श्रेणी: जासूसी तथा अपराध कथाएं
पेज संख्या: 150
मूल्य: 150 रुपए
प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय
प्रधान संपादक: सुबोध भारतीय
संपादक: राम पुजारी
साथियों! बहुत वर्ष पूर्व जासूसी पत्रिकाएं बेहद प्रचलन में हुआ करती थी। लगभग सभी लेखकों की जासूसी कहानियां, अपराध कथाएं एवं उपन्यास इन पत्रिकाओं में छपा करते थे। पाठक भी इन पत्रिकाओं को खूब चाव से पढ़ा करते थे। एक ही पत्रिका में पाठकों को अलग-अलग कहानियों और उपन्यासों का आनंद मिल जाया करता था। समय बीतने के साथ ऐसी सभी पत्रिकाएं बंद हो गई। सिर्फ गिनी-चुनी अपराध कथाओं से जुड़ी पत्रिकाएं ही अपना वर्चस्व बचा पाईं हैं परंतु उनकी बिक्री भी क्रमशः घटती जा रही है।
आज इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी ही नई जासूसी पत्रिका 'तहकीकात' के बारे में जिसके प्रथम अंक (प्रवेशांक) को नीलम जासूस कार्यालय ने दिसंबर 2021 माह में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। संपादकीय परामर्शदाता के रूप में परशुराम शर्मा, वेद प्रकाश कांबोज, आबिद रिजवी, योगेश मित्तल और वीरेंद्र कुमार शर्मा जैसी अनुभवी हस्तियों ने पत्रिका में अपना योगदान दिया है।
चलिए, बात करें अब तहकीकात पत्रिका के प्रवेशांक तथा इसमें प्रस्तुत की गई लेखन सामग्री के बारे में!
प्रवेशांक की शुरुआत सुबोध भारतीय ने "सुनहरे दौर की वापसी" नामक आलेख द्वारा की है। इसके पश्चात राम पुजारी का संपादकीय आता है।
फिर आता है 'शुभकामना संदेश' जिसमे विभिन्न पाठकों और प्रख्यात उपन्यासकार अमित खान ने तहकीकात पत्रिका के लिए अपनी शुभकामनाएं दी हैं तथा इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
इसके बाद चार जासूसी-अपराध कथाएं पढ़ने को मिलती हैं:
1. चरित्रहीन (मौलिक कहानी अहमद यार खान द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
2. हत्यारा कौन (मौलिक कहानी मलिक सफदर हयात द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
3. शराबी कातिल (वेद प्रकाश कंबोज द्वारा रचित)
4. रहस्यमयी खबरी (अंग्रेजी कहानी 'ए बर्गलर्स घोस्ट' - विकास नैनवाल द्वारा हिंदी अनुवाद)
कहानियों के मध्य पुराने दिग्गज उपन्यासकार श्री वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास "चीते की आंख" की समीक्षा प्रकाशित की गई है जिसे गुरप्रीत सिंह (गुरप्रीत जी साहित्य देश, विवेकानंद पुस्तकालय बगीचा नामक दो ब्लॉग चलाते है तथा उन पर पुस्तको की समीक्षा उनके बारे में जानकारी लेखकों की जानकारी इत्यादि उपलब्ध करवाते है) ने लिखा है।
फिर आता है पत्रिका का अंतिम भाग "सत्यबोध परिशिष्ट"। परिशिष्ट में पहले लेखक रोशनलाल सुरीरवाला की लघु कहानी "चील कौवे" प्रस्तुत की गई है।
फिर हस्तीमल हस्ती, बशीर बद्र और राजेश रेड्डी जैसे शायरों की गजलों को स्थान दिया गया हैंl।
इसके बाद सुबोध भारतीय की कहानी "अहसान का कर्ज" आती है।
तत्पश्चात गोविंद गुंजन का आलेख "किताबों के दिन" है जिसमे उन्होंने अपनी यादों और लोकप्रिय साहित्य की किताबों के महत्त्व के बारे में बताया है।
फिर डा. राकेश कुमार सिंह और जितेंद्र नाथ ने पुराने हिंदी उपन्यासकार जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के दो उपन्यासों "सांझ का सूरज" और "रुक जाओ निशा" की समीक्षा प्रस्तुत की है।
