25 जून 2021

नागलैंड - विकास भांति

ये विकाश भांति जी की तीसरी बुक है जो फ्लाई ड्रीम से प्रकाशित हुई है। तो चलिए आपको इस बुक के बारे में बताते है।

पुस्तक का नाम: नागलैंड
लेखक: विकास भांति
प्रकाशक: फ्लाई ड्रीम 
पेज: 175
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इसी पुस्तक से एक अंश:-
"इस जगह से आगे का क्षेत्र पिंजालियो का है। इस सीमा के आगे भारत के राज सविधान और धाराओं के कोई भी नियम लागू नहीं होते। पिंजालियों की अस्मिता को बरकरार रखने के लिए भारत सरकार दृढ़ है। पांच हजार वर्ष पुरानी इस सभ्यता की रक्षा और सम्मान हमारा दायित्व है।अत: आपसे अनुरोध है कि कृपया इस सीमा के आगे जाने का प्रयास न करें।"

कहानी की शुरुआत होती है मानव दुआ से। मानव एक प्रैस रिपोर्टर होता है । एक बार वो सीएम की एक आपत्तिजनक फोटो निकल लेता है जिसे बाद में वो मंत्री को देकर उसके बदले में 50 हजार रुपए लेता है। फिर मंत्री जी की पार्टी में काम करने लगता है । कुछ समय बीतने पर मंत्री एक जमीनी विवाद में एक धोबिन की हत्या करवा देता है | विनोद जो एक प्रैस रिपोर्टर होते है, और मानव को एक प्रैस रिपोर्ट बनाते है और उस न्यूज को दुनिया के सामने लाने को कोशिश करते है पर कुछ दिनों बाद विनोद जी की हत्या हो जाती है। मानव मंत्री जी को छोड़ कर एक यू ट्यूबर बन जाता है और पता करता है अलग-अलग रहस्य। ऐसे ही एक दिन उसके हाथो में एक मैगजीन आती है जिसमे छिपा होता है नागलैंड तक का सफ़र।

क्या मानव नागलैंड को खोज पाएगा या फिर जैसे बाकी सभी वहां जाने के बाद गायब हुए थे, वैसा ही मानव के साथ भी होगा ?
क्या मानव आपने गुरु (प्रैस रिपोर्टर) विनोद के मर्डर के बाद धोबिन के केस का कच्चा चिट्ठा खोल पाएगा ?
आखिर क्या था नागलैंड और नागमणि का रहस्य ?
आखिर ऐसा क्या था नागलैंड में कि नागलैंड को छोड़ने पर वहां का हर सदस्य एक हफ्ते के अंदर ही मृत्यु को प्राप्त कर लेता था ?
ऐसे ही कुछ और सवालों के आपको जवाब मिलेंगे नागलैंड को पढ़ कर...

अब बात करे किताब की तो किताब सस्पेंस, थ्रिलर और कॉमेडी से भरी हुई है। अगर आपको जंगल अच्छे लगते है तो आपको ये कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। कहते हैं ना कि डर के आगे जीत है, गलत कहते हैं। डर के आगे कभी कभी मौत भी होती है। 
मानव को जीत मिलती है या मौत ? ये जानने के लिए पढ़िए कॉमेडी सस्पेंस थ्रिलर नागलैंड।

अब बात करे गलतियों की तो शाब्दिक गलतियां ना के बराबर है। इन दिनों काफी पुस्तके पढ़ी है जो शाब्दिक गलतियों से भरी हुई होती है। यहां ये देखने को नहीं मिली। मुझे कहानी में जो मिसिंग लगा वो ये कि कहानी के अंत तक मोहम्मद कैसे मारा गया और उसे किसने मारकर दफन किया, इसका खुलासा नहीं किया गया है जो कि मेरी नजर में किया जाना चाहिए था। ऐसे ही एक और बात है जिसका खुलासा किया जाना चाहिए था। उस बात को नही लिख रहा क्योंकि दूसरे पाठको के लिए भी तो सर्च करने के लिए कुछ होना चाहिए। 

पुस्तक की बात करू तो सबसे अच्छा इसका कवर लगा | कवर आर्टिस्ट को मेरी तरफ से शुभकामनाए जो इतना बढ़िया कवर बनाया।

लेखक को अगले भाग के लिए मेरी तरफ से शुभकामनाए। अब ये कैसे तो लास्ट में जो अगली जर्नी का क्लू मिला है इसके कारण।

रेटिंग:- 4/5

नोट:- कहानी इस पुस्तक के नाम के पूर्णतया अनुरूप नही है ! जैसे कि नागलैंड लिखा है और नागमणि को ढूंढना है। तो यहां आपको बता दूं - इसमें नागलैंड एक जगह का नाम है न कि नागों की बस्ती या शहर और नागमणि वो नही है (जो इच्छाधारी नागो के पास होती है)| ना ही इस पुस्तक मे आपको नागों के साथ कोई एक्शन सीन मिलेगा। ये एक अलग तरह की कहानी है। 

21 जून 2021

राज भारती (प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार)


राज भारती जी अपने समय के बहुत मशहूर उपन्यासकार थे | राज भारती जी का ओरिजिनल नाम करतार सिंह था । वो पंजाबी सिख थे और उनका सात सदस्यीय भरा-पूरा परिवार था । बाद में उन्होंने दाढ़ी-मूँछ कटवा ली थी । राज भारती जी पश्चिम दिल्ली के पटेल नगर में रहते थे | उनका स्वर्गवास 27 सितम्बर 2011 को हुआ ।





राज भारती जी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में नौकरी करते थे । उनको लिखने का जूनून था । अपने इसी जूनून के कारण उन्होंने 1978 में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की नौकरी छोड़कर हिंदी पल्प फिक्शन लेखन में अपना करियर बनाया ।

राज भारती जी की पत्नी सरोज कांता जी ने राज भारती जी के लेखन के प्रति जूनून को इन शब्दों में व्यक्त किया था "वो पश्चिम दिल्ली के पटेल नगर में स्थित अपने घर में चाय पीते हुए पात्रों की कल्पना करते रहते थे। वो देर रात में लिखते थे । जब वो लिखते थे तो अपनी ही दुनिया में चले जाते थे - एक ऐसी दुनिया जिसे सिर्फ वो ही जानते और समझते थे ।"

इनका लिखने का जूनून ऐसा था कि एक समय पर इन्होने हॉरर के अलावा सब लिखना छोड़ दिया और चार वर्षों में राज भारती के रूप में 40 से भी अधिक हॉरर उपन्यास लिख डाले ।

राज भारती (करतार सिंह) जी ने सभी तरह के उपन्यास लिखे पर उनके फैंटसी और हॉरर नोवेल्स बहुत फेमस हुए थे । राज भारती जी ने अपने आप को हिंदी उपन्यास लेखन के पटल पर एक अग्रणी हॉरर और फैंटसी लेखक के रूप में स्थापित किया और इस श्रेणी में वो पाठको की पहली पसंद बन गए थे | इनके उपन्यासों की खासियत थी कि ये स्टोरी कुछ इस प्रकार लिखते थे कि पाठक का मन अधिकतर नावेल कम्पलीट करके के ही मानता था |


उन्होंने विभिन्न धाराओं (असामान्य और अलौकिक घटनाएं, पौराणिक कथाएँ, साई-फाइ, हॉरर, ऐतिहासिक घटनाओं इत्यादि) का अध्ययन किया और इनके मिश्रण से भूत-प्रेत, पिशाच और आत्माओँ से युक्त मायावी दुनिया की रचना कर पाठको को इस दुनिया की सैर करवाई | ऐसे कुछ उपन्यासों के नाम है:- स्वाहा, प्रेत की दुल्हन, पिशाच कन्या, रक्त भैरवी, पिशाच सुंदरी, प्रेत जाल इत्यादि.. | 


उनके हॉरर उपन्यासों की बिक्री अन्य हॉरर लेखकों के मुकाबले अधिक होती थी | उनके उपन्यास आज भी डिमांड में है | बहुत से पाठक उनके उपन्यासों का उदाहरण देकर प्रकाशकों से वैसे ही नए डरावने उपन्यासों की मांग भी करते है | उनके उपन्यासों को छापने वाले पुराने प्रकाशकों का मानना है कि राज भारती जैसा लेखक दुबारा मिलना बहुत कठिन है |


राज भारती जी ने कई पैन नामों से उपन्यास लिखे थे | उनका पहला उपन्यास सामाजिक उपन्यास "मुस्कुराहट कैद है" था जो करतार सिंह क्वारा के नाम से छपा था। राज भारती जी ने वेदप्रकाश कांबोज की विजय रघुनाथ सीरीज के पात्र को लेकर लिखना शुरू किया था। उन्होंने S KUMAR के नाम से भी काफी जासूसी उपन्यास लिखे और सावन के नाम से सामाजिक उपन्यास भी लिखे थे।


