31 अक्तूबर 2021

नागपाल उपन्यासकार और उपन्यास सूची

नागपाल

नागपाल नाम से काफी उपन्यास प्रकाशित हुए हैं और अक्सर देखने को भी मिल जाते हैं। हालांकि जो उपन्यास हमें मिले हैं, उनमें ना तो कोई लेखकीय देखने को मिला और ना ही लेखक का कोई कॉन्टेक्ट नंबर या एड्रेस। 

                       नागपाल के उपन्यास 

अब ये लेखक कौन थे, कहाँ से थे, इनके बारे में कोई भी जानकारी कहीं पर उपलब्ध नहीं है। 
क्या नागपाल वास्तव में एक असली लेखक थे अथवा सिर्फ एक छदम नाम जिसकी आड़ में प्रकाशक ने अलग अलग लेखकों से अपनी सहूलियत के अनुसार लिखवाया! 

इनके उपन्यासों के बारे में जो थोड़ी-बहुत जानकारी हमें मिलती है, उनके अनुसार नागपाल नाम से अनिल मोहन भी बहुत घोस्ट राइटिंग (प्रेत लेखन) कर चुके हैं। नागपाल की त्रिकाल पांडे सीरीज के उपन्यासों को ही किरदार बदल कर देवराज चौहान सीरीज के उपन्यासों के तौर पर लिखा गया है। 

       राधा पॉकेट बुक्स में प्रकाशित कुछ उपन्यास की सूची

नागपाल के उपन्यास मुख्य रूप से राधा पॉकेट बुक्स, मेरठ से प्रकाशित हुए हैं। उपरोक्त उपन्यासकार के उपन्यासों की सूची निम्न है:- 
1 दौलत मेरी है ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
2 जुर्म की जंजीर ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
3 नकली चेहरा ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
4 चोरों का राजा ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
5 झूठ का जाल ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
6 धमाका ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
7 खतरनाक साज़िश ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
8 मौत का तांडव ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
9 चांडाल चौकड़ी ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
10 कौन लेगा दौलत ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
11 तबाही का रास्ता ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
12 पति की साजिश ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
13 काला कानून ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
14 हत्यारी बहु ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
15 बेगुनाह की मौत ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
16 मासूम की हत्या ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
17 खून से रंगे हाथ ( थ्रिलर )
18 हत्यारी दौलत ( थ्रिलर )
19 खूनी फंदा ( थ्रिलर )
20 शोलो का तूफान ( थ्रिलर )
21 नर्क का बादशाह  
22 जुर्म का पहरेदार ( त्रिकाल पांडे सीरीज )

अगर आप में से किसी को भी इनके बारे में कोई जानकारी हो तो वह कॉमेंट के जरिए हमारे साथ जरूर सांझा करे या आप हमे मेल भी कर सकते हैं।

27 अक्तूबर 2021

चिड़ीमार - राज भारती (अप्रकाशित उपन्यास)

आज हम इस पोस्ट में बात कर रहे हैं दिवंगत प्रसिद्ध लेखक राज भारती जी के अब तक अप्रकाशित उपन्यास चिड़ीमार की!!

चिड़ीमार उपन्यास की पब्लिसिटी राज भारती जी द्वारा रचित किरदार कमलकांत की चक्रव्यूह सीरीज के 28वें उपन्यास के रूप में की गयी थी और इसका ad भी दिया गया था पर ये उपन्यास कभी प्रकाशित नहीं हो पाया


  

Ad में कहानी की भूमिका कुछ इस प्रकार दी गई है कि एक अनाम किरदार अपने आप को बड़ा सूरमा समझता है पर उसका टकराव कमलकांत से होता है और कमलकांत उसे नाम देता है "चिड़ीमार"!!

इस उपन्यास के बारे में अभी तक ये पता नहीं लग सका है कि इसका प्रकाशन किस कारण से रुका! 

क्या उपन्यास राज भारती जी के असामयिक निधन के कारण लिखा ही नहीं जा सका या लेखन अधूरा रह गया या फिर लेखन तो पूरा हुआ पर उपन्यास का प्रकाशन नहीं हो पाया? 

