30 नवंबर 2021

आज कत्ल होकर रहेगा - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : आज क़त्ल होकर रहेगा 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 217

                          उपन्यास का पुराना कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का पांचवा अध्याय !!

उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
फिर नारंग गला फाड़कर चिल्लाया - “त्रिलोकीनाथ, मेरे साथ दगाबाजी करोगे तो मैं लाश का भी पता नहीं लगने दूंगा ।”
“यह गीदड़ धमकियां किसी और को देना ।” - त्रिलोकीनाथ भी चिल्लाया - “मैं कोई कल का पैदा हुआ लौंडा नहीं जो तुमसे डर जाऊंगा । तुमने मेरी ओर एक उंगली भी उठाई तो मैं तुम्हारी गर्दन कटवाने का सामान कर दूंगा ।” 

                         उपन्यास कवर

पिछले उपन्यास "पैंसठ लाख की डकैती" के अंत में विमल हरनाम ग्रेवाल और कौल को दिल्ली में किरण खन्ना के रहमोकरम पर छोड़कर वहां से निकल जाता है | इस उपन्यास में किस्मत विमल को दिल्ली से निकालकर वापिस एक बार फिर बम्बई ला पटकती है | 

उपन्यास 'आज क़त्ल होकर रहेगा' वर्ष 1977 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था |
अब बात करते हैं इस उपन्यास की कहानी की | उपन्यास आरम्भ होता है बम्बई से कुछ दूर एक उजाड़ समुद्र तट के दृश्य से, जहां एक पुराना पर बर्बाद हो चूका विदेशी घड़ियों का स्मगलर दौलत सिंह छिपकर निजी दुश्मनी के चलते नारंग की निगरानी कर रहा है जो वहां अवैध सोने की डील करने आने वाला है | नारंग भारत का सबसे बड़ा स्मगलर और बम्बई का सबसे बड़ा डॉन है | दौलत सिंह और नारंग के टकराव के चलते परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती हैं कि नारंग को अपने पुराने दोस्त त्रिलोकीनाथ की मदद लेनी पड़ती है | त्रिलोकीनाथ नारंग का ख़ास दोस्त और हाई कोर्ट का वकील है जो नारंग की मुश्किल परिस्थितियों में जरूरत पड़ने पर अक्सर मदद करता है | 
विमल अब एक नए नाम कैलाश मल्होत्रा के साथ त्रिलोकीनाथ के यहां ही क्लर्क की नौकरी कर रहा है | ठीक इसी समयकाल में सरकार आपातकाल लागू कर देती है | बम्बई में जिसे आपातकालीन स्थिति का चीफ बनाया जाता है, वो और उसके चमचे आपातकालीन शक्तियों का उपयोग अपने विरोधियों के खिलाफ करने लगता है | 

"उन ढंके-छुपे जरायमपेशा लोगों के कलेजे कांपने लगे जो यह समझते थे कि उनकी इतनी ऊपर तक पहुंच थी, अपने-आपको कानून की पकड़ से बचाये रखने के उनके इतने साधन थे कि कोई उनकी ओर उंगली नहीं उठा सकता था । ऐसे लोगों में नारंग भी एक था ।
एमरजेंसी क्या आई उसके लिए तो कजा आ गई । पहले तो उसने यही समझा कि दिखावे की छोटी-मोटी धरपकड़ हो रही थी । उस जैसे ऊंचे और साधनसम्पन्न लोगों की तरफ सरकार आंख नहीं उठा सकती थी । लेकिन जब बखिया, हाजी मस्तान और पटेल जैसे टॉप के स्मगलर आन्तरिक सुरक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिए गये तो उसके छक्के छूट गये ।"

जब बम्बई के बड़े-बड़े लोग और अपराधी पकडे जाने लगते हैं तो नारंग भी चिंताग्रस्त हो जाता है और त्रिलोकीनाथ से मदद मांगता है | परन्तु त्रिलोकीनाथ ह्रदय परिवर्तन के कारण सरकार के खिलाफ जाने से मना कर देता है और नारंग की मदद नहीं करता | नारंग क्रोधित होकर बदला लेने की धमकी देता है | इन दोनों की लड़ाई में विमल भी बेवजह फंस जाता है | नारंग से बचने के लिए विमल बम्बई से निकलकर गोवा पहुँच जाता है | 

"उसने मन ही मन फैसला किया था कि जो पहली बस बम्बई से बाहर जाने वाली होगी, वह उस पर सवार हो जाएगा ।
वह बस स्टैण्ड पर पहुंचा तो मालूम हुआ कि पांच मिनट में गोवा की बस छूटने वाली थी ।"

गोवा पहुंचते ही संयोग कुछ इस प्रकार बनता है कि विमल को स्थानीय नाईट क्लब सोल्मर का मालिक अल्फांसो अपने क्लब में कैशियर की नौकरी पर रख लेता है | अँधा क्या चाहे दो आँखें - विमल तुरंत ही नौकरी शुरू कर देता है | 
पर उफ़ ये धोखेबाज किस्मत ! विमल को यहां भी चैन नहीं मिलता - मात्र कुछ ही दिनों में घटनाचक्र इतनी तीव्रता से घूमता है कि एक तरफ विमल को गोवा में पहले से ही चल रही गैंगवार की धुरी बनना पड़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ नारंग भी उसकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ा होता है |

