30 मार्च 2022

विष मानव - अनिल मोहन


उपन्यास: विष मानव
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 304

                   विष मानव उपन्यास कवर
'विष मानव' चार उपन्यासों की श्रृंखला का चतुर्थ एवं अंतिम भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम तीन भागों 'देवदासी समीक्षा', 'इच्छाधारी समीक्षा' तथा 'नागराज की हत्या' की समीक्षा हमारे ब्लॉग पर पहले से ही उपलब्ध है। 

'नागराज की हत्या' उपन्यास के अंत में सांपनाथ की बस्ती के सभी राक्षस झोंपड़ी में त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव के ठहाके को सुनकर और उसके काले-नीले शरीर को देखकर स्तब्ध रह जाते हैं।

विष मानव' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
**"मुझे बताइए आपको क्या परेशानी है ?" गंगू साथ चलते-चलते बोला "मैं आपको परेशान नहीं देख सकता। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी चिंता को दूर कर सकूं।" 
"बहुत बुरा हुआ!" वायुलाल अपनी ही सोचों में बड़बड़ा उठा।
"क्या ?"**

उपन्यास 'विष मानव' का प्रथम दृश्य वायुलाल और गंगू के वार्तालाप से आरंभ होता है। इस दौरान वायुलाल गंगू से कहता है कि ऐसा कौन है जो उसके द्वारा सैकड़ों वर्षों में प्राप्त की गई शक्तियों से टकराने का साहस कर रहा है। वायुलाल अपनी शक्तियों से इस बारे में पता लगाने के लिए गंगू के साथ एक विशेष कमरे की तरफ बढ़ जाता है। 

 **वायुलाल और गंगू दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गए।
बाहर खड़े सेवकों ने वो दरवाजा पुनः बंद कर दिया।
वो बहुत बड़ा हॉल कमरा था जहां अजीबों तरह का सामान पड़ा नजर आ रहा था। दीवारों पर समझ में न आने वाले चित्र बने हुए था।**

उधर दक्षिण दिशा में काला द्वार के पास मोना चौधरी, जगमोहन और महाजन रात में बारी-बारी से पहरा दे रहे थे ताकि नागराज से किए वादे के अनुसार जैसे ही सुबह हो जाए, वो लोग तुरंत अपना काम पूरा कर सकें। काला द्वार से कुछ ही दूरी पर मौजूद जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी भी अपनी योजना बना रहे होते हैं ताकि वो भी बिना किसी अड़चन के अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। 

**..... जगमोहन बोला "चालाकी इस्तेमाल करनी है।" 
"क्या मतलब ?"
"मुझे बता जग्गू !" जलेबी कह उठी।
जगमोहन धीमे स्वर में उन्हें बताने लगा।**

इधर बांके और नगीना के साथ क्रोध से भरी रानी देवराज चौहान के पास पहुंचने की कोशिश कर रही होती है। वहीं अपने पति को खोने से आहत नागरानी बदला लेने के लिए आतुर हो उठती है और सांपनाथ की बस्ती की ओर चल पड़ती है। 

**चंद क्षणों में ही नागरानी अपने खूबसूरत मानवीय रूप में उनके सामने खड़ी थी। परंतु इस वक्त वो क्रोध की आग में तप रही थी। गुस्से से उसका चेहरा धधक रहा था। आंखें लाल हो रही थी। शरीर आवेश से कांप कहा था। **

घटनाक्रम कुछ इस प्रकार से आगे बढ़ता है कि देवराज चौहान, रुस्तम राव, रानी और बाकी साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच एक ऐसे जानलेवा टकराव की स्थिति बन आती है जिसका परिणाम किसी एक पक्ष की पराजय से ही निकलना संभव था। 

"मैं जानता हूं कि वायुलाल मेरे रास्ते में ढेर सारी परेशानियां खड़ी करेगा।" रुस्तम राव ने देवराज चौहान को देखकर सिर हिलाया - "इस काम में वो अकेला नहीं होगा। उसके साथ मोना चौधरी भी अवश्य होगी। परंतु मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं ये ....."

वायुलाल अपने विशेष कमरे में किन शक्तियों का आह्वान करने के लिए गया?
रुस्तम राव का शरीर काला-नीला कैसे हो गया? 
क्या सचमुच विश्व पुरुष "नागराज" की हत्या हुई थी? 
क्या मोना चौधरी देवराज चौहान से बदला ले सकी? 
क्या जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी की चालाकी काम आई? 
जब क्रोध से भरी रानी का सामना देवराज चौहान से हुआ तो क्या हुआ? 
क्या नागरानी अपना प्रतिशोध ले पाई? 
देवराज चौहान, रानी, रुस्तम राव और उसके साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच हुए  जानलेवा टकराव का क्या परिणाम हुआ? 
बलसारा और हंसनी ने क्या चालें चली? 
क्या इस टकराव का परिणाम इतना ही सीधा और सरल था जितना दिख रहा था या अंदर कुछ और रहस्य भी छुपा हुआ था? 
क्या था वायुलाल की शक्तियों का केंद्र? 
आखिर किस प्रकार खत्म हुआ देवराज चौहान और मोना चौधरी का इस बार का पूर्व जन्म का सफर? 
रानी और जलेबी का क्या हुआ? 
कौन था वो चांदी का बना एक फुट का रहस्यमयी बौना मानव? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!

