उपन्यास : मौत का नाच
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक
पेज संख्या : 258 (किंडल)
उपन्यास किंडल लिंक : उपन्यास लिंक
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का तेरहवां अध्याय !!
बखिया पुराण की दूसरी कड़ी - उपन्यास "मौत का नाच" से लिया गया एक छोटा सा अंश:
"उसी चक्कर में बम्बई अण्डरवर्ल्ड में ऐसी गैंगवार छिड़ी, जिसकी दूसरी मिसाल सारे हिन्दुस्तान में मिलनी मुश्किल थी । बहुत खून बहा, बहुत लोगों की जाने गयीं, बहादुर के कई आदमियों के साथ उसके दो भाई भी मारे गये लेकिन अन्तिम जीत बहादुर की हुई । उसे जीत ने उसका सिक्का सारी बम्बई के गैंगस्टरों पर जमा दिया । सबने बहादुर के सामने घुटने टेक देने में ही अपना कल्याण समझा । बहादुर की बम्बई में जय-जयकार हो गयी । वह बहादुर से राजबहादुर बखिया और राजबहादुर बखिया से काला पहाड़ बन गया"
पिछले उपन्यास "विमल का इंसाफ" में विमल नीलम के साथ मिलकर कंपनी के विरुद्ध अपनी लड़ाई छेड़ देता है और योजनाबद्ध तरीके से कंपनी को नुकसान पहुंचाने लगता है। बदले में कंपनी भी विमल पर अपना वार करती है। इसी बीच तुकाराम और उसके भाइयों की सहायता प्राप्त होने से विमल का मनोबल और बढ़ जाता है।
बखिया पुराण की कहानी को आगे बढ़ाते हुए इस उपन्यास "मौत का नाच" का आरंभ होता है कंपनी के एक ओहदेदार मोटलानी के ऑफिस रिसेप्शन के दृश्य से, जहां विमल बैठा हुआ मोटलानी से मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। मोटलानी से मुलाकात समाप्त करने के पश्चात विमल जॉन रोडरीगुएज को फोन करता है तथा उसे एक और खबर सुनाता है।
रोडरीगुएज ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया।
तो सोहल झूठ नहीं बोल रहा था ।
“वाट ए मैन !” - उसके मुंह से निकला - “वाट ए मैन !"
विमल से किए वादे के अनुसार तुकाराम अपने भाइयों के साथ मिलकर नीलम को सुरक्षित करने की तरकीब सोच रहा होता है। इधर पुलिस कमिश्नर भी इस गैंगवार को रोकने के लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयास कर रहा होता है।
कमिश्नर की तजुर्बेकार और पारखी निगाहों ने एक क्षण में भांप लिया कि वह लड़की कॉलगर्ल नहीं हो सकती थी । उस उम्र की कॉलगर्ल की सूरत पर जो बेबाकी और निडरता के भाव दिखाई देने चाहिए थे, वे कमिश्नर को नहीं दिखाई दे रहे थे । लड़की ऊपर से दिलेरी दिखा रही थी लेकिन..."
विमल जी-जान से राजबहादुर बखिया उर्फ काला पहाड़ को ऐसी करारी चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहा होता है कि उसका साम्राज्य पूरी तरह से डिग जाए। अब तो बखिया भी विमल से अपने नुकसान का बदला लेने और विमल के खून से होली खेलने के लिए बुरी तरह से मचल रहा होता है।
“कसम है बखिया को अपने पुरखों की !” - बखिया ने एक खून जमा देने वाली हुंकार भरी - “वह सोहल की वो मैली आंख नोच लेगा जो ‘कम्पनी’ की तरफ उठी, वह वो हाथ काट देगा जो कम्पनी के ओहदेदारों के लिए मौत का फरमान बने, वह सोहल की बोटी-बोटी काटकर चील-कौवों को खिला देगा, वह सोहल की और सोहल के हिमायतियों की हस्ती मिटा देगा..... "
विमल ने ऐसा क्या किया कि रोडरीगुएज जैसे खतरनाक इंसान के मुंह से स्वतः ही विमल की प्रशंसा में शब्द निकल पड़े?
तुकाराम और उसके भाइयों ने क्या तरकीब सोची?
क्या विमल बखिया की कोई दुखती रग ढूंढ सका और उसे करारी चोट दे पाया?
लगातार खतरनाक होती जा रही इस गैंगवार में बखिया और कंपनी के ओहदेदारों ने विमल के विरुद्ध क्या-क्या चालें चली?
बखिया का रौद्र रूप क्या परिणाम लाया? क्या बखिया विमल को तगड़ा नुकसान पहुंचा सका?
तुकाराम और उसके भाई विमल का किस हद तक साथ दे पाने में सफल हुए?
पुलिस कमिश्नर ने अपने स्तर पर और क्या-क्या प्रयास किए?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं।
बखिया पुराण की कहानी को जारी रखता हुआ यह उपन्यास बहुत दिलचस्प है। कहानी घुमावदार और सस्पेंस से परिपूर्ण है। दोनो पक्षों द्वारा एक के बाद एक चली जाने वाली चालें और उन चालों के जवाब कहानी को रोमांचक बना देते हैं। उपन्यास में विमल, तुकाराम और उसके भाइयों का बखिया और उसके ओहदेदारों से टकराव बहुत अच्छा बन पड़ा है। इस उपन्यास में आपका सही परिचय होगा - अंडरवर्ल्ड में राजबहादुर बखिया की शक्ति और उसके दुश्मन पर छा जाने वाले व्यक्तित्व से!
पिछले उपन्यास में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके पात्रों के अलावा आप इस उपन्यास में बखिया के बाकी ओहदेदारों अमीरजादा आफताब खान, रतनलाल जोशी, इकबाल सिंह, शांतिलाल, मैक्सवेल परेरा तथा अन्य सहायक पात्रों तिलकराज, जजाबेल, पटवर्धन, चंद्रगुप्त, माधव, मारियो, सोमानी, बाबू आदि से मिलेंगे।
यह उपन्यास वर्ष 1984 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के रिप्रिंट एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है और शाब्दिक गलतियां भी नगण्य मात्र हैं।
जैसा कि हमने पिछले पोस्ट में भी बताया था - अगर आप उपन्यास पढ़ना शुरू करेंगे तो एक ही बार में उपन्यास को पूरा करना चाहेंगे - न सिर्फ उपन्यास को बल्कि पूरी बखिया पुराण को भी!
अंत में एक बात और कहना चाहूंगा:-
"न भूतो न भविष्यति:" - बखिया पुराण जैसे उपन्यास पढ़कर ये कहावत विमल सीरीज पर बिल्कुल सटीक बैठती है।
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