31 जनवरी 2022

मौत का नाच - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : मौत का नाच
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 258 (किंडल)
उपन्यास किंडल लिंक : उपन्यास लिंक

                     उपन्यास कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का तेरहवां अध्याय !!

बखिया पुराण की दूसरी कड़ी - उपन्यास "मौत का नाच" से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
"उसी चक्कर में बम्बई अण्डरवर्ल्ड में ऐसी गैंगवार छिड़ी, जिसकी दूसरी मिसाल सारे हिन्दुस्तान में मिलनी मुश्किल थी । बहुत खून बहा, बहुत लोगों की जाने गयीं, बहादुर के कई आदमियों के साथ उसके दो भाई भी मारे गये लेकिन अन्तिम जीत बहादुर की हुई । उसे जीत ने उसका सिक्का सारी बम्बई के गैंगस्टरों पर जमा दिया । सबने बहादुर के सामने घुटने टेक देने में ही अपना कल्याण समझा । बहादुर की बम्बई में जय-जयकार हो गयी । वह बहादुर से राजबहादुर बखिया और राजबहादुर बखिया से काला पहाड़ बन गया" 

पिछले उपन्यास "विमल का इंसाफ" में विमल नीलम के साथ मिलकर कंपनी के विरुद्ध अपनी लड़ाई छेड़ देता है और योजनाबद्ध तरीके से कंपनी को नुकसान पहुंचाने लगता है। बदले में कंपनी भी विमल पर अपना वार करती है। इसी बीच तुकाराम और उसके भाइयों की सहायता प्राप्त होने से विमल का मनोबल और बढ़ जाता है।

बखिया पुराण की कहानी को आगे बढ़ाते हुए इस उपन्यास "मौत का नाच" का आरंभ होता है कंपनी के एक ओहदेदार मोटलानी के ऑफिस रिसेप्शन के दृश्य से, जहां विमल बैठा हुआ मोटलानी से मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। मोटलानी से मुलाकात समाप्त करने के पश्चात विमल जॉन रोडरीगुएज को फोन करता है तथा उसे एक और खबर सुनाता है। 

रोडरीगुएज ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया।
तो सोहल झूठ नहीं बोल रहा था ।
“वाट ए मैन !” - उसके मुंह से निकला - “वाट ए मैन !" 

विमल से किए वादे के अनुसार तुकाराम अपने भाइयों के साथ मिलकर नीलम को सुरक्षित करने की तरकीब सोच रहा होता है। इधर पुलिस कमिश्नर भी इस गैंगवार को रोकने के लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयास कर रहा होता है। 

कमिश्नर की तजुर्बेकार और पारखी निगाहों ने एक क्षण में भांप लिया कि वह लड़की कॉलगर्ल नहीं हो सकती थी । उस उम्र की कॉलगर्ल की सूरत पर जो बेबाकी और निडरता के भाव दिखाई देने चाहिए थे, वे कमिश्नर को नहीं दिखाई दे रहे थे । लड़की ऊपर से दिलेरी दिखा रही थी लेकिन..." 

विमल जी-जान से राजबहादुर बखिया उर्फ काला पहाड़ को ऐसी करारी चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहा होता है कि उसका साम्राज्य पूरी तरह से डिग जाए। अब तो बखिया भी विमल से अपने नुकसान का बदला लेने और विमल के खून से होली खेलने के लिए बुरी तरह से मचल रहा होता है। 

“कसम है बखिया को अपने पुरखों की !” - बखिया ने एक खून जमा देने वाली हुंकार भरी - “वह सोहल की वो मैली आंख नोच लेगा जो ‘कम्पनी’ की तरफ उठी, वह वो हाथ काट देगा जो कम्पनी के ओहदेदारों के लिए मौत का फरमान बने, वह सोहल की बोटी-बोटी काटकर चील-कौवों को खिला देगा, वह सोहल की और सोहल के हिमायतियों की हस्ती मिटा देगा..... " 

विमल ने ऐसा क्या किया कि रोडरीगुएज जैसे खतरनाक इंसान के मुंह से स्वतः ही विमल की प्रशंसा में शब्द निकल पड़े? 
तुकाराम और उसके भाइयों ने क्या तरकीब सोची? 
क्या विमल बखिया की कोई दुखती रग ढूंढ सका और उसे करारी चोट दे पाया? 
लगातार खतरनाक होती जा रही इस गैंगवार में बखिया और कंपनी के ओहदेदारों ने विमल के विरुद्ध क्या-क्या चालें चली? 
बखिया का रौद्र रूप क्या परिणाम लाया? क्या बखिया विमल को तगड़ा नुकसान पहुंचा सका? 
तुकाराम और उसके भाई विमल का किस हद तक साथ दे पाने में सफल हुए? 
पुलिस कमिश्नर ने अपने स्तर पर और क्या-क्या प्रयास किए? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं। 

बखिया पुराण की कहानी को जारी रखता हुआ यह उपन्यास बहुत दिलचस्प है। कहानी घुमावदार और सस्पेंस से परिपूर्ण है। दोनो पक्षों द्वारा एक के बाद एक चली जाने वाली चालें और उन चालों के जवाब कहानी को रोमांचक बना देते हैं। उपन्यास में विमल, तुकाराम और उसके भाइयों का बखिया और उसके ओहदेदारों से टकराव बहुत अच्छा बन पड़ा है। इस उपन्यास में आपका सही परिचय होगा - अंडरवर्ल्ड में राजबहादुर बखिया की शक्ति और उसके दुश्मन पर छा जाने वाले व्यक्तित्व से! 

पिछले उपन्यास में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके पात्रों के अलावा आप इस उपन्यास में बखिया के बाकी ओहदेदारों अमीरजादा आफताब खान, रतनलाल जोशी, इकबाल सिंह, शांतिलाल, मैक्सवेल परेरा तथा अन्य सहायक पात्रों तिलकराज, जजाबेल, पटवर्धन, चंद्रगुप्त, माधव, मारियो, सोमानी, बाबू आदि से मिलेंगे।

यह उपन्यास वर्ष 1984 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के रिप्रिंट एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है और शाब्दिक गलतियां भी नगण्य मात्र हैं।

जैसा कि हमने पिछले पोस्ट में भी बताया था - अगर आप उपन्यास पढ़ना शुरू करेंगे तो एक ही बार में उपन्यास को पूरा करना चाहेंगे - न सिर्फ उपन्यास को बल्कि पूरी बखिया पुराण को भी! 

अंत में एक बात और कहना चाहूंगा:-
"न भूतो न भविष्यति:" - बखिया पुराण जैसे उपन्यास पढ़कर ये कहावत विमल सीरीज पर बिल्कुल सटीक बैठती है।

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 9/10

25 जनवरी 2022

विमल का इंसाफ - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : विमल का इंसाफ
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 264 (किंडल)
एमेजॉन लिंक : उपन्यास लिंक

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का बारहवां अध्याय !!