अब पात्रों के बारे में बात की जाए तो इस उपन्यास में देवराज चौहान, जगमोहन, वायुलाल और रुस्तम राव बढ़िया लगे हैं। बलसारा, हंसनी, नजूमी, नागरानी, रहस्यमयी विश्व पुरुष नागराज, इच्छाधारी और रानी के पात्र भी अच्छे लगे। जहां इच्छाधारी, पारसनाथ और महाजन सही लगे, वहीं मोना चौधरी, बांकेलाल और नगीना सामान्य ही लगे। जलेबी और सोहनलाल ने कहानी में कुछ मजाक-मस्ती का दौर भी बनाए रखा है। कुछ नए सहायक पात्र जैसे रामभजन, जंगली सरदार भी इस उपन्यास में पढ़ने को मिलते हैं परंतु उनकी भूमिका नगण्य ही है।

उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन ठीक-ठाक है। इस उपन्यास में मुख्य पात्र के रूप में देवराज चौहान की तुलना में मोना चौधरी का किरदार उतना दमदार नहीं लगा जितना इस शृंखला के पहले के उपन्यासों में था। 
साथ ही कुछ संवाद इस उपन्यास में भी अनावश्यक रूप से लंबे एवं खिंचे हुए लगे - खासकर देवराज, उसके साथियों की जंगलियों से हुई भेंट वाले प्रसंग में ।

कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है और कहानी पाठकों को बांधे रखती है। उपन्यास का अंत रोमांचक और उत्सुकता से भरा है तथा श्रृंखला का समापन भी बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। 

अंत में ये जरूर कहना चाहूंगा कि चार उपन्यासों की ये संपूर्ण श्रृंखला एक बार अवश्य पढ़ें। यह उपन्यास श्रृंखला अनिल मोहन द्वारा रचित यादगार उपन्यासों में से एक है।

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं।क्या आपने भी इन चारो उपन्यासों की श्रृंखला को पढ़ा है। हमेशा की तरह हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

27 मार्च 2022

महाशक्ति - राजभारती

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं राज भारती जी के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "महाशक्ति" के बारे में !

 महाशक्ति नामक उपन्यास का विज्ञापन जिसके अनुसार ये शिवा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होना था।

उपरोक्त विज्ञापन के अनुसार राज भारती जी द्वारा रचित अग्निपुत्र श्रृंखला का सिल्वर जुबली महाविशेषांक "महाशक्ति" शिवा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होना था। परंतु जहां तक हमारी जानकारी है, राज भारती जी के अग्निपुत्र श्रृंखला के अधिकतर उपन्यास धीरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुए थे। कुछ उपन्यास मनोज पॉकेट बुक्स से भी प्रकाशित हुए थे जबकि शिवा पॉकेट बुक्स से उनका अग्निपुत्र श्रृंखला का एक भी उपन्यास प्रकाशित नहीं हुआ था।
और रही सिल्वर जुबली विशेषांक की बात! तो धीरज पॉकेट बुक्स से सिल्वर जुबली विशेषांक के तौर पर अग्निपुत्र श्रृंखला का "रक्त आहुति" नामक उपन्यास आया था।

अब ये पता लगाना काफी मुश्किल है कि सच में ऐसा कोई "महाशक्ति" नामक उपन्यास छपा था या नहीं! क्या ये विज्ञापन पूर्ण रूप से नकली अथवा भ्रामक था! 
क्योंकि अग्निपुत्र श्रृंखला के पूर्णतया सभी उपन्यास धीरज और मनोज पॉकेट बुक्स से ही प्रकाशित हुए थे।

सिल्वर जुबली विशेषांक रक्त आहुति उपन्यास का लेखकीय जिसके अंदर भी कही कोई चर्चा नहीं है महाशक्ति नाम से।

राजभारती जी ने "रक्त आहुति" के लेखकीय में भी इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया है कि अग्निपुत्र श्रृंखला का सिल्वर जुबली विशेषांक किसी और प्रकाशन संस्थान से छपना था या फिर इस उपन्यास का नाम बदला गया है।

अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।

22 मार्च 2022

नागराज की हत्या - अनिल मोहन


उपन्यास: नागराज की हत्या
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 303

'नागराज की हत्या' चार उपन्यासों की श्रृंखला का तृतीय भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम भाग 'देवदासी समीक्षा' तथा द्वितीय भाग 'इच्छाधारी समीक्षा' की समीक्षा हम पहले ही ब्लॉग पर शेयर कर चुके हैं। 

'इच्छाधारी' उपन्यास के अंत में देवराज चौहान, नगीना, रानी और बांकेलाल राठौर  सांपनाथ की बस्ती में पहुंच जाते है परंतु वहां उनकी भेंट सांपनाथ के स्थान पर तूतका से होती है। तूतका उन्हें बंदी बनाने की कोशिश करता है।

'नागराज की हत्या' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
** "इधरो तो अपणो जाणो की खैर न दिखो। देवराज चौहान को किधर से अम बचायो?" 
चंद कदमों के फासले पर थे राक्षस जाति के वे लोग। 
वहशी इरादे थे उनके। 
तूतका का आदेश मिल चुका था उन्हें। **

उपन्यास 'नागराज की हत्या' के प्रथम दृश्य में तूतका और उसके संगी राक्षस देवराज और उसके साथियों को मारने की कोशिश करते हैं परंतु रानी बीच में आ जाती है। तूतका से बात करने के बाद देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल सुनेरा की बस्ती में तूतका के साथ जाने की योजना बनाते हैं। 

** तूतका ने कहा - "आइए, उधर झोंपड़े में चलते हैं। वहीं बातें होंगी। शायद आप लोगों के लिए कहवे का इंतजाम हो जाए।"
देवराज चौहान, रानी, नगीना और बांकेलाल राठौर तूतका के पीछे चल पड़े। परंतु वे सतर्क थे कि... **

