02 मार्च 2022

देवदासी - अनिल मोहन

उपन्यास: देवदासी
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 272
कदम कदम पर मौत से भरी दीवानगी! हर कोई सामने वाले का गला काटकर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधना चाहता था!

'देवदासी' चार उपन्यासों की श्रृंखला का प्रथम भाग है। इस उपन्यास से एक बार फिर देवराज चौहान और मोना चौधरी का पूर्व जन्म का सफर आरंभ हो रहा है जहां कदम-कदम पर नए जानलेवा हादसे उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

उपन्यास के मध्य से लिया गया एक अंश: 
** कोई और होता तो मन ही मन हिल जाता रात का ऐसा माहौल देखकर। 
देवराज चौहान की गंभीर निगाह हर तरफ जा रही थी। 
"कैसा लग रहा है देवा?" अब वो आवाज फुसफुसाहट की अपेक्षा स्पष्ट कानों में पड़ी। 
देवराज चौहान ने आवाज की दिशा की तरफ देखा तो कोई न दिखा। 
"तुम.. तुम यहां मुझे अपना रूप दिखाने...." **


उपन्यास के आरंभिक दृश्य में अचानक पेशीराम उर्फ फकीर बाबा की आवाज सुनकर कार चला रहा देवराज चौहान चौंक जाता है। पेशीराम उसे आने वाले खतरे की सूचना देकर अदृश्य हो जाता है। 

** "वक्त कम है देवा। सारे ग्रह केंद्रबिंदु पर पहुंचने शुरू हो चुके हैं। वो कभी भी अपना असर...।" 
"मैं जहां जा रहा हूं, वहां मेरा पहुंचना बहुत जरूरी...!"
"जिद ना कर देवा। तेरे को...!"
"अगर कोई और बात होती तो मैं एक दिन क्या, तेरे कहने पर दस दिन बंगले में बैठ जाता। लेकिन..." **

तभी देवराज की कार रास्ते में खराब हो जाती है। देवराज कार के इंजन की जांच में लग जाता है। उसी समय एक ट्रक बहुत तेज गति से देवराज की ओर आता है। विष्णु सहाय नाम का एक आदमी सही समय पर आकर देवराज को धक्का देकर ट्रक के रास्ते से हटा देता है। देवराज तो बच जाता है परंतु उसकी कार क्षतिग्रस्त हो जाती है। देवराज सहाय का आभार प्रकट करता है। सहाय उसे अपनी कार में साथ चलने का प्रस्ताव देता है जिसे देवराज मान लेता है। बातचीत के दौरान सहाय अपनी एक समस्या देवराज को बताता है कि उसकी गांव में पड़ी जमीन को कोई भी ठेकेदार समतल नही कर पा रहा। सहाय देवराज से पूछता है कि क्या वो उसकी कोई सहायता कर सकता है! देवराज फोन करने की बात कहकर कार से उतर जाता है। 

** "चलता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने दरवाजा खोला। 
"मतलब कि तुम इस मामले में मेरी कोई सहायता नहीं कर सकते?" विष्णु सहाय ने एकाएक कहा। 
"कल फोन करके बताऊंगा।" **

घर पहुंचने पर देवराज जगमोहन से विष्णु सहाय और पेशीराम की चेतावनी के बारे में विचार-विमर्श करता है। दूसरी तरफ बांकेलाल राठौर और रुस्तम को रास्ते में एक घायल सब-इंस्पेक्टर महेशपाल मिलता है। महेशपाल उन दोनों से अपनी जान बचाने की विनती करता है क्योंकि उसके पीछे कुछ गुंडे लगे होते है। बांके और रुस्तम पहले तो साफ मना कर देते हैं, फिर गुंडों को देखने के बाद महेशपाल को अपने साथ ले लेते हैं ताकि उसे कुछ समय के लिए एक सुरक्षित ठिकाना दे सकें। 

** वो तीनों जैसे गुस्से से भरे, किसी को ढूंढ रहे थे। 
"लफड़ा होएला बाप!" 
बांकेलाल राठौर ने सीट पर पड़े पुलिस वाले को देखा। 
"भयो खाकी वर्दी!" बांकेलाल राठौर ने... **

इधर एक अन्य समानांतर दृश्य में बाजार में एक चोर मोना चौधरी का पर्स छीनकर भाग जाता है। मोना उसका पीछा करती है। रास्ते में एक हवलदार वीरेंद्र चोर को पकड़ लेता है। मोना अपना पर्स वापस मांगती है पर उसकी वीरेंद्र से बहस हो जाती है और वीरेंद्र उन दोनों को पुलिस स्टेशन ले जाता है। वहां इंस्पेक्टर लोकनाथ मोना को पहचान लेता है और एक प्रस्ताव देता है कि वो मोना को जाने देगा अगर मोना उसकी एक समस्या हल कर दे। मोना किसी तरह वहां से निकल आती है। 

** "जाओ।" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में कहा - "मैं तुम्हे रोकूंगा नही।" 
मोना चौधरी ने दरवाजे की तरफ हाथ बढ़ाया कि लोकनाथ कह उठा।
"इंस्पेक्टर लोकनाथ कहते है मुझे। मन करे तो फोन कर देना।..." **

