22 फ़रवरी 2022

लौट आया नरपिशाच - देवेंद्र प्रसाद

उपन्यास: लौट आया नरपिशाच 
श्रेणी: हॉरर (डर, भूत-प्रेत-पिशाच)
लेखक: देवेंद्र प्रसाद 
पेज संख्या: 194 (किंडल)

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लेखक देवेंद्र प्रसाद ने वर्ष 2020 में "हॉरर/डर" श्रेणी में "नरपिशाच समीक्षा" नामक पुस्तक (कहानी संग्रह) लिखी थी जिसकी समीक्षा हम पहले ही पोस्ट कर चुके हैं। "लौट आया नरपिशाच" इसी कहानी संग्रह को और अधिक विस्तार देते हुए लेखक द्वारा उपन्यास के रूप में लिखा गया है।

उपन्यास से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
रात के बारह बज चुके थे। कोहरा शाम से ही छाने लगा था। अंधेरे ने काली चादर फैलाकर अपना साम्राज्य कायम कर लिया था। चर्च के कब्रिस्तान के साथ-साथ पूरा इलाका अंधेरे में डूब चुका था। हवाओं का उग्र रूप इस कदर हावी था , जैसे वह आज कोई बड़ी अनहोनी का न्योता दे रहा हो। 
वह उस वीराने में जो इकलौता चर्च था, वो उस कब्रिस्तान में पड़ता था... 

इस उपन्यास का आरंभ होता है वर्ष 1995 में कब्रिस्तान के साथ बने एक जर्जर चर्च के दृश्य से जहां फादर डिकोस्टा अपने बच्चे एंथनी के साथ रहते हैं और चर्च की सेवा में नियुक्त है। अमावस्या की रात में बेहद खराब मौसम के मध्य अचानक दरवाजे पर तेज थपथपाहट सुनकर फादर डिकोस्टा दरवाजा खोलता है पर सामने किसी को न पाकर हैरान हो जाता है। अचानक दूर कहीं रोने की आवाज सुनकर मन ही मन थोड़ा डरा हुआ फादर डिकोस्टा उस दिशा में आगे जाता है। रोने की आवाज वाली जगह पर पहुंचते ही फादर डिकोस्टा के साथ एक ऐसा वीभत्स मंजर घटित होता है कि उनकी जान पर बन आती है। 

क्षण भर में ही वह दृश्य उनकी आँखों में कैद हो चुका था। उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं और उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि जैसे उसके प्राण हलक में आकर फँस गए हों। उसने जो देखा था, उस पर विश्वास करना किसी के लिए भी आसान नहीं था। इसी वजह से उसके पाँव वहीं के वहीं जम गए थे। 

24 साल बाद वर्ष 2019 में एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी का मालिक विश्वनाथ सिंह पाटिल, केविन मार्टिन नाम के एक डिटेक्टिव को चौहड़पुर नामक जगह पर एक गुप्त मिशन पर भेजता है। केविन का मिशन चौहड़पुर में एक भयानक नरपिशाच के बारे में फैली हुई अफवाहों की सच्चाई का पता लगाना है जो कि अनेक वर्षों से वहां डर और आतंक का कारण माना जाता है। 

विश्वनाथ सिंह पाटिल बोला, “लुक केविन , तुम्हें अब सबसे बड़ी चुनौती देने जा रहा हूँ। बात यह है कि तुम्हें जहाँ भेजा जा रहा है , उस जगह तुम्हारी जान जाने का भी खतरा भी हो सकता है क्योंकि वहाँ के आस-पास के कई गाँवों तक किसी नरपिशाच का साया है। 

अब तक 49 केस हल कर चुका केविन एक आत्मविश्वास से परिपूर्ण और आधुनिक विज्ञान में विश्वास करने वाला डिटेक्टिव है। केविन चौहड़पुर के लिए ड्राइवर लखविंदर सिंह की टैक्सी बुक करता है। चौहड़पुर पहुंचकर नकली नाम मार्टिन डिसूजा का इस्तेमाल कर चौहड़पुर के भव्य सेंट पॉल चर्च के फादर से मिलता है। फादर उसका परिचय एक युवती जेनेलिया से करवाते हैं जो चर्च की सार-संभाल में फादर की सहायता करती है। 