अपनी अलग पहचान बनाने के बाद उन्होंने थ्रिलर उपन्यास, अग्निपुत्र सीरीज, कमलकांत सीरीज, इंद्रजीत सीरीज, आनंद बेदिल सीरीज, अभय वर्मा सीरीज, गोकुल पांडे सीरीज, हॉरर, करण धारीवाल सीरीज, प्रीतम शौरी सीरीज, सागर सीरीज, सागर पुत्र सीरीज, शालियार खान सीरीज, समीर साहनी सीरीज, संग्राम सीरीज आदि बहुत सी सीरीज राज भारती के नाम से लिखी। इनमे अग्निपुत्र, कमलकांत और संग्राम सीरीज ने राज भारती जी को नई और विशिष्ट पहचान दिलवाई । 


जितनी अधिक सीरीज और पात्रों की रचना राज भारती जी ने की है, उतनी शायद ही किसी अन्य लेखक ने की होगी ।


अग्निपुत्र सीरीज एक ऐसे अमर प्राणी अग्निपुत्र पर आधारित है जो न जाने कितनी सदियों से जीवित है | आसमान के सितारे उसके दोस्त है, | आग उसे जलाती नहीं बल्कि शक्ति प्रदान करती है | समुद्र उसे अपनी गोद में पनाह देता है | वायु उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती | अग्निपुत्र बहुत बलशाली है | उसके जिस्म अभेद्य है जिस पर किसी हथियार का प्रभाव नहीं होता है | केवल जादू ही उसकी कुछ हद तक कमजोरी है पर जादू भी उसे कोई शारीरिक या मानसिक हानि नहीं पहुंचा सकता है | अग्निपुत्र सीरीज में अग्निपुत्र प्रोफेसर और उसकी दो बेटियों को अपनी सदियों की गाथा सुनाता है।


अग्निपुत्र सीरीज के उपन्यास :-

1 मायाजाल

2 महामाया 

3 महादंड 

4 महाकाल

5 खुदा का बेटा

6 महाबली

7 महाक्रोधी

8 महारथी

9 महायोगी

10 महामंत्र

11 महादह

12 महापाप

13 महाविनाश

14 महासंग्राम

15 महाकांड

16 अग्निपुत्र

17 अग्निकुंड

18 रक्तपात

19 रक्तमंदिर

20रक्त धारा

21 रक्तसिंदुर

22 रक्तसागर

23 शांग्रिला

24 रक्तपिपासु

25 रक्तरेखा

26 रक्तआहुति

27 रक्तकलश

28 रक्तकुंडली

29 रक्तसुंदरी

30 रक्त आत्मा

31 रक्त मुंड

32 रक्त सुरा

33 मृत्युंजय

34 रक्तांचल

35 रक्त देव

36 रक्त भैरवी

37 रक्त मंथन

38 मृत्युराग

39 मृत्युदश

40 मृत्युधाम

41 मृत्युजाल

42 मृत्युरथ

43 मृत्युद्वार

44 शाही रक्कासा

45 मिस्त्र की शहजादी

46 सफेद कबूतरी

47 मल्लिका का ताज

48 शाही जल्लाद

49 ताजपोशी

50 जादूगरनी

51 दोधारी तलवार

52 तौर ग्रह के हत्यारे

53 तौर ग्रह के देवता

54 तौर ग्रह के बंजारे

55 मंगोल सुंदरी

56 तौर ग्रह के छापामार

57 अभिसारिका

58 सुर्ख सैलाब

59 सरहदी भेड़िए

60 शिकारी मलिका

61 तौर के लुटेरे

62 रेगिस्तानी कबीले की मलिका 

63 हुंकार

64 आमरा

65 आमरा का इंतजाम

66 विनाश चक्र

67 बिल्ला हरुमा

68 शिंगुर के दरिंदे

69 शाबा

70 शंखनाद



कमलकांंत सीरीज में भँवरे जैसी फितरत वाला मुख्य नायक कमलकांत आपराधिक संगठनो से टकराता है | इन संगठनो के पास विचित्र शक्तियां भी होती है | कमलकांत को ये दुश्मन लगभग नेस्तनाबूद कर देते है और उसे मरा हुआ मान लेते है | पर एक दिन कमलकांत फिर वापिस आता है और इनके सर पर तलवार बनकर लटकने लगता है | सीरीज में कमलकांत के जीवन में विभिन्न लड़किया/प्रेमिकाएं भी आती हैं और इन में से लगभग सभी के पास कोई न कोई शक्ति होती है | आरंभ के तीन उपन्यास ( चक्रव्यूह, चक्रवात, त्रिशूल ) उस समय ये सीरीज इतनी प्रसिद्ध नही हो पाई थी। लेकिन जब मनोज पब्लिकेशन ने इस सीरीज के 4थे उपन्यास जोरावर को प्रकाशित किया तो पहली बार इस सीरीज की बुक को क्रम नंबर दिए गए। दिल तो कातिल है उपन्यास के बाद चिड़ीमार नामक उपन्यास अनाउंस किया था लेकिन दुर्भाग्यवश वो पूरा होने से पहले ही राजभारती जी हमारे बीच नहीं रहे। 


कमलकांत सीरीज के उपन्यास :-

1 चक्रव्यूह

2 चक्रवात

3 त्रिशूल

4 जोरावर

5 खूनी आंखे कातिल हाथ

6 कहर आंखों का 

7 हाईकमांड

8 नीली आंखों के गुलाम

9 मौत का साज

10 अजनबी लोग अनजाने खतरे

11 नागिन

12 छछूंदर

13 गोली की रफ्तार

14 होश उड़ा दूंगा

15 काली बिल्ली

16 बवंडर

17 काठ की हांडी

18 नाक का बाल

19 खुदा खैर करे

20 अंधा खलीफा

21 करामती शे

22 तिगनी का नाच

23 तेरी गर्दन मेरे हाथ

24 मौत खड़ी तेरे द्वारे

25 विषकन्या

26 हिसाब बराबर

27 कातिल माने ना

28 काम तमाम

29 सारे दिमाग मेरे शिकार

30 दिल तो कातिल है

चिड़ीमार (अप्रकाशित)



संग्राम सीरीज में आपको मुख्य किरदार संग्राम के हंगामे और उसकी रक्त-रंजित आत्मकथा पढ़ने को मिलेगी | संग्राम कविता से प्रेम करता है और उसकी तलाश में भटक रहा है | ये सीरीज संग्राम की आपबीती की कहानी है जिसने अकेले ही संगठित कुख्यात माफिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और अंडरवर्ल्ड में कोहराम मचा दिया |