कारण चाहे जो भी रहा हो, पाठकों को आज भी इस उपन्यास का इन्तजार है कमलकांत की चक्रव्यूह सीरीज अभी भी अधूरी है चिड़ीमार उपन्यास का प्रकाशन न सिर्फ इस अधूरेपन को भर सकता है बल्कि पाठकों को एक बार फिर कमलकांत की हैरतअंगेज दुनिया में जाने का अवसर दे सकता है


अगर आपके पास इस सन्दर्भ में कोई भी जानकारी हो तो हमें कमैंट्स के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं


लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के अप्रकाशित उपन्यास - पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

ब्लॉग के इस सेक्शन में हम आपको लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के उन उपन्यासों की जानकारी देने का प्रयास करेंगे जो अब तक प्रकाशित ही नहीं हो पाए | साथ ही कोशिश करेंगे कि उपन्यास प्रकाशित न हो पाने के कारणों की जानकारी भी दे सकें| 

अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी के लिए लेबल "अप्रकाशित उपन्यास" पर क्लिक/टैप करे या फिर ब्लॉग के पेज "लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के अप्रकाशित उपन्यास - पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति" पर जाएँ |


अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करें| अगर जानकारी उपयुक्त हुई तो हम इसे अपने ब्लॉग पर आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे|

जानकारी देने के लिए आप हमसे निम्न ई-मेल एड्रेस या फ़ोन पर संपर्क कर सकते हैं :

E-mail address: skbishnoi128@gmail.com

Mobile: +91-74970-70299

धन्यवाद


21 अक्तूबर 2021

गनमैन - अनिल मोहन

उपन्यास 📖 - गनमैन
लेखक 📝 - अनिल मोहन
पृष्ठ 📃 - २५६

                               पुराना कवर

                                नया कवर

गनमैन - अनिल मोहन द्वारा रचित एक्शन से भरपूर उपन्यास जिसमे मशहूर डकैती मास्टर देवराज चौहान एक बार फिर आपके सामने हाजिर है तूफानी स्टाइल और अपने ख़ास दरिंदगी भरे अंदाज में।

उपन्यास के मुख्य पात्र कुछ इस प्रकार हैं:

देवराज चौहान - आपका अपना मशहूर डकैती मास्टर।

मोहनलाल - कनपटियों के पूरे बाल सफेद अलबत्ता सिर के बाल सिर्फ बीस प्रतिशत ही सफेद थे। पचपन साल की उम्र में भी वह चुस्त समझदार और सुलझा हुआ इंसान लग रहा था।

भगवान दास ठकराल - मुंबई की मुख्य हस्ती, खरबों की दौलत का इकलौता मालिक। कभी ठकराल फैक्ट्री में काम करने वाला बेहद मामूली इंसान हुआ करता था। कुछ करने की ललक थी उसमे, उसने किया और आज एक खरबपति था।

गौतम चंद - पचास वर्षीय सख्तजान व्यक्ति, सिर पर छोटे छोटे बाल, छोटी मूंछें, साढ़े पांच फुट लम्बाई बला का फुर्तीला। अपराध की दुनिया में अपना करियर शुरू किया। काबिल इतना कि जब भगवान दास ठकराल को सिक्योरिटी चीफ की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने गौतम चंद को अपना सिक्योरिटी चीफ बनाया। गौतम चंद ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और भगवान दास को कई बार मौत से बाल-बाल बचाया।

ममता कालिया - जवान खूबसूरत हसीना जो दिल्ली से मुंबई फिल्मो में अपनी शर्तों पर काम करने आई थी। मोहनलाल उस पे अपना दिल हार बैठा था और वो भी मोहनलाल को पसंद करती थी। 

इसके अलावा नगीना और रंजन भाटिया का किरदार भी देखने को मिलता है पर इनकी भूमिका कुछ संवादों तक ही सीमित है। किरदार कम है जिसके कारण कहानी पर अच्छी पकड़ बनती है। 

कहानी की शुरुआत होती है देवराज चौहान और नगीना के वार्तालाप से:

"क्या सोचने लगे?" नगीना ने देवराज चौहान को निहारते हुए पूछा।
"नगीना!" सोचों से बाहर आकर देवराज चौहान ने नगीना की चेहरे पे निगाह टिका दी "जगमोहन के पास मौजूद सारा पैसा अब तक प्रयोगशाला पर लग चुका होगा या फिर समाप्त होने वाला होगा। मैं अपने अरबों रूपया प्रयोगशाला पर लगा चुका हूँ। उधर प्रयोगशाला के लिए जगमोहन को पैसों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है। मैं नहीं चाहता की प्रयोगशाला की प्रगति का काम रुके। मैं जल्द-से-जल्द प्रयोगशाला को चालू हालत में देखना चाहता हूँ और इसके लिए हमें अभी बहुत ज्यादा दौलत चाहिए।"
नगीना की आँखों में व्याकुलता के भाव उभरे..

