29 सितंबर 2021

दांव - अनिल मोहन

उपन्यास 📖 : दांव 
लेखक ✍ : अनिल मोहन 
पृष्ठ संख्या 📃 : 241

अनिल मोहन के खास स्टाइल में लिखा गया एक ख़ास उपन्यास।


इसी उपन्यास से एक अंश : 👇

"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। करोड़ों की बैंक डकैती की रकम पास होने पर मैं जगतार से बचने की खातिर पुलिस के पास चली जाऊं?"

"तो फिर मरो | यह दौलत दूसरों के काम आएगी।" जुगल किशोर ने सपाट स्वर में कहा “अक्ल से काम लो बेवकूफ! वह पुलिस वाला तुम्हें गारंटी देता है कि उसे तुमसे सिर्फ जगतार के खिलाफ गवाही और सबूत चाहिए। वह जानता है कि तुम्हारे पास सूटकेसों में कोई कीमती सामान है। इस पर भी वह तुम्हें कुछ नहीं कह रहा और छोड़ने की गारंटी देता है तो तुम्हें...।”

"बकवास करता है वह।" दांत भींचे वह दबे स्वर में चीख उठी “तुम पुलिस वालों को नहीं जानते। इनकी बातों पर मैं विश्वास करके बरबाद नहीं होना चाहती। यह मेरी दौलत छीन लेंगे। उसके बाद या तो मुझे जेल में ठूंस देंगे, या फिर मेरी हत्या करके लाश कहीं फेंक देंगे। फिर खुद ही मेरी लाश का पंचनामा करके लावारिस करार देकर, जलाकर सारा किस्सा खत्म कर देंगे। मैं तुमसे कह रही हूं - मेरा भला करो। इन हालात से मुझे निकालो। जगतार से मुझे बचाओ। और तुम मेरे खैरख्वाह बनकर मुझे आत्महत्या करने की सलाह दे रहे हो कि मरकर मैं सारे झंझटों से मुक्ति पा जाऊंगी।" जुगल किशोर के होंठों से गहरी सांस निकल गई।

दांव उपन्यास जुगल किशोर नाम के पसंदीदा पात्र का है जिससे आप दो-एक उपन्यासों में पहले भी मिल चुके हैं और उसके कमीनेपन के किस्सों से बखूबी वाकिफ हैं। उसी जुगल किशोर से इस उपन्यास में आपकी मुलाकात होगी। 

चलिए, बढ़ते हैं अब कहानी की तरफ | रात के तीन बजे एक सुनसान जगह पर बनी बैंक में डकैती होती है और डकैती की दौलत के करोड़ों रुपए दो सूटकेस में बंद होते हैं। डकैती चार लोग करते हैं जिसमें एक खूबसूरत हसीना सुजाता सेठ भी शामिल होती है। सुजाता अपने साथियों को दगा देकर डकैती के करोड़ों रुपए लेकर भाग जाती है। इसे अब जुगल किशोर की किस्मत कहें या बदकिस्मती कि करोड़ों की दौलत लेकर भागती इसी खूबसूरत शह सुजाता सेठ से वह लिफ्ट मांग बैठता है जिसे डकैती की दौलत अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी थी। इस तरह इत्तफाक से जुगल उन लोगों के बीच में जा फंसता है जो बैंक डकैती के पश्चात डकैती के माल को छीनने के लिए एक दूसरे का गला काटते फिर रहे थे और जहां हर कोई एक दूसरे को रौंदते हुए करोड़ों की दौलत को पा लेना चाहता था । अनजाने में जुगल किशोर भी इस मौत से भरी दौड़ में शामिल हो गया था। 

क्या महाठग जुगल किशोर को वो करोड़ों की दौलत मिल पाई?

क्या करोड़ों की दौलत को तलाश करते सुजाता सेठ के साथी जगतार को सुजाता सेठ मिल पाई ?

