29 सितंबर 2021
दांव - अनिल मोहन
11 सितंबर 2021
रक्त तृष्णा - चंद्रप्रकाश पांडेय
10 सितंबर 2021
साढ़े तीन घंटे - वेद प्रकाश शर्मा
07 सितंबर 2021
अंडरग्राउंड - अनिल मोहन
उपन्यास 📚: अंडरग्राउंड
लेखक 📝: अनिल मोहन
पेज संख्या 📃: 460 (Kindle)
उपन्यास खरीदने का लिंक: अमेज़ॉन
एक ही दौलत को, एक ही वक़्त पर
कई लोग लूटने का प्रोग्राम बना चुके थे
उपन्यास से ही एक अंश:
"तुम?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
"हाँ... मैं...।"
"लेकिन तुम यहाँ कैसे?" कहते हुए देवराज चौहान ने विक्रम शर्मा की लाश पर नजर मारी, "और यह...।"
"इसे छोड़ो।" नशे की तरंग में रूपसिंह कह उठा--- "मैं तुम्हारा कसूरवार था। क्योंकि तुमसे लाखों रुपया ले लिया और तुम्हारा काम बनता-बनता मैंने बिगाड़ दिया। इन करोड़ों रूपयों पर तुम्हारा हक है, मेरी वजह से ये तुम्हारे हाथों से दूर हो गए थे और अब मेरी वजह से वापस आ गए। तुम्हारी अमानत जीप में पड़ी है, ले लो...।" कहने के साथ ही रुपसिंह ने आगे बढ़कर गन देवराज चौहान के हाथों में थमा दी।
देवराज चौहान रूपसिंह को देखे जा रहा था।
"मेरा जो काम अधूरा रह गया था, वह पूरा हुआ। मैं इस मामले से दूर हो जाना चाहता हूँ। कुछ इस तरह कि जैसे इन बातों से मेरा कभी वास्ता ही न रहा हो।"
"तुम यहाँ तक केसे पहुँचे?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
"ये बात सोहनलाल से पूछ लेना। मैं चलूं...?"
देवराज चौहान मुस्कुराया। हौले से सिर हिला दिया।
भीड़ भरे चौराहे पर बनी बैंक की शाखा में एक निश्चित दिन करोड़ों की रकम आती थी जिसे इधर-उधर लाने पहुंचाने का काम गनमैन सुखराम और ड्राइवर विलायती राम करते थे। परंतु अब अचानक ही दोनों उस करोड़ों की रकम को उड़ाने की फिराक में थे क्योंकि सुखराम को बीवी के इलाज के लिए एक मोटी रकम की जरूरत थी तो ड्राइवर विलायती राम के बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया था और उस से मोटी फिरौती मांगी गई थी ।
इधर देवराज चौहान अपने खास साथी जगमोहन के साथ बैंक वैन पर हाथ डालने की फिराक में था । वहीं पैंतीस हजारी का मालिक, अपने बाप का भी सगा न होने वाला जुगल किशोर भी कछुए की तरह इस दौड़ में शामिल था ।
तय वक्त पर भीड़ भरी सड़क पर देवराज चौहान वैन पर हाथ डालता है और वैन और उसमे मौजूद करोड़ों की दौलत कब्जे में कर लेता है । लेकिन एक गलती की वजह से वैन हाथ से निकल जाती हैं और फिर शुरू होता है वैन को तलाशने का काम, जो कि भूसे के ढेर में सुई को ढूंढने जैसा था ।
क्या देवराज चौहान वैन को ढूंढ पाया या फिर कोई और इस बार हाथ साफ कर गया?
इस बार आपने 35हजारी ने क्या कारनामा किया?
विक्रम शर्मा को किसने मारा?
क्या मिसेज कपूर को दौलत की खुशबू मिल पाई ?
क्या इंस्पेक्टर वानखेड़े देवराज चौहान को गिरफ्तार कर पाया ?
रूपसिंह और सोहनलाल के साथ चिपके दौलत को तलाश करते जुगल किशोर के हाथ क्या आया ?
इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे अनिल मोहन जी के उपन्यास अंडरग्राउंड को पढ़ कर।
उपन्यास तेज रफ्तार है और खास कर इसका अंत लाजवाब है ।
उपन्यास में जगमोहन और मिसेज कपूर के सीन आपको गुदगुदाएंगे खास कर के उनका पांच सौ का नोट बहुत याद आएगा ।
जहां एक ओर विक्रम शर्मा का किरदार आपको चौंकाएगा, वहीं रूपसिंह को भी आप आसानी से भुला नहीं पाएंगे ।
एक बार आपको जरूर पढ़ कर देखना चाहिए!!
02 सितंबर 2021
सूरमा - अनिल मोहन
उपन्यास 📖:- सूरमा
लेखक 📝:- अनिल मोहन
पेज 📄:- 482
प्रकाशक:- सूरज पॉकेट बुक्स
उपन्यास खरीदने का लिंक - एमेजॉन लिंक
चंडीगढ़ हाईवे पर जीरकपुर के पास देवराज चौहान और जगमोहन की कार पेंचर हो जाती है । पेंचर लगाने वाला सूरमा नाम का व्यक्ति फटेहाल है । पैसे की तंगी ने उसे मोहताज बना रखा है ऊपर से वो अपनी खूबसूरत बीवी से तंग है जो की हमेशा पैसे को लेकर उसे सताती रहती है । उसका कहना है की अगर सूरमा उसे ढेर सारा पैसा देगा तभी वो उसको राजा बनाएगी । (राजा कैसे बनाएगी ये आपको उपन्यास पढ़ कर पता चल जाएगा)।
उधर जगमोहन वहीं पास में एक बैंक को देख कर उसमे डकैती की योजना बना लेता है और देवराज चौहान को तैयार कर लेता है । वो लोग वहीं पास में ही सरकारी क्वाटर्स में एक फैमिली की तरह रहने लगते हैं । सूरमा को वो अपने इस प्लान में शामिल करते हैं और सूरमा की बीवी देवराज चौहान की बीवी बन कर क्वाटर्स में रहने आ जाती है । तय दिन के मुताबिक डकैती होती है । लेकिन किया कराया सब पानी में । बिल्ली मुंह मार जाती है और फिर उपन्यास में तू कोन मैं खा मखा वाले जुगल किशोर की एंट्री होती है । साथ में है खूबसूरत बला जो अपने बाप की भी सगी नहीं।
उपन्यास तेज रफ्तार है और एक बार उठाने के बाद रखने का मन नहीं करता । सूरमा का किरदार शुरू से अंत तक लाजवाब है। सरकारी क्वाटर्स के सीन दिलचस्प और मजेदार हैं । खास कर के बैंक के चपरासी बलबीर का वहां आना जाना और नोक झोंक जबरदस्त है। कुल मिला कर अनिल मोहन जी के खास स्टाइल में दिल से लिखा गया उपन्यास है ये ।
ये उपन्यास याद दिलाता है की किस्मत कहीं से भी छप्पर फाड़ कर इंसान को दौलतमंद बना सकती है । अपने सूरमा महाशय इस बात का उदाहरण हैं ।
वक्त निकाल कर ज़रूर पढ़े ।