वहाँ फ़ादर एंथनी डिकोस्टा और केविन के सिवा कोई भी नहीं था। उन सभी के जाने के साथ ही एक युवती ने वहाँ प्रार्थना भवन में प्रवेश किया। उसे देखते ही फ़ादर एंथनी डिकोस्टा बोले, “केविन! इनका नाम जेनेलिया है और यहाँ इसी चर्च में पहली मंजिल पर ही रहती हैं।" 

यहीं से केविन अपनी जांच पड़ताल शुरू कर देता है ताकि इन सब अफवाहों की जड़ तक जल्दी से जल्दी पहुंच सके। जैसे-जैसे केविन इस मामले को समझने और हल करने की कोशिश करता है, वैसे-वैसे ही वो और अधिक उलझता चला जाता है और उसे एक अनजाने खतरे का आभास होने लगता है । जहां कुछ लोग उसके शक के दायरे में आते हैं, वही कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं जो उसका दिमाग घुमाकर रख देती हैं।

उन्होंने उसकी नब्ज टटोली तो उसमें भी कोई हलचल नहीं पाई। वह काफी चिंतित हो गए। वह लगभग आश्चर्य और डर के मिश्रित स्वर में बोला , “इसका हर अंग किसी मुर्दे की तरह बिल्कुल ही सुन्न है। यह संभव नहीं हो सकता , बिल्कुल भी नहीं।” 

आखिर क्या हुआ था फादर डिकोस्टा के साथ उस रात? 
फादर डिकोस्टा के बच्चे एंथनी का क्या हुआ? 
केविन की चौहड़पुर तक की यात्रा में क्या-क्या घटित हुआ? 
चौहड़पुर में इस मिशन पर काम करते समय ऐसा क्या हुआ जिसने केविन को उलझाकर रख दिया? 
क्या था सेंट पॉल चर्च का इतिहास? 
क्या रहस्य था काली बिल्ली का? 
क्या था वो अनजान खतरा जिसका आभास तो केविन को हो रहा था पर वो उसे समझ नही पा रहा था? 
कौन थी जेनेलिया और क्या थी उसकी कहानी? 
क्या वास्तव में चौहड़पुर में कोई नरपिशाच आतंक मचा रहा था या फिर ये मात्र एक अफवाह थी? 
अगर वास्तव में कोई नरपिशाच था तो क्या केविन उस नरपिशाच का खात्मा कर सका?
क्या चौहड़पुर जैसी अंजान जगह पर केविन को कहीं से कोई सहायता प्राप्त हो पाई? 
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा!

आप इस उपन्यास में मुख्य पात्र केविन मार्टिन के अलावा कई और पात्रों से रूबरू होंगे जैसे कि फादर डिकोस्टा, एंथनी, विश्वनाथ पाटिल, लखविंदर सिंह, विजय, आलिया, थॉमस, जेनेलिया, जॉनी, विलियम तथा साथ ही कुछ और रहस्मयी पात्रों से भी। उपन्यास में मुझे केविन, लखविंदर सिंह और फादर के पात्र बढ़िया लगे। जेनेलिया तथा थॉमस के पात्र भी कहानी के हिसाब से उपयुक्त लगे। अन्य पात्र सामान्य लगे।

अब उपन्यास की बात करें तो हॉरर श्रेणी में यह एक बढ़िया उपन्यास है। कहानी अच्छी है और कई अलग-अलग मोड़ों से गुजरती हुई रोमांचक तरीके से समाप्त होती है। खासकर कहानी की शुरुआत, कहानी में केविन की लखविंदर सिंह के साथ टैक्सी में यात्रा वाला भाग तथा कहानी का अंतिम भाग तो मजेदार बन पड़ा है। उपन्यास का लेखकीय भी पठनीय है। 

उपन्यास में मुझे सिर्फ एक ही कमी लगी कि कुशाग्र बुद्धि केविन चौहड़पुर में केस की जांच-पड़ताल करने में कई महीनों का समय लगा देता है, जिस कारण कहानी का ये प्रसंग कुछ खिंच सा जाता है। ये जरा सही नहीं लगा। इसके अलावा कहानी कहीं भी अपनी पकड़ नही खोती है।

यह उपन्यास वर्ष 2021 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के किंडल एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है और शाब्दिक गलतियां भी बेहद कम हैं। 

मेरा विश्वास है कि हॉरर उपन्यासों के प्रेमी पाठक इस उपन्यास को पढ़कर निराश नहीं होंगे। 