उधर नागलोक में विश्व पुरुष 'नागराज' अपनी पत्नी नागरानी से एक गंभीर वार्तालाप में व्यस्त होता है। वार्तालाप के दौरान नागरानी एक ऐसी समस्या बताती है जिसे सुनकर नागराज व्यथित हो जाता है और अपनी शक्तियों द्वारा इसका हल निकालने का प्रयत्न करता है। परंतु नागराज की शक्तियां इस समस्या का जो समाधान बताती है, वो समाधान नागराज को भी दुविधा में डाल देता है। 

** "तुम अपना दिल छोटा न करो नागरानी।"
"आप मुझे झूठा दिलासा दे रहे... ।"
"मैं कुछ भी झूठ नहीं कह रहा। जग से लड़ने की भावना  तुममें पैदा कर रहा... ।"
"मैं कायर नहीं हूं जो.. ।" **

वहीं वायुलाल के महल में मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन आपस में मंत्रणा करने के पश्चात अपनी यात्रा आरंभ कर चुके होते हैं। वे जंगल के रास्ते से अपनी यात्रा शुरू करते हैं ताकि सुनेरा की बस्ती का कठिन सफर शीघ्र ही तय किया जा सके तथा देवराज और उसके साथियों तक पहुंचा जा सके। 

** गरमी से बुरा हाल था। शाम तक ऐसा ही रहना था। 
वे तीनों आगे बढ़ रहे थे। 
पीछे न देख सके। 
पीछे शीशे के समान चमकता, पारदर्शी बवंडर दिखा, जो कि पंद्रह फीट के व्यास में... **

उपरोक्त स्थानों पर चल रही गतिविधियों के समानांतर ही अन्य स्थानों (सांपनाथ की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती के बाहर, वायुलाल के महल में, नागराज  की घाटी में) पर भी घटनाचक्र तेजी से चलता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में ये सब घटनाएं एक दूसरे से जुड़ जाती हैं और हालात इस तरह उलझ जाते हैं कि लगभग सबकी जान खतरे में पड़ जाती हैं।

देवराज, रानी और उनके साथी सुनेरा की बस्ती में क्यों जाना चाहते थे?
कौन था विश्व पुरुष नागराज और क्या था उसका रहस्य?
नागरानी ने ऐसी क्या बात बताई जिसने नागराज को चिंतित कर दिया? 
क्या था वो समाधान जिस कारण नागराज भी दुविधा में पड़ गया? 
क्या योजना बनाई नागराज ने? 
क्या मोना चौधरी और देवराज चौहान का आमना-सामना हुआ? 
सुनेरा ने अपनी ओर से सुरक्षा के क्या प्रबंध कर रखे थे? 
नजूमी कौन था और क्या महत्त्व था उसका? 
कौन थे बलसारा और हंसनी तथा क्या थी उनकी भूमिका?
इच्छाधारी ने इस बार क्या गुल खिलाए? 
सुनेरा की बस्ती में फंसे सांपनाथ का क्या हुआ? 
जलेबी, जगमोहन और गुलचन्द के सामने क्या-क्या खतरे आए? 
क्या वायुलाल अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाया?  
देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल को किन-किन खतरों से जूझना पड़ा इस बार? 
त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव का क्या हुआ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!

अब हम उपन्यास के पात्रों के बारे में बात करते हैं। मुख्य पात्रों और श्रृंखला के पिछले दोनों उपन्यासों में मौजूद अधिकांश सहायक पात्रों के अलावा आपको नजूमी, बलसारा, हंसनी, नगोरा, नागरानी जैसे नए सहायक पात्र पढ़ने को मिलेंगे। 
मुझे इस उपन्यास के सहायक पात्रों में सुनेरा, बलसारा और नागरानी अच्छे लगे। नागराज का किरदार सबसे अधिक प्रभावी लगा। जहां मुख्य पात्र देवराज चौहान, मोना चौधरी, वायुलाल और रानी अच्छे रहे, वहीं जगमोहन, गंगू और सोहनलाल भी पसंद आए। रुस्तम राव और इच्छाधारी के किरदार दिलचस्प रहे हैं। पारसनाथ, महाजन, नगीना और बांकेलाल की भूमिका इस उपन्यास में साधारण ही रही। सांपनाथ, नागनाथ, दुदका, तूतका इत्यादि पात्र अपनी-अपनी जगह ठीक लगे।

इस उपन्यास में आपको नागराज की वृहद शक्तियों का परिचय मिलेगा। सुनेरा और उसकी बस्ती के बारे में और अधिक जानकारी मिलेगी। मोना चौधरी, रानी, पेशीराम और वायुलाल की कुछ और शक्तियों के बारे में पता चलेगा। जलेबी और सोहनलाल का जगमोहन को खिजाना होठों पर स्वतः ही मुस्कान ला देता है। बीच में इच्छाधारी भी अपना जलवा बिखेरने में सफल रहा है। 

उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन सामान्य सा ही लगा। कुछ जगहों पर संवाद काफी लंबे लिखे गए है जिन्हे लेखक द्वारा आसानी से कम किया जा सकता था। इस कमी को हटा दें तो कुल मिलाकर उपन्यास बहुत अच्छा है और पूरी श्रृंखला को मनोरंजक बना देता है। उपन्यास का अंत रोमांचक बन पड़ा है और अनिल मोहन की लेखनी का असर पाठकों को अगला उपन्यास तुरंत पढ़ने के लिए उत्साहित कर देता है। 

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमेशा की तरह हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

19 मार्च 2022

सुलग उठा बारूद - अनिल मोहन

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज एक बार फिर आपके समक्ष हाजिर हूं एक और अप्रकाशित उपन्यास के साथ। 

आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं एक और अप्रकाशित उपन्यास "सुलग उठा बारूद" के बारे में जो कि अनिल मोहन का है !