क्या इंस्पेक्टर दत्ता दौलत की खुशबू पा सका? 

बनवारी लाल और प्रदीप गोयल जैसे ठगों से सुजाता ने दौलत को कैसे बचाया ?

इन्ही सब सवालों के जवाब जानने के लिए ज़रूर पढ़ें "दांव"।

उपन्यास तेज रफ्तार है और कई दिलचस्पी भरे हालात से गुजरने के बाद पाठक के दिमाग में अपनी छाप छोड़ जाता है । मुझे यकीन है कि दांव आपको बहुत पसंद आएगा। 

एक बार जरूर पढ़िए जुगल किशोर का एक और कारनामा... दांव और देखिये कि इस बार उसने क्या दांव चला !!

11 सितंबर 2021

रक्त तृष्णा - चंद्रप्रकाश पांडेय

उपन्यास 📖 :- रक्त तृष्णा
लेखक ✍️ :- चन्द्र प्रकाश पाण्डेय
पृष्ठ संख्या 📄 :- 256
प्रकाशक 📚 :- थ्रिल वर्ल्ड
उपन्यास पढ़ने का लिंक :- एमेजॉन लिंक


चन्द्र प्रकाश पाण्डेय आज के पाठकों में अपनी एक अलग पैठ बना चुके हैं और इनके उपन्यास पाठकों का मनोरंजन करने में अच्छे-खासे सफल रहे हैं | विशेषत: हॉरर एवं परालौकिक शक्तियों की श्रेणी में इनका लेखन प्रशंसनीय और कामयाब दोनों रहा है |

गांवों में अक्सर डायन आदि के बारे तरह तरह की कहानियां प्रचलित रहती हैं जिन्हे लोग बचपन से ही सुनते आते हैं और बड़े होने पर भी उनमें विश्वास करते रहते हैं | जैसे कि फलां औरत डायन है, इस लड़की पे डायन का साया है, सालों से फलां स्थान पे डायन का निवास है जहां डायन किसी को मार डालती है या उस पे कब्ज़ा कर लेती है आदि..! लेखक ने इस विषय का कहानी में अच्छा इस्तेमाल किया है |

रक्ततृष्णा एक ऐसी रहस्यमयी औरत की हैरतअंगेज दास्तान है, जो लोगों के लिए एक पहेली बन गई थी और जिसकी निगाहों का मारा मौत का मुसाफ़िर बन जाता था | कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ रहती थी और कैसे जीवन-यापन करती थी। न तो वह दिन के उजाले में दिखती थी और न ही रात के अँधेरे में। 

कलकत्ता के एक मेन्टल हॉस्पिटल में घोष बाबू की पत्नी किसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित होकर भर्ती है पर बीमारी है कि ठीक ही नहीं हो रही। अंततः परेशान होकर घोष बाबू एक बड़ा ही आश्चर्य चकित कदम उठाते हैं.... डायन द्वारा अपनी पत्नी का इलाज...।

साकेत को खबर मिलती है कि उसकी दादी बीमार है और हॉस्पिटल में एडमिट हैं अतः जल्दी से जल्दी वो अपने घर बहराइच पहुचे। ज़ब साकेत वहां हॉस्पिटल पहुँचता है तो दादी की हालात बहुत ख़राब पाता है, दादी के मुँह से आवाज़ भी नहीं निकल रही होती है। अपने अंतिम वाक्य के रूप में साकेत को उसकी दादी सिर्फ इतना ही कह पाती है "डायन आ रही है" .....| फिर साकेत को हवेली में दादी डायन के रूप में दिखाई देतीं हैं जो नवजात बच्चे को साथ लिए होती हैं। 

