आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं एक और अप्रकाशित उपन्यास "सुलग उठा बारूद" के बारे में जो कि अनिल मोहन का है !
उस गैलरी के आखिरी कोने में वॉल्ट के स्ट्रॉन्ग रूम का दरवाजा था और दरवाजे तक पहुंचने के बीस फीट लंबे रास्ते पर बारूद भी बिछा था, जिस पर पैर रखते ही शरीर लोथड़ों में बदल जाना था और बीस फीट लंबे सुलगते बारूद को पार किए बिना वॉल्ट के दरवाजे तक पहुंचना असंभव था जिसके पार करोड़ों अरबों की अथाह दौलत मौजूद थी। जबकि उस दौलत को पाने के लिए देवराज चौहान अपना कदम आगे बढ़ा चुका था। आज उसे गोल्ड वॉल्ट में डकैती डालनी ही थी... और
उपरोक्त विज्ञापन के अनुसार अनिल मोहन का देवराज चौहान श्रृंखला का ये उपन्यास एक जबरदस्त डकैती को अंजाम देने पर आधारित है। विज्ञापन का आधार डकैती में मुख्य रुकावट बनी हुई बारूद बिछी बीस फीट की गैलरी रखा गया है जिसे पार कर पाना आसान काम नही था। वहीं पर देवराज चौहान अपना मन इस वॉल्ट को लूटने का बना चुका था।
इस उपन्यास का पूर्व भाग "पहरेदार उपन्यास समीक्षा" था जिसके बारे में हम अपने विचार आपसे पहले ही सांझा कर चुके हैं ।
अगर ये उपन्यास प्रकाशित हुआ होता तो देवराज चौहान द्वारा इस बीस फीट की गैलरी को पार कर पाना और फिर गोल्ड वॉल्ट में डकैती करना अपने-आप में बेहद मजेदार और रोचक होता। साथ ही इतना तो स्पष्ट ही है कि उपन्यास में बारूद बिछी गैलरी के अलावा कुछ और कड़े सुरक्षा इंतजाम भी किए ही गए होंगे जिनका विज्ञापन में सस्पेंस बनाए रखने के लिए कोई जिक्र नहीं किया है।
हालांकि ये उपन्यास प्रकाशित नही हो पाया परंतु इसका क्या कारण रहा, इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं है।
उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी इस समय उपलब्ध नहीं है।
अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।
अनिल मोहन जी ने हमारी उत्सुकता बढा कर छोड़ दी बस सुनील जी। काश ये उपन्यास छपा होता। पर कारण समझ नही आता कि उपन्यास क्यों नही छपते विज्ञापन आने के बाद भी। काश अनिल मोहन जी कुछ उपन्यास लिखें कम से कम जिनके विज्ञापन आ चुके।
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी मुहैया करवाई है आपने... आभार...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंशानदार जानकारी.......... 👍👍👍👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंसुलग उठा बारूद किसी और नाम से प्रकाशित हुआ था बस याद नही की किस नावेल के संपादकीय में बताया गया ,थोड़ा बहुत याद है पक्का नही कह सकता शायद,
जवाब देंहटाएंवैसे बेहतरीन जानकारी सुनीलजी
अनिल मोहन का एक और शानदार डकैती वाला नावेल हम पढ़ने से वंचित रह गए जो कि दुर्भाग्यवश प्रकाशित ही नही हो पाया। जानकारी मुहैया कराने के लिए धन्यवाद भाई।
जवाब देंहटाएंअनिल जी के ऐसे कुछ और भी उपन्यास है जो विज्ञापन के बाद प्रकाशित नहीं हुए जैसे कि महाशातिर और महल।
जवाब देंहटाएंBadhia jankari di hai apne.
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