 देवराज चौहान किसी टापू पर एक वैज्ञानिक लैब का निर्माण करवा रहा है जो आने वाले समय में गजाला से टक्कर लेने के लिए बनवाई जा रही थी। गजाला वैज्ञानिक शक्तियों के सहारे विश्वसाम्राज्ञी बनना चाहती है। इसीलिए देवराज चौहान जगमोहन को लैब का काम सौंपता है। 
जगमोहन को टापू पर काफी समय हो जाता है और इधर देवराज को चिंता होती है कि कैसे भी करके काम नही रुकना चाहिए। इसलिए देवराज चौहान सोचता है कि  कोई बड़ा हाथ मारे। वह तलाश करता है कि किस जगह पर डकैती डाले। पर अचानक एक दिन उसे एक सुपारी मिलती है जो कोई मोहनलाल नाम का व्यक्ति देता है। 

"पच्चीस करोड़ रुपये.." 
क्षण भर के लिए देवराज चौहान जड़-सा रह गया।
टकटकी बांधे वह मोहनलाल को देखता रह गया। मस्तिष्क में हैरानी का बवंडर उठ खड़ा हुआ था। एक हत्या की कीमत पच्चीस करोड़। देवराज चौहान को भारी गड़बड़ का अहसास हुआ।

आप सोच सकते हैं कि आखिर एक मर्डर के लिए कोई कितनी रकम दे सकता है - 10 लाख, 50 लाख या 1 करोड़! पर यहां तो एक मर्डर के 25 करोड़ मिल रहे थे।
 
देवराज चौहान जब ये सुनता है तो उस सुपारी के लिए हाँ कर देता है पर इसके साथ ही मोहन लाल से कहता है कि कोई भी काम हाथ में लेने से पहले, मैं जिसके लिए काम कर रहा हूं, उसके बारे में जानकारी लेता हूं। यहां पर मोहनलाल फिर देवराज चौहान को एक ऑफर देता है कि तुम मुझसे या अपने किसी भी तरीके से मेरे बारे में पता नही करोगे, बदले में 25 करोड़ और यानी कि कुल 50 करोड़ रुपये तुम्हारे। देवराज चौहान इसके लिए मंजूरी दे देता है और फिर शुरू होता है ठकराल की सुपारी का खेल!


क्या देवराज चौहान ठकराल को खत्म कर पाया ?
क्या सच में मोहनलाल देवराज चौहान के साथ कोई खेल खेल रहा था ?
सिर्फ एक मर्डर के लिए 25 करोड़ की सुपारी क्यों मिली देवराज चौहान को ?
क्या देवराज चौहान अपनी कोशिश में कामयाब हो सका या इस बार उसे नाकामी का मुंह देखना पड़ा ? 
ऐसे ही और भी काफी सवाल है जिनके जवाब आपको मिलेंगे सिर्फ गनमैन को पढ़ कर!


उपन्यास तेज रफ़्तार और एक्शन थ्रिलर से भरपूर है। एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म किए बिना नहीं छोड़ा जाता। जैसे कि अनिल मोहन जी के अधिकतर उपन्यास यादगार होते है, ये भी वैसा ही एक उपन्यास है - काफी समय तक याद रहने वाला।
अगर कवर के बारे में बात करे तो कवर अच्छा है। पुराने कवर अच्छे रहते थे। अगर उपन्यास कभी रिप्रिंट हुआ तो उम्मीद है कवर काफी आकर्षक और बढ़िया बनाया जा सकता है।

रेटिंग :- 7/10

09 अक्तूबर 2021

तहकीकात पत्रिका

कुछ समय पहले आप सभी ने हमारे ब्लॉग पर नीलम जासूस कार्यालय का साक्षात्कार पढ़ा था। जिन्होंने ये साक्षात्कार नही पढ़ा वो इसे यहां से पढ़ सकते हैं। नीलम जासूस कार्यालय साक्षात्कार