वहीँ गाँव में साकेत के बड़े भाई द्वारा जंगल के पास के खंडहर मंदिर की खुदाई अवैध रूप से करवाई जा रही थी | वहां ये बेहद प्रचलित था कि अमावस्या को एक डायन वहाँ स्थित तालाब में नग्न हो कर स्नान करती है | अगर कोई इस अवस्था में उसको देख लें तो उसकी जान चली जाती है, मरने के पहले उसके शरीर से खून ख़त्म हो जाता है, वो ना बोल पाता है और ना ही लिख पाता है। वहाँ से आने पर एक मजदूर इसी हालत में पाया जाता है...। 

उसी खंडहर में साकेत की मुलाक़ात एक युवती से होती है जो उसे डायन के बारे में जानने के लिए उत्सुक करती है। युवती साकेत को एक डायरी देतीं है जिसमें डायन को बुलाने की विधि होती है। डायरी की विधि प्रयोग करने पर साकेत में भी वही लक्षण आने लगते हैं जो उस मजदूर और उसकी दादी में थे और जो 15 दिन पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

आखिर कौन थी वो खतरनाक डायन ?
क्या उस डायन की गुत्थी सुलझाई जा सकी ?
साकेत की दादी और मजदूर की मृत्यु क्यों और कैसे हुई ?
क्या साकेत डायन से बच पाया या फिर मृत्यु को प्राप्त हुआ ?
वो रहस्यमय युवती कौन थी जो डायन के विषय में जानकारी रखती थी और उससे बचने के उपाय जानती थी ?

चन्द्र प्रकाश पाण्डेय की लेखनी से निकला एक ज़बरदस्त हॉरर नॉवेल जो आपको डायन की हक़ीक़त से रूबरू कराएगा...!

अगर आप हॉरर और परालौकिक श्रेणी के उपन्यास पढ़ने का शौक रखते हैं तो आप निराश नहीं होंगे | अगर आप हॉरर और परालौकिक श्रेणी के उपन्यास नहीं पढ़ते हैं तो भी मेरी राय है कि अपने दिल को मजबूत करें और एक बार इसे पढ़कर देखें |

रेटिंग :- 8/10

10 सितंबर 2021

साढ़े तीन घंटे - वेद प्रकाश शर्मा

उपन्यास 📖 :- साढ़े तीन घंटे 
लेखक ✍ :- श्री वेद प्रकाश शर्मा
पृष्ठ 📃 :- 368

"साढ़े तीन घंटे" वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित विभा जिंदल सीरीज का एक जबरदस्त उपन्यास है। 

विभा जिससे वेद कॉलेज के दिनों में एक-तरफा प्यार करता था। 
वेद अपनी पत्नी मधु के साथ अपनी सालगिरह पर घूमने के लिए जिन्दलपुरम जाता है जहाँ संयोग से उसकी मुलाकात विभा से होती है जिसकी अब शादी हो चुकी है और उसके पति का नाम अनूप जिंदल है।

विभा वेद से मिलकर खुश होती है। विभा और अनूप दोनों वेद और मधु को अपने पैलेस में डिनर के लिए आमंत्रित करते है। 
जब वेद और मधु, मंदिर (पैलेस का नाम) पहुँचते है तो पता चलता है कि अनूप एक कमरे में बंद है और साढ़े तीन घंटे बाद बाहर निकलेंगे। विभा बहुत परेशान है लेकिन साढ़े तीन घंटे बाद उसी रूम से एक गोली चलने की आवाज़ आती है। सभी मिलकर दरवाजे को तोड़ डालते है जहाँ अनूप की लाश मिलती है। उसने आत्महत्या कर ली है और सामने एक पहेली का चित्र है। 
लेकिन विभा का कहना है कि ये आत्महत्या नही बल्कि हत्या है, जो कि अनूप को मजबूर करके करवाई गई है। 

हत्यारा एक पहेली देता है और साढ़े तीन घंटे का समय ...! अगर साढ़े तीन घंटे में पहेली हल नही हुई तो आत्महत्या करनी होगी। 

फिर शुरू होता है हत्याओं का सिलसिला जो जिन्दलपुरम को हिला देता है।

आखिर कौन है ये हत्यारा और क्यों कर रहा है वो ये हत्याएं?
वेद और विभा क्या हत्यारे तक पहुंच पाएंगे?
पुलिस क्या कर रही है?
संतरे का क्या राज़ है जिसे खोलने की धमकी देकर कोई अनूप को ब्लैकमेल कर रहा था?

