17 जून 2021

साक्षात्कार - नीलम जासूस कार्यालय

आज आप सबके लिए पेश है नीलम जासूस कार्यालय, दिल्ली के ओनर श्री सुबोध भारतीय जी के साथ हुई हमारी दिलचस्प बातचीत और कुछ सवाल जवाब जैसे आज के जमाने में एक प्रकाशक को क्या-क्या करना पड़ता है इत्यादि !!

1. सबसे पहले तो आप आपने परिचय दीजिए और आपने प्रकाशन संस्थान के बारे में बताए ? 
बंधू, मेरा नाम सुबोध भारतीय है, दिल्ली में ही जन्मा, पला, बड़ा हूँ। स्वभावतः में एक कलाकार हूँ, मेरी रूचि गायन, पाठन के अतिरिक्त लेखन में भी है, मुझे आप एक छोटा मोटा लेखक भी कह सकते हैं। वैसे में पिछले ४० वर्षों से मुद्रण व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूँ। मेरी प्रकाशन संस्था का नाम नीलम जासूस कार्यालय है, जो लोकप्रिय साहित्य के सुनहरे दौर की वापसी के लिए कटि बद्ध है.


2. आप एक साल में लगभग कितनी किताबें पब्लिश करते हैं ? आप सिर्फ हिंदी साहित्य को ही प्रकाशित करते हैं या इंग्लिश साहित्य भी प्रकाशित करते हैं ?
अभी हमें एक साल नहीं हुआ है 10 महीने से भी कम समय में हम अब तक 40 किताबें प्रकाशित कर चुके हैं। इरादा तो 100 पुस्तकों का था पर Lockdown से काफी बाधा पहुंची है। 

हम हिंदी के साथ इंग्लिश में भी पुस्तकें प्रकाशित करने का इरादा रखते है। कोई पुस्तक हमारे अनुरूप होगी तो ज़रूर प्रकाशित करेंगे। 

3. आपके हिसाब से हिंदी साहित्य की कितनी कॉपी बिक जाती है ?
अभी हम नए हैं इस लिए ये कहना मुश्किल है की कितनी कॉपी बिक जाती है पर अब तक के अनुभव से इतना पता चला है की किताबें अब हज़ारों में नहीं सैकड़ों में बिकती हैं। जैसे अब फिल्मो की सिल्वर या गोल्डन जुबली नहीं होती सिर्फ कुछ दिन चलती हैं। 

4. आज के नए जमाने में आप पुराने समय में लुगदी साहित्य बोले जाने वाले उपन्यासों के प्रकाशन और इनकी पब्लिसिटी को कैसे मैनेज करते हैं ?
लुगदी साहित्य के लिए हम उन लेखकों को अप्रोच करते हैं जो आज कल नहीं छप रहे पर पुस्तक प्रेमी उनको अब भी दुबारा पढ़ना चाहते हैं। इसी लिए जर्जर अवस्था में, गले हुए कागज़ वाला 10 रूपये वाला नावेल 200 रूपये में खरीद रहे है। उसी या उस से कम कीमत में हम उन प्रेमियों को नया शानदार कागज़ पर छपा हुआ नावेल दे रहे हैं। वही हमारे लिए मौखिक पब्लिसिटी का आधार बन जाता है। सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म मार्केटिंग में काम आते हैं और उसके बाद रिटेलर भी अपने नखरे छोड़ कर हमें अप्रोच करता है।

5. नई पीढ़ी के लेखकों और पुरानी पीढ़ी के लेखकों में आपको क्या फर्क लगता है ?
सबसे बड़ा फ़र्क़ हमारे जीवन मूल्यों और भाषा का है। पुराने दिग्गज लेखक अश्लीलता परोसने से बचते थे, अगर ऐसा करना मजबूरी हो सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते थे। उस समय के लेखकों की भाषा साहित्यिक श्रेणी में रखी जा सकती है पर आज तो भाषा का पूरा स्वरुप अंग्रेजी प्रधान हो गया है। नयी पीढ़ी के कम लेखकों में ही गहरायी है । 

6. काफी सारे पुराने प्रकाशन अब बंद हो गए हैं या बंद होने के कगार पर है फिर आप इसे कैसे मैनेज कर रहे है ?
हम सिर्फ पुराने लुगदी साहित्य प्रेमियों के दम पर प्रकाशन कर पा रहे हैं। उनका अपने प्रिय लेखकों के साथ भावनात्मक लगाव है। ज़्यादातर पाठक 45 वर्ष से अधिक के हैं, उनकी बालपन या जवानी की यादें इस साहित्य से जुडी हुई हैं। उस दौर में रेडियो,टेलीविज़न के बाद सबसे बड़ा टाइम पास ये नोवेल्स ही हुआ करते थे।

