उपन्यास: नागराज की हत्या
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 303
'नागराज की हत्या' चार उपन्यासों की श्रृंखला का तृतीय भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम भाग 'देवदासी समीक्षा' तथा द्वितीय भाग 'इच्छाधारी समीक्षा' की समीक्षा हम पहले ही ब्लॉग पर शेयर कर चुके हैं।
'इच्छाधारी' उपन्यास के अंत में देवराज चौहान, नगीना, रानी और बांकेलाल राठौर सांपनाथ की बस्ती में पहुंच जाते है परंतु वहां उनकी भेंट सांपनाथ के स्थान पर तूतका से होती है। तूतका उन्हें बंदी बनाने की कोशिश करता है।
'नागराज की हत्या' उपन्यास से लिया गया एक अंश:
** "इधरो तो अपणो जाणो की खैर न दिखो। देवराज चौहान को किधर से अम बचायो?"
चंद कदमों के फासले पर थे राक्षस जाति के वे लोग।
वहशी इरादे थे उनके।
तूतका का आदेश मिल चुका था उन्हें। **
उपन्यास 'नागराज की हत्या' के प्रथम दृश्य में तूतका और उसके संगी राक्षस देवराज और उसके साथियों को मारने की कोशिश करते हैं परंतु रानी बीच में आ जाती है। तूतका से बात करने के बाद देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल सुनेरा की बस्ती में तूतका के साथ जाने की योजना बनाते हैं।
** तूतका ने कहा - "आइए, उधर झोंपड़े में चलते हैं। वहीं बातें होंगी। शायद आप लोगों के लिए कहवे का इंतजाम हो जाए।"
देवराज चौहान, रानी, नगीना और बांकेलाल राठौर तूतका के पीछे चल पड़े। परंतु वे सतर्क थे कि... **
उधर नागलोक में विश्व पुरुष 'नागराज' अपनी पत्नी नागरानी से एक गंभीर वार्तालाप में व्यस्त होता है। वार्तालाप के दौरान नागरानी एक ऐसी समस्या बताती है जिसे सुनकर नागराज व्यथित हो जाता है और अपनी शक्तियों द्वारा इसका हल निकालने का प्रयत्न करता है। परंतु नागराज की शक्तियां इस समस्या का जो समाधान बताती है, वो समाधान नागराज को भी दुविधा में डाल देता है।
** "तुम अपना दिल छोटा न करो नागरानी।"
"आप मुझे झूठा दिलासा दे रहे... ।"
"मैं कुछ भी झूठ नहीं कह रहा। जग से लड़ने की भावना तुममें पैदा कर रहा... ।"
"मैं कायर नहीं हूं जो.. ।" **
वहीं वायुलाल के महल में मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन आपस में मंत्रणा करने के पश्चात अपनी यात्रा आरंभ कर चुके होते हैं। वे जंगल के रास्ते से अपनी यात्रा शुरू करते हैं ताकि सुनेरा की बस्ती का कठिन सफर शीघ्र ही तय किया जा सके तथा देवराज और उसके साथियों तक पहुंचा जा सके।
** गरमी से बुरा हाल था। शाम तक ऐसा ही रहना था।
वे तीनों आगे बढ़ रहे थे।
पीछे न देख सके।
पीछे शीशे के समान चमकता, पारदर्शी बवंडर दिखा, जो कि पंद्रह फीट के व्यास में... **
उपरोक्त स्थानों पर चल रही गतिविधियों के समानांतर ही अन्य स्थानों (सांपनाथ की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती के बाहर, वायुलाल के महल में, नागराज की घाटी में) पर भी घटनाचक्र तेजी से चलता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में ये सब घटनाएं एक दूसरे से जुड़ जाती हैं और हालात इस तरह उलझ जाते हैं कि लगभग सबकी जान खतरे में पड़ जाती हैं।
देवराज, रानी और उनके साथी सुनेरा की बस्ती में क्यों जाना चाहते थे?
कौन था विश्व पुरुष नागराज और क्या था उसका रहस्य?
