उपन्यास 📖 - गनमैन
लेखक 📝 - अनिल मोहन
पृष्ठ 📃 - २५६
गनमैन - अनिल मोहन द्वारा रचित एक्शन से भरपूर उपन्यास जिसमे मशहूर डकैती मास्टर देवराज चौहान एक बार फिर आपके सामने हाजिर है तूफानी स्टाइल और अपने ख़ास दरिंदगी भरे अंदाज में।
उपन्यास के मुख्य पात्र कुछ इस प्रकार हैं:
देवराज चौहान - आपका अपना मशहूर डकैती मास्टर।
मोहनलाल - कनपटियों के पूरे बाल सफेद अलबत्ता सिर के बाल सिर्फ बीस प्रतिशत ही सफेद थे। पचपन साल की उम्र में भी वह चुस्त समझदार और सुलझा हुआ इंसान लग रहा था।
भगवान दास ठकराल - मुंबई की मुख्य हस्ती, खरबों की दौलत का इकलौता मालिक। कभी ठकराल फैक्ट्री में काम करने वाला बेहद मामूली इंसान हुआ करता था। कुछ करने की ललक थी उसमे, उसने किया और आज एक खरबपति था।
गौतम चंद - पचास वर्षीय सख्तजान व्यक्ति, सिर पर छोटे छोटे बाल, छोटी मूंछें, साढ़े पांच फुट लम्बाई बला का फुर्तीला। अपराध की दुनिया में अपना करियर शुरू किया। काबिल इतना कि जब भगवान दास ठकराल को सिक्योरिटी चीफ की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने गौतम चंद को अपना सिक्योरिटी चीफ बनाया। गौतम चंद ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और भगवान दास को कई बार मौत से बाल-बाल बचाया।
ममता कालिया - जवान खूबसूरत हसीना जो दिल्ली से मुंबई फिल्मो में अपनी शर्तों पर काम करने आई थी। मोहनलाल उस पे अपना दिल हार बैठा था और वो भी मोहनलाल को पसंद करती थी।
इसके अलावा नगीना और रंजन भाटिया का किरदार भी देखने को मिलता है पर इनकी भूमिका कुछ संवादों तक ही सीमित है। किरदार कम है जिसके कारण कहानी पर अच्छी पकड़ बनती है।
कहानी की शुरुआत होती है देवराज चौहान और नगीना के वार्तालाप से:
"क्या सोचने लगे?" नगीना ने देवराज चौहान को निहारते हुए पूछा।
"नगीना!" सोचों से बाहर आकर देवराज चौहान ने नगीना की चेहरे पे निगाह टिका दी "जगमोहन के पास मौजूद सारा पैसा अब तक प्रयोगशाला पर लग चुका होगा या फिर समाप्त होने वाला होगा। मैं अपने अरबों रूपया प्रयोगशाला पर लगा चुका हूँ। उधर प्रयोगशाला के लिए जगमोहन को पैसों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है। मैं नहीं चाहता की प्रयोगशाला की प्रगति का काम रुके। मैं जल्द-से-जल्द प्रयोगशाला को चालू हालत में देखना चाहता हूँ और इसके लिए हमें अभी बहुत ज्यादा दौलत चाहिए।"
नगीना की आँखों में व्याकुलता के भाव उभरे..
देवराज चौहान किसी टापू पर एक वैज्ञानिक लैब का निर्माण करवा रहा है जो आने वाले समय में गजाला से टक्कर लेने के लिए बनवाई जा रही थी। गजाला वैज्ञानिक शक्तियों के सहारे विश्वसाम्राज्ञी बनना चाहती है। इसीलिए देवराज चौहान जगमोहन को लैब का काम सौंपता है।
जगमोहन को टापू पर काफी समय हो जाता है और इधर देवराज को चिंता होती है कि कैसे भी करके काम नही रुकना चाहिए। इसलिए देवराज चौहान सोचता है कि कोई बड़ा हाथ मारे। वह तलाश करता है कि किस जगह पर डकैती डाले। पर अचानक एक दिन उसे एक सुपारी मिलती है जो कोई मोहनलाल नाम का व्यक्ति देता है।
"पच्चीस करोड़ रुपये.."
क्षण भर के लिए देवराज चौहान जड़-सा रह गया।
टकटकी बांधे वह मोहनलाल को देखता रह गया। मस्तिष्क में हैरानी का बवंडर उठ खड़ा हुआ था। एक हत्या की कीमत पच्चीस करोड़। देवराज चौहान को भारी गड़बड़ का अहसास हुआ।
आप सोच सकते हैं कि आखिर एक मर्डर के लिए कोई कितनी रकम दे सकता है - 10 लाख, 50 लाख या 1 करोड़! पर यहां तो एक मर्डर के 25 करोड़ मिल रहे थे।
देवराज चौहान जब ये सुनता है तो उस सुपारी के लिए हाँ कर देता है पर इसके साथ ही मोहन लाल से कहता है कि कोई भी काम हाथ में लेने से पहले, मैं जिसके लिए काम कर रहा हूं, उसके बारे में जानकारी लेता हूं। यहां पर मोहनलाल फिर देवराज चौहान को एक ऑफर देता है कि तुम मुझसे या अपने किसी भी तरीके से मेरे बारे में पता नही करोगे, बदले में 25 करोड़ और यानी कि कुल 50 करोड़ रुपये तुम्हारे। देवराज चौहान इसके लिए मंजूरी दे देता है और फिर शुरू होता है ठकराल की सुपारी का खेल!
क्या देवराज चौहान ठकराल को खत्म कर पाया ?
क्या सच में मोहनलाल देवराज चौहान के साथ कोई खेल खेल रहा था ?
सिर्फ एक मर्डर के लिए 25 करोड़ की सुपारी क्यों मिली देवराज चौहान को ?
क्या देवराज चौहान अपनी कोशिश में कामयाब हो सका या इस बार उसे नाकामी का मुंह देखना पड़ा ?
ऐसे ही और भी काफी सवाल है जिनके जवाब आपको मिलेंगे सिर्फ गनमैन को पढ़ कर!
उपन्यास तेज रफ़्तार और एक्शन थ्रिलर से भरपूर है। एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म किए बिना नहीं छोड़ा जाता। जैसे कि अनिल मोहन जी के अधिकतर उपन्यास यादगार होते है, ये भी वैसा ही एक उपन्यास है - काफी समय तक याद रहने वाला।
अगर कवर के बारे में बात करे तो कवर अच्छा है। पुराने कवर अच्छे रहते थे। अगर उपन्यास कभी रिप्रिंट हुआ तो उम्मीद है कवर काफी आकर्षक और बढ़िया बनाया जा सकता है।
रेटिंग :- 7/10