पत्रिका का समापन हास्य रस से होता है। बीच-बीच में एक-दो जगहों पर व्यंग्य का पुट भी दिया गया है।
कुल मिलाकर पत्रिका मनोरंजक लगी। प्रवेशांक की दृष्टि से लेखन सामग्री में विविधता देखने को मिलती है। चार कहानियां पुरानी हैं पर रोचक हैं। वेद प्रकाश कांबोज की कहानी उनकी लेखनी की याद ताजा कर देती है।
सत्यबोध परिशिष्ट भी बढ़िया बन पड़ा है। "चील कौवे" कहानी न सिर्फ मार्मिक है बल्कि आज भी प्रासंगिक है। 'अहसान का कर्ज़' कहानी भी अच्छी लगी।
आज के इंटरनेट के युग में भी नीलम जासूस कार्यालय ने एक नई जासूसी पत्रिका को प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। नीलम जासूस कार्यालय का यह कदम सराहना योग्य है। फिलहाल नीलम जासूस कार्यालय की योजना इसे द्विमासिक पत्रिका के तौर पर प्रकाशित करने की है।
यहां पर मैं दो बातें बताना चाहूंगा जो पत्रिका में ठीक की जाएं तो पत्रिका और भी बेहतर हो जायेगी।
पहली बात - पत्रिका का मूल्य 150 रुपए मुझे अधिक लगा। पत्रिका में विज्ञापनों को प्रकाशित कर और पाठकों का आधार बढ़ाकर आगामी अंकों के मूल्य को कम किया जा सकता है। इससे आर्थिक लाभ में भी बढ़ोतरी होगी।
दूसरी बात - प्रवेशांक के कागज की गुणवत्ता साधारण ही लगी। आम पत्रिका में मुख्यत जो पेज होते हैं उसकी तरह पेज नही है जिसके कारण मुझे लगता है पत्रिका का मूल्य ज्यादा लगा। आगामी अंकों में गुणवत्ता को और अच्छा किया जाना चाहिए।
उम्मीद हैं कि तहकीकात पत्रिका के आगामी अंक और भी मनोरंजक होंगे। हमारी कामना है कि पत्रिका को पाठकों का भरपूर प्यार मिले और पत्रिका भविष्य में भरपूर सफलता प्राप्त करे। हमारी शुभकामनाएं नीलम जासूस कार्यालय के साथ हैं।
अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।
रेटिंग: 7.5/10
जासुसी पत्रिकाएं कभी नही पढ़ी। किन्तु आपने काफी रोचक जानकारी उपलब्ध कराई हैं। रोचक भी लग रहा है। एक बार तो जरूर पढूंगा। इस पत्रिका से साक्षात्कार कराने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार समीक्षा की है आपने ������������
जवाब देंहटाएंपत्रिका कतार में है, समय मिलते ही पढते हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
उत्तम समीक्षा सुनीलजी ,सालों बाद 1 बार फिर नीलम जासूस ,रोचक है, बुक रीड करना पड़ेगी आपकी समीक्षा पढ़ के,जल्द ही
जवाब देंहटाएंwaah bahut badhiya samiksha purana daur laut rha hai
जवाब देंहटाएंSach hai ki kisi time manoranjan ke liye is prakar ki patrikaon ka raj tha
जवाब देंहटाएंNishchit hi sunil ji ke dwara ki gayi samiksha utkrisht hai aur patikra padhne ko prerit karti hai
अति उत्तम सराहनीय
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है आपने आशा करता हु जिस प्रकार आपने लिखा है बुक उसके हिसाब से ही हो तभी पाठक इसकी तरफ झुकेंगे जारी रखिये
जवाब देंहटाएंजी वैसे तो सभी का अपना अपना नजरिया अपना अपना टैस्ट होता है। फिर भी उम्मीद है जैसे मेरे नजरिए में उतरी है उसी प्रकार आपके नजरिए में उतरे। पढ़ने के बाद जरूर बताए आपको कैसे लगी।
हटाएंUttam samiksha. Patrika achchhi lag rahi hai aapki jankari ke aadhaar par.
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