7. सुना है आपका प्रकाशन भी पुराना है पर काफी समय बंद रहा और अब आपने इसकी फिर से शुरुआत की है इसमें आपको क्या क्या समस्या आई ?
मेरे पिता स्वर्गीय सत्य पाल वार्ष्णेय अपने समय के सुविख्यात प्रकाशक थे जिनका दौर 1959 से 1969 तक चला। वेद प्रकाश कम्बोज, ओमप्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, कुमार कश्यप आदि लेखक इनके लिए नियमित नए उपन्यास लिखा करते थे। बचपन में मै इन सभी लेखकों के उपन्यास पढ़ा करता था। मगर जब होश संभाला तो पिताजी का प्रकाशन संस्थान बंद हो चुके थे, कुछ पारिवारिक बंटवारे और कुछ परिस्थितियों के कारण। मन में एक सोया हुआ अरमान रहा अपने पिता की प्रकाशन संस्था नीलम जासूस कार्यालय को पुनर्जीवित करने का। कम्बोज जी, शर्माजी के सुपुत्र वीरेंदर भाई के साथ परशुराम शर्माजी के सहयोग और प्रोत्साहन से ईश्वर ने ये सुनहरा अवसर दिया अपना सपना साकार करने का, सभी का आभारी हूँ। मेषु कम्बोज और राम पुजारी मेरे सगे छोटे भाइयों से भी बढ़ कर हैं जो हर पल मेरे साथ खड़े रहते है।

जहां तक समस्या की बात आयी हमें थोड़ा संदेह था की अब इनके ग्राहक नहीं होंगे या बहुत कम होंगे तब व्यावसायिक रूप से ये शुद्ध घाटे का सौदा होता। पर पहले सेट की घोषणा के साथ ही जिस तरह का रिस्पांस मिला हमारे हौसले बुलंद हो गए। अब तो हमारे पाठकों का वर्ग दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है।

8. उपन्यासों की कला/विद्या को जीवित रखने और फिर से पापुलर करने के लिए क्या क्या किया जाना चाहिए.. और इसमें एक प्रकाशक को क्या भूमिका निभानी चाहिए आपकी नजरों में ?
प्रकाशक का खुद एक अच्छा पाठक होना ज़रूरी है पहली बात, तभी वो सही उपन्यासों का चयन कर पाएंगे । दूसरे जब १० या २० रूपये की पुरानी कीमत वाला उपन्यास जब आप १५० या २०० रूपये की कीमत में आप बेचना चाहते हैं तो आपको सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी देनी होगी जिस से पाठक उसकी कीमत के बारे में कोई शिकवा ही न कर सके। तीसरी बात सब्र की है ये धंधा अब पूरी तरह से बदल चुका है धैर्य से बाज़ार का रुख देखना होगा। सोशिल मीडिया का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल ही दोबारा पाठकों को जोड़ पायेगा जो इस साहित्य को फिर से पॉपुलर कर सकता है। 

जहा तक प्रकाशक की भूमिका की बात है उसे नीयत साफ़ रखनी होगी, लेखकों और पाठकों दोनों के प्रति। वैसे आज के युग में प्रकाशन ऐसा ही है-एक आग का दरिया है और डूब के जाना है । 

9. इंटरनेट के आने से किताबो को क्या फायदा या नुकसान उठाना पड़ा ?
सबसे बड़ा नुकसान लोगों का किताबों से फोकस हट गया। मनोरंजन के असंख्य साधन उपलब्ध हो गए। नयी पीढ़ी को तुरंत वाला मनोरंजन चाहिए जो नेट से मिल जाता है, यही किताबों के बड़े नुकसान का कारण है।

10. आजकल काफी सारे पाठक हिंदी साहित्य से विमुख हो रहे है और इंग्लिश साहित्य, वेब सीरीज, स्मार्ट फोन की ओर जा रहे है आपकी नजरों में इसका क्या कारण है ?
इसका जवाब वही है - आज सबको हर चीज़ इंस्टेंट चाहिए जो इंटरनेट देता है | समय बदल रहा है और इस भागती दौड़ती दुनिया में किताब पड़ना तो एक ठहराव है जो इस युग के अधिकांश लोगों को नहीं भाता। 

11. आपके हिसाब से हिंदी साहित्य को दुबारा शिखर पर कैसे लाया जा सकता है ?
मुश्किल है पर असंभव नहीं है। इसकी शुरुआत स्कूली शिक्षा ही करनी होगी। आज जब किसी अभिभावक का बच्चा हिंदी में कम नंबर लता है तो वह शर्मिंदा होने की बजाय गर्व से इस बात को बताता है। जब बच्चा पूछता है डैडी उनहत्तर कितने होते हैं तो वह गर्व से हँसता हैं। ये अप्रोच गलत है आप जापान या चीन में ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते वो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार और गर्व करते हैं।

12. क्या आपकी राय में सरकार को हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में कोई कदम उठाना चाहिए ? अगर हा तो क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?
सरकार को हिंदी का साहित्य सस्ता और सुलभ करना चाहिए। जो सार्वजानिक लाइब्रेरी की परंपरा थी उसका विस्तार करना चाहिए तथा हिंदी का प्रसार करने वाले प्रकाशकों को सस्ती दर पर कागज़ उपलब्ध करना चाहिए। 