             उपन्यास सुलग उठा बारूद का विज्ञापन 

उस गैलरी के आखिरी कोने में वॉल्ट के स्ट्रॉन्ग रूम का दरवाजा था और दरवाजे तक पहुंचने के बीस फीट लंबे रास्ते पर बारूद भी बिछा था, जिस पर पैर रखते ही शरीर लोथड़ों में बदल जाना था और बीस फीट लंबे सुलगते बारूद को पार किए बिना वॉल्ट के दरवाजे तक पहुंचना असंभव था जिसके पार करोड़ों अरबों की अथाह दौलत मौजूद थी। जबकि उस दौलत को पाने के लिए देवराज चौहान अपना कदम आगे बढ़ा चुका था। आज उसे गोल्ड वॉल्ट में डकैती डालनी ही थी... और

उपरोक्त विज्ञापन के अनुसार अनिल मोहन का देवराज चौहान श्रृंखला का ये उपन्यास एक जबरदस्त डकैती को अंजाम देने पर आधारित है। विज्ञापन का आधार डकैती में मुख्य रुकावट बनी हुई बारूद बिछी बीस फीट की गैलरी रखा गया है जिसे पार कर पाना आसान काम नही था। वहीं पर देवराज चौहान अपना मन इस वॉल्ट को लूटने का बना चुका था। 

इस उपन्यास का पूर्व भाग "पहरेदार उपन्यास समीक्षा" था जिसके बारे में हम अपने विचार आपसे पहले ही सांझा कर चुके हैं । 

अगर ये उपन्यास प्रकाशित हुआ होता तो देवराज चौहान द्वारा इस बीस फीट की गैलरी को पार कर पाना और फिर गोल्ड वॉल्ट में डकैती करना अपने-आप में बेहद मजेदार और रोचक होता। साथ ही इतना तो स्पष्ट ही है कि उपन्यास में बारूद बिछी गैलरी के अलावा कुछ और कड़े सुरक्षा इंतजाम भी किए ही गए होंगे जिनका विज्ञापन में सस्पेंस बनाए रखने के लिए कोई जिक्र नहीं किया है। 

हालांकि ये उपन्यास प्रकाशित नही हो पाया परंतु इसका क्या कारण रहा, इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं है।

उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी इस समय उपलब्ध नहीं है। 

अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।

14 मार्च 2022

तहकीकात पत्रिका - नीलम जासूस कार्यालय

पत्रिका: तहकीकात
श्रेणी: जासूसी तथा अपराध कथाएं
पेज संख्या: 150
मूल्य: 150 रुपए
प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय
प्रधान संपादक: सुबोध भारतीय
संपादक: राम पुजारी
                              तहकीकात पत्रिका

साथियों! बहुत वर्ष पूर्व जासूसी पत्रिकाएं बेहद प्रचलन में हुआ करती थी। लगभग सभी लेखकों की जासूसी कहानियां, अपराध कथाएं एवं उपन्यास इन पत्रिकाओं में छपा करते थे। पाठक भी इन पत्रिकाओं को खूब चाव से पढ़ा करते थे। एक ही पत्रिका में पाठकों को अलग-अलग कहानियों और उपन्यासों का आनंद मिल जाया करता था। समय बीतने के साथ ऐसी सभी पत्रिकाएं बंद हो गई। सिर्फ गिनी-चुनी अपराध कथाओं से जुड़ी पत्रिकाएं ही अपना वर्चस्व बचा पाईं हैं परंतु उनकी बिक्री भी क्रमशः घटती जा रही है।

आज इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी ही नई जासूसी पत्रिका 'तहकीकात' के बारे में जिसके प्रथम अंक (प्रवेशांक) को नीलम जासूस कार्यालय ने दिसंबर 2021 माह में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। संपादकीय परामर्शदाता के रूप में परशुराम शर्मा, वेद प्रकाश कांबोज, आबिद रिजवी, योगेश मित्तल और वीरेंद्र कुमार शर्मा जैसी अनुभवी हस्तियों ने पत्रिका में अपना योगदान दिया है।

चलिए, बात करें अब तहकीकात पत्रिका के प्रवेशांक तथा इसमें प्रस्तुत की गई लेखन सामग्री के बारे में! 
प्रवेशांक की शुरुआत सुबोध भारतीय ने "सुनहरे दौर की वापसी" नामक आलेख द्वारा की है। इसके पश्चात राम पुजारी का संपादकीय आता है। 
फिर आता है 'शुभकामना संदेश' जिसमे विभिन्न पाठकों और प्रख्यात उपन्यासकार अमित खान ने तहकीकात पत्रिका के लिए अपनी शुभकामनाएं दी हैं तथा इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। 
इसके बाद चार जासूसी-अपराध कथाएं पढ़ने को मिलती हैं:
1. चरित्रहीन (मौलिक कहानी अहमद यार खान द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
2. हत्यारा कौन (मौलिक कहानी मलिक सफदर हयात द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
3. शराबी कातिल (वेद प्रकाश कंबोज द्वारा रचित)
4. रहस्यमयी खबरी (अंग्रेजी कहानी 'ए बर्गलर्स घोस्ट' - विकास नैनवाल द्वारा हिंदी अनुवाद)
कहानियों के मध्य पुराने दिग्गज उपन्यासकार श्री वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास "चीते की आंख" की समीक्षा प्रकाशित की गई है जिसे गुरप्रीत सिंह (गुरप्रीत जी साहित्य देश, विवेकानंद पुस्तकालय बगीचा नामक दो ब्लॉग चलाते है तथा उन पर पुस्तको की समीक्षा उनके बारे में जानकारी लेखकों की जानकारी इत्यादि उपलब्ध करवाते है) ने लिखा है।