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 7.5/10

19 फ़रवरी 2022

पहरेदार - अनिल मोहन

उपन्यास: पहरेदार
लेखक: अनिल मोहन
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स
पेज संख्या:240

         एक उपन्यास और दो कहानियाँ - एक पूरी, एक अधूरी।

अनिल मोहन द्वारा लिखित उपन्यास 'पहरेदार' एक ऐसा उपन्यास है जिसमे दो‌ अलग-अलग कहानियाँ है जो कि देवराज चौहान के कारण एक बार आपस में मिलती हैं और फिर अलग-अलग हो जाती हैं।
यहां पर विशेष बात ये है कि मुख्य कहानी जो कि एक इंस्पेक्टर सूरज यादव पर केन्द्रित है, वो तो इसी उपन्यास में संपूर्ण हो जाती है परंतु देवराज चौहान वाली कहानी अधूरी ही रह जाती है।

उपन्यास  से लिया गया एक अंश:
* गृहमंत्री जी ने इंटरकॉम पर अपने सिक्योरिटी चीफ इंस्पेक्टर सूरज यादव को बुलाया। 
इंस्पेक्टर सूरज यादव दिल्ली पुलिस का होनहार, बेहद सख्त और अपने फर्ज को जान पर भी खेलकर अंजाम देने वालों में से था। सूरज यादव की काबलियत को पहचानने पर ही, उसका रिकॉर्ड देखने के पश्चात ही गृहमंत्री जी ने उसे अपनी सेवा में लिया था। उनकी सुरक्षा में ढेर सारे खतरनाक कमांडोज थे। लेकिन गृहमंत्री जी को इंस्पेक्टर सूरज यादव पर पूरा भरोसा था। *

'पहरेदार' एक ऐसे जाबांज इंस्पेक्टर की कहानी है जो सत्य के लिए गृहमंत्री तक को गोली मारने से पीछे नहीं हटता। CBI का एक एजेंट सूरज यादव उन ‌लोगों की तलाश में है जो भारत की आंतरिक ‌सुरक्षा से जुङी महत्वपूर्ण फाइलें अन्य देशों तक पहुंचाते हैं। 

इसी सिलसिले में जांच करते हुए सूरज यादव देश के गृहमंत्री से भी जा टकराता है। सूरज यादव की जिंदगी का यही निर्णय, गृहमंत्री से टकराना, उसके जीवन में तूफान खड़ा कर देता है। सूरज यादव गृहमंत्री पर इल्जाम तो लगा देता है पर उसे सही साबित नहीं कर पाता। इस चक्कर में उसकी नौकरी पर भी तलवार लटक जाती है । दूसरी तरफ गृहमंत्री से छीने गये महत्वपूर्ण कागजात भी सूरज डकैती मास्टर देवराज चौहान को गलतफहमी में सौंप देता है।

यही से ये कहानी एक नया मोड़ ले लेती है और सूरज यादव के मित्र इंस्पेक्टर मेहता की जान भी चली जाती है। अपने मित्र की मौत का बदला लेने के लिए, स्वयं को बेगुनाह साबित करने के लिए और असली मुजरिम को सामने लाने के लिए सूरज यादव जा टकराता है कानून के दुश्मनों से!!

द्वितीय कहानी है देवराज चौहान द्वारा एक गोल्ड वाॅल्ट को लूटने की लेकिन यह कहानी इस उपन्यास में पूर्ण ही नहीं होती‌। उपन्यास में इस कहानी का सिर्फ कुछ आधार ही बताया गया है।

"एक वजह से गोल्ड वाॅल्ट में आज तक डकैती करने की किसी की हिम्मत नहीं हुयी और वह वजह थी बीस फीट की गैलरी। सारी सुरक्षा व्यवस्था तोङकर अगर गोल्ड वाॅल्ट के भीतर पहुंच भी जाया जाए तो बीस फीट की गैलरी रूपी मौत के रास्ते को पार करके वाल्ट के उस दरवाजे तक नहीं पहुंचा जा सकता, जिसके पास करोड़ों अरबों की दौलत मौजूद है।"

क्या इंस्पेक्टर सूरज यादव अपनी नौकरी को बचा सका?
क्या सूरज यादव को वो कागजात देवराज चौहान से हासिल हो सके?
आखिर इस षड्यंत्र के पीछे कौन था जो देश के महत्वपूर्ण कागजात गद्दारों को दे रहा था?
क्या देवराज चौहान ने उन कागजातो का फायदा उठाया या उन्हे सही हाथो में पहुंचाया?
इन सभी सवालों के आपको जवाब मिलेंगे पहरेदार उपन्यास को पढ़ कर..