सागरपुत्र सीरीज के उपन्यास :-

1 सागर पुत्र

2 आतिश

3 समुंद्र मेरी मुट्ठी में

4 आक्रोश

5 अखनातून

6 सागर सम्राट

7 मादम गारथा के शिकारी


शालयार खान सीरीज के उपन्यास :-

1 शालयार खान

2 शाहबाज

3 दरिंदा

4 कहर

5 दोजख

6 बारूद

7 शिकस्त

8 बेरहम

9 शहंशाह

10 शतरंज

11 फतवा

12 ऐलान ए जंग

13 लावा


विजय सीरीज के उपन्यास :-

1 एक कत्ल और सही 

2 लाश का प्रतिशोध

3 शिकार शैतान के

4 कत्ल एक कातिल का

5 जरूरत है कातिल की

6 सितारों का बादशाह रेगिस्तान के शिकारी

7 सितारों का बादशाह रेगिस्तान का षड्यंत्र

8 सितारों का बादशाह रेगिस्तान के लुटेरे

9 सितारों का बादशाह रेगिस्तान का नक्शा

10 रक्तद्विप तोरा तोरा तोरा

11 रक्तद्वीप तोरा तोरा तोरा का खजाना

12 रक्तद्विप तोरा तोरा तोरा के पुजारी

13 दहशत पिरामिडों का आतंक

14 दहशत कालापहाड़

15 शुक्रग्रह की शहजादी

16 मौत एक गद्दार की

17 मृत्युदूत

18 जिंदा का कब्रिस्तान

19 कत्ल न होने दूंगा 

20 मौत के खरीददार

21 लाश का अपहरण

22 रूहो की राजकुमारी

23 निशाना चूक ना जाये

24 काली नकाब

25 मौत सस्ती है

26 पिस्तौल के खिलाड़ी

27 कत्ल होने दो

28 लाल तिल

29 कतले आम

30 हसीन लाश

31 तमचा जान

32 शैतान के शिकार

33 कामिला लेबनान में हंगामा

34 कामीला मौत का सम्राट

35 बॉबी का कातिल

36 शिकार

37 मौत ने पुकारा

38 सफेद बिच्छू

39 उस रात से पहले

40 जुनून मौत का

41 सुनहरा मौती

42 मौत आती है

43 मौत की बस्ती

44 पान का बादशाह

45 नीली आंखों वाली लड़की ऑपरेशन ब्लास्ट

46 नीली आंखों वाली लड़की

47 सुनहरी नागिन

48 हीरो की घाटी

49 मौत ही मौत

50 आंधी मौत

51 काली बस्ती काले लोग

52 हथियार फैंक दो

53 मौत मेरे पीछे

54 कातिलों के बीच

55 तीसरी आंख

56 कातिलों की बस्ती

57 शैतान की ओलाद

58 मौत के फरिश्ते

59 हत्यारों की बस्ती

60 काला बिच्छू

61 सन्नाटे का कातिल

62 जान के दुश्मन

63 मौत का उपहार

64 अधूरी लाशे

65 अंतरिक्ष का खुदा


राज भारती जी की लिखी सागर और विजय सीरीज से ये 3 पार्ट भी बहुत फेमस हुए थे:-

1 तोरा तोरा तोरा

2 तोरा तोरा तोरा के पुजारी

3 तोरा तोरा तोरा का खज़ना


राज भारती जी आज हमारे बीच नहीं है पर अपने उपन्यासों के माध्यम से वे सदा पाठकों के हृदय में बसे रहेंगे।


17 जून 2021

साक्षात्कार - नीलम जासूस कार्यालय

आज आप सबके लिए पेश है नीलम जासूस कार्यालय, दिल्ली के ओनर श्री सुबोध भारतीय जी के साथ हुई हमारी दिलचस्प बातचीत और कुछ सवाल जवाब जैसे आज के जमाने में एक प्रकाशक को क्या-क्या करना पड़ता है इत्यादि !!

1. सबसे पहले तो आप आपने परिचय दीजिए और आपने प्रकाशन संस्थान के बारे में बताए ? 
बंधू, मेरा नाम सुबोध भारतीय है, दिल्ली में ही जन्मा, पला, बड़ा हूँ। स्वभावतः में एक कलाकार हूँ, मेरी रूचि गायन, पाठन के अतिरिक्त लेखन में भी है, मुझे आप एक छोटा मोटा लेखक भी कह सकते हैं। वैसे में पिछले ४० वर्षों से मुद्रण व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूँ। मेरी प्रकाशन संस्था का नाम नीलम जासूस कार्यालय है, जो लोकप्रिय साहित्य के सुनहरे दौर की वापसी के लिए कटि बद्ध है.


2. आप एक साल में लगभग कितनी किताबें पब्लिश करते हैं ? आप सिर्फ हिंदी साहित्य को ही प्रकाशित करते हैं या इंग्लिश साहित्य भी प्रकाशित करते हैं ?
अभी हमें एक साल नहीं हुआ है 10 महीने से भी कम समय में हम अब तक 40 किताबें प्रकाशित कर चुके हैं। इरादा तो 100 पुस्तकों का था पर Lockdown से काफी बाधा पहुंची है। 

हम हिंदी के साथ इंग्लिश में भी पुस्तकें प्रकाशित करने का इरादा रखते है। कोई पुस्तक हमारे अनुरूप होगी तो ज़रूर प्रकाशित करेंगे। 

3. आपके हिसाब से हिंदी साहित्य की कितनी कॉपी बिक जाती है ?
अभी हम नए हैं इस लिए ये कहना मुश्किल है की कितनी कॉपी बिक जाती है पर अब तक के अनुभव से इतना पता चला है की किताबें अब हज़ारों में नहीं सैकड़ों में बिकती हैं। जैसे अब फिल्मो की सिल्वर या गोल्डन जुबली नहीं होती सिर्फ कुछ दिन चलती हैं। 

4. आज के नए जमाने में आप पुराने समय में लुगदी साहित्य बोले जाने वाले उपन्यासों के प्रकाशन और इनकी पब्लिसिटी को कैसे मैनेज करते हैं ?
लुगदी साहित्य के लिए हम उन लेखकों को अप्रोच करते हैं जो आज कल नहीं छप रहे पर पुस्तक प्रेमी उनको अब भी दुबारा पढ़ना चाहते हैं। इसी लिए जर्जर अवस्था में, गले हुए कागज़ वाला 10 रूपये वाला नावेल 200 रूपये में खरीद रहे है। उसी या उस से कम कीमत में हम उन प्रेमियों को नया शानदार कागज़ पर छपा हुआ नावेल दे रहे हैं। वही हमारे लिए मौखिक पब्लिसिटी का आधार बन जाता है। सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म मार्केटिंग में काम आते हैं और उसके बाद रिटेलर भी अपने नखरे छोड़ कर हमें अप्रोच करता है।

5. नई पीढ़ी के लेखकों और पुरानी पीढ़ी के लेखकों में आपको क्या फर्क लगता है ?
सबसे बड़ा फ़र्क़ हमारे जीवन मूल्यों और भाषा का है। पुराने दिग्गज लेखक अश्लीलता परोसने से बचते थे, अगर ऐसा करना मजबूरी हो सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते थे। उस समय के लेखकों की भाषा साहित्यिक श्रेणी में रखी जा सकती है पर आज तो भाषा का पूरा स्वरुप अंग्रेजी प्रधान हो गया है। नयी पीढ़ी के कम लेखकों में ही गहरायी है । 

6. काफी सारे पुराने प्रकाशन अब बंद हो गए हैं या बंद होने के कगार पर है फिर आप इसे कैसे मैनेज कर रहे है ?
हम सिर्फ पुराने लुगदी साहित्य प्रेमियों के दम पर प्रकाशन कर पा रहे हैं। उनका अपने प्रिय लेखकों के साथ भावनात्मक लगाव है। ज़्यादातर पाठक 45 वर्ष से अधिक के हैं, उनकी बालपन या जवानी की यादें इस साहित्य से जुडी हुई हैं। उस दौर में रेडियो,टेलीविज़न के बाद सबसे बड़ा टाइम पास ये नोवेल्स ही हुआ करते थे।

7. सुना है आपका प्रकाशन भी पुराना है पर काफी समय बंद रहा और अब आपने इसकी फिर से शुरुआत की है इसमें आपको क्या क्या समस्या आई ?
मेरे पिता स्वर्गीय सत्य पाल वार्ष्णेय अपने समय के सुविख्यात प्रकाशक थे जिनका दौर 1959 से 1969 तक चला। वेद प्रकाश कम्बोज, ओमप्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, कुमार कश्यप आदि लेखक इनके लिए नियमित नए उपन्यास लिखा करते थे। बचपन में मै इन सभी लेखकों के उपन्यास पढ़ा करता था। मगर जब होश संभाला तो पिताजी का प्रकाशन संस्थान बंद हो चुके थे, कुछ पारिवारिक बंटवारे और कुछ परिस्थितियों के कारण। मन में एक सोया हुआ अरमान रहा अपने पिता की प्रकाशन संस्था नीलम जासूस कार्यालय को पुनर्जीवित करने का। कम्बोज जी, शर्माजी के सुपुत्र वीरेंदर भाई के साथ परशुराम शर्माजी के सहयोग और प्रोत्साहन से ईश्वर ने ये सुनहरा अवसर दिया अपना सपना साकार करने का, सभी का आभारी हूँ। मेषु कम्बोज और राम पुजारी मेरे सगे छोटे भाइयों से भी बढ़ कर हैं जो हर पल मेरे साथ खड़े रहते है।

जहां तक समस्या की बात आयी हमें थोड़ा संदेह था की अब इनके ग्राहक नहीं होंगे या बहुत कम होंगे तब व्यावसायिक रूप से ये शुद्ध घाटे का सौदा होता। पर पहले सेट की घोषणा के साथ ही जिस तरह का रिस्पांस मिला हमारे हौसले बुलंद हो गए। अब तो हमारे पाठकों का वर्ग दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है।

8. उपन्यासों की कला/विद्या को जीवित रखने और फिर से पापुलर करने के लिए क्या क्या किया जाना चाहिए.. और इसमें एक प्रकाशक को क्या भूमिका निभानी चाहिए आपकी नजरों में ?
प्रकाशक का खुद एक अच्छा पाठक होना ज़रूरी है पहली बात, तभी वो सही उपन्यासों का चयन कर पाएंगे । दूसरे जब १० या २० रूपये की पुरानी कीमत वाला उपन्यास जब आप १५० या २०० रूपये की कीमत में आप बेचना चाहते हैं तो आपको सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी देनी होगी जिस से पाठक उसकी कीमत के बारे में कोई शिकवा ही न कर सके। तीसरी बात सब्र की है ये धंधा अब पूरी तरह से बदल चुका है धैर्य से बाज़ार का रुख देखना होगा। सोशिल मीडिया का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल ही दोबारा पाठकों को जोड़ पायेगा जो इस साहित्य को फिर से पॉपुलर कर सकता है। 