फिर आता है पत्रिका का अंतिम भाग "सत्यबोध परिशिष्ट"। परिशिष्ट में पहले लेखक रोशनलाल सुरीरवाला की लघु कहानी "चील कौवे" प्रस्तुत की गई है। 
फिर हस्तीमल हस्ती, बशीर बद्र और राजेश रेड्डी जैसे शायरों की गजलों को स्थान दिया गया हैंl। 
इसके बाद सुबोध भारतीय की कहानी "अहसान का कर्ज" आती है। 
तत्पश्चात गोविंद गुंजन का आलेख "किताबों के दिन" है जिसमे उन्होंने अपनी यादों और लोकप्रिय साहित्य की किताबों के महत्त्व के बारे में बताया है। 
फिर डा. राकेश कुमार सिंह और जितेंद्र नाथ ने पुराने हिंदी उपन्यासकार जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के दो उपन्यासों "सांझ का सूरज" और "रुक जाओ निशा" की समीक्षा प्रस्तुत की है।
पत्रिका का समापन हास्य रस से होता है। बीच-बीच में एक-दो जगहों पर व्यंग्य का पुट भी दिया गया है।

कुल मिलाकर पत्रिका मनोरंजक लगी। प्रवेशांक की दृष्टि से लेखन सामग्री में विविधता देखने को मिलती है। चार कहानियां पुरानी हैं पर रोचक हैं। वेद प्रकाश कांबोज की कहानी उनकी लेखनी की याद ताजा कर देती है। 
सत्यबोध परिशिष्ट भी बढ़िया बन पड़ा है। "चील कौवे" कहानी न सिर्फ मार्मिक है बल्कि आज भी प्रासंगिक है। 'अहसान का कर्ज़' कहानी भी अच्छी लगी।

आज के इंटरनेट के युग में भी नीलम जासूस कार्यालय ने एक नई जासूसी पत्रिका को प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। नीलम जासूस कार्यालय का यह कदम सराहना योग्य है। फिलहाल नीलम जासूस कार्यालय की योजना इसे द्विमासिक पत्रिका के तौर पर प्रकाशित करने की है। 

यहां पर मैं दो बातें बताना चाहूंगा जो पत्रिका में ठीक की जाएं तो पत्रिका और भी बेहतर हो जायेगी। 
पहली बात - पत्रिका का मूल्य 150 रुपए मुझे अधिक लगा। पत्रिका में विज्ञापनों को प्रकाशित कर और पाठकों का आधार बढ़ाकर आगामी अंकों के मूल्य को कम किया जा सकता है। इससे आर्थिक लाभ में भी बढ़ोतरी होगी।
दूसरी बात - प्रवेशांक के कागज की गुणवत्ता साधारण ही लगी। आम पत्रिका में मुख्यत जो पेज होते हैं उसकी तरह पेज नही है जिसके कारण मुझे लगता है पत्रिका का मूल्य ज्यादा लगा। आगामी अंकों में गुणवत्ता को और अच्छा किया जाना चाहिए। 

उम्मीद हैं कि तहकीकात पत्रिका के आगामी अंक और भी मनोरंजक होंगे। हमारी कामना है कि पत्रिका को पाठकों का भरपूर प्यार मिले और पत्रिका भविष्य में भरपूर सफलता प्राप्त करे। हमारी शुभकामनाएं नीलम जासूस कार्यालय के साथ हैं।

अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 7.5/10

08 मार्च 2022

इच्छाधारी - अनिल मोहन

उपन्यास: इच्छाधारी
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 304

इच्छाधारी - देवराज चौहान और मोना चौधरी का पूर्व जन्म में खतरनाक हादसों का सफर!!

'इच्छाधारी' चार उपन्यासों की श्रृंखला का द्वितीय भाग है। इस श्रृंखला का प्रथम भाग 'देवदासी' है जिसकी समीक्षा हम कुछ समय पूर्व ब्लॉग पर शेयर कर चुके हैं। 

'देवदासी' उपन्यास में पेशीराम की भविष्यवाणी के अनुसार देवराज चौहान, मोना चौधरी और उनके साथी एक बार फिर पूर्व जन्म में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने-अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना करते हैं। मुख्यतः विष्णु सहाय नामक व्यक्ति इन सबके पूर्व जन्म में प्रवेश का माध्यम बनता है।

'इच्छाधारी' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
** "ये बाग, ये नजारा सब कुछ उसी की विद्या के तिलिस्म की देन है। यहां कई जगह उसने अपनी पसंद के खतरे तैयार कर रखे हैं जो कि देखने में, समझ में नहीं आएंगे। उन खतरों में फंस जाने के बाद वहां से बच पाना आसान नहीं। अनजान आदमी को जान से हाथ धोना पड़ता है।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें बाग में दूर-दूर तक गईं। 
"यहां नजर आने वाले वृक्षों पर लटकते फल खाने वाला बच नहीं सकता" **