                            उपन्यास कवर 

जहां पिछले उपन्यास "हार जीत" ने बखिया पुराण की नींव रखी थी, वही इस उपन्यास 'विमल का इंसाफ' में बखिया पुराण की महागाथा आरंभ होती है। 

बखिया पुराण - विमल सीरीज के अंतर्गत चार उपन्यासों में फैली हुई एक रोमांचक और जबरदस्त महागाथा! 
बखिया पुराण के चारों उपन्यास विमल सीरीज में सबसे सफल और पाठकों द्वारा बेहद सराहे गए उपन्यासों की सूची में शामिल है। 
1984 के समय में बखिया पुराण को रचकर लोकप्रिय हिंदी साहित्य में बतौर क्राइम एवं थ्रिलर लेखक, सुरेंद्र मोहन पाठक ने प्रसिद्धि के एक नए शिखर को छू लिया था।

उपन्यास "विमल का इंसाफ" से लिया गया एक छोटा सा अंश: 

“पहले मेरी पूरी बात सुनो, स्टूपिड ।” - विमल क्रूर स्वर में बोला ।
“यस, सर ।” - रिसैप्शनिस्ट हड़बड़ा गया - “सारी, सर ।”
“जवाब देना है । कोई मेरी बाबत पूछताछ करे तो उसे सही, मुनासिब और मुकम्मल जवाब देना है ।”
“लेकिन सर, आपने तो कहा था कि…..” 

इस उपन्यास का आरंभ पिछले उपन्यास 'हार जीत' के अंतिम दृश्य से ही होती है। सुइट नंबर 42 में डोगरा का खून करने के बाद विमल होटल नटराज की चौथी मंजिल के गलियारे में खड़ा होता है। डोगरा को मारने से पूर्व विमल को उससे पचास हजार रुपयों की राशि की जगह सिर्फ ढाई हजार रुपए ही मिल पाते हैं। 

 उसके खून से कालीन का लाल रंग और लाल हो गया था और उसका भेजा उसके इर्द-गिर्द सारे कालीन पर बिखरा पड़ा था।
लाश पर निगाह डाले बिना उसने आगे बढकर पलंग के पहलू में रखी एक मेज पर पड़ा टेलीफोन उठाया ।
तुरन्त दूसरी ओर से टेलीफोन आपरेटर की आवाज आई |
“मेरा नाम..... 

विमल के लिए ये राशि अब तक नाक का सवाल बन चुकी होती है। वो सुलेमान से फोन पर बात करता है और कंपनी से बाकी के साढ़े सैंतालीस हजार रुपए चुकाने की मांग करता है, क्योंकि मरते समय डोगरा कंपनी का ओहदेदार था और सालों पहले इलाहाबाद में वो पचास हजार रुपया डोगरा ने कंपनी में ही जमा करवाया था। 

“आपकी जाती हैसियत में आपसे नहीं बल्कि आपकी कम्पनी के एक ओहदेदार की हैसियत में आपसे। आपकी कम्पनी के नाम से जानी जाने वाली आर्गेनाइजेशन से।आपके बाप बखिया से।”
“लेकिन क्यों ?”
"क्योंकि डोगरा मर चुका है और मरते वक्त वह इतनी रकम
* का मेरा कर्जदार था। क्योंकि जिस रकम का वह मेरा देनदार था, वह उसने आपको सौंपी थी।” 

सुलेमान विमल की इस मांग को मानने से मना कर देता है और दोनो में बहस हो जाती है। इस बहस के दौरान सुलेमान विमल के सामने कंपनी की ताकत और बंबई में कंपनी के दबदबे का बखान करता है। प्रत्युत्तर में विमल सुलेमान को चेतावनी देता है कि अगर उसे कंपनी से उसके हक के साढ़े सैंतालीस हजार रुपए नहीं मिले तो वो बंबई में कंपनी को पूरी तरह से ध्वस्त कर देगा। 

अगर यह रकम सीधे से मुझे हासिल न हुई तो आपका यह बम्बई शहर मौत का ऐसा नाच देखेगा जैसा कभी किसी ने कहीं न देखा होगा । मैं यहां जहन्नुम का वो नजारा पेश करूगा कि आपकी और आपकी समूची आर्गेनाइज़ेशन की आत्मा त्राहि-त्राहि कर उठेगी । मैं
राजबहादुर बखिया की ईंट से ईंट बजा दूंगा। 

सुलेमान की ना सुनने के पश्चात विमल नीलम के साथ मिलकर योजना बनाता है और कंपनी के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर देता है। भला कंपनी जैसी शक्तिशाली, सुदृढ़ और सुसंगठित आपराधिक संस्था भी कहां चुप बैठने वाली थी! एक-दूसरे को परास्त करने के लिए दोनो पक्ष चाल पर चाल चलने लगते हैं। शीघ्र ही ये लड़ाई एक ऐसी खतरनाक गैंगवार में बदल जाती है जिससे पूरी बंबई का अंडरवर्ल्ड थर्रा उठता है और बच्चे-बच्चे की आंखें इस गैंगवार पर आ टिकती हैं।

 जो जिहाद तुमने “कम्पनी’ के खिलाफ छेड़ा है, बम्बई के अण्डरवर्ल्ड के बच्चे-बच्चे को उसकी वाकफियत है । अण्डरवर्ल्ड में तुम्हारी भी कोई कम जय-जयकार नहीं है | क्रिमिनल वर्ल्ड में तुम“वन मैन आर्गेनाइजेशन’ के नाम से जाने जाते हो । अण्डरवर्ल्ड की निगाह में बखिया को अपना मैच अभी मिला है इसलिए हर कोई सांस रोक इस मुकाबले के नतीजों का इन्तजार कर रहा है । 

बंबई में कंपनी जैसी खतरनाक क्राइम आर्गेनाइजेशन के खिलाफ किसी को सर उठाता देखकर पुलिस भी एक बार सोच में पड़ जाती है। बंबई की सड़कों पर खून-खराबा बढ़ता देखकर पूरे पुलिस विभाग के साथ स्वयं पुलिस कमिश्नर भी सक्रिय हो जाता है और सारे घटनाक्रम की तह तक पहुंचने में जुट जाता है।

.... खुद पुलिस कमिश्नर बोरीवली पहुंचा। वह घटना आम दिनों से हुई होती तो शायद कमिश्नर तक उसकी खबर भी नहीं पहुंचती, लेकिन उन दिनों शहर में सोहल की ऐसी हवा थी कि शहर में घटी हर असाधारण घटना का रिश्ता स्वयंमेव ही सोहल और उसकी बखिया की आर्गेनाइजेशन के खिलाफ छेड़ी गई गैंगवार से जोड़ लिया जाता था । 