जैसा कि उस समय नीलम जासूस कार्यालय ने आपने साक्षात्कार में कहा था कि भविष्य में वह नए लेखकों को भी मौका देंगे, तो अब काफी सारे नए लेखकों के पास मौका है अपनी कहानी प्रकाशित करवाने का।

अब नीलम जासूस कार्यालय ने एक नई द्विमासिक पत्रिका शुरू की है। कोई भी नए और पुराने लेखक अपनी रचनाएं इस पत्रिका में प्रकाशित करवाने के लिए उन्हे भेज सकते हैं । 

आपकी रचना निम्नलिखित मापदंडो के अनुसार होनी चाहिए:-

1 :- नई द्विमासिक पत्रिका “तहक़ीक़ात” के लिए थ्रिल, सस्पेन्स और जासूसी कहानियाँ / रचनाएँ आमंत्रित हैं।
2 :- रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हों।
3 :- यूनिकोड हिन्दी फॉन्ट में टाइप की गई हों (साफ पठनीय हस्तलिखित रचनाएँ भी स्वीकार्य हैं।)।
4 :- शब्द-सीमा : कम से कम 3500 .
5 :- संपादक मण्डल द्वारा चयनित रचनाओं को प्रकाशित किया जाएगा।
6 :- लेखक अपना परिचय, मोबाइल न., ईमेल व अपनी नवीनतम फोटो साथ भेजें।
7 :- संपादक मण्डल का निर्णय अंतिम होगा।


उदाहरण के लिए तहकीकात पत्रिका का प्रथम भाग यहां आपके सामने है। इसका मूल्य 150 रुपए है और पेज संख्या 150 से ज्यादा है। जैसे पहले के समय में जासूसी पत्रिका, सत्यकथा, इत्यादि पत्रिकाएं आती थी, तहकीकात भी उन्ही की तरह है।

अपनी रचनाएँ निम्न ईमेल आई डी और व्हाट्सएप्प न. पर भेजें। ज्यादा जानकारी के लिए आप निम्न आईडी पर संपर्क कर सकते है। चयनित रचनाओं के लेखकों से नीलम जासूस कार्यालय आपके दिए हुए एड्रेस और कॉन्टेक्ट न. से आपको संपर्क करेंगे।

Email: tehkikatnjk@gmail.com
Whatsapp (सुबोध भारतीय): 9311377466

03 अक्तूबर 2021

रावायण लीला ऑफ़ रावण - सिद्धार्थ अरोड़ा सहर और मनीष खंडेलवाल

कहानी📖 : रावायण लीला ऑफ़ रावण
लेखक✍️ : सिद्धार्थ अरोड़ा सहर और मनीष खंडेलवाल
पेज📄 :- 66