'देवदासी' उपन्यास के अंत से कहानी को आगे बढ़ाते हुए 'इच्छाधारी' उपन्यास का आरंभ होता है उस दृश्य से, जहां देवराज (पूर्व जन्म में देवा) और सवा सौ वर्ष बाद मंत्र कीलित कैद से आजाद हुई देवदासी रानी अपने पूर्व जन्म की यादों में चले जाते हैं। जगमोहन (पूर्व जन्म में जग्गू) को भी सब याद आ जाता है। तभी वायुलाल की आवाज वहां गूंजती है जो रानी के आजाद होने से बहुत गुस्से में है तथा देवा, रानी और जग्गू को उनके बुरे अंजाम की चेतावनी देता है। देवा और रानी वायुलाल की आवाज को उसकी चेतावनी का जवाब देते हैं और फिर रानी के कहे अनुसार सांपनाथ की बस्ती का रास्ता ढूंढने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। 

** "..... पता कर लूंगी मैं जल्दी ही। हमें यहां से सांपनाथ की बस्ती की तरफ चल देना चाहिए। अब हमारा एक-एक पल कीमती है।"
"चलेंगे कैसे?" 
जवाब में रानी की निगाह बाग में घूमने लगी। इस वक्त उसके चेहरे के भाव बदल गए थे। सतर्कता में लग रही थी वो कि तभी..... **

दूसरी तरफ एक अंधे कुएं में नगीना (पूर्व जन्म में बेला), रुस्तम राव (पूर्व जन्म में त्रिवेणी) और बांकेलाल राठौर को होश आता है जहां वो इच्छाधारी की करामात से आ पहुंचे थे। अचानक उन्हें समय नामक एक लड़के की आवाज आती है जो उन्हें अंधे कुएं से बाहर निकालता है। बाहर निकल कर तीनों को पता चलता है कि वो लोग एक वीरान से गांव में हैं जहां सिर्फ समय ही एक आखिरी मनुष्य बचा है और गांव के बाकी सब लोगों को राक्षस खा चुके हैं। जल्दी ही राक्षस समय को खाने के लिए भी आने वाला था। नगीना, रुस्तम और बांकेलाल डरे हुए समय को मदद का आश्वासन देते हैं। शीघ्र ही राक्षस समय को खाने के लिए आ पहुंचता है। समय जाकर झोंपड़ी में छुप जाता है जबकि नगीना, रुस्तम और बांकेलाल राक्षस का सामना करते हैं। परंतु उनके इस युद्ध का ऐसा दिल दहला देने वाला परिणाम निकलता है जिसकी कोई सपने में भी उम्मीद नहीं कर सकता था।

** उधर रुस्तम राव आहिस्ता से पेड़ से उतरा और तलवार संभाले शिकारी चीते की तरह उसे देखता दबे पांव उसकी तरफ बढ़ने लगा। कमर में उसने कटार फंसा रखी थी।
वो राक्षस बार बार चीखकर समय को सामने आने को कह रहा था। 
बांकेलाल राठौर और नगीना अपनी-अपनी जगहों पर छिपे राक्षस की हरकतों को पहचानने की चेष्टा कर रहे थे। **

तीसरी तरफ एक अन्य स्थान पर वायुलाल का पुराना सेवक गंगू अपनी नौका में मोना चौधरी (पूर्व जन्म में मिन्नो), पारसनाथ और महाजन (पूर्व जन्म में नीलसिंह) को नदी पार करवा रहा होता है। सोहनलाल (पूर्व जन्म में गुलचंद) भी इनके संग होता है। नौका के नदी किनारे पहुंचते ही वायुलाल मोना चौधरी और उसके साथियों से मिलता है। वायुलाल पहले उन्हें पूर्व जन्म की घटनाएं और ताजा हालात के बारे में बताता है तथा फिर उन सबको अपने महल में ले जाने का प्रस्ताव देता है। 

** कश्ती के बीचों-बीच लकड़ी का खिड़कियों वाला कमरा था जिसके भीतर मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन मौजूद थे। कश्ती उन सीढ़ियों के पास पहुंच चुकी थी। 
मिन्नो दुबारा जन्म लेकर, वायुलाल के पास सवा सौ बरस बाद पुनः आ पहुंची थी। **

देवराज चौहान पर वायुलाल के क्रोध की क्या वजह थी? 
क्या थी देवदासी रानी की पूर्व जन्म की कहानी? 
सांपनाथ कौन था और क्या उद्देश्य था उसका? 
देवराज, रानी और जगमोहन आखिर किस प्रयोजन से सांपनाथ की बस्ती की ओर बढ़ रहे थे? 
समय कौन था और वो राक्षस उसके पीछे क्यों पड़ा हुआ था? 
नगीना, रुस्तम, बांकेलाल तथा राक्षस के मध्य हुए युद्ध का ऐसा क्या दिल दहला देने वाला परिणाम निकला जिसने पूरे घटनाचक्र की दिशा ही बदल कर रख दी? 
वायुलाल मोना चौधरी और उसके साथियों को अपने महल में क्यों ले जाना चाहता था? 
आखिर इच्छाधारी का प्रयोजन क्या था? 
सांपनाथ किस तरह की दुविधा में फंस गया था? 
देवता मोमबांबा कौन था और क्या थी उसकी भूमिका? 
नागनाथ कौन था और क्या करने की फिराक में था? 
क्या देवराज, रानी, जगमोहन की मुलाकात नगीना, रुस्तम और बांकेलाल से हो सकी? 
देवराज, रानी और जगमोहन क्या सांपनाथ की बस्ती तक पहुंच सके? 
सुनेरा कौन था और ऐसी क्या विशिष्ट वस्तु रखी हुई थी उसके पास? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास में मिलेंगे!