विमल ने कंपनी से टकराने और उसे ध्वस्त करने का निर्णय क्यों लिया?
कंपनी से टकराने के लिए विमल और नीलम ने क्या योजना बनाई?  
सोहल बनाम कंपनी की लड़ाई ने इतनी खतरनाक गैंगवार का रूप कैसे ले लिया? 
क्या कंपनी विमल और नीलम पर पलटवार कर सकी? 
क्या विमल और नीलम अपने ऊपर मंडराते अंजान खतरों से स्वयं को बचा पाए?  
क्या कंपनी के खिलाफ इस लड़ाई में विमल और नीलम को कोई सहायता प्राप्त हो सकी?
विमल और कंपनी की इस गैंगवार में पुलिस की क्या भूमिका रही? 
कौन-कौन शिकार हुआ दिल दहला देने वाली इस गैंगवार का? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिलेंगे। 

विमल सीरीज का यह उपन्यास बहुत बढ़िया लिखा गया है। मेरी राय में अगर आप उपन्यास पढ़ना शुरू करेंगे तो एक ही बार में उपन्यास को पूरा करना चाहेंगे - न सिर्फ उपन्यास को बल्कि बखिया पुराण को भी! 

चूंकि बखिया पुराण की कहानी विस्तृत है इसलिए कहानी में पात्रों की संख्या भी अधिक है। पात्रों की बात करें तो आप इस उपन्यास में विमल और नीलम के साथ सुलेमान, घोरपड़े, शिवाजी राव, मिसेज पिंटो, संध्या, दंडवते, जॉन रोडरीगुएज, पालकीवाला, तुकाराम, शांतिलाल, जीवाराम, बालेराम, देवाराम, कांति देसाई, मोटलानी, जिमी जैसे पात्रों की उपस्थिति पाएंगे। खलनायक पात्रों में से जॉन रोडरीगुएज, सुलेमान और दंडवते की भूमिका बढ़िया लगी। घोरपड़े और मिसेज पिंटो भी कहानी के अनुसार सही लगे। संध्या का किरदार छोटा पर काफी अच्छा है। तुकाराम और उसके भाई कहानी में और जान डाल देते हैं। विमल कंपनी के खिलाफ जबरदस्त एक्शन में नजर आता है और अपने पांसे बहुत अच्छे से फेंकता है।

उपन्यास में सिर्फ एक ही कमी लगी कि कंपनी के अधिकतर आदमी कोई भी काम करने से पहले या काम के दौरान काफी बातचीत (डायलोगबाजी) करते हैं जिस कारण कुछ जगहों पर उनके संवाद अनावश्यक रूप से खिंचे हुए प्रतीत होते हैं।

यह उपन्यास वर्ष 1984 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के रिप्रिंट एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है। शाब्दिक गलतियां भी छोटी-मोटी ही हैं अतः कहानी पढ़ने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। 

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

रेटिंग: 9/10

23 जनवरी 2022

असली केशव पंडित - शगुन शर्मा

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं एक और अप्रकाशित उपन्यास "असली केशव पंडित" के बारे में जो कि शगुन शर्मा का है !

                असली केशव पंडित उपन्यास का विज्ञापन 

विज्ञापन के अनुसार यह उपन्यास शगुन शर्मा के एक महाविशेषांक के रूप में तुलसी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होने वाला था। विज्ञापन में उपन्यास की कहानी का आधार दो केशव पंडित को दर्शाया गया है - एक असली केशव और दूसरा नकली केशव। साथ ही विजय, विकास और अल्फांसे के किरदार भी कहानी में उपस्थित हैं। विज्ञापन के हिसाब से अगर देखा जाए तो इस कहानी में असली केशव पंडित, विजय, विकास और अल्फांसे जैसे दिग्गजों की जबरदस्त दिमागी टक्कर नकली केशव पंडित के साथ होती है। 

अगर ये उपन्यास महाविशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ होता तो इस दिमागी टक्कर को पढ़ना शायद रोचक रहता। शायद इसलिए क्योंकि केशव पंडित का एक अच्छा और दिमागी दांव-पेंच से भरपूर उपन्यास लिखना इतना आसान नहीं है।

उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।

20 जनवरी 2022

वेद प्रकाश शर्मा - हिंदी उपन्यासकार



साथियों, वैसे तो वेद प्रकाश शर्मा जी को किसी परिचय की आवश्यकता नही है पर हमारा ये पोस्ट उन्हीं पर आधारित है। 

वेद प्रकाश शर्मा जी हिंदी लोकप्रिय साहित्य (लुगदी साहित्य) में अपने समय के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक रहे हैं। इनका जन्म वर्ष 1955 में मेरठ, उत्तर प्रदेश में हुआ था और निधन वर्ष 2017 में कैंसर की बीमारी के कारण हुआ था। इनके परिवार में इनकी पत्नी, तीन पुत्रियां तथा एक पुत्र है। इनके पुत्र शगुन शर्मा भी एक उपन्यासकार हैं और अब तक 30 से भी अधिक उपन्यास लिख चुके हैं। 

वेद जी ने अपने 40 से भी अधिक वर्षों के लेखन कैरियर में 170 से ज्यादा उपन्यास लिखे हैं। वेद जी ने अपना कैरियर भूत लेखक (घोस्ट राइटर) के रूप में आरंभ किया था और कुछ वर्ष पश्चात इनके उपन्यास स्वयं के नाम से भी प्रकाशित होने लगे। 1973 में प्रकाशित "दहकते शहर" उपन्यास वेद जी का स्वयं के नाम से प्रकाशित हुआ प्रथम उपन्यास था। यहां से वेद जी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए और शीघ्र ही अग्रणी लेखकों में इनका नाम लिया जाने लगा। वेद जी मुख्यत: थ्रिलर, सस्पेंस एवं जासूसी श्रेणी के उपन्यास लिखते थे। इन सभी श्रेणियों में इनके बहुत से उपन्यास सफल रहे हैं और पाठकों द्वारा सराहे गए हैं। बहू मांगे इंसाफ, गैंडा, विजय और केशव पंडित, कोख का मोती, विजय के सात फेरे, कैदी नंबर 100, शाकाहारी खंजर, मंगल सम्राट विकास, चकमा, लल्लू, एक मुट्ठी दर्द तथा ऐसे और भी अनेक उपन्यास इनके सफल उपन्यासों की सूची में शामिल हैं। खासकर "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास इनका अब तक का सफलतम और सर्वाधिक बिकने वाला उपन्यास रहा है। 

 जब वेद जी का "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास प्रकाशित हुआ तो इसने उस समय के उपन्यास बिक्री के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। कई बार इसका रिप्रिंट किया गया। बहुत सी जगहों पे इसके पोस्टर भी लगे और खूब धूम मची इस उपन्यास की। लोकप्रिय साहित्य के किसी उपन्यास के लिए ये एक प्रेरणादायक और अनूठा मुकाम था।

