30 मार्च 2022

विष मानव - अनिल मोहन


उपन्यास: विष मानव
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 304

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'विष मानव' चार उपन्यासों की श्रृंखला का चतुर्थ एवं अंतिम भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम तीन भागों 'देवदासी समीक्षा', 'इच्छाधारी समीक्षा' तथा 'नागराज की हत्या' की समीक्षा हमारे ब्लॉग पर पहले से ही उपलब्ध है। 

'नागराज की हत्या' उपन्यास के अंत में सांपनाथ की बस्ती के सभी राक्षस झोंपड़ी में त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव के ठहाके को सुनकर और उसके काले-नीले शरीर को देखकर स्तब्ध रह जाते हैं।

विष मानव' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
**"मुझे बताइए आपको क्या परेशानी है ?" गंगू साथ चलते-चलते बोला "मैं आपको परेशान नहीं देख सकता। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी चिंता को दूर कर सकूं।" 
"बहुत बुरा हुआ!" वायुलाल अपनी ही सोचों में बड़बड़ा उठा।
"क्या ?"**

उपन्यास 'विष मानव' का प्रथम दृश्य वायुलाल और गंगू के वार्तालाप से आरंभ होता है। इस दौरान वायुलाल गंगू से कहता है कि ऐसा कौन है जो उसके द्वारा सैकड़ों वर्षों में प्राप्त की गई शक्तियों से टकराने का साहस कर रहा है। वायुलाल अपनी शक्तियों से इस बारे में पता लगाने के लिए गंगू के साथ एक विशेष कमरे की तरफ बढ़ जाता है। 

 **वायुलाल और गंगू दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गए।
बाहर खड़े सेवकों ने वो दरवाजा पुनः बंद कर दिया।
वो बहुत बड़ा हॉल कमरा था जहां अजीबों तरह का सामान पड़ा नजर आ रहा था। दीवारों पर समझ में न आने वाले चित्र बने हुए था।**

उधर दक्षिण दिशा में काला द्वार के पास मोना चौधरी, जगमोहन और महाजन रात में बारी-बारी से पहरा दे रहे थे ताकि नागराज से किए वादे के अनुसार जैसे ही सुबह हो जाए, वो लोग तुरंत अपना काम पूरा कर सकें। काला द्वार से कुछ ही दूरी पर मौजूद जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी भी अपनी योजना बना रहे होते हैं ताकि वो भी बिना किसी अड़चन के अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। 

**..... जगमोहन बोला "चालाकी इस्तेमाल करनी है।" 
"क्या मतलब ?"
"मुझे बता जग्गू !" जलेबी कह उठी।
जगमोहन धीमे स्वर में उन्हें बताने लगा।**

इधर बांके और नगीना के साथ क्रोध से भरी रानी देवराज चौहान के पास पहुंचने की कोशिश कर रही होती है। वहीं अपने पति को खोने से आहत नागरानी बदला लेने के लिए आतुर हो उठती है और सांपनाथ की बस्ती की ओर चल पड़ती है। 

**चंद क्षणों में ही नागरानी अपने खूबसूरत मानवीय रूप में उनके सामने खड़ी थी। परंतु इस वक्त वो क्रोध की आग में तप रही थी। गुस्से से उसका चेहरा धधक रहा था। आंखें लाल हो रही थी। शरीर आवेश से कांप कहा था। **

घटनाक्रम कुछ इस प्रकार से आगे बढ़ता है कि देवराज चौहान, रुस्तम राव, रानी और बाकी साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच एक ऐसे जानलेवा टकराव की स्थिति बन आती है जिसका परिणाम किसी एक पक्ष की पराजय से ही निकलना संभव था। 

"मैं जानता हूं कि वायुलाल मेरे रास्ते में ढेर सारी परेशानियां खड़ी करेगा।" रुस्तम राव ने देवराज चौहान को देखकर सिर हिलाया - "इस काम में वो अकेला नहीं होगा। उसके साथ मोना चौधरी भी अवश्य होगी। परंतु मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं ये ....."