ये एक लघु कहानी है जिसका मुख्य किरदार जीतेन्द्र उर्फ़ जीतू है | जीतू का परिवार काफी बड़ा है जिसमे माता, पिता, जीतू और उसके ३ भाई रामेन्द्र, अजय, छुटकू और १ बहन हिमानी है जो कि तीन माले के घर में रहते हैं | बड़े भाई रामेन्द्र उर्फ़ रामू की शादी तय हो गयी है | जीतू लगभग २३ वर्ष का है और अपने भाई-बहनो में तीसरे नंबर का है | इनके घर में अक्सर मेहमानो का ताँता लगा रहता है |
पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में सफल न होने के कारण घर वाले जीतू को लायक नहीं समझते और उसे घर के सारे छोटे-मोटे काम दिए रखते हैं जैसे सब्जी काटना, किचन में बहन की सहायता करना, कूड़ा फेंकना, बाहर के सारे काम करना, मेहमानो को नाश्ता इत्यादि सर्व करना | हालांकि जीतू खुशमिजाज है पर इस कारण घर वालो से अधिकतर बदतमीजी से ही बात करता है |
नवरात्रों के टाइम जीतू की मौसी अपने परिवार के साथ उनके घर दिल्ली की मशहूर रामलीला और जीतू के परिवार का हमेशा चलने वाला तमाशा देखने आते हैं |
जीतू मौसी को अपने पिता के साथ रंग-रलियां मनाते देख लेता है पर कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करता और उसे एक हफ्ते के लिए कमरे में नजरबन्द कर दिया जाता है | उसी रात जीतू घर से निकल कर छत पर पड़ोसन उर्मि के साथ बियर पीने चला जाता है | दूसरे नंबर का भाई अजय उसे देख लेता है और दोनों में झगड़ा हो जाता है | सब छत पर पहुँच जाते है और मौसी इस आग में घी डाल देती है| परिणामस्वरूप जीतू को घर से निकाल दिया जाता है | 
जीतू उर्मि के कमरे में छुपकर चला जाता है पर वहां उर्मि की माँ के कमरे में किसी की उपस्थिति पाकर जीतू और उर्मि चौंक जाते है | दोनों पता लगाने की कोशिश करते है पर कुछ गड़बड़ हो जाती है और दोनों को वहां से निकलना पड़ता है | 
अब दोनों समय गुजारने के लिए शमशेर के घर में जा के छुप जाते है जो कि रामायण में रावण का रोल करता है और ज्यादातर रावण के नाम से ही जाना जाता है | शमशेर अच्छी कद काठी और बुलंद आवाज का मालिक है, घर में अकेला ही रहता है और शाम को मुख्यत: सोने के लिए ही घर आता है | यहां जीतू और उर्मि एक दूसरे के बेहद करीब आ जाते हैं | रावण को उनकी घर में मौजूदगी का पता लग जाता है पर वो उनको अपने यहां रखने को मान जाता है जब तक वो वापिस अपने घर न जाए | 
फिर जब जीतू और उर्मि वापस उर्मि के घर जाते है तो वहां एक काण्ड हो जाता है जिसकी वजह से उर्मि को अपने घर रूकने का मन बनाना पड़ता है | जीतू अपने घर न जाकर रामलीला मैदान में जाता है जहां रावण रामलीला में काम करता है |
जीतू अपने दोस्त कपि के साथ रावण के घर में और रामलीला मैदान में उर्मि का इन्तजार करता है पर वो नहीं आती | कपि को लगता है की रावण ने उर्मि को किडनैप कर लिया है क्यूंकि वो रावण है, पर जीतू सहमत नहीं होता | मैदान में कपि और रावण के बीच बड़ा झगड़ा हो जाता है जिसे किसी तरह रुकवाया जाता है | वापिस रावण के घर आने पर वहां जीतू को उर्मि की शर्ट का कपडा और खून के निशान मिलते हैं | कपि फिर रावण पे इल्जाम लगाता है और पुलिस को बुलाने पे जोर देता है | तभी पुलिस आ जाती है और जीतू को उर्मि के किडनैप के केस में पूछताछ के लिए पकड़ कर ले जाती है | जीतू को थोड़ा मार-पीट कर पुलिस सुबह छोड़ देती है क्यूंकि वो बेगुनाह साबित होता है | जीतू कपि के साथ उर्मि के घर जाता है ताकि उर्मि के किडनैप के बारे में कोई जानकारी मिल सके | 

जीतू को उर्मि के किडनैप का शक कैसे हुआ? 
उर्मि के घर में क्या काण्ड हुआ? 
उर्मि कहाँ किडनैप थी? 
किसने उसे किडनैप किया और क्यों? 
जीतू की जान पर कैसे बन आयी?
अंत में जीतू और उर्मि का क्या हुआ? 
रावण उर्फ़ शमशेर की कहानी क्या थी और क्या हुआ रावण का? 
उर्मि की माँ का क्या रहस्य था? 
जीतू के परिवार के सदस्यों के क्या रहस्य थे? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप कहानी पढ़कर ही जान पाएंगे |

कहानी का शीर्षक थोड़ा हट कर है और कहानी रावण, रामलीला कमेटियों के साथ ही उन लोगो को समर्पित की गयी है जिन्हे सिर्फ अपने नाम की वजह से अपने कामों की जीवन भर सफाई देते रहना पड़ता है या फिर बातों को सहन करना पड़ता है क्यूंकि हमारा समाज के ज्यादातर लोग किसी भी इंसान के हर काम को उनके नाम से किसी न किसी तरह से लिंक करके टिप्पणियां करने में माहिर है जो कि एक कटु सत्य है |