जहा तक प्रकाशक की भूमिका की बात है उसे नीयत साफ़ रखनी होगी, लेखकों और पाठकों दोनों के प्रति। वैसे आज के युग में प्रकाशन ऐसा ही है-एक आग का दरिया है और डूब के जाना है । 

9. इंटरनेट के आने से किताबो को क्या फायदा या नुकसान उठाना पड़ा ?
सबसे बड़ा नुकसान लोगों का किताबों से फोकस हट गया। मनोरंजन के असंख्य साधन उपलब्ध हो गए। नयी पीढ़ी को तुरंत वाला मनोरंजन चाहिए जो नेट से मिल जाता है, यही किताबों के बड़े नुकसान का कारण है।

10. आजकल काफी सारे पाठक हिंदी साहित्य से विमुख हो रहे है और इंग्लिश साहित्य, वेब सीरीज, स्मार्ट फोन की ओर जा रहे है आपकी नजरों में इसका क्या कारण है ?
इसका जवाब वही है - आज सबको हर चीज़ इंस्टेंट चाहिए जो इंटरनेट देता है | समय बदल रहा है और इस भागती दौड़ती दुनिया में किताब पड़ना तो एक ठहराव है जो इस युग के अधिकांश लोगों को नहीं भाता। 

11. आपके हिसाब से हिंदी साहित्य को दुबारा शिखर पर कैसे लाया जा सकता है ?
मुश्किल है पर असंभव नहीं है। इसकी शुरुआत स्कूली शिक्षा ही करनी होगी। आज जब किसी अभिभावक का बच्चा हिंदी में कम नंबर लता है तो वह शर्मिंदा होने की बजाय गर्व से इस बात को बताता है। जब बच्चा पूछता है डैडी उनहत्तर कितने होते हैं तो वह गर्व से हँसता हैं। ये अप्रोच गलत है आप जापान या चीन में ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते वो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार और गर्व करते हैं।

12. क्या आपकी राय में सरकार को हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में कोई कदम उठाना चाहिए ? अगर हा तो क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?
सरकार को हिंदी का साहित्य सस्ता और सुलभ करना चाहिए। जो सार्वजानिक लाइब्रेरी की परंपरा थी उसका विस्तार करना चाहिए तथा हिंदी का प्रसार करने वाले प्रकाशकों को सस्ती दर पर कागज़ उपलब्ध करना चाहिए। 

13. सभी प्रकाशक शुरू के दो तीन महीने अपनी किताबो को हार्डकॉपी या पेपरबैक में देते है। उसके बाद किंडल एडिशन.. आप अपनी प्रकाशन की बुक का किंडल एडिशन क्यों नहीं देते जबकि काफी सारे प्रकाशक मानते है ई-बुक में आमदनी ज्यादा है ।
सबसे पहले आपको ये बात समझनी होगी की हार्ड कॉपी जब तक एक निश्चित मात्रा में नहीं बिकेगी प्रकाशक की लागत वापस नहीं आएगी। दुसरी बात लेखक को रॉयल्टी तभी मिलनी शुरू होगी जब प्रकाशक प्रॉफिट में आएगा। इस से पहले अगर ई-बुक निकाल दी गयी तो वो मुफ्त में वायरल हो कर सारे व्यापर को ध्वस्त कर देगी। जो पुस्तक अपनी लागत निकाल कर लेखक को भी रॉयल्टी दे चुकी है और अब उसकी हार्ड कॉपी भी मुश्किल से बिक रही है उसी पुस्तक की ई-बुक  निकालनी चाहिये। 

प्रकाशक यदि कॉपीराइट फ्री लेखकों के किंडल एडिशन या ई-बुक निकालता है उसको जो भी मिल रहा है सब प्रॉफिट ही है। न प्रिंटिंग और कागज़ की लागत और न ही लेखकों को रॉयल्टी देनी पड़ेगी।

सुबोध भारतीय जी का शुक्रगुजार हूँ कि इन्होंने अपना बहुमूल्य समय हमे दिया और हमारे सवालों का जवाब दिया । अपने व्यस्त टाइम टेबल और तीन-तीन उपन्यासों के प्रकाशन कार्य में व्यस्त होते हुए भी जो इन्होंने हमारे लिए समय निकाला, उसके लिए इनका हार्दिक आभार।

नीलम जासूस ने पुराने दिग्गज लेखकों को रिप्रिंट करना शुरू किया है । नीलम जासूस भविष्य में नए लेखकों को मौका भी देना चाहता है । बशर्ते लेखक की लेखनी में दम होना चाहता है। हाल फिलहाल में नीलम जासूस से सुरेश चौधरी जी का नया उपन्यास 'दंगा' आ रहा है ।
साथ ही नीलम जासूस कार्यालय आप सभी के लिए इसी हफ्ते तीन उपन्यास लेकर आ रहा है । अगर आपके नजदीकी बुक स्टॉल पर ना उपलब्ध हो तो आप नीलम जासूस कार्यालय से संपर्क करके इन उपन्यासों को ले सकते है।

सुबोध भारतीय
मोबाइल नंबर (व्हाट्सएप): 9310032466
नीलम जासूस कार्यालय - नई बोतल में पुरानी शराब




सुनहरे दौर के नगीने 

16 जून 2021

गोपाल राम गहमरी (प्रसिद्ध जासूसी लेखक)


लेखक: गोपाल राम गहमरी (1866 ई. - 1946 ई.)


हिंदी के धुरंधर जासूसी उपन्यास लेखक 'गोपाल राम गहमरी' का जन्म पौष कृष्ण गुरुवार संवत 1923 (1866) ई. में बारा, जिला गाजीपुर में हुआ। गोपाल राम गहमरी के पिता का नाम राम नारायण था।



उनके पूर्वज फ्रांसीसी सेंट के व्यापारी थे। गहमरी जब छह मास के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया और उनकी मां इन्हे लेकर आपने मायके गहमर चली आयी। गहमर में ही गोपाल राम का लालन पालन हुआ। प्रारंभिक शिक्षा संस्कार यही संपन्न हुए। गहमर से अतरिक्त लगाव के कारण उन्होंने बाद में आपने नाम के साथ आपने ननिहाल को जोड़ लिया और गोपाल राम गहमरी कहलाने लगे।


गोपाल राम गहमरी ने 1871 में गहमर, गाजीपुर से मिडल की परीक्षा पास की। फिर वे गहमर स्कूल में 4 वर्ष तक छात्रों को पढ़ाते रहे और खुद भी उर्दू और अंग्रेजी का अभ्यास करते रहे, क्योंकि कम उम्र होने और धनाभाव के कारण आगे की पढ़ाई नही कर सकते थे। इसके बाद पटना मर्म स्कूल में भर्ती हुए, जहां इस शर्त पर प्रवेश हुआ कि उत्तीर्ण होने पर मिडल पास छात्रों को तीन वर्ष पढ़ना होगा। आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण इस शर्त को स्वीकार कर लिया लेकिन बीच में ही पढ़ाई छोड़कर गहमरी जी बेतिया महाराजा स्कूल में हेड पंडित (हेड मास्टर) की जगह पर कार्य करने चले गए। बलिया रहकर कुछ दिनों तक 'बंदोबस्त' का काम भी देखा और सन 1888 ई. में सब कामों से छूटी कर कुछ दिनों प्रथम श्रेणी में नार्मल की परीक्षा पास की। इसके तुरंत बाद 1889 ई. में रोहतास गढ़ में हेडमास्टर नियुक्त हो गए। मगर यहा भी वे टिक कर नही रह पाए और एक साल तक काम करने के बाद बंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक सेठ गंगाविष्णु खेमराज के आमंत्रण पर 1891 ई. में बंबई चले गए।


