो चिप उसके कपड़ों में है, वो मुझे स्क्रीन पर नजर आता रहेगा।" **

इस उपन्यास का आरंभ होता है मार्केट की गैलरी के एक दृश्य से, जहां कुछ गुंडों से बचकर भाग रहा एक डरा-घबराया हुआ आदमी एक मोड़ पर मुड़ते ही वहां खड़े देवराज चौहान से टकरा जाता है और दोनो नीचे गिर पड़ते हैं। देवराज उससे भागने का कारण पूछता है और कारण जानने के बाद उस व्यक्ति को बचाने के लिए देवराज उसे छुपा देता है। जगमोहन के वापिस आते ही वो तीनों वहां से निकल जाते हैं। 

** "नही। मैने कोई गलत काम नहीं...।"
"कार में बैठ जाओ।" 
वो अनिश्चित सा खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा। देवराज चौहान उसे। 
कुछ पल बीते कि वो व्यक्ति एकाएक कार की तरफ दौड़ा और पीछे वाला दरवाजा खोलकर फुर्ती से भीतर जा बैठा। दरवाजा बंद कर लिया। **

आगे वार्तालाप के दौरान वो व्यक्ति अपना नाम हर्षा यादव बताता है। एक सुरक्षित जगह पहुंचकर हर्षा दोनो को अपनी साथी मीनाक्षी से मिलवाता है। कुछ हिचकिचाहट के बाद हर्षा पूरा मामला देवराज और जगमोहन को बताना शुरू करता है। इस दौरान हर्षा जैसे ही जॉर्ज लूथरा और उसकी एक खतरनाक साजिश के बारे में बताता है, देवराज और जगमोहन चौंक उठते है। जॉर्ज लूथरा का नाम तथा पूरा मामला सुनने के पश्चात देवराज गंभीर हो जाता है। फिर देवराज इस बारे में कुछ करने का हर्षा और मीनाक्षी को आश्वासन देता है। 

** "फोन पर खबर कर देंगे।" जगमोहन ने कहा।
"कब तक?"
"एक-दो दिन में।" देवराज चौहान उठता हुआ बोला - "तुम्हारे पास हमारा फोन आ जाएगा कि काम हो सकता है या नही। ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।" **

वहीं दूसरी तरफ सिक्का नाम का एक आदमी सोहनलाल से मिलता है और एक डकैती के सिलसिले में बात करने के लिए देवराज चौहान से मिलना चाहता है। सोहनलाल सिक्का की बात सुनने के बाद उसे कहता है कि पहले वो देवराज से इस बारे में बात करेगा और फिर उससे मिलेगा। सिक्का सोहनलाल की बात मान लेता है। सोहनलाल जगमोहन और देवराज चौहान से इस बारे में बात करने के लिए मिलता है। 

** सिक्का ने उसकी आंखों में झांका। 
"क्या मतलब?" 
"अगर इस काम के लिए देवराज चौहान तैयार हुआ तो फिर बात करूंगा तेरे से।" 
"तो ऐसा बोल।" मुस्करा पड़ा सिक्का - "देवराज चौहान तैयार... **

तो साथियों, यहां से शुरू होता है एक जानलेवा टकराव जिसमें दोनों तरफ से शातिर खिलाड़ी मैदान में उतर आते हैं और एक दूसरे को पराजित करने के लिए चाल पर चाल चलते हैं। टकराव आगे बढ़ने के साथ चुनौतियां और जान जाने का खतरा भी हर पल बढ़ता चला जाता है।

कौन थे हर्षा यादव और मीनाक्षी? वो गुंडे हर्षा के पीछे क्यों लगे थे? 
जॉर्ज लूथरा कौन था? उसका नाम सुनकर देवराज चौहान और जगमोहन चौंक क्यों उठे? 
हर्षा यादव और मीनाक्षी की पूरी बात सुनने के बाद देवराज चौहान ने क्या योजना बनानी आरंभ की? 
सिक्का किस डकैती के सिलसिले में सोहनलाल के माध्यम से देवराज चौहान से मिलना चाहता था? 
आखिर ये 27 सेकंड का क्या चक्कर था? ये 27 सेकंड  इतने महत्त्वपूर्ण क्यों थे और किस योजना में किसके द्वारा इनका उपयोग किया जाना था? 
क्या अंजाम हुआ इस जानलेवा टकराव का? 
किस-किस को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी इस टकराव में?
देवराज और जगमोहन के लिए खतरा इतना अधिक कैसे बढ़ गया? 
इस टकराव के समानांतर ही ऐसा और क्या घटित हो रहा था जिसे स्वयं देवराज, जगमोहन और सोहनलाल भी समझ नही पा रहे थे?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर मिल सकते हैं। 