उपन्यास में एक जासूस की जिंदगी को लेकर बहुत अच्छी बात कही गई है -
"हम लोग जिस धंधे में हैं, उसमें तभी तक जिंदगी बची रह सकती है जब तक मन की बात मन में रहे। सीक्रेट एजेंट उस वक्त तलवार की धार पर आ बैठता है जब उसकी मूवमेंट की खबर दुश्मनों को मिलने लगती है।"

उपन्यास में अगर गलतियों की बात करें तो बहुत ज्यादा गलतियाँ नजर आती है जो कि एक अच्छी-खासी कहानी को भी खराब कर देती है:

1. इस उपन्यास को जबरन देवराज चौहान सीरीज का उपन्यास बनाने की कोशिश की गयी है। जबकि इसे सिर्फ थ्रिलर के तौर पर प्रस्तुत किया जाता तो भी  बढ़िया था।
2. उपन्यास में दो कहानियाँ हैं - मुख्य कहानी सूरज यादव की व दूसरी कहानी देवराज चौहान की। सूरज यादव की कहानी इस उपन्यास में खत्म हो जाती है, वहीं देवराज चौहान की कहानी अधूरी रह जाती है।
3. उपन्यास में खलनायक का किरदार बहुत कम व बहुत कमजोर दिखाया गया है। गृहमंत्री से दुश्मनी करने वाला मात्र एक सामान्य सा व्यक्ति बन कर रह गया।
4. सूरज यादव CBI का एक होनहार एजेंट है, पर वह गृहमंत्री वाले केस में निर्णय ऐसे लेता है जैसे कोई अति उत्साहित नवयुवक हो।
5. अगर ये प्वाइंट बताता हूं तो उपन्यास के बारे में स्पॉइलर होगा जो की नही होना चाहिए। अगर आप उपन्यास को पढ़ते हैं तो अंत के क्लाइमेक्स में आप उसे देख सकते है।

अनिल मोहन के पहरेदार उपन्यास का द्वितीय भाग  सुलग उठा बारूद है, लेकिन दोनों उपन्यासों का मुझे आपस में कोई तालमेल नजर नहीं आता।
जहां  पहरेदार  में सूरज यादव की कहानी खत्म हो जाती है वहीं देवराज चौहान की कहानी  सुलग उठा बारूद में समाप्त होती है। सुलग उठा बारूद उपन्यास अभी तक अप्रकाशित है। जिसके बारे में आपको अगली पोस्ट में सूचित कर देंगे।

उपरोक्त लिखित गलतियों को नजरअंदाज करते हुए अगर समग्र दृष्टि से देखे तो कहानी के स्तर पर प्रस्तुत उपन्यास बहुत रोचक है। रोचकता भी ऐसी कि पाठक कहीं भी बोरियत महसूस नहीं करता। यहाँ तक कि देवराज चौहान के आगमन से उपन्यास में रोचकता और भी बढ जाती है।
अनिल मोहन व देवराज चौहान के प्रशंसकों के लिए यह एक पठनीय उपन्यास है।

रेटिंग: 7/10

14 फ़रवरी 2022

27 सेकेंड - अनिल मोहन


उपन्यास: 27 सेकंड 
उपन्यास सीरीज: देवराज चौहान सीरीज
लेखक: अनिल मोहन 
पेज संख्या: 270
 
                         उपन्यास कवर 

"उस तबाही को आने में सिर्फ 27 सेकंड ही बचे थे"
उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर पेज) पर प्रिंट की गई उपरोक्तलिखित टैग लाइन एक उत्सुकता सी जगाती है!

उपन्यास से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
** "गुड! जैसा हमने प्लान बनाया था, वैसा ही हो रहा है।" घड़ी में से निकली आवाज कानों में पड़ी।
"यस सर।" 
"कार पर नजर रख रहे हो?" 
"जब तक वो चिप उसके कपड़ों में है, वो मुझे स्क्रीन पर नजर आता रहेगा।" **

इस उपन्यास का आरंभ होता है मार्केट की गैलरी के एक दृश्य से, जहां कुछ गुंडों से बचकर भाग रहा एक डरा-घबराया हुआ आदमी एक मोड़ पर मुड़ते ही वहां खड़े देवराज चौहान से टकरा जाता है और दोनो नीचे गिर पड़ते हैं। देवराज उससे भागने का कारण पूछता है और कारण जानने के बाद उस व्यक्ति को बचाने के लिए देवराज उसे छुपा देता है। जगमोहन के वापिस आते ही वो तीनों वहां से निकल जाते हैं। 