विमल दिल्ली से निकलकर बम्बई कैसे आ पहुंचा ? 
नारंग और त्रिलोकीनाथ की लड़ाई में विमल कैसे फंस गया ? 
त्रिलोकीनाथ का क्या हुआ ?
विमल को गोवा में अल्फांसो के यहां नौकरी कैसे मिल गई ? 
विमल गोवा की गैंगवार में कैसे फंसा, न सिर्फ फंसा बल्कि धुरी कैसे बन गया ? 
कौन था अल्फांसो ? 
क्या कोहराम मचा गोवा में ?
नारंग से विमल अपनी जान कैसे बचा पाया ? 
इस सारे घटनाचक्र में विमल ने क्या खोया और क्या पाया ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे |

उपन्यास की कहानी तेज गति से चलती है और नए मोड़ भी लेती है | कहानी मनोरंजक है और पाठकों की उपन्यास में रूचि बनाये रखती है | 
उपन्यास के रीप्रिंट की प्रूफ रीडिंग बढ़िया है | 
पाठकों को पिछले उपन्यासों के मुकाबले इस उपन्यास में काफी किरदारों की उपस्थिति देखने को मिलेगी | 
दौलत सिंह का किरदार कहानी की भूमिका बनाता है जहां से आगे कहानी गति पकड़ती है | अल्फांसो और अल्बर्टो के किरदार अच्छे बन पड़े हैं | विमल का व्यक्तित्व इस उपन्यास में और अधिक निखर कर सामने आता है | नारंग का किरदार भी बढ़िया लगा |
 
रेटिंग: 7.5/10

20 नवंबर 2021

65 लाख की डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : 65 लाख की डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 256

                                  उपन्यास कवर 
                    
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का चौथा अध्याय !!

उपन्यास "65 लाख की डकैती" विमल सीरीज के सबसे प्रसिद्ध और पाठकों द्वारा सर्वाधिक सराहे गए उपन्यासों में से एक है | यह उपन्यास वर्ष 1977 में प्रथम बार गाइड पॉकेट बुक्स, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ था और अब तक विभिन्न प्रकाशक इसे 17 बार हिंदी में और 1 बार इंग्लिश में भिन्न-भिन्न कवर (मुखपृष्ठों) के साथ रीप्रिंट कर चुके हैं | 

                          अंग्रेजी में प्रकाशित उपन्यास कवर

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया शुरूआती अंश : 

"मायाराम ने एक नया सिग्रेट सुलगाया और अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली। वक्त हो गया था।
वह यह बात पहले ही मालूम करके आया था कि करनैल सिंह की मेहता हाउस से किस वक्त छुट्टी होती थी।
मेहता हाउस लारेंस रोड पर स्थित एक विशाल चारमंजिला इमारत थी और उसमें वह बैंक स्थित था जिसके वाल्ट पर डाका डालने के असम्भव कृत्य को सफल बनाने के सपने मायाराम देख रहा था। वह उसकी जिंदगी का आखिरी दांव था। उसमें असफल होने का मतलब था कि उसकी मौत जेल में एड़‍ियां घिस-घिस कर ही होने वाली थी।"

                               उपन्यास कवर

अब बढ़ते हैं कहानी की ओर | पिछले उपन्यास "इश्तिहारी मुजरिम" में विमल मौत के मुंह से बाल-बाल बच कर निकलता है | इस उपन्यास में विमल अमृतसर में एक साल से शांतिपूर्वक रह रहा था और काफी व्यस्त रहने वाले धनवान सेठ लाला हवेलीराम के यहां ड्राइवर की नौकरी कर रहा है | सेठानी सेठ से आयु में बीस साल छोटी थी और विमल से कार ड्राइविंग के अलावा दूसरी सेवाएं भी प्राप्त करना चाहती थी इसलिए उसने अधेड़ या बूढ़े ड्राइवरों की जगह जवान खूबसूरत विमल की सिफारिश की थी | 
क्रूर किस्मत ने यहां भी विमल को नहीं बख्शा ! एक बार फिर जुर्म की दुनिया से वास्ता रखने वाले मायाराम ने उसे पहचान लिया और अपने साथियों द्वारा विमल की निगरानी करनी शुरू कर दी | जब तक विमल को ये बात पता लगी, तब तक देर हो चुकी थी और मायाराम उसके सर पर आ खड़ा हुआ था | न चाहते हुए भी विमल एक बार फिर अपराध की दलदल में उतरने को मजबूर था | 