अब अगर पात्रों की बात की जाए तो वेद जी ने विकास, केशव पंडित और विभा जिंदल जैसे प्रसिद्ध पात्रों का सृजन दिया। हालांकि वेद जी केशव पंडित को लेकर ज्यादा उपन्यास नही लिख पाए थे परंतु उनका "केशव पंडित" पात्र हिंदी उपन्यास जगत ने इतना प्रसिद्ध हुआ था कि अनेक प्रकाशकों ने केशव पंडित के नाम की सफलता को भुनाने के लिए अपने भूत लेखकों से केशव पंडित के उपन्यास लिखवा कर मार्केट में बेचने शुरू कर दिए। केशव पंडित की प्रसिद्धि का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक लंबे समय तक केशव पंडित के नाम से छपने वाले नकली उपन्यास भी अच्छे-खासे बिकते रहे। 
वेद प्रकाश शर्मा जी पहले से ही वेद प्रकाश कंबोज जी को अपना गुरु और प्रेरणा मानते थे। वेद जी ने कंबोज जी के विजय, रघुनाथ, अल्फांसे, सिंगही, बागारोफ जैसे पात्रों को अपने अंदाज में बेहद सफलता से प्रस्तुत किया है। 

पहले वेद जी के उपन्यास अलग-अलग प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किए जाते थे। बाद में वेद जी ने वर्ष 1985 में अपने प्रकाशन संस्थान "तुलसी पॉकेट बुक्स" की स्थापना की और फिर उनके बाकी उपन्यास यहीं से प्रकाशित हुए। इनके लगभग 70 के करीब उपन्यास तुलसी पॉकेट बुक्स से ही प्रकाशित हुए हैं। 
वेद जी के कई उपन्यासों पर हिंदी फिल्में भी बन चुकी हैं जैसे कि सबसे बड़ा खिलाड़ी, अनाम, इंटरनेशनल खिलाड़ी, बहू मांगे इंसाफ। इनके केशव पंडित नामक पात्र पर बालाजी टेलीफिल्म्स द्वारा एक टीवी सीरियल भी बनाया जा चुका है। इसके अलावा वेद जी ने बालाजी टेलीफिल्म्स के साथ कुछ और प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया था। 

"अतरंगी रे" फिल्म के इस दृश्य में अक्षय कुमार वेद जी का उपन्यास "सुपरस्टार" हाथ में लिए हुए हैं और उसे पढ़ रहे होते हैं। एक और दिलचस्प बात ये है कि सुपरस्टार उपन्यास वेद जी द्वारा अपने समय के प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना के जीवन से प्रेरित होकर लिखा गया था और राजेश खन्ना जी रिश्ते में अक्षय कुमार के ससुर हैं। यहां पर आपको ये भी बता दें कि अक्षय कुमार पहले भी वेद जी के उपन्यासों पर आधारित कुछ फिल्मों में काम कर चुके हैं।

वेद जी को उनके उत्कृष्ट लेखन कार्य के लिए "मेरठ रत्न" तथा "नटराज भूषण" जैसे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। 

वेद जी पाठकों द्वारा दिए गए प्यार को ही सबसे महत्त्वपूर्ण मानते थे। वेद जी शुरू से ही पाठकों की उपन्यासों के प्रति रुचि तथा उनकी नब्ज अच्छी तरह से पहचानते थे और इसी कारण अपने पाठकों पर उनकी पकड़ हमेशा बेहद मजबूत रही थी। आज भी बहुत से पाठक उनके उपन्यास बेहद चाव से पढ़ते हैं और उन्हें याद करते हैं। 

वेद जी द्वारा लिखे गए उपन्यासों ने लाखों-करोड़ों पाठकों का मनोरंजन किया है। हिंदी लोकप्रिय साहित्य में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। इस आलेख के माध्यम से हम वेद जी को भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

वेद प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यासों की सूची :-
1 दहकते शहर
 2 आग के बेटे
 3 खूनी छलावा 
 4 छलावा और शैतान 
 5 महाबली टुम्बकटू
 6 विकास दी ग्रेट 
 7 प्रलयकारी विकास 
 8 एक मुठ्ठी दर्द 
 9 विकास और मैकांबर
10 विकास मैकांबर के देश में
11 मैकांबर का अंत
12 अपराधी विकास
13 मंगल सम्राट विकास 
14 विनाश दूत विकास 
15 विकास की वापसी 
16 विजय और विकास 
17 पहली क्रांति 
18 दूसरी क्रांति 
19 तीसरी क्रांति 
20 क्रांति का देवता 
21 इंकलाब का पुजारी 
22 सबसे बड़ा जासूस 
23 चीते का दुश्मन 
24 सुमन
25 सी. आई.ए. का आतंक 
26 बदसूरत 
27 प्रिंसेस जैक्सन का देश 
28 पाकिस्तान का बदला 
29 विश्व विजेता 
30 हीरों का बादशाह 
31 अर्थी मेरे प्यार की  
32 रहस्य के बीच
33 तीन तिलंगे 
34 आग लगे दौलत को  
35 शहीदो की चिता 
36 खून की धरती
37 तिरंगा झुके नहीं
38 वतन की कसम 
39 सिंगही और मर्डर लैंड 
40 देवकांता संतति भाग-1-2 
41 देवकांता संतति भाग-3-4
42 देवकांता संतति भाग-5-6
43 देवकांता संतति भाग-7-8
44 देवकांता संतति भाग-9-10
45 देवकांता संतति भाग-11-12
46 देवकांता संतति भाग-13-14
47 लाश कहाँ छुपाऊ 
48 कानून मेरे पीछे 
49 आलपिन का खिलाडी
50 वतन 
51 गुलिश्तां खिल उठा  
52 आयरन मैन 
53 कोबरा का दुश्मन
54 सफ़ेद चूहा 
55 खून दो आजादी लो
56 बिच्छू 
57 हिन्द का बेटा
58 देश न जल जाये
59 कानून बदल डालो
60 फ़ासी दो कानून को
61 जला हुआ वतन
62 चीख उठा हिमालय
63 दौलत है ईमान मेरा
64 आ बैल मुझे मार
65 धरती बनी दुल्हन
66 विश्व युद्ध की आग 
67 चकमा
68 खून ने रंग बदला
69 रूक गयी धरती 
70 कर्फ्यू
71 शेर का बच्चा
72 जजमेंट
73 हत्यारा कौन
74 मत रो माँ
75 लाखों हैं लाल मेरे
76 हिंसक 
77 दरिंदा 
78 गैंडा
79 क़त्ल ए आम 
80 जय हिन्द
81 वन्दे मातरम 
82 दौलत पर टपका खून 
83 एक कब्र सरहद पर 
84 रणभूमि
85 गन का फैसला
86 राखी और सिन्दूर
87 माटी मेरे देश की
88 एक और अभिमन्यु 
89 सारे जहां से ऊँचा 
90 सभी दीवाने दौलत के 
91 इंकलाब जिंदाबाद 
92 दूध ना बख्शूंगी 
93 धर्मयुद्ध 
94 बहू मांगे इन्साफ 
95 साढ़े तीन घंटे 
96 अलफांसे की शादी 
97 कफ़न तेरे बेटे का 
98 विधवा का पति 
99 हत्या एक सुहागन की 
100 कैदी न. १०० 
101 इंसाफ का सूरज 
102 दुल्हन मांगे दहेज़ 
103 सुलग उठा सिन्दूर 
104 मेरे बच्चे मेरा घर 
105 आज का रावण 
106 नसीब मेरा दुशमन 
107 बहु की आवाज
108 शीशे की अयोध्या
109 औरत एक पहेली
110 केशव पंडित 
111 कानून का पंडित 
112 कानून का बेटा  
113 विजय और केशव पंडित 
114 कोंख का मोती 
115 मांग में अंगारे
116 बीवी का नशा
117 साजन की साजिश 
118 सबसे बड़ी साजिश
119 भगवान नंबर दो 
120 सुहाग से बड़ा 
121 चक्रव्यहू 
122 जुर्म की माँ 
123 कुबड़ा  
124 नाम का हिटलर 
125 कानून नहीं बिकेगा 
126 दौलत मांगे खून 
127 दहेज़ में रिवाल्वर 
128 जादू भरा जाल 
129 वर्दी वाला गुंडा 
130 जिगर का टुकड़ा
131 लल्लू
132 रैना कहे पुकार के
133 भस्मासुर
134 मेरा बेटा सबका बाप 
135 पागल 
136 मि. चैलेंज 
137 वो साल खद्दरवाला 
138 कातिल होतो ऐसा 
139 शाकाहारी खंजर 
140 मदारी
141 फंस गया अलफांसे 
142 पंगा 
143 कारीगर 
144 ट्रिक 
145 कठपुतली 
146 एक थप्पड़ हिंदुस्तानी 
147 पाक-साफ़ 
148 गूंगा 
149 डमरूवाला 
150 असली खिलाडी 
151 शिखंडी 
152 रामबाण 
153 दूर की कौड़ी 
154 काला अंग्रेज 
155 फिरंगी 
156 खलीफा 
157 शंखनाद 
158 क्यूंकि वो बीवियां बदलते थे 
159 वेदमंत्र 
160 अंगारा 
161 शेखचिल्ली 
162 हत्यारा मंगलसूत्र 
163 केशव पंडित की वापसी 
164 विजय के सात फेरे 
165 नौकरी डाट कॉम 
166 खेल गया खेल 
167 सुपरस्टार 
168 पैंतरा 
169 कश्मीर का बेटा 
170 चलते पुर्जे 
171 डायन 
172 डायन -2 
173 सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री 
174 अपने कत्ल की सुपारी
175 गद्दार देशभक्त
176 आनर किलींग
177 छठी उंगली
178 भयंकरा