इन सभी सवालों का जवाब है - साढ़े तीन घंटे।

मेरी राय में ये वेद जी का लिखा हुआ एक ऐसा सस्पेंस से भरपूर उपन्यास है जिसमे आप अंत तक हत्यारे को नही पहचान पाएंगे, न ही उस पहेली को हल कर पाएंगे। 

एक बार जरूर पढ़िए वेद जी द्वारा लिखित साढ़े तीन घंटे...

07 सितंबर 2021

अंडरग्राउंड - अनिल मोहन

 उपन्यास 📚: अंडरग्राउंड 

लेखक 📝: अनिल मोहन

पेज संख्या 📃: 460 (Kindle)

उपन्यास खरीदने का लिंक: अमेज़ॉन


एक ही दौलत को, एक ही वक़्त पर

कई लोग लूटने का प्रोग्राम बना चुके थे



उपन्यास से ही एक अंश:

"तुम?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।

"हाँ... मैं...।"

"लेकिन तुम यहाँ कैसे?" कहते हुए देवराज चौहान ने विक्रम शर्मा की लाश पर नजर मारी, "और यह...।"

"इसे छोड़ो।" नशे की तरंग में रूपसिंह कह उठा--- "मैं तुम्हारा कसूरवार था। क्योंकि तुमसे लाखों रुपया ले लिया और तुम्हारा काम बनता-बनता मैंने बिगाड़ दिया। इन करोड़ों रूपयों पर तुम्हारा हक है, मेरी वजह से ये तुम्हारे हाथों से दूर हो गए थे और अब मेरी वजह से वापस आ गए। तुम्हारी अमानत जीप में पड़ी है, ले लो...।" कहने के साथ ही रुपसिंह ने आगे बढ़कर गन देवराज चौहान के हाथों में थमा दी।

देवराज चौहान रूपसिंह को देखे जा रहा था।

"मेरा जो काम अधूरा रह गया था, वह पूरा हुआ। मैं इस मामले से दूर हो जाना चाहता हूँ। कुछ इस तरह कि जैसे इन बातों से मेरा कभी वास्ता ही न रहा हो।"

"तुम यहाँ तक केसे पहुँचे?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।

"ये बात सोहनलाल से पूछ लेना। मैं चलूं...?"

देवराज चौहान मुस्कुराया। हौले से सिर हिला दिया।


भीड़ भरे चौराहे पर बनी बैंक की शाखा में एक निश्चित दिन करोड़ों की रकम आती थी जिसे इधर-उधर लाने पहुंचाने का काम गनमैन सुखराम और ड्राइवर विलायती राम करते थे। परंतु अब अचानक ही दोनों उस करोड़ों की रकम को उड़ाने की फिराक में थे क्योंकि सुखराम को बीवी के इलाज के लिए एक मोटी रकम की जरूरत थी तो ड्राइवर विलायती राम के बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया था और उस से मोटी फिरौती मांगी गई थी । 

इधर देवराज चौहान अपने खास साथी जगमोहन के साथ बैंक वैन पर हाथ डालने की फिराक में था । वहीं पैंतीस हजारी का मालिक, अपने बाप का भी सगा न होने वाला जुगल किशोर भी कछुए की तरह इस दौड़ में शामिल था । 

तय वक्त पर भीड़ भरी सड़क पर देवराज चौहान वैन पर हाथ डालता है और वैन और उसमे मौजूद करोड़ों की दौलत कब्जे में कर लेता है । लेकिन एक गलती की वजह से वैन हाथ से निकल जाती हैं और फिर शुरू होता है वैन को तलाशने का काम, जो कि भूसे के ढेर में सुई को ढूंढने जैसा था ।


क्या देवराज चौहान वैन को ढूंढ पाया या फिर कोई और इस बार हाथ साफ कर गया?