“मैंने अर्ज किया था, सरदार साहब, कि तशरीफ ले जा रहे हैं?”
“सरदार साहब!” — वह होंठों में बुदबुदाया — “तुम पागल तो नहीं हो? मैं तुम्हें सरदार दिखायी देता हूं ?”
“हां। तुम मुझे सरदार दिखायी देते हो। मेरे ज्ञानचक्षु तुम्हें सरदार सुरेंद्र सिंह सोहल की सूरत में देख रहे हैं।”
उसने एक गहरी सांस ली।
“इधर आओ।” — वह बोला।
सिगरेट वाला उसके सामने आ खड़ा हुआ। वह अभी भी बड़े मैत्रीपूर्ण ढंग से मुस्कुरा रहा था।
“कौन हो तुम?”
“बंदे को मायाराम बावा कहते हैं लेकिन लोग मुझे उस्ताद के नाम से ज्यादा जानते हैं।"

जैसा कि उपन्यास के नाम से ही जाहिर है, मायाराम ने बैंक वॉल्ट से 65 लाख की डकैती की योजना बना रखी थी और योजना की बहुत सी गोटियां भी पहले ही सही जगहों पर फिट कर रखी थी | 

“ 'बल्ले, भई!' — विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला — 'नईं रीसां तेरियां।' 
अब उसे लगने लगा था कि मायाराम कुछ कर गुजरेगा।"

विमल जैसे अनुभवी इंसान के योजना में शामिल होने से अब मायाराम की योजना पूर्ण हो गयी थी और अब उसे अपनी योजना पूरी तरह से सफल होती दिखाई दे रही थी | 

क्या थी मायाराम की डकैती की योजना और विमल की क्या भूमिका थी उस योजना में ?  
बैंक वॉल्ट से 65 लाख लूटना क्या इतना ही आसान था ? 
जयशंकर के साथ पिछली बार की लूट के अनुभव से जो सबक विमल ने सीखे, इस बार क्या वो उन पर अमल कर पाया ?
क्या इस बार भी विमल की जान पर बन आयी ?
क्या कोई और भी रहस्य था जिससे विमल अनजान था? 
क्या पिछली बार की तरह इस बार भी विमल को खून से अपने हाथ रंगने पड़े ?
इस सारे घटनाक्रम में विमल और मायाराम को कहाँ-कहां धक्के खाने पड़े ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे! 

इस उपन्यास में पृष्ठों की संख्या पिछले उपन्यासों से अधिक है | उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत ही कम हैं जो कि अच्छी प्रूफ रीडिंग का परिणाम है | लेखक ने उपन्यास में ज़रा सा हास्य रस भी डाला है खासकर किरदार लाभ सिंह का जगह जगह "लाभ सिंह मटर पनीर" के नाम से पुकारा जाना अनायास ही होंठों पे मुस्कान ला देता है | 
कहानी की गति सही है और पाठकों पर अधिकांश समय तक पकड़ बनाये रखती है | बीच-बीच में कहानी रोचक मोड़ भी लेती है | उपन्यास के सहायक पात्रों में से लाभ सिंह का पात्र ही मनोरंजक लगा, बाकी पात्रों की कुछ ख़ास भूमिका नहीं है | मायाराम और विमल दोनों का तालमेल और परिस्थितियों के साथ जूझने का जज्बा अच्छा बन पड़ा है |

उपन्यास में एक-दो जगह पर पाठकों को विमल का फिर से वही गलती दोहराना और इतने हादसों से बच निकलने के बाद भी अपना कोई बैकअप (बचाव का रास्ता) तैयार न रखना कुछ खल सकता है | हर बार विमल को मजबूर करके उसे लूट या डकैती में शामिल करना भी थोड़ा उबाऊ सा लगता है | 

कुल मिलाकर उपन्यास बढ़िया लिखा गया है और पाठकों को मनोरंजन की उम्दा खुराक देने में सक्षम है | 

चूंकि ये उपन्यास वर्ष 1977 में लिखा गया है अतः उपन्यास पढ़ते हुए समयधारा का ध्यान अवश्य रखें - खासकर तकनीक और उपकरण उस जमाने में इतने मॉडर्न (अत्याधुनिक) नहीं थे और 65 लाख रुपये की रकम आज के हिसाब से इतनी अधिक नहीं है पर उस समय एक बड़ी रकम मानी जाती थी | 

रेटिंग: 8.5/10

18 नवंबर 2021

नरपिशाच - देवेंद्र प्रसाद

पुस्तक : नरपिशाच 
लेखक : देवेंद्र प्रसाद 
पृष्ठ संख्या : 80 (इ-पब फॉर्मेट)

                           नरपिशाच कवर 

लेखक देवेंद्र प्रसाद ने हॉरर (भय, दहशत, भूत-प्रेत इत्यादि) श्रेणी में अपनी पहचान बनाई है | मेरे अनुमान से नरपिशाच हॉरर श्रेणी में लेखक द्वारा लिखी गयी तीसरी पुस्तक है | 

सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहूंगा कि नरपिशाच कोई नॉवल नहीं बल्कि एक कहानी संग्रह है जिसमे 5 भिन्न-भिन्न लघु कहानियाँ हैं | कहानियों के नाम निम्नलिखित है: 
नरपिशाच ,छलावा, आधी हकीकत आधा फ़साना, नन्ही चुड़ैल, शिमला का नरपिशाच | 

पुस्तक का शीर्षक थोड़ा सा भ्रामक है | नरपिशाच शीर्षक से ऐसा लगता है कि पूरी पुस्तक नरपिशाच को आधार बनाकर लिखी गयी है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | 

उपन्यास की प्रथम कहानी नरपिशाच से एक अंश : 
"साहब, धीमी-सी रोशनी थी लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैंने उस खौफ़नाक चेहरे को काफी करीब से देखा था और उसके नुकीले दाँतों को यहाँ चुभते हुए महसूस भी किया था। उसके लम्बे-लम्बे नाखून बनावटी नहीं हो सकते।
हाँ, साहब ! वह कोई और नहीं बल्कि वो... वो... वही था...एक- नरपिशाच !!!"