आप सभी के लिए उपलब्ध वेद प्रकाश शर्मा जी के उपन्यास संग्रह की एक झलक!

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19 जनवरी 2022

हार जीत - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : हार जीत 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 272 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का ग्यारहवां अध्याय जिसने आधार रखा बखिया पुराण का !!

                            किंडल पर उपलब्ध उपन्यास कवर 

पिछले उपन्यास "खाली वार" के अंत में विमल की जान बाल-बाल बचती है और सुनील की सहायता से नीलम विमल को तारकपुर से चंडीगढ़ ले जाती है। 

उपन्यास "हार जीत" से लिया गया एक छोटा सा अंश : 
नीलम की सूरत में विमल को कोई तो सहारा हासिल था, लेकिन जगमोहन तो इतनी बड़ी दुनिया में एकदम तनहा था। पता नहीं उसकी जिन्दगी किस हौलनाक अंजाम तक पहुँचने वाली थी—या शायद पहुँच भी चुकी थी।
सिडनी फोस्टर के अपहरण का सिलसिला ऐन मौके पर बैकफायर न कर गया होता तो आज दोनों की जिन्दगियाँ सँवर चुकी होतीं।

इस उपन्यास की शुरुआत होती है चंडीगढ़ के एक फ्लैट के दृश्य से जहां पर विमल बालकनी में बैठा हुआ पिछले वाकया के बारे में सोच रहा है। नीलम चंडीगढ़ में विमल का लगातार उपचार करवाती है और उसकी पूरी देखभाल करती है। दो महीने में विमल का स्वास्थ्य क्रमशः सुधर जाता है और वो चलने-फिरने के लायक हो जाता है। 
इस दौरान विमल की भावनाएं नीलम के लिए और गहरी होती जाती हैं। बातों-बातों में विमल अपने अतीत के बारे में नीलम को सब कुछ बता देता है और निर्णय लेता है कि पहले वो अपने काले अतीत का सामना करेगा जिस कारण वो अपराध की इतनी गहरी दलदल में धंस गया था और फिर नीलम के साथ नया जीवन शुरू करेगा। नीलम भी विमल के साथ एक नया जीवन आरंभ करना चाहती है परंतु वो पहले विमल से पूछती है कि क्या वाकई विमल अपने अतीत का सामना करने के लिए तैयार है? विमल का उत्तर जानने के पश्चात वो विमल का साथ देने के लिए तैयार हो जाती है। 

मैं अपनी लाचार, हर वक्‍त किसी न किसी से रहम की फरियाद करती, किसी न किसी के रहमोकरम की मोहताज जिन्दगी से तंग आ चुका हूँ। वाहेगुरु मुझे शक्‍ति दे, सामर्थ्य दे, मुझमें उन लोगों से गिन-गिनकर बदले लेने की कूवत पैदा करे, जिन्होंने हमेशा मेरे साथ ज्‍यादती की है। वाहेगुरु सच्‍चे पातशाह, अगर मेरी जिन्दगी के खाते में मेरी चन्द साँसें और लिखी हैं तो वे साँसें किसी तकदीर की मार खाए, हालात से लाचार, सारी द अपने-आप से हारे, रहम के काबिल इंसान की न हों। वे साँसें तेरे ऐसे मुरीद की हों, ऐसे खालसा की हों, जिसकी एक हुँकार से दुश्‍मनों के कलेजे काँप जायें। अगर मैं इन्सान हूँ तो इन्सान ही बनकर रहूँ, मैं बादलों की तरह गरजूँ, बिजली बनकर चमकूँ, और आँधी-तूफान की तरह कुल जहान पर छा जाऊँ। मेरी आने वाली जिन्दगी में हार के लिए कोई जगह न हो। जगह हो तो फतह के लिए—सिर्फ फतह के लिए !"

