लेखक ✍ : अनिल मोहन
पृष्ठ संख्या 📃 : 241
अनिल मोहन के खास स्टाइल में लिखा गया एक ख़ास उपन्यास।
इसी उपन्यास से एक अंश : 👇
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। करोड़ों की बैंक डकैती की रकम पास होने पर मैं जगतार से बचने की खातिर पुलिस के पास चली जाऊं?"
"तो फिर मरो | यह दौलत दूसरों के काम आएगी।" जुगल किशोर ने सपाट स्वर में कहा “अक्ल से काम लो बेवकूफ! वह पुलिस वाला तुम्हें गारंटी देता है कि उसे तुमसे सिर्फ जगतार के खिलाफ गवाही और सबूत चाहिए। वह जानता है कि तुम्हारे पास सूटकेसों में कोई कीमती सामान है। इस पर भी वह तुम्हें कुछ नहीं कह रहा और छोड़ने की गारंटी देता है तो तुम्हें...।”
"बकवास करता है वह।" दांत भींचे वह दबे स्वर में चीख उठी “तुम पुलिस वालों को नहीं जानते। इनकी बातों पर मैं विश्वास करके बरबाद नहीं होना चाहती। यह मेरी दौलत छीन लेंगे। उसके बाद या तो मुझे जेल में ठूंस देंगे, या फिर मेरी हत्या करके लाश कहीं फेंक देंगे। फिर खुद ही मेरी लाश का पंचनामा करके लावारिस करार देकर, जलाकर सारा किस्सा खत्म कर देंगे। मैं तुमसे कह रही हूं - मेरा भला करो। इन हालात से मुझे निकालो। जगतार से मुझे बचाओ। और तुम मेरे खैरख्वाह बनकर मुझे आत्महत्या करने की सलाह दे रहे हो कि मरकर मैं सारे झंझटों से मुक्ति पा जाऊंगी।" जुगल किशोर के होंठों से गहरी सांस निकल गई।
दांव उपन्यास जुगल किशोर नाम के पसंदीदा पात्र का है जिससे आप दो-एक उपन्यासों में पहले भी मिल चुके हैं और उसके कमीनेपन के किस्सों से बखूबी वाकिफ हैं। उसी जुगल किशोर से इस उपन्यास में आपकी मुलाकात होगी।
चलिए, बढ़ते हैं अब कहानी की तरफ | रात के तीन बजे एक सुनसान जगह पर बनी बैंक में डकैती होती है और डकैती की दौलत के करोड़ों रुपए दो सूटकेस में बंद होते हैं। डकैती चार लोग करते हैं जिसमें एक खूबसूरत हसीना सुजाता सेठ भी शामिल होती है। सुजाता अपने साथियों को दगा देकर डकैती के करोड़ों रुपए लेकर भाग जाती है। इसे अब जुगल किशोर की किस्मत कहें या बदकिस्मती कि करोड़ों की दौलत लेकर भागती इसी खूबसूरत शह सुजाता सेठ से वह लिफ्ट मांग बैठता है जिसे डकैती की दौलत अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी थी। इस तरह इत्तफाक से जुगल उन लोगों के बीच में जा फंसता है जो बैंक डकैती के पश्चात डकैती के माल को छीनने के लिए एक दूसरे का गला काटते फिर रहे थे और जहां हर कोई एक दूसरे को रौंदते हुए करोड़ों की दौलत को पा लेना चाहता था । अनजाने में जुगल किशोर भी इस मौत से भरी दौड़ में शामिल हो गया था।
क्या महाठग जुगल किशोर को वो करोड़ों की दौलत मिल पाई?
क्या करोड़ों की दौलत को तलाश करते सुजाता सेठ के साथी जगतार को सुजाता सेठ मिल पाई ?
क्या इंस्पेक्टर दत्ता दौलत की खुशबू पा सका?
बनवारी लाल और प्रदीप गोयल जैसे ठगों से सुजाता ने दौलत को कैसे बचाया ?
इन्ही सब सवालों के जवाब जानने के लिए ज़रूर पढ़ें "दांव"।
उपन्यास तेज रफ्तार है और कई दिलचस्पी भरे हालात से गुजरने के बाद पाठक के दिमाग में अपनी छाप छोड़ जाता है । मुझे यकीन है कि दांव आपको बहुत पसंद आएगा।
एक बार जरूर पढ़िए जुगल किशोर का एक और कारनामा... दांव और देखिये कि इस बार उसने क्या दांव चला !!
वाकई में बहुत जबरदस्त उपन्यास है। अनिल मोहन जी के जितने भी उपन्यास पढ़ने को मिले वह एक से बढ़कर एक उपन्यास रहे। इसमें से यह भी बहुत ही खूब बहुत बढ़िया उपन्यास लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा ❤️❤️
जवाब देंहटाएंanil mohan ka to nam dekhkar hi samjh jao ki novel jabardast hai aur kya hu us novel ke bare mein jiske lekhak ka Naam dhekhar hi log novel kharid lete hai
जवाब देंहटाएंgreat writer & great novel
जवाब देंहटाएंकरोडो की दौलत हैं और पुलीस की सेक्युरिटी 😂😂😂
जवाब देंहटाएंभाग जाता तो सब कुछ मिल जाता परदेश मे
अति उत्तम विश्लेषण,आपके इस समीक्षा के लिए आपको साधुवाद।
जवाब देंहटाएंShandar
जवाब देंहटाएंI have more than 170 novels of anil mohan
जवाब देंहटाएंएक अच्छे उपन्यास का अच्छा सा रिव्यू देने के लिए आपको भी बहुत बहुत थैंक्स....👌👌👌👌👌👌
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