कुल मिलाकर उपन्यास पढ़ने में बढ़िया लगा। उपन्यास में कई जगह रोमांचक मोड़ आते हैं। कहानी तेज गति और सस्पेंस से परिपूर्ण है। देवराज, जगमोहन और सोहनलाल का दुश्मन से टकराव अच्छा बन पड़ा है। दुश्मन द्वारा चली जाने वाली चालें और चालें चलने का तरीका पसंद आया। 

उपन्यास में आप देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल के साथ हर्षा यादव, रामदेव, मीनाक्षी, विनायक, सिक्का, जॉर्ज लूथरा, राजन, विम्मी, धींगड़ा, मुसीबर खान, पाटे खान, नूरा, साजन सिंह, राजा, सूरी इत्यादि पात्रों से मिलेंगे। हर्षा और मीनाक्षी के पात्र बढ़िया लगे। अन्य पात्र भी अपनी जगह ठीक लगे।

उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर पेज) कहानी के अनुरूप ही डिजाइन किया गया है। सफेद कागज पर उपन्यास की प्रिंटिंग अच्छी की गई है और शाब्दिक गलतियां भी अधिक नहीं हैं। 

मेरे विचार से अनिल मोहन का यह उपन्यास पाठकों को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। उपन्यास पढ़ते समय कहीं ठहराव या बोरियत का अनुभव होने की संभावना कम ही है।

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

7 टिप्‍पणियां:

  1. नरेश वार्ष्णेय14 फ़रवरी 2022 को 12:33 pm बजे

    बहुत शानदार समीक्षा भाई जी ��������������


    समीक्षा पढ़कर एक बार फिर से नावेल पढ़ने का मन हो गया । आज ही फिर से पढ़ना शुरू करता हूं।

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  2. बहुत जबरदस्त समीक्षा है काफी पहले पढ़ा था ये नॉवेल पर अब पुनः पढ़ना पड़ेगा गुड वर्क

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  3. वाह भाई जी आपने तो इस नावेल की यादों को ताजा कर दिया। बहुत ही रोमांचक नावेल है ये अनिल मोहन जी की। बिलकुल ही सटीक समीक्षा पेश की है आपने। आपने बिल्कुल सही कहा ये उपन्यास एक बार तो जरूर पढ़ना चाहये। आशा करूँगा आप राजभारती के हॉरर श्रृंखला के उपन्यासों से भी हम पाठकों का परिचय करवायेंगे। कृपया क्रम जारी रखें ।

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  4. उपन्यास के नाम में ही सस्पेंस है '27 सेकंड' और ऊपर से उपन्यास के कवर पृष्ठ के ऊपर लिखा गया उपरोक्त कथन कि "उस तबाही को आने में सिर्फ 27 सेकंड ही बचे थे" इतना पढ़कर तो कोई भी उपन्यास का प्रेमी इसको पढ़कर आनेवाली उस तबाही के बारे में जानने के लिए उत्सुक होगा। ऊपर से समीक्षा इतनी शानदार है कि इसको पढ़कर हर कोई अपनी जिज्ञासा को शांत करना अवश्य चाहेगा।

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  5. 27 सेकंड ,रोचक उपन्यास, जार्ज लूथरा और देवराज
    की अनोखी लड़ाई,
    बेहतरीन समीक्षा सुनील भाईजी,1 बार फिर read करता हु,

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  6. Bahut achchhi sameeksha bhai. Majedar novel tha.
    Harsha or Meenakshi ki jodi achchhi thi. Luthra bhi achchha lagta hai novel me. Devraj or Jagmohan ki jodi to achchhi hoti hi hai.

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