अब पुस्तक की बात करें तो 'नरपिशाच ' कहानी से पुस्तक की शुरुआत होती है | एक कस्बे के पुराने चर्च में एक आदमी विलियम लोहे के खम्भे से बंधा हुआ है | विलियम के आस-पास फादर एंथोनी, कस्बे के कुछ लोग और जेनीलिया नाम की कस्बे की ही एक लड़की खड़े हैं | विलियम पर नरपिशाच होने का इल्जाम है | 
दूसरी कहानी 'छलावा' में एक युवक कबीर अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए राजस्थान के एक छोटे से गाँव की ओर कार में ड्राइवर के साथ जाता है | ड्राइवर उसे रास्ते में पड़ने वाले एक सुनसान हिस्से और उस हिस्से में मिलने वाले जानलेवा छलावा की बहुप्रचलित कहानी सुनाता है | कबीर इसे मजाक में उड़ा देता है पर कुछ समय बाद उसी सुनसान हिस्से में उनकी कार खराब हो जाती है और दूर-दूर तक किसी इंसान या मदद की उम्मीद नहीं दिखाई देती |
तीसरी कहानी 'आधी हकीकत आधा फ़साना' में एक छात्र नीतीश लेट हो जाता है और बस स्टैंड से अपने गाँव की शाम की आखिरी बस उससे छूट जाती है | इस कारण उसे अकेले ही गाँव तक पांच किलोमीटर के सुनसान डरावने रास्ते की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है | 
चौथी कहानी 'नन्ही चुड़ैल' में एक लड़का पंकज आधी रात को सिनेमा में हॉरर फिल्म देखने के बाद रास्ते में पड़ने वाले शमशान घाट को पार करता है तो वहां एक अकेली बैठी छोटी सी लड़की से मिलता है | 
पांचवीं और अंतिम कहानी 'शिमला का नरपिशाच ' शिमला के पास कुफरी में अंग्रेजों के जमाने की एक पुरानी रहस्यमयी बिल्डिंग रिचर्डसन हाउस पर आधारित है | एक दिन रिचर्डसन हाउस की चारदीवारी के पास एक के बाद एक तीन लाशें पाई जाती हैं जिनकी गर्दन पर नाखूनों के ऐसे गहरे घाव मौजूद थे जैसे किसी राक्षस ने झपट्टा मारा हो | डिटेक्टिव मिथिलेश वर्मा इसकी जांच के लिए रिचर्डसन हाउस में आता है | मिथिलेश अब तक 49 केस सोल्व कर चुका है और ये उसका पचासवां केस है | 

क्या विलियम ही उस कस्बे का नरपिशाच था या कोई और ही रहस्य था वहाँ ?
क्या कबीर दोस्त की शादी में गाँव पहुँच पाया ? क्या छलावा और कबीर की मुलाकात हुई या छलावा सिर्फ एक भ्रम ही था ? 
क्या नीतीश रात में अकेला उस सुनसान डरावने रास्ते को पार करके गाँव पहुंच सका ?
कौन थी शमशान घाट में अकेली बैठी वो लड़की जिस से पंकज इतनी रात को मिला ? 
क्या डिटेक्टिव मिथिलेश वर्मा रिचर्डसन हाउस और उन तीन लाशों की गुत्थी को सुलझा पाया ? 
इन सब सवालों के जवाब आप पुस्तक पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं ! 

पुस्तक में पृष्ठों की संख्या अधिक नहीं है इसलिए पुस्तक एक ही बार में आराम से पूरी पढ़ी जा सकती है | 
कुल मिलाकर पुस्तक औसत है | कहानियों के पात्रों में गहराई की थोड़ी कमी महसूस हुई | 
नरपिशाच कहानी औसत से थोड़ी अच्छी है | छलावा कहानी अच्छी लगी | बाकी तीनों कहानियां साधारण ही लगी | 
प्रूफ रीडिंग अच्छी है और शाब्दिक गलतियां नाम-मात्र ही हैं | 

रेटिंग: 6.5/10

15 नवंबर 2021

इश्तिहारी मुजरिम - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : इश्तिहारी मुजरिम 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज 
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पृष्ठ संख्या : 154 

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव की तलाश करते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की जीवन गाथा का तीसरा अध्याय!! 

