07 सितंबर 2021

अंडरग्राउंड - अनिल मोहन

 उपन्यास 📚: अंडरग्राउंड 

लेखक 📝: अनिल मोहन

पेज संख्या 📃: 460 (Kindle)

उपन्यास खरीदने का लिंक: अमेज़ॉन


एक ही दौलत को, एक ही वक़्त पर

कई लोग लूटने का प्रोग्राम बना चुके थे



उपन्यास से ही एक अंश:

"तुम?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।

"हाँ... मैं...।"

"लेकिन तुम यहाँ कैसे?" कहते हुए देवराज चौहान ने विक्रम शर्मा की लाश पर नजर मारी, "और यह...।"

"इसे छोड़ो।" नशे की तरंग में रूपसिंह कह उठा--- "मैं तुम्हारा कसूरवार था। क्योंकि तुमसे लाखों रुपया ले लिया और तुम्हारा काम बनता-बनता मैंने बिगाड़ दिया। इन करोड़ों रूपयों पर तुम्हारा हक है, मेरी वजह से ये तुम्हारे हाथों से दूर हो गए थे और अब मेरी वजह से वापस आ गए। तुम्हारी अमानत जीप में पड़ी है, ले लो...।" कहने के साथ ही रुपसिंह ने आगे बढ़कर गन देवराज चौहान के हाथों में थमा दी।

देवराज चौहान रूपसिंह को देखे जा रहा था।

"मेरा जो काम अधूरा रह गया था, वह पूरा हुआ। मैं इस मामले से दूर हो जाना चाहता हूँ। कुछ इस तरह कि जैसे इन बातों से मेरा कभी वास्ता ही न रहा हो।"

"तुम यहाँ तक केसे पहुँचे?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।

"ये बात सोहनलाल से पूछ लेना। मैं चलूं...?"

देवराज चौहान मुस्कुराया। हौले से सिर हिला दिया।


भीड़ भरे चौराहे पर बनी बैंक की शाखा में एक निश्चित दिन करोड़ों की रकम आती थी जिसे इधर-उधर लाने पहुंचाने का काम गनमैन सुखराम और ड्राइवर विलायती राम करते थे। परंतु अब अचानक ही दोनों उस करोड़ों की रकम को उड़ाने की फिराक में थे क्योंकि सुखराम को बीवी के इलाज के लिए एक मोटी रकम की जरूरत थी तो ड्राइवर विलायती राम के बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया था और उस से मोटी फिरौती मांगी गई थी । 

इधर देवराज चौहान अपने खास साथी जगमोहन के साथ बैंक वैन पर हाथ डालने की फिराक में था । वहीं पैंतीस हजारी का मालिक, अपने बाप का भी सगा न होने वाला जुगल किशोर भी कछुए की तरह इस दौड़ में शामिल था । 

तय वक्त पर भीड़ भरी सड़क पर देवराज चौहान वैन पर हाथ डालता है और वैन और उसमे मौजूद करोड़ों की दौलत कब्जे में कर लेता है । लेकिन एक गलती की वजह से वैन हाथ से निकल जाती हैं और फिर शुरू होता है वैन को तलाशने का काम, जो कि भूसे के ढेर में सुई को ढूंढने जैसा था ।


क्या देवराज चौहान वैन को ढूंढ पाया या फिर कोई और इस बार हाथ साफ कर गया?

इस बार आपने 35हजारी ने क्या कारनामा किया?

विक्रम शर्मा को किसने मारा?

क्या मिसेज कपूर को दौलत की खुशबू मिल पाई ? 

क्या इंस्पेक्टर वानखेड़े देवराज चौहान को गिरफ्तार कर पाया ?

रूपसिंह और सोहनलाल के साथ चिपके दौलत को तलाश करते जुगल किशोर के हाथ क्या आया ?

इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे अनिल मोहन जी के उपन्यास अंडरग्राउंड को पढ़ कर।


उपन्यास तेज रफ्तार है और खास कर इसका अंत लाजवाब है ।

उपन्यास में जगमोहन और मिसेज कपूर के सीन आपको गुदगुदाएंगे खास कर के उनका पांच सौ का नोट बहुत याद आएगा । 

जहां एक ओर विक्रम शर्मा का किरदार आपको चौंकाएगा, वहीं रूपसिंह को भी आप आसानी से भुला नहीं पाएंगे । 


एक बार आपको जरूर पढ़ कर देखना चाहिए!!


7 टिप्‍पणियां:

  1. अनिल मोहन सर के सबसे बढ़िया उपन्यासों में से एक। ये उपन्यास काफी हटकर भी है।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा प्रयास जारी रखिए...... 👍👍👍👍👍👍👍

    जवाब देंहटाएं
  3. उपन्यास का review बहुत ही शानदार है,कथानक बहुत ही जबरदस्त है इस नावेल का। रिव्यु के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. anil mohan jaise writer ka novel jo ek baithak mein padhne ka man karne lagta hai, aur anil mohan ke sabse superhit series devraj chohun yun maniye ye novel sone par suhaga hai
    novel ka ansh padhkar lahta hai ki roopsingh devraj ko kahi dhoka to nahi de raha man karne lagta hai ki jaane kon ye vikram sharma kya kya chale aur pathraie is novel mein meilinge jab jugal kishore bhi shaamil hai vakai padhne ka experience  mst hoga

    जवाब देंहटाएं
  5. अनिल मोहन का डकैती पर लिखा गया एक जबरदस्त उपन्यास है जिसे एक ही बार शुरू करने पर पूरा पढ़ने को दिल करता है....एक बार अवश्य पढ़ें....आपका रिव्यु भी बहुत अच्छा है...थैंक्स....

    जवाब देंहटाएं