** "नही। मैने कोई गलत काम नहीं...।"
"कार में बैठ जाओ।" 
वो अनिश्चित सा खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा। देवराज चौहान उसे। 
कुछ पल बीते कि वो व्यक्ति एकाएक कार की तरफ दौड़ा और पीछे वाला दरवाजा खोलकर फुर्ती से भीतर जा बैठा। दरवाजा बंद कर लिया। **

आगे वार्तालाप के दौरान वो व्यक्ति अपना नाम हर्षा यादव बताता है। एक सुरक्षित जगह पहुंचकर हर्षा दोनो को अपनी साथी मीनाक्षी से मिलवाता है। कुछ हिचकिचाहट के बाद हर्षा पूरा मामला देवराज और जगमोहन को बताना शुरू करता है। इस दौरान हर्षा जैसे ही जॉर्ज लूथरा और उसकी एक खतरनाक साजिश के बारे में बताता है, देवराज और जगमोहन चौंक उठते है। जॉर्ज लूथरा का नाम तथा पूरा मामला सुनने के पश्चात देवराज गंभीर हो जाता है। फिर देवराज इस बारे में कुछ करने का हर्षा और मीनाक्षी को आश्वासन देता है। 

** "फोन पर खबर कर देंगे।" जगमोहन ने कहा।
"कब तक?"
"एक-दो दिन में।" देवराज चौहान उठता हुआ बोला - "तुम्हारे पास हमारा फोन आ जाएगा कि काम हो सकता है या नही। ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।" **

वहीं दूसरी तरफ सिक्का नाम का एक आदमी सोहनलाल से मिलता है और एक डकैती के सिलसिले में बात करने के लिए देवराज चौहान से मिलना चाहता है। सोहनलाल सिक्का की बात सुनने के बाद उसे कहता है कि पहले वो देवराज से इस बारे में बात करेगा और फिर उससे मिलेगा। सिक्का सोहनलाल की बात मान लेता है। सोहनलाल जगमोहन और देवराज चौहान से इस बारे में बात करने के लिए मिलता है। 

** सिक्का ने उसकी आंखों में झांका। 
"क्या मतलब?" 
"अगर इस काम के लिए देवराज चौहान तैयार हुआ तो फिर बात करूंगा तेरे से।" 
"तो ऐसा बोल।" मुस्करा पड़ा सिक्का - "देवराज चौहान तैयार... **

तो साथियों, यहां से शुरू होता है एक जानलेवा टकराव जिसमें दोनों तरफ से शातिर खिलाड़ी मैदान में उतर आते हैं और एक दूसरे को पराजित करने के लिए चाल पर चाल चलते हैं। टकराव आगे बढ़ने के साथ चुनौतियां और जान जाने का खतरा भी हर पल बढ़ता चला जाता है।

कौन थे हर्षा यादव और मीनाक्षी? वो गुंडे हर्षा के पीछे क्यों लगे थे? 
जॉर्ज लूथरा कौन था? उसका नाम सुनकर देवराज चौहान और जगमोहन चौंक क्यों उठे? 
हर्षा यादव और मीनाक्षी की पूरी बात सुनने के बाद देवराज चौहान ने क्या योजना बनानी आरंभ की? 
सिक्का किस डकैती के सिलसिले में सोहनलाल के माध्यम से देवराज चौहान से मिलना चाहता था? 
आखिर ये 27 सेकंड का क्या चक्कर था? ये 27 सेकंड  इतने महत्त्वपूर्ण क्यों थे और किस योजना में किसके द्वारा इनका उपयोग किया जाना था? 
क्या अंजाम हुआ इस जानलेवा टकराव का? 
किस-किस को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी इस टकराव में?
देवराज और जगमोहन के लिए खतरा इतना अधिक कैसे बढ़ गया? 
इस टकराव के समानांतर ही ऐसा और क्या घटित हो रहा था जिसे स्वयं देवराज, जगमोहन और सोहनलाल भी समझ नही पा रहे थे?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर मिल सकते हैं। 