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पिछले उपन्यास "दौलत और खून" में विमल मद्रास (अब चेन्नई) में सत्तर लाख की सफल लूट कर लेता है पर वो लूट के इस माल को अपने पास नहीं रखता बल्कि इसकी जानकारी पुलिस को देने के बाद वो जयशंकर की कार में तुरंत मद्रास से दूर निकल जाता है | 

आगे की कहानी इस उपन्यास में शुरू होती है दिल्ली के चांदनी चौक से जहां पर एक तांगेवाला बनवारीलाल अपने तांगे में सवारी बिठाने के लिए आवाजें लगा रहा होता है | बनवारीलाल असल में विमल का ही नया रूप और नया नाम होता है जो कि वो मद्रास से किसी तरह दिल्ली आकर पुलिस से बचने के लिए रख लेता है और इसी बहुरूप में 6 महीने से दिल्ली में तांगा चला रहा होता है | 

"दिल्ली मैं इसलिए आया था क्योंकि मद्रास के बाद मुझे कहीं तो जाना ही था और किसी छोटी जगह के मुकाबले में महानगर मुझे ज्यादा सुरक्षित मालूम होते थे । दिल्ली की चालीस लाख से ज्यादा की आबादी में एक मामूली तांगे वाले की ओर ध्यान देने की किसे फुरसत थी ।"

एक बार फिर विमल का दुर्भाग्य कि न सिर्फ एक लड़की रश्मि उसकी असली हस्ती पहचान लेती है बल्कि धोखे से उसे अपने साथी अजीत से भी मिलवाती है |

“अब बनने से कोई फायदा नहीं होगा, सुरेन्द्रसिंह सोहल” - रिवॉल्वर वाला कर्कश स्वर से बोला - “तुम्हारी हकीकत हम पर खुल चुकी है ।”

अजीत ने अपने दो साथियों रश्मि और नासिर के साथ मिलकर डकैती की एक योजना बना रखी होती है और सारी तैयारी भी लगभग पूरी कर रखी होती हैं | योजना को अंजाम देने के लिए उन्हें एक और साथी की जरुरत होती है | विमल को पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर वो लोग विमल को अपने साथ काम करने के लिए मजबूर कर लेते हैं | अब तक विमल की खबर दो राज्यों से फरार इनामी मुजरिम के रूप में देश-भर के मुख्य अखबारों में छप चुकी होती है |

"तुम्हारी गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा की जा चुकी है । तुम आज तक बचे हुए हो केवल इसलिए कि पुलिस को तुम्हारे बिना दाढ़ी मूंछ और पगड़ी वाले हुलिए की जानकारी नहीं है । मैं अधिक देर तुम्हारी ‘बनवारीलाल तांगे वाले’ वाली रट नहीं सुनूंगा । तुमने फिर यही बात दोहराई तो मैं अभी तुम्हें ‘गिरफ्तार’ करवा दूंगा और इनाम की रकम हासिल कर लूंगा ।”

इस प्रकार विमल के रूप में अजीत, रश्मि और नासिर को डकैती की योजना के लिए अपना मनवाँछित चौथा साथी मिल जाता है | विमल की वक्ती तौर पे शांत चल रही  जिंदगी में दुबारा हलचल मच जाती है | ये हलचल इतनी जल्दी एक ऐसे भयानक तूफ़ान का रूप ले लेती है कि विमल को अंदाजा भी नहीं लग पाता और वो खुद को इस तूफ़ान में बुरी तरह से फंसा हुआ पाता है !

क्या योजना थी अजीत, रश्मि और नासिर की ?
क्या डकैती की योजना कामयाब हो पाई ?
कैसा तूफ़ान था वो जिसने विमल के होश उड़ाकर रख दिए ?
विमल कैसे उस तूफ़ान से बाहर निकल पाया ?
विमल के लिए क्या मुसीबत सिर्फ डकैती तक ही सीमित थी या कोई और पेंच भी फंसा हुआ था इस पूरे घटनाक्रम में ? 
अजीत, रश्मि और नासिर का क्या हुआ ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए आप इस उपन्यास को पढ़ें !

मेरी राय में इस उपन्यास की कहानी की गति अच्छी रखी गई है और कहानी में कई रोचक घुमाव हैं | कहानी में हास्य रास लगभग न के बराबर है और कहानी बीच में २ या ३ जगहों पर गति भी खो देती है | कुल मिलकर मनोरंजन की दृष्टि से यह उपन्यास बेहतर बन पड़ा है | 
आपराधिक तत्वों के साथ काम करते हुए विमल की अनुभवहीनता साफ़ झलकती है जिस कारण वो कुछ गलतियां कर बैठता है - ये इस उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है | रश्मि का किरदार भी उपन्यास की कहानी में फिट बैठता है | इस उपन्यास में विमल को जिंदगी का एक कड़वा सबक भी सीखने को मिलता है | 

यह उपन्यास 1976 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था अतः उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए पढ़ें | ये उपन्यास इसी सीरीज के पिछले उपन्यास "दौलत और खून" के लगभग साढ़े चार से पांच वर्ष बाद प्रकाशित हुआ था जो कि एक ही सीरीज के दोनों उपन्यासों में एक लम्बा अंतराल है |

रेटिंग : 7/10

13 नवंबर 2021

अग्निकुंड - शगुन शर्मा



प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं शगुन शर्मा के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "अग्निकुंड" के बारे में ! 