गहमरी जी जब रोहताश गढ़ में थे तो वही से पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनाओं को भेजा करते थे। जब बंबई में रहने लगे तो वहां भी उनकी कलम गतिशील रही। यह अलग बात है कि वे वहा भी अधिक दिनों तक नहीं टिक सके। वहां आपने अनुकूल अवसरों को ना देखकर, वहा से त्यागपत्र देकर कालाकांकर चले आए। कालाकांकर (प्रतापगढ़,यू.पी.) से निकलने वाले दैनिक हिंदुस्तान के गहमरी जी नियमित लेखक थे। इसके साथ ही उस समय के श्रेष्ठ पत्र-पत्रिकाएं 'बिहार बंधु' , 'भारत जीवन' , 'सार सुधानिधि' में भी नियमित लिखते थे। जब 1892 में गहमरी जी राजा रामपाल सिंह के निमंत्रण पर कालाकांकर चले आए तो यहां वे संपादकीय विभाग से संबद्ध हो गए और एक वर्ष तक रहे।यही पर काम करते हुए बांग्ला सीखी और अनुवाद के जरिए साहित्य को समृद्ध करने का प्रयास भी किया। उन्होंने 'बनवीर' 'देश दशा' 'चित्रांगदा' आदि बांग्ला नाटकों का अनुवाद किया।


गहमरी जी एक जगह बहुत दिनों तक नहीं  टिकते थे। एक बार फिर सन 1893 में बंबई की ओर उन्मुख हुए और पत्र "बंबई व्यापार सिंधु" का संपादन करने लगे। लेकिन पत्र का दुर्भाग्य कहे या गहमरी जी का यह पत्र छह माह बाद बंद हो गया। फिर उन्होंने एस. एस. मिश्र के पत्र भाषा भूषण का संपादन करने लगे। यह मासिक पत्र था जो शीघ्र ही बंद हो गया जिसका कारण आर्थिक, प्रशासनिक ना होकर दंगा होना था। इसके पश्चात मंडला आकर मासिक पत्र 'गुप्तकथा' का कार्य भार संभाला पर अर्थभाव के कारण यह पत्र भी असमय बंद हो गया। गहमरी जी पुन बंबई पहुंच गए और खेमराज जी के 'श्री वेकेंटेश्वर समाचार' नाम के पत्र का प्रकाशन शुरू कर दिया। यह पत्र गहमरी जी के कुशल संपादन में थोड़े समय में ही लोकप्रिय हो गया। इसी दौरान प्रयाग से निकलने वाले प्रदीप (बांग्ला) ने ट्रिब्यून के संपादक नागेंद्र नाथ गुप्ता की एक जासूसी कहानी हिरार मूल्प प्रकाशित हुई थी। गहमरी जी ने उसका हिंदी अनुवाद कर श्री वेंकटेश्वर समाचार में कई किश्तों में प्रकाशित किया। यह जासूसी कहानी पाठको को इतना रुचिकर लगी कि कई पाठको ने इस पत्र की माहकता ले ली।

उस दौर में जासूसी ढंग की कहानियों में पाठको की गहरी रुचि जग रही थी। इसमें कथा में रहस्य और रोचकता ऐसी होती की पाठकों के भीतर एक तरह की जिज्ञासा जगाती और पाठकों को पढ़ने को विवश कर देती | 

गहमरी जी पाठकों के मन मस्तिष्क को समझ चुके थे। 'हीरे का मोल' के अनुवाद की लोकप्रियता और 'जोड़ा जासूस' लिखकर पाठको को प्रतिक्रिया से वे अवगत हो चुके थे। इस लोकप्रियता के कारण वे कई तरह को योजनाएं बनाने लगे। वे यह भी समझ चुके थे कि जासूसी कहानियां के जरिए पाठको का विशाल वर्ग तैयार किया जा सकता है। गहमरी जी पूरी तैयारी के साथ जासूसी लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। 1899 में ही वह घर आकर जासूस निकालना चाहते थे, किंतु बाल मुकुंद गुप्त के पुत्र की शादी के कारण 'भारत मित्र' का संपादन कार्य उन्हे संभालना पड़ा। इसकी वजह से 'जासुस' का प्रकाशन थोड़े समय के लिए स्थगित हो गया। उनकी इच्छा थी कि 'सरस्वती' के साथ ही 'जासूस' का भी प्रकाशन हो , लेकिन यह इच्छा उनके मन में ही रह गई। इस तरह जासूस का प्रकाशन जनवरी 1900 में सरस्वती के साथ ना होकर चार माह बाद मई 1900 में हुआ । गहमरी जी ने 'भारत मित्र' के संपादन के दौरान ही जासूस के निकालने की सूचना दे दी थी। इसका लाभ यह हुआ कि सैंकड़ों पाठको ने प्रकाशित होने से पहले ही पत्रिका की ग्राहकी ले ली।

एक और उल्लेखनीय बात यह है कि हिंदी में जासूस शब्द के प्रचलन का श्रेय गहमरी जी को है। उन्होंने लिखा है कि 1892 ई. से पूर्व किसी पुस्तक में जासूस शब्द नही दिया गया है। उन्होंने अपनी पत्रिका का नामकरण ऐसे किया जिससे आम पाठक आसानी से उसकी विषय वस्तु को समझ सके। 

जासूस शब्द से हालाकि यह बोध होता है की इसमें जासूसी ढंग की कहानियां ही प्रकाशित होती होगी, लेकिन ऐसी बात नहीं थी। उसके हर एक अंक में एक जासूसी कहानी के अलावा समाचार विचार और पुस्तकों की समीक्षाएं भी नियमित रूप से छपती थी। 

जासूस निकालने के लिए उन्हे धन की आवश्यकता थी इसकि पूर्ति उन्होंने मनोरमा और मायाविनी लिख कर की 'जासूस' का पहला अंक बाबू अमीर सिंह के हरिप्रकाश प्रेस से छप कर आया और पहले ही महीने मे विपीपी से पौने दो सौ रुपए की प्राप्ति हुई एव यह उस जमाने मे भी प्री बुकिंग से मिलने वाली राशि थी। इसने अपने विशेषांक मे भी लोकप्रियता की सारी हदो को पार करते हुए शिखर को छु लिया था। अपने प्रवेशाक मे जासूस का परिचय कुछ इस अंदाज मे पेश किया " डरिये मत यह कोई भाकोआ नहीं है धोती सरका कर भागिए मत यह कोई सरकारी सी आई डी नहीं है। है क्या ? क्या है यह? है यह पचास पन्नों की सुंदर सजाई मासिक माहवारी किताब जो हर एक मे बड़े चुटीले बड़े रसीले बड़े चटकीले बड़े गरबीले बड़े नशीले मामले छपते है। हर महीने बड़ी पचीली बड़ी छ्क्करदार बड़ी दिलचस्प घटनाओ से बड़े फड़कते हुए अच्छी शिक्षा और उपदेश देने वाले उपन्यास निकलते है। कहानी की नदी ऐसे लहराती है किस्से का झरना ऐसे सरसराता है की पढ़ने वाले आनंद के भंवर मे डूबते - उतराने लगते है। 

यह था गोपालराम गहमरी की मासिक पत्रिका जासूस का विज्ञापन जो उनके ही संपादन मे आने वाले अखबार भारत मित्र मे आया था। जिसने उक्त के हिसाब से बाज़ार मे हलचल पैदा कर दी थी नतीजा यह हुआ था की प्रकाशित होने से पहले ही सैकड़ों पाठक इसकी वार्षिक सदस्यता ले चुके थे। किसी पत्रिका के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार घटित हुआ था। यह 1900 की बात है।


गहमरी जी का कहना था कि जिसका उपन्यास पढ़कर पाठक ने समझ लिया कि सब सोलहों आने सच है उसकी लेखनी सफल परिश्रम समझनी चाहिए। गहमरी जी ने अपने रचनाओ मे पाठकों की रुचि का विशेष ध्यान रखते थे कि वे किस तरह की सामग्री पसंद करते थे। साहित्य के सन्दर्भ में उनके विचार भी उच्च कोटि के थे। वे साहित्य को भी इतिहास मानते थे उनका मानना था कि साहित्य को जिस युग में रचा जाता है उसके साथ उसका गहरा संबंध होता है। वे उपन्यास को अपने समय का इतिहास मानते थे गुप्तचर बेकसूर की फांसी, केतकी की शादी, हम हवालात मे तीन जासूस, चक्करदार खून ठन ठन गोपाल, गेरुआ बाबा मरे हुए कि मौत आदि रचनाओं में केवल रहस्य रोमांच ही नहीं है ब्लकि युग की संगतिया और विसंगतिया भी मौजूद है। समाज की दशा और दिशा का आकलन भी है यह कहकर की जासूसी और मनोरंजक रचनाये है उनकी रचनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता है न उनके योगदानों से मुंह मोड़ा जा सकता है। गहमरी जी की बाद की पीढ़ी को जो लोकप्रियता मिली उसका बहुत कुछ श्रेय देवकी नंदन खत्री और गहमरी जी को जाता है। इन्होंने अपने लेखन से वह स्थितियां बना दी थी कि लोगों का पढने की ओर रुझान बढ़ गया था। गहमरी जी ने अकेले सैकड़ों कहानिया उपन्यासों के अनुवाद किए।