कुल मिलाकर उपन्यास पढ़ने में बढ़िया लगा। उपन्यास में कई जगह रोमांचक मोड़ आते हैं। कहानी तेज गति और सस्पेंस से परिपूर्ण है। देवराज, जगमोहन और सोहनलाल का दुश्मन से टकराव अच्छा बन पड़ा है। दुश्मन द्वारा चली जाने वाली चालें और चालें चलने का तरीका पसंद आया। 

उपन्यास में आप देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल के साथ हर्षा यादव, रामदेव, मीनाक्षी, विनायक, सिक्का, जॉर्ज लूथरा, राजन, विम्मी, धींगड़ा, मुसीबर खान, पाटे खान, नूरा, साजन सिंह, राजा, सूरी इत्यादि पात्रों से मिलेंगे। हर्षा और मीनाक्षी के पात्र बढ़िया लगे। अन्य पात्र भी अपनी जगह ठीक लगे।

उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर पेज) कहानी के अनुरूप ही डिजाइन किया गया है। सफेद कागज पर उपन्यास की प्रिंटिंग अच्छी की गई है और शाब्दिक गलतियां भी अधिक नहीं हैं। 

मेरे विचार से अनिल मोहन का यह उपन्यास पाठकों को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। उपन्यास पढ़ते समय कहीं ठहराव या बोरियत का अनुभव होने की संभावना कम ही है।

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

08 फ़रवरी 2022

हिंदी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच - योगेश मित्तल


पुस्तक: हिंदी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच 
पुस्तक श्रेणी: आत्मकथा 
लेखक: योगेश मित्तल 
पृष्ठ संख्या: 268 
प्रकाशक नीलम जासूस कार्यालय 
पुस्तक लिंक: प्रेत लेखन

                       प्रेत लेखन का नंगा सच पुस्तक 

प्रिय साथियों! इस पोस्ट में हम आपको "हिंदी पल्प फिक्शन में प्रेत लेखन का नंगा सच" पुस्तक के बारे में बताने जा रहे हैं। सबसे पहले तो प्रेत लेखन का मतलब समझ लेते हैं। 
प्रेत लेखन (घोस्ट राइटिंग) - जब एक लेखक किसी और प्रख्यात लेखक के नाम से उसके उपन्यास लिखता है अथवा किसी प्रकाशक द्वारा रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क लेखक के नाम से उपन्यास लिखता है तो उस लेखक को स्वयं की कोई पहचान नहीं मिल पाती है। ऐसे लेखक को प्रेत लेखक अथवा भूत लेखक कहते हैं और ऐसे लेखन को प्रेत लेखन कहा जाता है। 

यह पुस्तक लोकप्रिय हिंदी साहित्य (लुगदी उपन्यास) क्षेत्र में एक लंबे समय से उपन्यास लिखते आ रहे लेखक योगेश मित्तल द्वारा लिखी गई है। 
जी हां! वैसे तो ये पुस्तक एक आत्मकथा है परंतु पढ़ते समय कई जगह ये एक उपन्यास का रूप ले लेती है। पुस्तक का नाम तो हटकर है ही, लेखक का नाम पढ़कर भी एकबारगी उत्सुकता जाग उठती है। जहां लोकप्रिय हिंदी साहित्य (लुगदी उपन्यास) के कई पाठक इनका नाम जानते होंगे, वही बहुत से पाठकों को जिज्ञासा भी हो रही होगी कि ये योगेश मित्तल कौन है ! 

तो साथियों! योगेश मित्तल स्वयं एक बहुत लंबे अरसे तक प्रेत लेखक के रूप में कार्यरत रहे हैं। जहां इन्होंने अनेकों उपन्यासकारों और प्रकाशकों द्वारा रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क के लिए प्रेत लेखक के रूप में पूरे के पूरे उपन्यास लिखे हैं, वहीं बहुत से ऐसे उपन्यासों में अपना योगदान भी दिया है जहां लेखकों ने कम पन्नों के उपन्यास लिखे थे अथवा किन्ही कारणवश वे उपन्यास पूरा नहीं कर पाए थे। 

इस आत्मकथा के जरिए योगेश जी ने हिंदी लोकप्रिय साहित्य के इतिहास के पन्नों में से एक ऐसे काले और बेहद कड़वे सच "प्रेत लेखन" को सामने लाने का प्रयास किया है जिससे प्रकाशकों ने अपने समय में बहुत लाभ उठाया परंतु इसी प्रेत लेखन ने बहुत से प्रतिभाशाली लेखकों को गुमनामी के अंधेरे से बाहर नहीं निकलने दिया। इसके बारे में लेखन जगत और प्रकाशन जगत के बहुत से लोग जानते तो थे परंतु बोलने, स्वीकारने और कोई ठोस कदम उठाने की हिम्मत शायद ही किसी में थी। 