सब घटनाओं के तार कुछ इस प्रकार से आपस में जुड़ते हैं कि देवराज, जगमोहन, बांके, रुस्तम, सोहनलाल, नगीना और मोना, पारसनाथ, महाजन एक-दूसरे के सामने आ जाते हैं और घटनाओं के चक्र में बुरी तरह उलझ जाते हैं। सब उसी रास्ते पर आगे बढ़ते चले जाते हैं जो उनके पूर्व जन्म की ओर जाता है।

विष्णु सहाय की गांव में खरीदी हुई जमीन समतल क्यों नही हो पा रही थी? 
क्या देवराज चौहान ने विष्णु सहाय की मदद की? 
इस बार देवराज, मोना और इनके साथियों के रास्ते एक कैसे हुए? 
कहां से आई प्रेमा और उसने क्या हरकतें की? 
पूर्व जन्म का रास्ता कैसे खुला और किसने खोला? 
कौन थी रानी और क्या इच्छा थी उसकी? 
वायुलाल कौन था और क्या उद्देश्य था उसका? 
जलेबी की क्या भूमिका थी और वो क्या चक्कर चला रही थी? 
सत्तू कौन था, कहां से आया और क्या चाहता था? 
इस बार पूर्व जन्म में देवराज और मोना का टकराव किस तरह के खतरों से होने वाला था? 
किस प्रकार देवराज, मोना और इनके साथी पूर्व जन्म में आने वाले खतरों का सामना कर सके? 
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा!

चलिए, अब कहानी की बात की जाए! उपन्यास में पूर्व जन्म की कहानी की शुरुआत बढ़िया हुई है। कहानी घुमावदार होने के साथ-साथ तेज रफ्तार भी है। पूर्व जन्म के खतरों और रहस्यों के बारे में पढ़ना रोचक रहा। देवदासी उपन्यास का अंत अगले भाग "इच्छाधारी" को पढ़ने के प्रति एक उत्सुकता सी जगाता है।
इस उपन्यास में आपको दोनों मुख्य पात्रों देवराज चौहान, मोना चौधरी के अतिरिक्त जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना, पारसनाथ, महाजन, विष्णु सहाय, जमींदार, सत्तू, प्रेमा, रानी, जलेबी, वायुलाल इत्यादि पात्र भी पढ़ने को मिलेंगे। 
देवराज और जगमोहन ने कहानी में बेहतरीन मनोरंजन किया है। मोना चौधरी अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखी। उपन्यास में अधिकतर पात्रों के संवाद और उनकी भूमिका अच्छी बन पड़ी है खासकर बांकेलाल राठौर के संवाद, नगीना की एंट्री, रानी की बातें, सत्तू के तेवर और जलेबी का चक्कर। 

मुझे कहानी में एक कमी ये महसूस हुई कि लेखक ने देवराज और मोना को एक साथ पूर्वजन्म के रास्ते पर लाने के लिए जिस तरह से घटनाओं का आपस में तालमेल बिठाया, वो कुछ कमजोर लगा। 

उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर पेज) सामान्य ही लगा। उपन्यास में शाब्दिक गलतियां काफी कम हैं जिस कारण उपन्यास पढ़ते समय और भी अच्छा महसूस होता है। 

मेरे अनुसार अनिल मोहन के प्रशंसकों के लिए तो ये उपन्यास पठनीय है ही। अगर माया, जादू और तिलिस्म में रुचि है तो अन्य पाठक भी इस उपन्यास को पढ़कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

हमें अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा अवश्य अवगत करवाएं। आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

6 टिप्‍पणियां:

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  2. ये शृंखला रोचक लग रही है। शृंखला के बाकी उपन्यास कौन से हैं? यह भी लेख में दर्ज होता तो सोने पर सुहागा हो जाता।

    एक बुक जर्नल पर मौजूद अनिल मोहन के उपन्यासों की समीक्षा:
    समीक्षा: अनिल मोहन

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  3. देवदासी उपन्यास अनिल जी का काफी बढ़िया लगा पढ़के मुजे भी। सम्भवत पूर्वजन्म की श्रृंखला में सबसे बढ़िया है। आपने उपन्यास की इतनी सटीक और रोचक विवरण दिया कि अब ये शृंखला दोबारा पढ़ने का मन करने लगा।सारे के सारे पात्र जब भी इकठे होते हैं तो खूब धमाल होता है।

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  4. ये वाली सीरीज मैंने पढ़ना शुरू किया था कुछ दिन पहले, जबरदस्त है बस थोड़ा व्यस्त हो गया था तो नही पढा आगे, बहुत बढ़िया समीक्षा।

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  5. बेहतरीन सीरीज है देव और मोना की,उत्तम समीक्षा,
    सुनील भाई सारे नावेल रीड किये आपकी समीक्षा के बाद एक बार फिर,उत्तम लेखन सुनीलजी,ऐसे ही जानकारी देते रहो,

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  6. Devdasi ek rochak novel hai or aage ke novels bhi majedaar hai. aapki samiksha badhia lagi.

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