कुछ जरूरी तैयारियां करने के पश्चात दोनों इलाहाबाद के सफर पर निकल पड़ते है - जी हां! वही इलाहाबाद, जहां पर एक मेहनती और ईमानदार अकाउंटेंट सरदार सुरेंदर सिंह सोहल को जबरदस्ती अपराधी घोषित करके सलाखों के पीछे धकेल दिया गया था। 

अगले रोज वे दोनों इलाहाबाद के लिए रवाना हो गये।
तब उन दोनों का हुलिया, पोशाक और रख-रखाव ऐसा था, जैसे उनकी ताजी-ताजी शादी हुई हो और वे हनीमून के लिए निकले हों।

पर विमल को तो खुद भी नही पता था कि अपने काले अतीत का सामना करने के चक्कर में वो कितने खतरनाक सफर पर निकल पड़ा था और ये खतरनाक सफर सिर्फ इलाहाबाद पर ही खत्म नहीं होने वाला था बल्कि उसे आगे बंबई भी ले जाने वाला था!

क्या थी पूरी कहानी विमल के काले अतीत की? 
विमल क्यूं अपने काले अतीत का सामना करना चाहता था? 
विमल का अपने अतीत से कब, कहां और कैसे सामना हुआ?
क्या विमल अपने काले अतीत से हुए टकराव में जीत पाया? 
बंबई में ऐसा क्या हुआ कि अपने अतीत से विमल का टकराव एक खतरनाक युद्ध में बदल गया जिसने विमल की पूरी जिंदगी ही बदल दी?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं। 

मेरी राय में विमल सीरीज का यह उपन्यास रोमांचक और पठनीय है। उपन्यास की कहानी मनोरंजक है। उपन्यास में विमल अपना प्रभाव बनाए रखता है और योजनाबद्ध तरीके से काम करता है। कई जगहों पर कहानी घुमाव भी लेती है। कहानी में जहां कई दृश्य भावनाओं से परिपूर्ण बन पड़े हैं तो वहीं एक्शन और रोमांच से भरपूर दृश्य भी हैं। इस उपन्यास में पाठकों को विमल के अतीत को विस्तृत जानकारी मिलती है। 

पात्रों की बात करें तो आप विमल और नीलम के अलावा बनारसी, मौलाना, कुमुद, मिसेज साराभाई, बसंत साराभाई, सुरजीत, सखाराम, रुस्तम भाई, डोगरा, घोरपड़े, पीटर, सुलेमान, मिसेज पिंटो तथा और भी कई पात्रों से इस उपन्यास में मिलेंगे। जहां कहानी में नीलम का किरदार महत्त्वपूर्ण है वही घोरपड़े, सुरजीत, मिसेज साराभाई, डोगरा और मिसेज पिंटो के पात्र भी काफी अच्छे लगे।

यह उपन्यास वर्ष 1982 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 
उपन्यास का रीप्रिंट एडिशन त्रुटिरहित है ।

कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवश्य अवगत करवाएं | हमे आपकी बहुमूल्य राय का इंतजार रहेगा ।

रेटिंग: 8/10

15 जनवरी 2022

हाईजेकर - अनिल मोहन


उपन्यास : हाइजैकर 
उपन्यास सीरीज : देवराज चौहान सीरीज 
लेखक : अनिल मोहन 
पेज संख्या : 336 
                                     उपन्यास कवर

उपन्यास से लिया गया एक अंश:
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कश लेकर शांत स्वर में कह उठा - "मैं पहले ही इंकार कर चुका हूं कि मैं कोई काम करने के मूड में नहीं हूं।"
लुकास मुस्करा पड़ा। बोला - "मुझे तुम जैसे लोग पसंद हैं।" इसके साथ ही वो उठा और गाउन की जेब से रिवॉल्वर निकालकर जगमोहन के पास पहुंचा और उसके सिर पर रिवॉल्वर की नाल लगाकर मीठे स्वर में कह उठा - "अब क्या इरादा है देवराज चौहान?"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी। 
जगमोहन के दांत भिंच गए।
जेम्स वर्ली हड़बड़ाकर कह उठा....

कहानी की शुरुआत होती है ग्रीस के एक नाइट क्लब के दृश्य से जहां देवराज चौहान और जगमोहन आनंदमय शाम बिता रहे हैं। अचानक देवराज की वहां एक पुराने परिचित जेम्स वर्ली से मुलाकात होती है। जेम्स देवराज को अपने बॉस लुकास से मिलने का अनुरोध करता है जो कि संयोग से इसी नाइट क्लब का मालिक होता है। मुलाकात के दौरान लुकास देवराज को एक काम करने के लिए कहता है पर देवराज मना कर देता है। लुकास गुस्से में आकर जगमोहन को बंधक बना लेता है और देवराज को काम करने के लिए मजबूर करता है। जेम्स लुकास को समझाने की कोशिश करता है पर लुकास उसकी एक नही सुनता। मजबूरीवश देवराज लुकास की मांग पूरी करने की योजना बनाने में जुट जाता है पर साथ ही जेम्स की सहायता से जगमोहन को छुड़ाने और लुकास को सबक सिखाने की योजना पर भी काम शुरू कर देता है। 

देवराज चौहान भी मुस्कराया। 
"गन है तुम्हारे पास?" 
"इंतजाम हो जाएगा। तुम्हारा प्लान क्या है?" जेम्स वर्ली ने पूछा।
"जल्दी बताऊंगा प्लान भी।"
"लुकास को कब फोन करोगे?" 
"पांच-छ: दिन बाद। उसे इंतजार करने दो।"

इसी बीच भारत में मुंबई की ओर जा रहे एक हवाईजहाज को देवराज चौहान और उसके साथी हाईजैक कर लेते हैं और एक यात्री की हत्या भी कर देते हैं। देवराज चौहान और उसके साथी हवाईजहाज को जबरदस्ती एक सुनसान सड़क पर उतरवा कर उसमे से स्टील के चार बक्से निकाल लेते हैं और बक्से अपनी वैन में डाल कर वहां से भाग जाते हैं। वैन लेकर वो लोग पहले से ही देखकर रखी हुई एक सुरक्षित जगह "मिसेज डिसूजा के घर" पर जबरन अधिकार कर लेते हैं और कुछ दिन के लिए वहीं छुप जाते हैं। 

"मुझे मत मारना।" मिसेज डिसूजा का स्वर कांप उठा - "मैं मर गई तो नीटू जीते जी मर जाएगा। उसे कौन देखेगा?" आंखों में आंसू आ गए।"
"तो तुम्हें हमारा यहां रहना मंजूर है!" 
"ह..हां."
हुसैन ने रिवॉल्वर हटा ली। 
मिसेज डिसूजा गहरी-गहरी सांसें लेने लगी। आंखों में आए आंसुओं को साफ किया।