13. सभी प्रकाशक शुरू के दो तीन महीने अपनी किताबो को हार्डकॉपी या पेपरबैक में देते है। उसके बाद किंडल एडिशन.. आप अपनी प्रकाशन की बुक का किंडल एडिशन क्यों नहीं देते जबकि काफी सारे प्रकाशक मानते है ई-बुक में आमदनी ज्यादा है ।
सबसे पहले आपको ये बात समझनी होगी की हार्ड कॉपी जब तक एक निश्चित मात्रा में नहीं बिकेगी प्रकाशक की लागत वापस नहीं आएगी। दुसरी बात लेखक को रॉयल्टी तभी मिलनी शुरू होगी जब प्रकाशक प्रॉफिट में आएगा। इस से पहले अगर ई-बुक निकाल दी गयी तो वो मुफ्त में वायरल हो कर सारे व्यापर को ध्वस्त कर देगी। जो पुस्तक अपनी लागत निकाल कर लेखक को भी रॉयल्टी दे चुकी है और अब उसकी हार्ड कॉपी भी मुश्किल से बिक रही है उसी पुस्तक की ई-बुक  निकालनी चाहिये। 

प्रकाशक यदि कॉपीराइट फ्री लेखकों के किंडल एडिशन या ई-बुक निकालता है उसको जो भी मिल रहा है सब प्रॉफिट ही है। न प्रिंटिंग और कागज़ की लागत और न ही लेखकों को रॉयल्टी देनी पड़ेगी।

सुबोध भारतीय जी का शुक्रगुजार हूँ कि इन्होंने अपना बहुमूल्य समय हमे दिया और हमारे सवालों का जवाब दिया । अपने व्यस्त टाइम टेबल और तीन-तीन उपन्यासों के प्रकाशन कार्य में व्यस्त होते हुए भी जो इन्होंने हमारे लिए समय निकाला, उसके लिए इनका हार्दिक आभार।

नीलम जासूस ने पुराने दिग्गज लेखकों को रिप्रिंट करना शुरू किया है । नीलम जासूस भविष्य में नए लेखकों को मौका भी देना चाहता है । बशर्ते लेखक की लेखनी में दम होना चाहता है। हाल फिलहाल में नीलम जासूस से सुरेश चौधरी जी का नया उपन्यास 'दंगा' आ रहा है ।
साथ ही नीलम जासूस कार्यालय आप सभी के लिए इसी हफ्ते तीन उपन्यास लेकर आ रहा है । अगर आपके नजदीकी बुक स्टॉल पर ना उपलब्ध हो तो आप नीलम जासूस कार्यालय से संपर्क करके इन उपन्यासों को ले सकते है।

सुबोध भारतीय
मोबाइल नंबर (व्हाट्सएप): 9310032466
नीलम जासूस कार्यालय - नई बोतल में पुरानी शराब




सुनहरे दौर के नगीने 

9 टिप्‍पणियां:

  1. साक्षात्कार काफी रोचक है ।
    नीलम जासुस कार्यालय अच्छा काम कर रहा है जो लुगदी उपन्यास रिप्रिंट करवा कर हमे ब्लॅकबुक से बचा रहा है ।
    12 नंबर का प्रश्न काफी दिन से चर्चे मे है उसी पर फोकस करना चाहीये ।

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  2. सुबोध जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। उनके पब्लिकेशन ने हिंदी साहित्य की बहुत सी ऐसी पुस्तकें प्रकाशित कर रही है जो अब यदा-कदा ही देखने को मिलती है वो भी जर्जर अवस्था मे।

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  3. रोचक साक्षात्कार रहा। नीलम जासूस कार्यालय बेहतरीन कार्य कर रहें हैं। उम्मीद है पुराने दिग्गज लेखकों के साथ साथ नये उभरते हुए लेखकों को भी वो अपने प्रकाशन में जगह देंगे। आभार।

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  4. सबसे सटीक बात कि ---
    मुश्किल है पर असंभव नहीं है। इसकी शुरुआत स्कूली शिक्षा ही करनी होगी। आज जब किसी अभिभावक का बच्चा हिंदी में कम नंबर लता है तो वह शर्मिंदा होने की बजाय गर्व से इस बात को बताता है। जब बच्चा पूछता है डैडी उनहत्तर कितने होते हैं तो वह गर्व से हँसता हैं। ये अप्रोच गलत है आप जापान या चीन में ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते वो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार और गर्व करते हैं।

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  5. बढ़िया सवालों के बढ़िया जवाब।

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  7. सुबोध जी का साक्षात्कार बेहद प्रेरणादायक है। जनप्रिय लेखक श्री ओमप्रकाश शर्मा जी, श्री वेद प्रकाश काम्बोज जी जैसे दिग्गज लेखकों के उपन्यासों का पुनःप्रकाशन करके आपने सचमुच लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण की दिशा में जो कार्य किया है, उसकी जितनी सराहना की जाए, कम है।

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  8. जो किताबें हमारे लिए ख्बाव की मानिंद थीं उन्हें रूबरू पाकर इतनी खुशी हो रही है कि बयां नहीं कर सकता

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