                 चिंगारी उपन्यास के अंत में छपा विज्ञापन

शगुन शर्मा दिवंगत हिंदी उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा जी  के इकलौते पुत्र हैं | इनके अब तक ३० से अधिक उपन्यास तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित हो चुके हैं | इनका अंतिम प्रकाशित उपन्यास चिंगारी था | 

    चिंगारी उपन्यास में छपे लेखकीय से अग्निकुंड की झलक

चिंगारी उपन्यास के अंत में आगामी उपन्यास के तौर पर अग्निकुंड का एड दिया गया था | चिंगारी उपन्यास के लेखकीय में शगुन शर्मा ने अग्निकुंड उपन्यास की एक झलक कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की थी :-
अग्निकुंड अपराध की खूंखार दुनिया में सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठे एक ऐसे स्वयंभू न्यायाधीश की खूनी दास्तान है, जिसकी काली अदालत मात्र एक रुपये में इन्साफ बेचने के लिए जानी जाती थी | एक रुपया खर्च करके कोई भी उसकी अदालत से इन्साफ खरीद सकता था | उसकी अदालत का एक ही उसूल था - आँख के बदले आँख और सिर के बदले सिर | उस न्यायाधीश का दावा था कि उसकी अदालत में बेगुनाह को कभी सजा नहीं मिलेगी और गुनहगार को कभी माफ़ी नहीं मिलेगी, यहां तक कि उसकी अदालत के इन्साफ से यमराज भी नहीं बच सकता था !

अग्निकुंड उपन्यास अगर प्रकाशित होता तो उपन्यास की ये झलक जहां एक तरफ पाठक के मन में उत्सुकता जगाती वहीं सहज ही एक प्रश्न भी पैदा करती कि क्या शगुन शर्मा इस उपन्यास को उतना रोचक और मनोरंजक बना पाते जितना उन्होंने लेखकीय में दावा किया था | बहरहाल अब इस प्रश्न का उत्तर तो तभी मिल पायेगा जब अग्निकुंड उपन्यास प्रकाशित होगा ! इस उपन्यास के प्रकाशित न होने का कारण अब तक अज्ञात है |

अगर आपको इस बारे में कोई जानकारी हो तो हमें कमेंट्स के माध्यम से अवगत करवा सकते हैं |

10 नवंबर 2021

दौलत और खून - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : दौलत और खून 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 177

प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "दौलत और खून", विमल सीरीज का दूसरा उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और यह उपन्यास वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था |

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का दूसरा अध्याय !!

                               नया उपन्यास कवर

                            टू इन वन उपन्यास कवर

उपन्यास में से ही एक अंश : 
"जयशंकर ने उसके अभिवादन का उत्तर दिया और फिर बोला - “मिस्टर, मैं ज्यादा बोलना पसन्द नहीं करता इसलिये मैं अपनी बात फौरन और कम से कम शब्दों में कहने जा रहा हूं ।”
“क्या मतलब ?” - युवक हैरानी से बोला ।
“मतलब यह कि तुम्हारी हकीकत मुझ पर खुल चुकी है ।” - जयशंकर धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर में बोला - “तुम वही विमल कुमार खन्ना हो जिसकी बम्बई की पुलिस को लेडी शान्ता गोकुलदास की हत्या के सिलसिले में तलाश है । लेकिन तुम्हारा वास्तविक नाम विमल कुमार खन्ना भी नहीं है । तुम्हारा वास्तविक नाम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल है और तुम इलाहाबाद सैन्ट्रल जेल के फरार मुजरिम हो ।”
युवक फौरन अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ । उसने केबिन के द्वार की ओर कदम बढ़ाया ।
“चुपचाप अपनी जगह पर बैठ जाओ ।” - उसके कानों में जयशंकर का सांप की तरह फुंफकारता हुआ स्वर पड़ा । उसने देखा, जयशंकर के हाथ में एक साइलेन्सर लगी रिवॉल्वर चमक रही थी ।"

इस उपन्यास की कहानी पिछले उपन्यास "मौत का खेल" की कहानी से आगे बढती है और एक नया ही मोड़ ले लेती है | पिछले उपन्यास में विमल उर्फ़ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल मोटरबोट के द्वारा बम्बई से बाहर निकल जाता है और इस उपन्यास में वो मद्रास (अब चेन्नई) जा पहुंचता है | 

मोटरबोट को ठिकाने लगाने के बाद वो कुछ दिन तक तो छिपा रहता है पर पैसा ख़त्म होने के कारण उसे बम्बई में सेठ गोकुलदास के घर से से चुराया हुआ मोतियों का हार बेचने के लिए बाहर निकलना पड़ता है | विमल, गिरीश कुमार वर्मा बनकर वीरप्पा से हार का सौदा करने के लिए मुलाकात करता है पर हाय रे विमल की किस्मत - वीरप्पा अपनी बम्बई की पुरानी जानकारी के आधार पर विमल को पहचान लेता है और झूठ बोलकर उसे जयशंकर नाम के एक आदमी से मिलवाता है | 