पात्रों के बारे में बात की जाए तो पिछले उपन्यास के अधिकांश पात्रों के अलावा इस उपन्यास में आपको हुगली, मुंगेरा, सांपनाथ, दुदका, सुमित्रा, कुड़की, हुंडी, मुद्रानाथ, तूतका, छिंदड़ा, देवता मोमबांबा, सुनेरा, नागनाथ की उपस्थिति मिलेगी। 
उपन्यास के नए पात्रों में मुझे सांपनाथ, दुदका, कुड़की और हुंडी अच्छे लगे। देवता मोमबांबा थोड़े रहस्यमयी प्रतीत हुए। रानी का पूर्व जन्म का प्रसंग, बांकेलाल और रुस्तम का राक्षस से खतरनाक युद्ध, वायुलाल की विद्या, सांपनाथ का जानलेवा संघर्ष - ये सब पढ़ने में आनंद आया। जलेबी एक बार फिर इस उपन्यास में आपको नजर आएगी।

मेरे विचार से उपन्यास तेज रफ्तार, दिलचस्प और पठनीय है। उपन्यास में पात्रों की भूमिका तथा उनके संवादों के साथ-साथ माया, जादू और तिलिस्म का भरपूर उपयोग किया गया है जो पाठकों को बांधे रखता है। जिस प्रकार से कहानी में रहस्यों को परत-दर-परत पिरोया गया है और फिर एक-एक कर रहस्यों की परतें खुलती जाती हैं, यह बहुत मनोरंजक लगा। कहानी किस समय पर क्या मोड़ ले लेगी, इसका अनुमान लगा पाना भी काफी कठिन हो जाता है।

निःसंदेह कुछ रहस्य तो श्रृंखला के अगले उपन्यास "नागराज की हत्या" में ही खुलेंगे, वहीं आने वाले कुछ और रहस्य आगे की कहानी में रोचकता भी पैदा करेंगे! 

उपन्यास पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा कि उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर) कहानी के अनुसार डिजाइन नही किया गया है । 
मुझे इस उपन्यास की कहानी में दो कमियां लगीं:
प्रथम कमी - मुख्य पात्र देवराज चौहान और मोना चौधरी इस उपन्यास में अधिक एक्शन में नजर नहीं आते हैं। इस उपन्यास में दोनों अपने साथियों से ज्यादातर सिर्फ बातचीत ही करते रहते हैं। देवराज चौहान और मोना चौधरी को अक्सर एक्शन में देखने की उम्मीद रखने वाले पाठक यहां थोड़े निराश हो सकते हैं।
द्वितीय कमी - पारसनाथ, महाजन और मोना चौधरी बार-बार वायुलाल से एक ही तरह की बातें दोहराते रहते हैं जो कि थोड़ा उबाऊ लगा।

अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

02 मार्च 2022

देवदासी - अनिल मोहन

उपन्यास: देवदासी
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 272
कदम कदम पर मौत से भरी दीवानगी! हर कोई सामने वाले का गला काटकर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधना चाहता था!

'देवदासी' चार उपन्यासों की श्रृंखला का प्रथम भाग है। इस उपन्यास से एक बार फिर देवराज चौहान और मोना चौधरी का पूर्व जन्म का सफर आरंभ हो रहा है जहां कदम-कदम पर नए जानलेवा हादसे उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

उपन्यास के मध्य से लिया गया एक अंश: 
** कोई और होता तो मन ही मन हिल जाता रात का ऐसा माहौल देखकर। 
देवराज चौहान की गंभीर निगाह हर तरफ जा रही थी। 
"कैसा लग रहा है देवा?" अब वो आवाज फुसफुसाहट की अपेक्षा स्पष्ट कानों में पड़ी। 
देवराज चौहान ने आवाज की दिशा की तरफ देखा तो कोई न दिखा। 
"तुम.. तुम यहां मुझे अपना रूप दिखाने...." **


उपन्यास के आरंभिक दृश्य में अचानक पेशीराम उर्फ फकीर बाबा की आवाज सुनकर कार चला रहा देवराज चौहान चौंक जाता है। पेशीराम उसे आने वाले खतरे की सूचना देकर अदृश्य हो जाता है। 

** "वक्त कम है देवा। सारे ग्रह केंद्रबिंदु पर पहुंचने शुरू हो चुके हैं। वो कभी भी अपना असर...।" 
"मैं जहां जा रहा हूं, वहां मेरा पहुंचना बहुत जरूरी...!"
"जिद ना कर देवा। तेरे को...!"
"अगर कोई और बात होती तो मैं एक दिन क्या, तेरे कहने पर दस दिन बंगले में बैठ जाता। लेकिन..." **

तभी देवराज की कार रास्ते में खराब हो जाती है। देवराज कार के इंजन की जांच में लग जाता है। उसी समय एक ट्रक बहुत तेज गति से देवराज की ओर आता है। विष्णु सहाय नाम का एक आदमी सही समय पर आकर देवराज को धक्का देकर ट्रक के रास्ते से हटा देता है। देवराज तो बच जाता है परंतु उसकी कार क्षतिग्रस्त हो जाती है। देवराज सहाय का आभार प्रकट करता है। सहाय उसे अपनी कार में साथ चलने का प्रस्ताव देता है जिसे देवराज मान लेता है। बातचीत के दौरान सहाय अपनी एक समस्या देवराज को बताता है कि उसकी गांव में पड़ी जमीन को कोई भी ठेकेदार समतल नही कर पा रहा। सहाय देवराज से पूछता है कि क्या वो उसकी कोई सहायता कर सकता है! देवराज फोन करने की बात कहकर कार से उतर जाता है। 

** "चलता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने दरवाजा खोला। 
"मतलब कि तुम इस मामले में मेरी कोई सहायता नहीं कर सकते?" विष्णु सहाय ने एकाएक कहा। 
"कल फोन करके बताऊंगा।" **