इस बार आपने 35हजारी ने क्या कारनामा किया?

विक्रम शर्मा को किसने मारा?

क्या मिसेज कपूर को दौलत की खुशबू मिल पाई ? 

क्या इंस्पेक्टर वानखेड़े देवराज चौहान को गिरफ्तार कर पाया ?

रूपसिंह और सोहनलाल के साथ चिपके दौलत को तलाश करते जुगल किशोर के हाथ क्या आया ?

इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे अनिल मोहन जी के उपन्यास अंडरग्राउंड को पढ़ कर।


उपन्यास तेज रफ्तार है और खास कर इसका अंत लाजवाब है ।

उपन्यास में जगमोहन और मिसेज कपूर के सीन आपको गुदगुदाएंगे खास कर के उनका पांच सौ का नोट बहुत याद आएगा । 

जहां एक ओर विक्रम शर्मा का किरदार आपको चौंकाएगा, वहीं रूपसिंह को भी आप आसानी से भुला नहीं पाएंगे । 


एक बार आपको जरूर पढ़ कर देखना चाहिए!!


02 सितंबर 2021

सूरमा - अनिल मोहन

उपन्यास 📖:- सूरमा

लेखक 📝:- अनिल मोहन

पेज 📄:- 482

प्रकाशक:- सूरज पॉकेट बुक्स

 उपन्यास खरीदने का लिंक - एमेजॉन लिंक


चंडीगढ़ हाईवे पर जीरकपुर के पास देवराज चौहान और जगमोहन की कार पेंचर हो जाती है । पेंचर लगाने वाला सूरमा नाम का व्यक्ति फटेहाल है । पैसे की तंगी ने उसे मोहताज बना रखा है ऊपर से वो अपनी खूबसूरत बीवी से तंग है जो की हमेशा पैसे को लेकर उसे सताती रहती है । उसका कहना है की अगर सूरमा उसे ढेर सारा पैसा देगा तभी वो उसको राजा बनाएगी । (राजा कैसे बनाएगी ये आपको उपन्यास पढ़ कर पता चल जाएगा)।

उधर जगमोहन वहीं पास में एक बैंक को देख कर उसमे डकैती की योजना बना लेता है और देवराज चौहान को तैयार कर लेता है । वो लोग वहीं पास में ही सरकारी क्वाटर्स में एक फैमिली की तरह रहने लगते हैं । सूरमा को वो अपने इस प्लान में शामिल करते हैं और सूरमा की बीवी देवराज चौहान की बीवी बन कर क्वाटर्स में रहने आ जाती है । तय दिन के मुताबिक डकैती होती है । लेकिन किया कराया सब पानी में । बिल्ली मुंह मार जाती है और फिर उपन्यास में तू कोन मैं खा मखा वाले जुगल किशोर की एंट्री होती है । साथ में है खूबसूरत बला जो अपने बाप की भी सगी नहीं। 


उपन्यास तेज रफ्तार है और एक बार उठाने के बाद रखने का मन नहीं करता । सूरमा का किरदार शुरू से अंत तक लाजवाब है। सरकारी क्वाटर्स के सीन दिलचस्प और मजेदार हैं । खास कर के बैंक के चपरासी बलबीर का वहां आना जाना और नोक झोंक जबरदस्त है। कुल मिला कर अनिल मोहन जी के खास स्टाइल में दिल से लिखा गया उपन्यास है ये ।


ये उपन्यास याद दिलाता है की किस्मत कहीं से भी छप्पर फाड़ कर इंसान को दौलतमंद बना सकती है । अपने सूरमा महाशय इस बात का उदाहरण हैं । 


वक्त निकाल कर ज़रूर पढ़े ।