हाईजैक और स्टील के बक्सों की लूट की खबर सुनते ही सरकार में हड़कंप मच जाता है। गृहमंत्री जी तुरंत इंस्पेक्टर वानखेड़े और कुछ महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों के साथ मीटिंग करते हैं। गृहमंत्री जी कोई कदम उठा पाएं, इससे पहले ही राष्ट्रपति महोदया देश की सबसे खतरनाक सरकारी इन्वेस्टिगेशन संस्था "जिन्न" को इस केस की जांच करने का आदेश दे देती हैं। 

"फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी।" गृहमंत्री जी के होंठों से निकला - "आपका मतलब कि जिन्न को?" 
"जी हां। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। जिन्न यानि कि फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी इस काम में दखल देगी। बेहतर होगा कि आप वानखेड़े साहब के अलावा किसी और को इस काम में न डालें।" 
"मैं समझ गया राष्ट्रपति महोदया।" इसके साथ ही लाइन कट गई।

जिन्न संस्था तुरंत एक्शन में आ जाती है और उसी समय इमरजेंसी मीटिंग बुलाई जाती है। इधर हवाईजहाज के हाईजैक में देवराज का हाथ होने का समाचार सुनते ही नगीना और सोहनलाल भी परेशान हो जाते हैं और अपने स्तर पर इसकी छानबीन शुरू कर देते हैं। इस छानबीन के दौरान उनका जिन्न और इंस्पेक्टर वानखेड़े से भी आमना-सामना होता है।

ग्रीस में लुकास को देवराज चौहान से ऐसा क्या काम निकलवाना था कि उसने जगमोहन को बंधक बना लिया? 
क्या देवराज चौहान जगमोहन को लुकास से छुड़वा सका और लुकास को सबक सिखा सका? 
ऐसा क्या था उन स्टील के बक्सों में जिसके लिए देवराज चौहान ने भारत में हवाईजहाज को हाईजैक कर लिया?
हाइजैक हुए हवाईजहाज से स्टील के बक्सों की लूट की खबर सुनकर सरकार में हड़कंप क्यों मच गया - वो भी ऐसा हड़कंप कि जिन्न जैसी संस्था को इस केस में दखल देना पड़ा? 
देवराज चौहान ग्रीस में लुकास के लिए काम कर रहा था और इसी समयावधि में भारत में हवाईजहाज का हाईजैक भी कर रहा था - आखिर ये क्या चक्कर था? 
क्या नगीना और सोहनलाल इस गुत्थी को सुलझा सके?
मिसेस डिसूजा और नीटू की क्या भूमिका थी इस सारे घटनाक्रम में? 
क्या जिन्न संस्था इस केस को हल कर पाई?  

इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं।

उपन्यास में आपको देवराज चौहान तथा जगमोहन की संक्षिप्त से थोड़ी ही अधिक भूमिका के अलावा नगीना, सोहनलाल, जेम्स वर्ली, लुकास, नील, वीरेंद्र, मिसेज डिसूजा, नीटू, चींटा, हुसैन, संतराम, नवाब, सोया, जगजीत, इंस्पेक्टर वानखेड़े और जिन्न के कुछ विशेष एजेंट (नारंग, कपूर, मदनलाल, नीरा आदि) जैसे पात्रों के बारे में पढ़ने को मिलेगा। सहायक पात्रों में मुझे जेम्स वर्ली एवं चींटा के पात्र तथा जिन्न के एजेंटों की कार्यशैली अच्छी लगी। अन्य पात्र कहानी में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए।

उपन्यास में शाब्दिक त्रुटियां गिनी चुनी ही हैं पर उससे कहानी के प्रवाह पर कुछ अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। 

अब कहानी के बारे में बात करते हैं! न सिर्फ उपन्यास की कहानी का आधार कमजोर है बल्कि अनेक जगहों पर पन्ने भरने के लिए संवादों को और कहानी को अनावश्यक रूप से खींचा गया है। लेखक ने कहानी में कल्पना का कुछ अधिक ही उपयोग किया है जिस कारण कहानी अपनी मजबूती खो देती है। 
हालांकि ये उपन्यास देवराज चौहान सीरीज का है पर इसमें देवराज चौहान का पात्र सिर्फ शुरू और अंत में ही नजर आता है, बाकी सारा उपन्यास तो सिर्फ देवराज चौहान के नाम के सहारे ही लिख दिया गया है। 
मेरे अनुसार अनिल मोहन एक लेखक के तौर पर देवराज चौहान सीरीज के इस उपन्यास के साथ न्याय नहीं कर पाए। अगर ये उपन्यास देवराज चौहान सीरीज के स्थान पर एक सामान्य थ्रिलर के रूप में प्रस्तुत किया जाता तो थोड़ा ठीक रहता। 
ये उपन्यास अगर आप न भी पढ़ें तो मेरे विचार से एक पाठक के तौर पर आप कुछ नही खोएंगे। 

अपने कमेंट्स के द्वारा हमें अपनी राय से अवश्य अवगत करवाएं।

रेटिंग: 4.5/10

05 जनवरी 2022

खाली वार - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : खाली वार 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 338 (किंडल)

                              उपन्यास कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का दसवां अध्याय !!

जैसा कि हमने पिछले पोस्ट में सूचित किया था - यह कहानी दो उपन्यासों की श्रृंखला में लिखी गई है। कहानी "असफल अभियान" उपन्यास से शुरु होती है और "खाली वार" उपन्यास में समाप्त होती है। 

                                उपन्यास कवर 

पिछले उपन्यास "असफल अभियान" के अंत तक विमल अपहरण की योजना की तैयारियां पूरी कर लेता है। अपहरण को राजनीतिक रंग देने के लिए विमल 'होलीमा लिब्रेशन फ्रन्ट' नामक दल से समझौता भी कर लेता है। विमल का एक साथी महेंद्रनाथ थोड़े से पैसों के वक्ती लालच में आकर एक पुराने ग्राहक चार्ली को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए मान जाता है परंतु पुलिस इंस्पेक्टर बंसल द्वारा पकड़ लिया जाता है। महेंद्रनाथ किसी तरह बच तो निकलता है पर ड्रग्स न मिलने के कारण चार्ली महेंद्रनाथ पर क्रोधित हो जाता है।

उपन्यास "खाली वार" से लिया गया एक छोटा सा अंश :
मोटरसाइकल सवार सड़क पर एक बड़ी ही असंभव मुद्रा में पड़ा था और यूं लगता था कि या तो उसकी गरदन टूट गई थी और या वह मर ही गया था ।
सुनामसिंह के छक्के छूट गए । 
सालों हो गए थे उसे गाड़ी चलाते लेकिन वह पहला मौका था जब उससे कोई घातक एक्सीडेंट हुआ था ।
लेकिन शायद वह मरा न हो उसके दिल से पुकार उठी ।