यह भी एक विचित्र संयोग है कि तिलिस्मी साहित्य के साथ साथ जासूसी की भी अचानक बाढ़ आ गई और भी पाठकों ने सराहा और अपनाया हिंदी में जासूसी उपन्यासों के प्रणेता गोपाल राम गहमरी हैं।


देवकी नंदन की चंद्रकांता (1892) और नरेंद्र मोहिनी (1893) के थोड़े अन्तराल बाद अद्भुत लाश(1896) गुप्तचर (1899)के साथ गहमरी भी उदित हुए। 

इन जासूसी उपन्यासों की बढ़ती लोकप्रियता से प्रेरित होकर गहमरी ने प्रभूत मात्रा में साहित्य रचा जासूसी साहित्य के प्रभाव से समकालीन हिन्दी लेखक भी अपने को विरत न रख सके और इसी अवधि में ऐसी अनेकानेक रचनाये सामने आई। यथा रुद्रदत्त शर्मा कृत वर सिंह दरोगा (1900) किशोरी लाल गोस्वामी कृत जिन्दे की लाश (1906) जयराम सिंह कृत लंगड़ा खूनी (1908) जंग बहादुर सिंह कृत विचित्र खून (1909) शेर सिंह कृत विलक्षण जासूस (1911) चन्द्रशेखर पाठक कृत अमीर अली ठग (1911) शशि बाला (1911)और शिव नारायण द्विवेदी कृत अमर दत्त (1911)आदि। उन्हें गहमरी के समान ख्याति नहीं मिली।


गोपाल राम गहमरी पेशे से पत्रकार थे वे अकेले ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने घमरी मे बाल गंगाधर तिलक के पूरे मुकदमे को अपने शब्दों मे दर्ज किया था भिन्न-भिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में संपादकीय योगदान के कारण उनकी गिनती हिन्दी पत्रकारिता के विकास युग आदि युग मे प्रमुख संपादको में किया जाता है। बाद के दिनों में वे काशी चले आये और बनारस के बेनियाबाग के पास भवन बनाकर वहीं रहने लगे और साथ ही अखबारों और पत्रिकाओं में रोचक संस्मरण लिखते रहे। बनारस में ही, 80 वर्ष की आयु में 20 जून,1946 ई. को उनका देहांत हो गया|


इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार बीते कई वर्षो से 'गहमर' में उनके सम्मान में कई साहित्यिक आयोजन किये गए एवं उस दौरान कई "लेखकों एवं साहित्यकारों" को सम्मानित भी किया गया। साथ ही ऐसे आयोजनों के दौरान 'पुस्तक मेले' का भी आयोजन किया गया। 'गहमरी जी' को सम्मानित करते हुए 'गहमर' में उनके नाम पर एक पुस्तकालय भी है ----"गोपाल राम गहमरी पुस्तकालय" | यह पुस्तकालय पूर्ण रूप से अभी भी अस्तित्व में है, लेकिन इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण वहाँ पाठको की गतिविधि बहुत कम हो चुकी है।


बाबू गोपाल राम गहमरी के लिखे हुए मौलिक जासूसी उपन्यास हैं :-

1. बेकसूर की फांसी 

2. सरकती लाश 

3. बेगुनाह का खून 

4. जमुना का खून 

5. डबल जासूस 

6. खूनी कौन है 

7. मायाविनी 

8. लड़की की चोरी 

9. जादूगरनी मनोरमा 

10. थाना की चोरी 

11. भयंकर चोरी 

12. जासूस की भूल 

13. अंधे की आँख 

14. जासूस की चोरी 

15. जाल राजा 

16. मालगोदाम में चोरी 

17. डाके पर डाका 

18. डॉक्टर की कहानी 

19. जासूस पर जासूस 

21. जाली काका 

22. देवी सिंह 

23. लड़का गायब 

24. जासूस चक्कर में 

25. खूनी का भेद 

26. भोजपुर की ठगी 

27. बलिहारी बुद्धि 

28. योग महिमा 

29. अजीब लाश 

30. गुप्त भेद 

31. गुप्तचर 

32. गाड़ी में खून 

33. किले में खून 

34. गुप्तभेद 

35. भयंकर चोरी 

36. रूप सन्यासी 

37. लटकती लाश 

38. कोतवाल का खून

39. हम हवालात में 

40. खूनी 

41. ठगों का हाथ 

42. लाश किसकी है 

43. आँखों देखी घटना 

44. मटोपटो 

45. हत्या कृष्णा 

46. अपराधी की चालाकी 

47. सुन्दर वेनी 

48. अपनी राम कहानी 

49. विकट भेद 

50. जासूस की विजय 

51. मुर्दे की जाँच

52. मेम की लाश 

53. जासूस की जवांमर्दी 

54. जासूसी पर 

55. जैसा मुँह वैसा थप्पड़ 

56. सरवर की सुरागरसी 

57. खूनी की चालाकी 

58. चांदी का चक्कर 

59. गुसन लाल दरोगा 

60. भीतर का भेद 

61. धुरंधर जासूस 

62. हमारी डायरी 

63. खूनी की खोज 

64. जासूस की डायरी 

65. जासूस की बुद्धि 

66. कैदी की करामात 

67. देवी नहीं दानवी 

68. सोहनी गायब 

69. डॉक्टर की कहानी 

70. केश बाई 

71. केतकी की शादी 

72. नीमा 

73. अर्थ का अनर्थ 

74. मरे हुए की मौत 

75. देखी हुई घटना 

76. जासूस जगन्नाथ 

77.भयंकर चोरी 

78. नगद नारायण 

79. डकैत कालूराम 

80. भयंकर भेद 

81. स्वयंवरा 

82. भंडाफोड़ 

83. रहस्य विप्लव 

84. होली का हरझोग 

85. जमींदारों का जुल्म...इत्यादि 🙏


✍️ आशुतोष मिश्रा


13 जून 2021

साक्षात्कार - बृजेश शर्मा (पैन नेम - अजिंक्य शर्मा)

आज आप सबके लिए प्रस्तुत है प्रख्यात लेखक ब्रजेश कुमार शर्मा जी का साक्षात्कार | ब्रजेश जी छतीसगढ़ के महासमुंद शहर में निवासरत हैं | इन्होने अपनी पेन नेम 'अजिंक्य शर्मा' से कई बेहतरीन जासूसी उपन्यासों की रचना की है और उपन्यास जगत की नयी पीढ़ी के लेखकों में से अपनी एक पहचान कायम कर चुके हैं |


ब्रजेश कुमार शर्मा

सवाल 01: सबसे पहले तो हम आपका परिचय जानना चाहेंगे - आपका नाम, आपकी एजुकेशन, आप कहाँ से है और आपकी रुचि किन चीजों में है ?

मेरा नाम ब्रजेश कुमार शर्मा है। मैंने मैथ्स से B.Sc. की है और विज्ञान में मेरी गहन रुचि है।  

मैं छतीसगढ़ के महासमुंद शहर में निवासरत हूं। मेरी रुचि किताबें पढ़ने, संगीत सुनने और नई-नई जगहों पर घूमने में है।

मैं स्थानीय अखबार में संवाददाता के रूप में कार्यरत हूं। साथ ही अजिंक्य शर्मा के पैन नेम से जासूसी उपन्यास भी लिखता हूं।


सवाल 02: आप आपने वास्तविक नाम की जगह पैन नेम से क्यों लिखते हैं ?

ये सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैं पैन नेम से क्यों लिखता हूं। आप कह सकते हैं कि मैं इस मामले में प्रेमचंद जी, सर जेम्स हेडली चेईज व अन्य वरिष्ठ लेखकों से प्रेरित हूं, जिन्होंने अपने मूल नाम से न लिखकर पैन नेम से लिखा।

प्रमुख वजह यही थी कि मैं काफी विविधतापूर्ण लिखना चाहता हूं। अलग-अलग जोनर की किताबें एक ही नाम से लिखने से कन्फ्यूजन की स्थिति निर्मित न हो इसलिए मैंने जासूसी उपन्यास पैन नेम से लिखना शुरू किया।


सवाल 03: आप इस फील्ड में कैसे आए और आप किस से प्रेरित हुए लेखन को लेकर ?