जयशंकर एक कुख्यात अपराधी है जो कई बार जेल जा चुका है | जयशंकर ने सत्तर लाख रूपये लूटने का एक मास्टर प्लान बनाया होता है जिसमें उसे कामयाबी की तो पूरी गारन्टी है पर लूट में साथ के लिए एक पांचवे साथी की जरुरत होती है । जयशंकर की मुलाकात जब विमल से होती है तो जैसे जयशंकर की मन की मुराद पूरी हो जाती है | जयशंकर पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर विमल से हार छीन लेता है और विमल को अपने जुर्म में शामिल कर लेता है ।

जयशंकर उसे बाकी साथियों से मिलवाता है और अपने प्लान की जानकारी देता है | प्लान फाइनल होने के बाद जल्द ही वो दिन आ जाता है जब लूट करनी होती है | जयशंकर, विमल और बाकी साथी प्लान के अनुसार निर्धारित समय पर लूट की जगह पर पहुँचते है और अपना अपना काम शुरू कर देते हैं |

जयशंकर का मास्टर प्लान क्या था? 
क्या सत्तर लाख की ये लूट सफल हो सकी या उसमे कोई नया ही पेच फंस गया? 
क्या विमल की किस्मत ने उसका साथ दिया और उसे लूट के पैसे में से उसका हिस्सा मिल पाया? 
क्या विमल जयशंकर से अपना पीछा छुड़वा पाया? 
इस सारे चक्कर में विमल को क्या-क्या पापड बेलने पड़े? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिल जायेंगे! 

उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत कम है इसलिए कहानी के प्रवाह में कोई बाधा नहीं आती | 
लूट और डकैती को आधार बनाकर काफी उपन्यास लिखे जा चुके हैं इसलिए लूट से सम्बंधित कथानक में कुछ नया अनुभव होने की संभावना कम ही है ! परन्तु कहानी में जो घुमाव डाले गए हैं, वो रोचक हैं और उत्सुकता बनाये रखते हैं | 
उपन्यास के शुरुआत में जयशंकर की प्रधानता दिखाई गयी है और विमल का किरदार इस उपन्यास में बाद में उभर कर सामने आता है | ये भी इस उपन्यास का एक रोचक पहलू है |
इस उपन्यास की कहानी पिछले भाग "मौत का खेल" से बेहतर लगी | उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है |

ये उपन्यास वर्ष 1971 में लिखा गया है अतः पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास पढ़ते समय समयधारा का ध्यान अवश्य रखें | 

रेटिंग: 7/10

05 नवंबर 2021

मौत का खेल - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास: मौत का खेल 
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक
पेज संख्या: 117 ( किंडल अनुसार )

                         किंडल संस्करण उपन्यास कवर

प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "मौत का खेल", विमल सीरीज का पहला उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और इस उपन्यास का प्रथम एडिशन वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था | 

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का प्रथम अध्याय!!

                               पुराना उपन्यास कवर

कहानी की शुरुआत बम्बई के विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन के रात के एक दृश्य से होती है जहां फटेहाल कपड़ों में दो दिनों से भूखा-प्यासा विमल कुमार खन्ना एक बेंच पर बैठा हुआ कोई तरकीब सोचने की कोशिश कर रहा था जिससे बिना भीख मांगे और बिना अपराध किये अपने पेट की आग बुझाई जा सके |
तभी एक आदमी आकर उसे कहता है कि अगर विमल रात से ही लाइन में लगकर सुबह टिकट विंडो खुलते ही उसके लिए रेलगाड़ी का टिकट ले ले तो वो उसे दो रुपये देगा | विमल दो रुपये एडवांस में मांगता है ताकि वो खाना खाकर आ सके और टिकट लाइन में लग जाये | आदमी मान जाता है और उसे दो रुपये दे देता है | विमल तुरंत एक सस्ते से होटल में जाकर खाने का आर्डर देता है और खाना आते ही उस पर टूट पड़ता है | 

                           टू इन वन उपन्यास कवर 

इसी बीच लाल हैंडबैग लिए एक खूबसूरत फैशनेबुल युवती उसी होटल के पीसीओ में फ़ोन करने आती है जिस पर विमल की निगाह भी टिक जाती है | जब वो पीसीओ से बाहर निकलती है तो विमल देखता है कि युवती के पास हैंडबैग नहीं है | खाना ख़त्म करते ही विमल उत्सुकतावश पीसीओ में जाता है और वहां पड़े लाल हैंडबैग को खोल कर देखता है | उसमे सौ सौ के नोटों की दस हजार रुपये की एक गड्डी पड़ी होती है | 

"दायें हाथ से मैंने हैंड बैग को खोला और टेलीफोन बूथ की छत पर लगी रोशनी के प्रकाश में मैंने हैंड बैग के भीतर झांका। मेरा मुंह सूख गया ।
किसी महिला के बैग में अपेक्षित साधारण सौन्दर्य प्रसाधनों के ऊपर सौ-सौ के नोटों की नई नकोर बैंक की अनखुली गड्डी मौजूद थी ।
मेरी सांस तेज हो गई । मेरा शरीर पसीने से नहा गया ।"