नागरानी ने ऐसी क्या बात बताई जिसने नागराज को चिंतित कर दिया?
क्या था वो समाधान जिस कारण नागराज भी दुविधा में पड़ गया?
क्या योजना बनाई नागराज ने?
क्या मोना चौधरी और देवराज चौहान का आमना-सामना हुआ?
सुनेरा ने अपनी ओर से सुरक्षा के क्या प्रबंध कर रखे थे?
नजूमी कौन था और क्या महत्त्व था उसका?
कौन थे बलसारा और हंसनी तथा क्या थी उनकी भूमिका?
इच्छाधारी ने इस बार क्या गुल खिलाए?
सुनेरा की बस्ती में फंसे सांपनाथ का क्या हुआ?
जलेबी, जगमोहन और गुलचन्द के सामने क्या-क्या खतरे आए?
क्या वायुलाल अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाया?
देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल को किन-किन खतरों से जूझना पड़ा इस बार?
त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव का क्या हुआ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!
अब हम उपन्यास के पात्रों के बारे में बात करते हैं। मुख्य पात्रों और श्रृंखला के पिछले दोनों उपन्यासों में मौजूद अधिकांश सहायक पात्रों के अलावा आपको नजूमी, बलसारा, हंसनी, नगोरा, नागरानी जैसे नए सहायक पात्र पढ़ने को मिलेंगे।
मुझे इस उपन्यास के सहायक पात्रों में सुनेरा, बलसारा और नागरानी अच्छे लगे। नागराज का किरदार सबसे अधिक प्रभावी लगा। जहां मुख्य पात्र देवराज चौहान, मोना चौधरी, वायुलाल और रानी अच्छे रहे, वहीं जगमोहन, गंगू और सोहनलाल भी पसंद आए। रुस्तम राव और इच्छाधारी के किरदार दिलचस्प रहे हैं। पारसनाथ, महाजन, नगीना और बांकेलाल की भूमिका इस उपन्यास में साधारण ही रही। सांपनाथ, नागनाथ, दुदका, तूतका इत्यादि पात्र अपनी-अपनी जगह ठीक लगे।
इस उपन्यास में आपको नागराज की वृहद शक्तियों का परिचय मिलेगा। सुनेरा और उसकी बस्ती के बारे में और अधिक जानकारी मिलेगी। मोना चौधरी, रानी, पेशीराम और वायुलाल की कुछ और शक्तियों के बारे में पता चलेगा। जलेबी और सोहनलाल का जगमोहन को खिजाना होठों पर स्वतः ही मुस्कान ला देता है। बीच में इच्छाधारी भी अपना जलवा बिखेरने में सफल रहा है।
उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन सामान्य सा ही लगा। कुछ जगहों पर संवाद काफी लंबे लिखे गए है जिन्हे लेखक द्वारा आसानी से कम किया जा सकता था। इस कमी को हटा दें तो कुल मिलाकर उपन्यास बहुत अच्छा है और पूरी श्रृंखला को मनोरंजक बना देता है। उपन्यास का अंत रोमांचक बन पड़ा है और अनिल मोहन की लेखनी का असर पाठकों को अगला उपन्यास तुरंत पढ़ने के लिए उत्साहित कर देता है।
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रेटिंग: 8.5/10
अच्छा प्रयास सुनील भाई......... 👍👍👍👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी। ये सीरीज काफी मजेदार थी। कुछ मित्र कहते है कि अनिल मोहन जी की पुनर्जन्म वाले उपन्यास अछे नही होते। मुजे तो पूर्वजन्म वाले भी ओरो जितने ही अच्छे लगते है। देवराज चौहान सीरीज का हर उपन्यास सुपर हिट है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई मुझे तो जितने भी पुनर्जन्म वाले नॉवेल है अनिल सर के सब बहुत ही मजेदार लगते है
जवाब देंहटाएंआपका आभार इस विश्लेषण के लिए
अनिल जी की यादगार सीरीज
जवाब देंहटाएंachha upanyas and achhi samiksha. maja aya samiksha padhkar.
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