घर पहुंचने पर देवराज जगमोहन से विष्णु सहाय और पेशीराम की चेतावनी के बारे में विचार-विमर्श करता है। दूसरी तरफ बांकेलाल राठौर और रुस्तम को रास्ते में एक घायल सब-इंस्पेक्टर महेशपाल मिलता है। महेशपाल उन दोनों से अपनी जान बचाने की विनती करता है क्योंकि उसके पीछे कुछ गुंडे लगे होते है। बांके और रुस्तम पहले तो साफ मना कर देते हैं, फिर गुंडों को देखने के बाद महेशपाल को अपने साथ ले लेते हैं ताकि उसे कुछ समय के लिए एक सुरक्षित ठिकाना दे सकें। 

** वो तीनों जैसे गुस्से से भरे, किसी को ढूंढ रहे थे। 
"लफड़ा होएला बाप!" 
बांकेलाल राठौर ने सीट पर पड़े पुलिस वाले को देखा। 
"भयो खाकी वर्दी!" बांकेलाल राठौर ने... **

इधर एक अन्य समानांतर दृश्य में बाजार में एक चोर मोना चौधरी का पर्स छीनकर भाग जाता है। मोना उसका पीछा करती है। रास्ते में एक हवलदार वीरेंद्र चोर को पकड़ लेता है। मोना अपना पर्स वापस मांगती है पर उसकी वीरेंद्र से बहस हो जाती है और वीरेंद्र उन दोनों को पुलिस स्टेशन ले जाता है। वहां इंस्पेक्टर लोकनाथ मोना को पहचान लेता है और एक प्रस्ताव देता है कि वो मोना को जाने देगा अगर मोना उसकी एक समस्या हल कर दे। मोना किसी तरह वहां से निकल आती है। 

** "जाओ।" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में कहा - "मैं तुम्हे रोकूंगा नही।" 
मोना चौधरी ने दरवाजे की तरफ हाथ बढ़ाया कि लोकनाथ कह उठा।
"इंस्पेक्टर लोकनाथ कहते है मुझे। मन करे तो फोन कर देना।..." **

सब घटनाओं के तार कुछ इस प्रकार से आपस में जुड़ते हैं कि देवराज, जगमोहन, बांके, रुस्तम, सोहनलाल, नगीना और मोना, पारसनाथ, महाजन एक-दूसरे के सामने आ जाते हैं और घटनाओं के चक्र में बुरी तरह उलझ जाते हैं। सब उसी रास्ते पर आगे बढ़ते चले जाते हैं जो उनके पूर्व जन्म की ओर जाता है।

विष्णु सहाय की गांव में खरीदी हुई जमीन समतल क्यों नही हो पा रही थी? 
क्या देवराज चौहान ने विष्णु सहाय की मदद की? 
इस बार देवराज, मोना और इनके साथियों के रास्ते एक कैसे हुए? 
कहां से आई प्रेमा और उसने क्या हरकतें की? 
पूर्व जन्म का रास्ता कैसे खुला और किसने खोला? 
कौन थी रानी और क्या इच्छा थी उसकी? 
वायुलाल कौन था और क्या उद्देश्य था उसका? 
जलेबी की क्या भूमिका थी और वो क्या चक्कर चला रही थी? 
सत्तू कौन था, कहां से आया और क्या चाहता था? 
इस बार पूर्व जन्म में देवराज और मोना का टकराव किस तरह के खतरों से होने वाला था? 
किस प्रकार देवराज, मोना और इनके साथी पूर्व जन्म में आने वाले खतरों का सामना कर सके? 
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा!

चलिए, अब कहानी की बात की जाए! उपन्यास में पूर्व जन्म की कहानी की शुरुआत बढ़िया हुई है। कहानी घुमावदार होने के साथ-साथ तेज रफ्तार भी है। पूर्व जन्म के खतरों और रहस्यों के बारे में पढ़ना रोचक रहा। देवदासी उपन्यास का अंत अगले भाग "इच्छाधारी" को पढ़ने के प्रति एक उत्सुकता सी जगाता है।
इस उपन्यास में आपको दोनों मुख्य पात्रों देवराज चौहान, मोना चौधरी के अतिरिक्त जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना, पारसनाथ, महाजन, विष्णु सहाय, जमींदार, सत्तू, प्रेमा, रानी, जलेबी, वायुलाल इत्यादि पात्र भी पढ़ने को मिलेंगे। 
देवराज और जगमोहन ने कहानी में बेहतरीन मनोरंजन किया है। मोना चौधरी अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखी। उपन्यास में अधिकतर पात्रों के संवाद और उनकी भूमिका अच्छी बन पड़ी है खासकर बांकेलाल राठौर के संवाद, नगीना की एंट्री, रानी की बातें, सत्तू के तेवर और जलेबी का चक्कर। 

मुझे कहानी में एक कमी ये महसूस हुई कि लेखक ने देवराज और मोना को एक साथ पूर्वजन्म के रास्ते पर लाने के लिए जिस तरह से घटनाओं का आपस में तालमेल बिठाया, वो कुछ कमजोर लगा। 

उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर पेज) सामान्य ही लगा। उपन्यास में शाब्दिक गलतियां काफी कम हैं जिस कारण उपन्यास पढ़ते समय और भी अच्छा महसूस होता है। 

मेरे अनुसार अनिल मोहन के प्रशंसकों के लिए तो ये उपन्यास पठनीय है ही। अगर माया, जादू और तिलिस्म में रुचि है तो अन्य पाठक भी इस उपन्यास को पढ़कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

हमें अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा अवश्य अवगत करवाएं। आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10