वायुलाल अपने विशेष कमरे में किन शक्तियों का आह्वान करने के लिए गया?
रुस्तम राव का शरीर काला-नीला कैसे हो गया? 
क्या सचमुच विश्व पुरुष "नागराज" की हत्या हुई थी? 
क्या मोना चौधरी देवराज चौहान से बदला ले सकी? 
क्या जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी की चालाकी काम आई? 
जब क्रोध से भरी रानी का सामना देवराज चौहान से हुआ तो क्या हुआ? 
क्या नागरानी अपना प्रतिशोध ले पाई? 
देवराज चौहान, रानी, रुस्तम राव और उसके साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच हुए  जानलेवा टकराव का क्या परिणाम हुआ? 
बलसारा और हंसनी ने क्या चालें चली? 
क्या इस टकराव का परिणाम इतना ही सीधा और सरल था जितना दिख रहा था या अंदर कुछ और रहस्य भी छुपा हुआ था? 
क्या था वायुलाल की शक्तियों का केंद्र? 
आखिर किस प्रकार खत्म हुआ देवराज चौहान और मोना चौधरी का इस बार का पूर्व जन्म का सफर? 
रानी और जलेबी का क्या हुआ? 
कौन था वो चांदी का बना एक फुट का रहस्यमयी बौना मानव? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!

अब पात्रों के बारे में बात की जाए तो इस उपन्यास में देवराज चौहान, जगमोहन, वायुलाल और रुस्तम राव बढ़िया लगे हैं। बलसारा, हंसनी, नजूमी, नागरानी, रहस्यमयी विश्व पुरुष नागराज, इच्छाधारी और रानी के पात्र भी अच्छे लगे। जहां इच्छाधारी, पारसनाथ और महाजन सही लगे, वहीं मोना चौधरी, बांकेलाल और नगीना सामान्य ही लगे। जलेबी और सोहनलाल ने कहानी में कुछ मजाक-मस्ती का दौर भी बनाए रखा है। कुछ नए सहायक पात्र जैसे रामभजन, जंगली सरदार भी इस उपन्यास में पढ़ने को मिलते हैं परंतु उनकी भूमिका नगण्य ही है।

उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन ठीक-ठाक है। इस उपन्यास में मुख्य पात्र के रूप में देवराज चौहान की तुलना में मोना चौधरी का किरदार उतना दमदार नहीं लगा जितना इस शृंखला के पहले के उपन्यासों में था। 
साथ ही कुछ संवाद इस उपन्यास में भी अनावश्यक रूप से लंबे एवं खिंचे हुए लगे - खासकर देवराज, उसके साथियों की जंगलियों से हुई भेंट वाले प्रसंग में ।

कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है और कहानी पाठकों को बांधे रखती है। उपन्यास का अंत रोमांचक और उत्सुकता से भरा है तथा श्रृंखला का समापन भी बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। 

अंत में ये जरूर कहना चाहूंगा कि चार उपन्यासों की ये संपूर्ण श्रृंखला एक बार अवश्य पढ़ें। यह उपन्यास श्रृंखला अनिल मोहन द्वारा रचित यादगार उपन्यासों में से एक है।

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं।क्या आपने भी इन चारो उपन्यासों की श्रृंखला को पढ़ा है। हमेशा की तरह हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा सुनील जी आपने एक बार ये श्रृंखला जरूर पढ़नी चाइये। आपने बहुत ही बारीकी से निरीक्षण किया है उपन्यास का। आपने ऐसे प्रशन पेश किए हैं कि जिसने पढ़ लिया ये उपन्यास उसका भी दोबारा मन करने लगे। बहुत ही उम्दा

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  2. अच्छी कहानी है। पाठक को बांधे रखती हैं। देवराज चौहान हमेशा की तरह अच्छे लगे हैं।

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  3. Ye series mast hai. Padhkar maja aa gaya tha. Aapka review ekdum sahi laga.

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  4. I wish to read these series.. Would you mind helping me to get these books?? It appears to me as quite interesting series..

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  5. I couldn't find these books in market

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