न चाहते हुए भी विमल लालचवश उस गड्डी को अपनी जेब में सरका लेता है | तभी युवती हैंडबैग ढूंढती हुई पीसीओ में वापिस आती है और विमल को पीसीओ मे खड़ा देखकर हैंडबैग के बारे में पूछती है | घबराया हुआ विमल हैंडबैग उसे दे देता है पर होटल का मालिक युवती को हैंडबैग चैक करने को कहता है क्यूंकि उसे विमल की फटेहाल हालत के कारण उस पर चोरी का शक होता है | विमल तब हक्का-बक्का रह जाता है जब युवती कहती है कि हैंडबैग में सब कुछ ठीक-ठाक है | 
युवती विमल को एक अच्छे होटल में ले जाती है | चोरी के अपराध से डरा हुआ विमल चुपचाप उसके साथ चला जाता है | बातचीत के दौरान युवती उसे बताती है कि उसका नाम शांता है और वो बम्बई के एक जाने-माने धनवान सेठ गोकुलदास की पत्नी है | शांता विमल को अपने यहां नौकरी करने का प्रस्ताव देती है | विमल मन ही मन हैरान होता है पर मान जाता है | शांता अपने घर का पता देती है और अगली सुबह उसे वहां पहुँचने का बोल कर चली जाती है | विमल स्टेशन वाले आदमी को उसके पैसे वापिस करता है | अगली सुबह विमल अपना हुलिया ठीक करके शांता के बताये हुए पते पर जाता है | 

"स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम में अटेण्डेण्ट को एक रुपया रिश्वत देकर मैं फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम के बाथरूम में घुस गया । मैं मल-मलकर नहाया । कितने दिनों की मैल मेरे जिस्म से उतर रही थी। अन्त में मैं नये कपड़े पहनकर और बाकी का सामान एयरबैग में डालकर बाहर निकल आया ।
वेटिंगरूम के एक खम्भे के साथ एक आदमकद शीशा लगा हुआ था । मैंने उसमें अपनी सूरत देखी तो खुद मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । मेरा एकदम काया-पलट हो गया था । कौवा हंस बन गया था ।
महीनों से अपनी मनहूस सूरत, जो मैं कभी-कभार शीशे में देखता आया था, गायब हो गई थी।"

विमल को वहां ड्राइवर + सहायक की नौकरी मिल जाती है और साथ ही उसे बताया जाता है कि सेठ गोकुलदास एक गंभीर एक्सीडेंट के बाद से बिस्तर पर ही हैं और बहुत ही नाजुक हालत में हैं | एक डॉक्टर अक्सर सेठजी का चेकअप करने आता था और एक नर्स सेठजी की देखभाल के लिए घर में ही रोज ड्यूटी पर आती थी | विमल का मुख्य काम सेठजी की देखभाल करना, उनको उठाना-लिटाना, व्हील चेयर पे घुमाना, नर्स की सहायता करना और जरुरत पड़ने पर कार या मोटर बोट को ड्राइव करना होता है |
नौकरी के दौरान विमल को पता चलता है कि उससे पहले एक गोवानी आदमी बोस्को को इस नौकरी से निकाल दिया गया था क्यूंकि उसकी लापरवाही से सेठजी की जान जाते जाते बची थी | सेठ जी की एक बेटी माधुरी भी होती है जो सेठ जी से मिलने के लिए दशहरा की छुट्टी में घर आने वाली होती है |

जैसे-जैसे समय गुजरता जाता है, वैसे-वैसे घटनाएं कुछ इस प्रकार घटती हैं कि विमल को उस घर में षड़यंत्र की बू आने लगती है जिसकी कड़ियाँ शांता से जुडी होती हैं और ना चाहते हुए भी विमल को उस षड़यंत्र का एक हिस्सा बनना पड़ता है | 

आखिर कौन था विमल और इस फटेहाल हालत में क्यों था? 
शांता ने अचानक विमल को इस तरह नौकरी पर क्यों रख लिया? 
सेठ गोकुलदास की ऐसी हालत क्यों हो गयी थी? 
ऐसा क्या षड़यंत्र था जिसकी विमल को गंध मिल रही थी? 
क्या उस षड़यंत्र का पर्दाफाश हो पाया? 
विमल उस षड़यंत्र में कैसे फंस गया और क्या अंजाम हुआ विमल का? 
इन सब सवालों के जवाब आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिलेंगे !

कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है | कहानी में ज्यादा घुमाव तो नहीं हैं पर कहानी कसी हुई है | विमल के किरदार और उसकी मानसिक हालत को समझने में ये उपन्यास अच्छी भूमिका निभाता है | 

चूंकि उपन्यास 1971 में लिखा गया है इसलिए नए पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए ही पढ़ें | 

जिन पाठकों ने पहले से ही काफी सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास पढ़ रखे हैं, मेरे ख्याल से उन्हें ये उपन्यास औसत ही लगेगा |

रेटिंग :- 6.5/10