जासूसी उपन्यासों में मेरी काफी रुचि रही है। लेकिन 2005 के आसपास तक ही मैंने अधिकांश उपन्यास पढ़े थे। उसके बाद उपन्यास पढ़ना तो कम हो गया लेकिन रुचि अब भी बरकरार है।

इसी बीच मोबाइल के बढ़ते प्रयोग के बाद पुस्तकालयों की संख्या कम होने से मुझे लगने लगा कि उपन्यास छपना बंद हो गए। बाद में सोशल मीडिया पर किताबों से सम्बंधित ग्रुप्स से जुड़ने पर मुझे एहसास हुआ कि अब भी जासूसी उपन्यासों में रुचि रखने वाले लोग हैं। और वे चर्चा भी करते हैं कि अब जासूसी लेखक कम ही रह गए हैं। 

इसी से प्रेरित होकर मैंने अपना पहला उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं' लिखा और किंडल पर प्रकाशित किया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि उस उपन्यास को इतना पसंद किया जाएगा। अच्छा प्रतिसाद मिलने से फिर मैंने दूसरा उपन्यास 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' लिखा, जो कि एक स्लैशर थ्रिलर है। मैं इस उपन्यास में एक नई तरह की कहानी लिखना चाहता था और मौत अब दूर नहीं की तरह ही इसका भी अच्छा प्रतिसाद मिलने से फिर मैंने आगे भी लिखना जारी रखा और हर उपन्यास में पाठकों को कुछ नया देने की कोशिश की। 

मुझे खुशी है कि पाठकों ने मेरे प्रयासों को सराहा भी और मुझे निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि अन्य कई साथी लेखकों की तरह ही मैं भी जॉब करता हूं, जिससे लेखन के लिए समय निकालना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी पाठकों के प्यार और प्रोत्साहन से प्रेरणा मिल रही है।


सवाल 04: कृपया अपनी संघर्ष गाथा के बारे में बताइये मतलब अपना पहला उपन्यास आपने कैसे लिखा? उसे लिखते समय और प्रकाशित करने में आपको क्या क्या परेशानियां आई ?

जैसा कि मैंने बताया, मेरा पहला उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं' है, जो एक थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री है। किताब लिखना सुनने में तो बहुत आसान लगता है लेकिन जब मैंने लिखना शुरू किया, तब मुझे एहसास हुआ कि लेखकों को कितनी मुश्किल होती होगी। कई जगह कहानी थम जाती है और आगे सोचना मुश्किल हो जाता है। और भी कई तरह की समस्याएं आतीं हैं।

पुस्तक प्रकाशित कराना तो आजकल बहुत आसान हो गया है लेकिन असली चीज तो कंटेंट ही है। कई प्रकाशन पेड या फ्री सर्विस देते हैं, जिनसे किताब छपवाईं जा सकती है। वर्तमान में मेरी किताबें किंडल पर ही उपलब्ध हैं। आगामी 2-3 महीने में उन्हें हार्डकॉपी में लाने की योजना है क्योंकि पाठक लगातार हार्डकॉपी की मांग कर रहे हैं।


सवाल 05: आपका पसंदीदा उपन्यास और लेखक कौनसा है जिस से आपको हमेशा लिखने की प्रेरणा मिली ?

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी मेरे आदर्श रहे हैं, जिन्होंने हिंदी में इतना उत्कृष्ट लेखन किया है कि अंग्रेजी उपन्यासकारों को भी पीछे छोड़ दिया। मुझे उनके उपन्यास इतने पसंद हैं कि उनके कई उपन्यास मैंने 2-4 बार पढ़े हैं और कुछ उपन्यास तो 15-20 से भी अधिक बार पढ़े हैं। उनकी प्रशंसा करने के लिए तो सौ पन्ने भी कम पड़ जाएंगे।

मुझे शर्मा जी के राजेश, जगत, जयन्त, जगन-बन्दूकसिंह के लगभग सभी उपन्यास बहुत पसंद हैं। उनके सामाजिक उपन्यास भी बेहद पसंद हैं, जिनमें अपने देश का अजनबी, नयनतारा, पिंजरे का कैदी, पी कहां, एक रात आदि शामिल हैं। आदरणीय श्री शर्मा जी ने विभिन्न क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक उपन्यासों की रचना की। उनकी लेखनी तो जिस विषय को छू देती थी, उस पर सोने जैसा उपन्यास लिख देते थे। वे भारत के स्टीवन स्पीलबर्ग की तरह ही थे, जिन्होंने अलग-अलग विषयों पर शानदार फिल्में बनाई हैं।

इंग्लिश लेखकों में मुझे डैन ब्राउन, माइकल क्रिस्टन आदि लेखक पसंद हैं।


सवाल 06: जिस विधा में आप लिख रहे है, आपकी नजर में उसका भविष्य क्या है?

जासूसी उपन्यास लेखन का क्षेत्र कुछ वर्ष पूर्व तक सिमटने लगा था लेकिन श्री संतोष पाठक जी, श्री शुभानन्द जी, श्री इकराम फरीदी जी, श्री कंवल शर्मा जी, श्री अनिल गर्ग जी जैसे लेखकों ने ऐसे समय में लिखकर जासूसी लेखन को नई ऊर्जा प्रदान की और अब ये जासूसी लेखन में शीर्ष लेखकों में शामिल हैं। अगर कुछ लेखकों के नाम मुझसे मिस हो गए हैं तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं। फिर बाद में और भी लेखक जुड़ते रहे। वर्तमान में कई लेखकों के उपन्यासों की बेहद सराहना की जा रही है, जिससे यही लगता है कि जासूसी लोकप्रिय साहित्य एक बार फिर स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर है।

हॉरर भी जासूसी साहित्य से जुड़ा हुआ विषय मानें तो श्री चंद्रप्रकाश पाण्डे जी के हॉरर उपन्यास भी बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं।


सवाल 07:  सुना है कुछ दिनों में आपकी नई किताब आने वाली है | आप अपने पाठकों को उसके बारे में कुछ बताना चाहेंगे कि आपकी नई किताब किस तरह की है और किस विषय पर आधारित है ?

मेरी नई किताब जो मेरा आठवां उपन्यास है, थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री है और हर बार की तरह इसमें भी मैंने कुछ अलग लिखने की कोशिश की है। उम्मीद है 'द ट्रेल' की तरह ही ये भी पाठकों के विश्वास पर खरी उतरेगी।


सवाल 08: सुना है अभी तक की आपकी बुक्स (उपन्यासों) में सबसे बड़ी बुक आपने 'द ट्रेल' लिखी पर कुछ पाठको को अच्छी नही लगी या उनको आपसे कुछ शिकायत रही | आप उन्हे क्या जवाब देना चाहेंगे ?

'द ट्रेल' सचमुच मेरा अब तक का सबसे लंबा उपन्यास रहा है। ये उपन्यास एक लाख से भी अधिक शब्दों का है। मेरे ही दो उपन्यास 'अनचाही मौत' और 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' दोनों को मिला भी दिया जाए, तब भी उनमें इतने शब्द नहीं हैं।

द ट्रेल के लंबे होने के मामले में भी पाठकों की अलग-अलग प्रतिक्रिया रही। कई पाठकों ने कहा कि उपन्यास कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला। इतने लंबे उपन्यास के बारे में जब पाठक ऐसा कहें तो ये सचमुच ही मेरे जैसे नए लेखक के लिए काफी प्रोत्साहित करने वाली बात है, जिसके लिए मैं सभी पाठकों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।

कुछ पाठकों ने उपन्यास के अंत के एक प्रसंग को गैर जरूरी तो कुछ पाठकों ने जरूरत से ज्यादा लम्बा भी बताया। उन पाठकों की शिकायत को भी सर-आंखों पर लेते हुए मैं कहना चाहूंगा कि असल मैं उपन्यास इससे भी ज्यादा लम्बा था और इसे और अधिक लम्बा रखने से बचने के लिए ही करीब 20-30 पेज कम किए थे।


सवाल 09: आपके अभी तक 7 उपन्यास आ चुके है आप इनमे से किसे अपनी सबसे अच्छी रचना समझते है ?

ये कहना तो मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि एक पिता के लिए ये बताना मुश्किल होता है कि वो अपनी कौन सी संतान को सबसे ज्यादा प्यार करता है। व्यवसायिक रूप से देखें तो 'काला साया' और 'द ट्रेल' ही मेरे अब तक के सबसे सफल उपन्यास रहे हैं।


सवाल 10: Pulp Fiction का भविष्य आने वाले समय में कैसा होगा.... उनकी चुनौती.....?