इस उपन्यास की शुरुआत होती है अमेरिकन एम्बेसी की इमारत के दृश्य से, जहां सिडनी फोस्टर को रोज की तरह ड्राइवर सुनाम सिंह कार में बिठाकर कार्यालय के लिए लेकर जाता है। यही वो दिन है जो विमल ने फोस्टर का अपहरण करने के लिए निर्धारित किया होता है। कई बाधाओं का सामना करते के पश्चात विमल और उसके साथी अन्ततः फोस्टर का अपहरण कर लेते हैं और उसे अपने साथ निकाल ले जाने में सफल हो जाते हैं। उधर चार्ली भी महेंद्रनाथ से अपना पैसा पाने के लिए तड़प रहा होता है। 
फोस्टर के अपहरण की खबर आग की तरह फैल जाती है। ये खबर सुनकर अमेरिकन एम्बेसी भी परेशान हो जाती है। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल तुरंत रामसिंह और अन्य पुलिस दल-बल के साथ काम पर लग जाता है। खबर मिलते ही सुनील भी अपहरण वाले घटनास्थल पहुंच जाता है। परंतु पुलिस से कुछ विशेष जानकारी न मिलने के कारण सुनील स्वयं स्वतंत्र छानबीन करना शुरू कर देता है। 

"किस्सा क्या है ?”
व्हिस्की और सिगरेट की चुस्कियों के बीच सुनील ने संक्षेप में सारी बात बताई ।
“कमाल है !” अन्त में रमाकांत सख्त हैरानी के साथ बोला - “किडनैपिंग की इतनी सनसनीखेज घटना के लिए वह
डकैत जिम्मेदार है ?”

विमल, जगमोहन और उसके साथी अपहृत सिडनी फोस्टर को शहर के बाहर अपनी ढूंढी हुई एक सुरक्षित जगह पर छुपा देते हैं। समझौते के तहत विमल 'होलीमा लिब्रेशन फ्रन्ट' दल से बात करके फोस्टर को उनके बताए हुए अड्डे पर पहुंचाने का उपाय करने लग जाता है और साथ ही फिरौती की रकम प्राप्त करने की कोशिश में लग जाता है। पर इधर थोड़े समय में ही पुलिस को पता लग जाता है कि अपहरण की वारदात में विमल और उसके साथियों का हाथ है। 

तभी एकाएक बहुत तेज रफ्तार से चलती पुलिस की एक जीप वहां पहुंची | जीप ऐन गैरेज के सामने आकर रुकी और उसमें से एक सबइन्स्पेक्टर और कई पुलिसिये बाहर निकलने लगे | 
तभी पुलिस की दो और जीपें जैसे हवा में उड़ती हुई वहां पहुंची | पहले से रूकी जीप के समीप आकर जब वे रूकीं तो ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज उठा ।

इसके बाद घटनाचक्र बेहद खतरनाक रूप ले लेता है और इतनी तीव्र गति से घूमता है कि विमल और उसके साथियों के समक्ष एक के बाद एक परेशानियां आ खड़ी होती हैं! इससे पहले कि वो लोग उन परेशानियों का कोई हल निकाल सके, विमल की सोच के विपरीत उसके मुख्य पांसे न सिर्फ उल्टे पड़ने लगते हैं बल्कि विमल खुद भी मृत्युशैया पर पहुंच जाता है।

फोस्टर को किडनैप करने में विमल को क्या बाधाएं आई? 
ऐसी कौनसी सुरक्षित जगह थी जहां विमल ने फोस्टर को छुपाया? 
सुनील घटनाओं के सूत्र आपस में कैसे जोड़ पाया? 
पुलिस को इतनी शीघ्र कैसे पता लगा कि विमल ने ही अपहरण किया है? 
अमेरिकन एम्बेसी क्यों परेशान थी फोस्टर के अपहरण को लेकर? 
होलीमा लिब्रेशन फ्रंट असल में क्या चाहता था? 
आखिर ऐसा क्या घटित हुआ कि योजना में सफलता पाने की जगह विमल मृत्युशैय्या पर पहुंच गया? 
सुनील और विमल के बीच आखिर ऐसा क्या वार्तालाप हुआ जो कि सबकी उम्मीदों से परे था? 
क्या हुआ जगमोहन और विमल के अन्य सहयोगियों का? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं।

अब बात करते हैं कहानी के बारे में! कुल मिलाकर कहानी बहुत बढ़िया है और पृष्ठ संख्या भी अधिक है। उपन्यास रोमांचक होने के साथ भावनात्मक भी है। 
कहानी में शुरू से लेकर अंत तक विमल ही सारी योजना का मुखिया रहता है। साथ ही विमल को एहसास होता है कि मुखिया बनकर काम करना और सहयोगियों से सही काम करवाना कितना कठिन है। 
कहानी का अंत शानदार और मार्मिक है। कहानी के अंत में सुनील और विमल के बीच का वार्तालाप भावुक कर देता है और विमल के प्रति मन में सहानुभूति का गहरा एहसास होता है। पुलिस अधिकारी भी इस उपन्यास में अच्छी गति से काम करते दिखाए गए हैं। 

कहानी में जगमोहन का विमल के साथ योजना पर मिलकर काम करना और विमल के प्रति गहन समर्पण भी बेहद अच्छा लगा। 
“नहीं ।” जगमोहन दृढ स्वर में बोला “यह नहीं हो सकता। अगर मैं तुम्हारे सुख का साथी था तो मैं तुम्हारे दु:ख का भी साथी रहूंगा ।”

सुनील और प्रभुदयाल के पात्र बढ़िया लगे - खासकर उनकी आपस में बहस। छानबीन के दौरान विमल और प्रभुदयाल का वार्तालाप रोमांचक लगा। 
अन्य सहायक पात्र अपनी जगह पर सही लगे। पिछले उपन्यास में महेंद्रनाथ का पात्र उपयुक्त नहीं लगा था पर इस उपन्यास में सही लगा। 
पूरी कहानी पढ़ने के बाद डियाना फोस्टर से भी सहानुभूति हुई। चार्ली भी कहानी में एक महत्त्वपूर्ण पात्र है। आप नीलम से एक बार फिर मिलेंगे इस उपन्यास में!

कहानी में कमी ये लगी कि कई स्थानों पर वार्तालाप को जरूरत से ज्यादा लंबा खींचा गया है। साथ ही कुछ स्थानों पर ऐसी चीजों या ऐसी जगहों का वर्णन किया गया है जिसकी जरूरत नहीं थी। 

यह उपन्यास वर्ष 1981 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास का रीप्रिंट एडिशन साफ-सुथरा और लगभग त्रुटिरहित है ।

मेरी राय में सुरेंदर मोहन पाठक की लेखनी से निकली ये कहानी विमल सीरीज की सबसे अच्छी कहानियों में से एक है इसलिए दोनों उपन्यास "असफल अभियान" और "खाली वार" एक बार अवश्य पढ़ें। 

कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवश्य अवगत करवाएं | हमे आपकी बहुमूल्य राय का इंतजार रहेगा ।
 
रेटिंग: 8.5/10