अब आते हैं पुस्तक पर! अपनी आत्मकथा का आरंभ योगेश जी ने "अनकही" से किया है जिसमें उन्होंने पुस्तक की प्रस्तावना रखी है तथा स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया है कि इस आत्मकथा में उनके प्रेत लेखन जीवन का कितना हिस्सा मौजूद है। पुस्तक में योगेश मित्तल के बारे में कुछ प्रसिद्ध उपन्यासकारों के निजी विचारों को भी जगह दी गई है।
इसके बाद योगेश जी ने अपने बचपन, अपने परिवार, घर की स्थिति और आस-पड़ोस के बारे में बताया है! फिर विस्तारपूर्वक बताया है कि कैसे उनके लेखकीय जीवन की शुरुआत हुई, लुगदी साहित्य से किस प्रकार उनका नाता जुड़ा, किस प्रकार वो बहुत से प्रकाशकों और लेखकों से मित्रतापूर्ण तथा घनिष्ठ संबंध स्थापित कर पाए, कैसे दिल्ली और मेरठ के प्रकाशन संस्थानों ने सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ! 
इन्ही सब अनुभवों के मध्य योगेश जी ने ये भी अच्छे से बताया है कि प्रेत लेखन क्यों और कैसे आरंभ हुआ, कैसे प्रेत लेखन से प्रकाशकों ने बड़ा लाभ उठाया, कैसे प्रेत लेखन बहुत से लेखकों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ, कैसे वो स्वयं प्रेत लेखन से जुड़े, कैसे प्रेत लेखन के प्रचलन में लेखकों का भी मूक योगदान था, कैसे लुगदी साहित्य का पतन हुआ इत्यादि। साथ ही पुस्तक में योगेश जी ने कई प्रसिद्ध लेखकों के प्रति अपने भावनात्मक विचार व्यक्त किए हैं और यह भी बताया है कि किस प्रकार उनका जीवन कहीं न कहीं इन लेखकों से प्रभावित हुआ। कुछ गिनी-चुनी जगहों पर योगेश जी ने प्रकाशन संस्थानों में छोटे-मोटे काम करने वाले लोगों की चर्चा भी की है।

कुल मिलाकर पुस्तक पढ़ने में मनोरंजक है और लुगदी साहित्य से संबंधित ऐसी बहुत सी जानकारियां देती है जो शायद आपने पहले नहीं पढ़ी होंगी। पुस्तक में ऐसे बहुत सारे प्रेत लेखकों और उनसे संबंधित उपन्यासों के नाम मिलेंगे जो आपने पहले सुने नही होंगे। पुस्तक पढ़ने पर आप एक बार तो हैरान होंगे कि स्वयं योगेश मित्तल जी ने कितना अधिक प्रेत लेखन किया है और किन-किन लेखकों के लिए प्रेत लेखन किया है! ये भी जानने को मिलेगा कि कैसे कुछ प्रसिद्ध उपन्यासकारों को भी आरंभ में प्रेत लेखन करना पड़ा था। 

पुस्तक में कमी ये लगी कि कुछ बातों को लेखक ने कई जगहों पर दोहराया है जो कि थोड़ा उबाऊ लगा। लेखक के बचपन के एक-दो प्रसंग थोड़े छोटे किए जा सकते थे। 

पुस्तक में शाब्दिक गलतियां कुछ ही जगहों पर हैं अतः पुस्तक पढ़ते समय प्रवाह में कुछ खास व्यवधान पैदा नहीं करती।

यह पुस्तक प्रेत लेखन के बारे में रोचक जानकारी उपलब्ध करवाती है और साथ ही लेखक के जीवन से भी क्रमवार परिचित करवाती है। मेरी राय में इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें।

लेखक ने पुस्तक में यह भी कहा है कि वो इसका दूसरा भाग भी लिख सकते हैं अगर प्रथम भाग को पाठकों का समुचित प्यार मिले!

पुस्तक के बारे में ये मेरे निजी विचार है आपके और मेरे विचारो में दोहराय होना कोई बड़ी बात नहीं है। कॉमेंट्स द्वारा अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत करवाएं।

रेटिंग: 7.5/10