पल्प फिक्शन के सामने कई प्रमुख चुनौतियां हैं। अच्छा लेखन होना चाहिए। पायरेसी पर रोक लगनी चाहिए। और पूरी तरह रोक न लग सके तो कम से कम कमी तो आनी चाहिए। मोबाइल, इंटरनेट जैसे मनोरंजन के साधनों से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा है, जिन्होंने एक समय तो पल्प फिक्शन को काफी पीछे छोड़ दिया था।

यदि इसी प्रकार अच्छे लेखकों ने लिखना जारी रखा और पाठक संख्या बढ़ती रही तो पल्प फिक्शन का भविष्य आने वाले समय में और भी अच्छा हो सकता है। हमने पल्प फिक्शन का स्वर्णिम युग देखा है। क्या पता हीरक युग देखना अभी बाकी हो।


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|| साक्षात्कार के लिए बृजेश कुमार शर्मा जी का ह्रदय से धन्यवाद ||



12 जून 2021

'केशव पंडित' उपन्यास - वेद प्रकाश शर्मा

सबसे पहले तो आप सभी को मेरी तरफ से नमस्ते 🙏🙏

मुझे बचपन से ही किताबो को पढ़ने का शौक रहा है - पहले स्कूल की पाठ्य पुस्तकें पढ़ते थे और अब नॉवेल इत्यादि | स्कूल टाइम में नॉवेल क्या होते है, ये पता ही नही होता था | 

उस समय जो हिंदी की पाठ्य पुस्तकें होती थी, उनमें जो कहानियां लिखी होती थी, उन्हे पढ़ता था और उन्हें भी पता नही कितनी बार पढ़ चुका होता था | कई-कई बार तो अपनी क्लास से ऊपर वाली क्लास वालो की हिंदी बुक लेकर उनमें कहानियां पढ़ता था और कुछ समय बाद वो भी खत्म हो जाती थी | कहने का तात्पर्य है कि पहला प्रेम स्कूल की पाठ्य पुस्तकें ही रही है ।

स्कूल खत्म होने के बाद जब भी कभी कही जाना होता तो रेलवे स्टेशन या फिर बस स्टैंड पर जरूरी रुकना होता था, उनके पास से हमेशा कभी बालहंस , बाल केसरी, हितोपदेश , हातिमताई , सिंदबाद जहाजी आदि की किताबे ले लेता और उन्हे पढ़ता ।



अब शुरू करते हैं इस पुस्तक के बारे में बात जो सबसे अच्छी लगी ओर मन में बस गई | वैसे तो पढ़ने को महाभारत रामायण आदि भी काफी बार पढ़ी है, पर बात है सबसे अच्छी और जो मन में बसी - जी हाँ तो वो पुस्तक है श्री वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित केशव पंडित | ये सबसे अच्छा लगी |


(वैसे आप सभी को एक बात बता दू की श्री वेद प्रकाश शर्मा जी ने कुल 177 के आस पास उपन्यास लिखे है और आप उनमें से कोई भी आंखे बाद करके उठा ले, आप उनको पढ़ कर निराश नहीं होंगे) 

वेद जी ने केशव पंडित के ऊपर लगभग 11-12 उपन्यास लिखे है जिसमे केशव पंडित दो भागो में लिखा गया है पहला भाग केशव पंडित है और दूसरा कानून का बेटा ।

केशव पंडित को मुख्य रूप से वेद प्रकाश शर्मा जी ने ही रचा था और इसकी शुरुआत (बहु मांगे इंसाफ) से हुई थी जिसमे केशव को पहली बार सभी के सामने दिखाया गया था। एक लंबे अरसे बाद वेद प्रकाश शर्मा जी ने केशव को केशव पंडित की वापसी, विजय ओर केशव पंडित, विजय के सात फेरे और कोख का मोती जैसे नॉवेल से दुबारा पाठको के बीच लेकर आए थे।

केशव पंडित नाम का करेक्टर इतना फैमस हुआ की पाठक वेद जी से केशव पंडित सीरीज के ओर नोवेल्स की डिमांड करने लगे | वेद जी केशव पंडित को लेकर इतने नॉवेल नही लिख पाए। बाकी पॉकेट बुक्स ने इस डिमांड का काफी ज्यादा फायदा उठाना शुरू कर दिया और मार्केट में केशव पंडित के नाम से लिखने वाले घोस्ट राइटर की लाइन लगने लगी | इन घोस्ट राइटर में से कुछ का नाम में यहां बताना चाहूंगा जिसमे केशर पंडित, केवल पंडित, गौरी पंडित, आर्शीवाद पंडित, अभिमन्यु पंडित और प्रकाश पंडित थे। इन घोस्ट राइटर ने केशव की शादी करवा दी, बेटा करवा दिया, असिस्टेंट बनवा दिए और यहां तक कि केशव पंडित के बेटे के नाम पर भी उपन्यास लिखने लगे 😂😂 | कुछ राइटर्स ने तो सीधा केशव पंडित के नाम से भी लिखना शुरू कर दिया और काफी ज्यादा लिखा।

श्री वेद प्रकाश शर्मा जी के बेटे शगुन शर्मा ने भी केशव पंडित सीरीज के नोवेल्स पब्लिश किए | 

केशव पंडित के ऊपर एकता कपूर ने 1 टीवी सीरियल भी बनाया था जो zee टीवी पर आया था (सीरियल का अभी नाम याद नही पर वो 2010 के आस पास आया था और उसमे सरवर आहूजा ने केशव का रोल निभाया था) |

वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखे केशव पंडित सीरीज के सभी नोवल अच्छे हैं पर इनके मुझे केशव पंडित सीरीज के चार उपन्यास सबसे अच्छे लगे जिनमे केशव पंडित की वापसी, विजय ओर केशव पंडित, कोख का मोती और विजय के सात फेरे सबसे ज्यादा पसंद आये | 

इन उपन्यासों में बताया गया है कि केशव पंडित इंडियन सिक्रेट सर्विस के चीफ विजय और विजय के भांजे जासूस विकाश को जानता है. जब केशव वापिस विजय विकाश के शहर में आता है तो विकाश अपने गर्म स्वभाव के कारण केशव पंडित से टकराव की शुरुआत करता है. फिर केशव आपने दिमाग से ऐसी ऐसी शातिर चाले चलता है कि विकाश को पता ही नही चलता की हो क्या रहा है और क्या नहीं. विकाश को फसा हुआ देख के उसे बचाने के लिए विजय को मैदान में आना पड़ता है. फिर विजय को अपना सारा दिमाग और सिक्रेट सर्विस की सारी ताकत केशव से टकराने में लगानी पड़ती है. केशव यहां पर ना सिर्फ विजय से टकराता है बल्कि सिक्रेट सर्विस के सारे एजेंट और विकाश को अदालत में मुजरिम साबित कर के जेल भिजवा देता है. यहां जज भी केशव की दलीलों ओर गवाहों को काट नही पता . सरकार भी सिक्रेट सर्विस एजेंट्स की सीधी हेल्प करने से मना कर देती है. वेद प्रकाश शर्मा जी ने केशव और विजय के टकराव में बैलेंस(संतुलन) बनाया हुआ था क्योंकि दोनो ही वेद जी के प्रिय किरदार थे . वेद जी ने पूरे घटना क्रम को जिस तरह से लिखा है वो कबीले तारीफ है।(यहां खास बात ये है की केशव ज्यादातर मौकों पर अकेले ही अपने दिमाग के दम पर विजय और विकाश और पूरी सिक्रेट सर्विस से बराबर की टक्कर लेता है।)

कुल मिलाकर वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा ये एक बहुत ही रोचक किरदार है | मेरे हिसाब से वेद जी ने भी नही सोचा होगा कि उनका ये किरदार उपन्यासों की दुनिया में इतना लोकप्रिय होगा । केशव पंडित सीरीज में वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यास 👉

1 केशव पंडित

2 कानून का बेटा 

3 बहू मांगे इंसाफ

4 हत्या एक सुहागिन की

5 कैदी नंबर 100

6 विजय और केशव पंडित

7 कोख का मोती

8 केशव पंडित की वापसी

9 विजय के सात फेरे

10 काला अंग्रेज़

11 फिरंगी।

ये सभी उपन्यास वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित केशव पंडित सीरीज के है।

अंत में यही कहूंगा - वेद सर ने केशव पंडित के किरदार को काफी बढ़िया लिखा | किसी एक विषय के बारे मे बिना अध्ययन किए कुछ नही लिखा जा सकता ओर उन्होंने शायद केशव पंडित को लिखने के लिए उसका अध्ययन किया |

शायद वो इसे और भी ज्यादा लिखते पर उसके लिए संपूर्ण कानून की जानकारी ओर उसे पढ़ना पड़ता | फिर भी जिस रूप में उन्होंने केशव पंडित को लिखा, लाजवाब लिखा है |

अंत में अपने शब्दो को विराम देता हूं ओर यही कहूंगा कि हर एक को शायद ना आए पर मुझे काफी ज्यादा पसंद आए |

(सभी का टेस्ट अलग होता है मेरे भाई, किसी को कुछ पसंद किसी को कुछ) तो एक बार आप सभी से कहूंगा एक बार इसे पढ़ कर जरूर देखे |