कहानी का अंत संवेदनशील है और हमें सोचने पर मजबूर करता है | रावण का किरदार और उसकी बाते सबसे ज्यादा अच्छी लगी।
कहानी में हर जगह ऐसा दिखाया गया है कि लगभग हर किरदार का एक रहस्य है जिसे छुपाने के चक्कर में घटना पे घटना होती चली जाती है | 
लेखकों ने कहानी की गति को तेज रखा है पर बहुत सी घटनाओं को आपस में जोड़ने के चक्कर में कई जगहों पर तालमेल गड़बड़ा गया है और कहानी की लय भी थोड़ी बिगड़ गयी है | 
इसलिए कुल मिलकर कहानी मुझे कुछ औसत ही लगी |

01 अक्तूबर 2021

पीरागढ़ी का प्रेत - राजभारती

उपन्यास 📖: पीरागढ़ी का प्रेत 
लेखक ✍: राजभारती
पेज संख्या 📃: 289

एक ऐसे भयानक प्रेत की दास्तान जो एक काले बिल्ले के वेश में रहता था और एक हसीना पर आसक्त हो गया था। 

"वो एक काला बिल्ला था जो कि बहुत ही भयानक शक्ल वाला प्रेत था। उसके पास अपरंपार ताकत थी। दुनिया भर के बेशकीमती हीरे जवाहरात और खजाने लाकर उसने नीलम के कदमों में डाल दिए थे।"

कहानी की शुरुआत नीलम और आशीष की शादी से होती है। नीलम की शादी आशीष से होने वाली होती है पर शादी से कुछ पहले कुछ ऐसी भयानक घटनाएं घटने लगती हैं जिस से आशीष और नीलम के घरवाले भयभीत हो जाते हैं। शादी होने के पश्चात नीलम आशीष की दुल्हन बन कर आशीष के घर आ जाती है पर आशीष नीलम के साथ न ही सुहागरात मना पाता है और ना ही नीलम को स्पर्श कर पाता है। एक काला बिल्ला आशीष और नीलम की जिंदगी में जहर घोल देता है। हरबंस मामू और उनके पीर की मदद ली जाती है और हरबंस मामू उस प्रेत को भगाने के लिए कब्रिस्तान में आपनी और से पूरा प्रयास करते हैं पर वो प्रेत तो भागने की जगह और भयानक हो जाता है। 

उपन्यास समाप्त होने पर कुछ सवाल आपके दिमाग में सहज ही छोड़ जाता है जैसे कि:

कब्रिस्तान में लाशों के ऊपर बैठने वाला व्यक्ति कौन था ? 
शहजादा करल कौन था?
कुत्ते जैसी ज़बान वाली चुड़ैल कौन थी और वो नीलम के बेड पर ही क्यों सोती थी?
रोज रात को नीलम के पैरों से लिपट कर सोने वाला अजीब सा नीला जानवर कौन था? 
आशीष की मां के बेड पर कफन में लिपटा हुआ वो जला हुआ आदमी कौन था जिसके पूरे जिस्म पर बाल थे और उसकी आधी खोपड़ी उधड़ी हुई थी?
काले बिल्ले का रहस्यमयी घर कैसा था जहां पर शैतान और भयानक आदमखोर जिन्न रहते थे ?
क्या नीलम उस काले बिल्ले के प्रकोप से मुक्त हो पाई ?
इमली वाले बाबा कौन थे जिनके वश में कई जिन्नात थे ?
जिन्नात और प्रेत के लड़ाई में कौन जीता ?
 
इन्ही सब सवालों के जवाब पाने के लिए पीरागढ़ी का प्रेत ज़रूर पढ़े । 

उपन्यास की घटनाओं को राज भारती जी ने बहुत ही अच्छे से पिरोया है। हरबंस मामू और उनके पीर का किरदार तो जबरदस्त है ही, पर उससे भी ज्यादा जबरदस्त है वो काला बिल्ला जो हमेशा नीलम के इर्द गिर्द घूमता रहता है। 

ये कहानी दो भाग में है - पहला भाग है "पीरागढ़ी का प्रेत" उपन्यास और दूसरा भाग है 'प्रेत की दुल्हन" उपन्यास। 

पीरागढ़ी के प्रेत में पूरे उपन्यास में प्रेत लीलाओं का वर्णन है । कुछ सीन तो इतने भयानक लिखे हुए हैं कि उनको पढ़ते वक्त आपको महसूस होगा कि वो काला बिल्ला आप ही के आस पास कहीं है।
ये उपन्यास भूत-प्रेत के ऊपर लिखी कहानियों में एक मील का पत्थर है। एक बार जरूर पढ़ कर देखे।