26 अगस्त 2022

मेजर बलवंत हिंदी उपन्यासकार

मेजर बलवंत हिंदी उपन्यास साहित्य में कर्नल रंजीत नामक ट्रेड नेम लेखक का एक पात्र था। कर्नल रंजीत के इसी पात्र की लोकप्रियता को देखते हुए किसी ने इसी नाम का लेखक खड़ा कर दिया और अलग अलग लेखकों ने मेजर बलवंत नाम से उपन्यास लिखे। मेजर बलवंत के नाम से किस किस लेखक ने लिखा है और वो कौन थे इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

उपन्यासकार मेजर बलवंत के उपन्यास सूची:-
1. समुद्र का हत्यारा
2. फ्लैट नंबर 102
3. मौत की शाम
4. एजेंट जीरो
5. होटल गोल्डन स्टार
6. खूनी नक्शा
7. ब्ल्यू हैवन क्लब
8. इन्टरनेशनल षड्यंत्र
9. मौत की शतरंज
10. लावारिश लाश
11. ब्लैकमेलर की हत्या
12. जहरीले इंसान
13. जुङवा लाशें
14. आखिरी डकैती
15. ब्लैक बाॅस
16. फ्लैट में लाश
17. खूनी बंगला
18. निर्दोष अपराधी
19. कत्ल की रात
20. अपराधी की मौत
21. रिपोर्टर की हत्या
22. कैदी नंबर 314
23. खूनी रिश्ते
24. लाश का प्रतिशोध
25. मौत का सिलसिला
26 जल्लाद
27 बैंक रॉबरी
28 रिसीवर
29 इंटरनेशनल मिशन
30 खूनी चक्रव्यूह
31 फोटो का कत्ल
32 मूर्तियों की मौत
33 गुनाह का लावा
34 आग ही आग
35 कातिल फरिश्ता
36 नर्क का राजा 
37 दौलत की लंका
38 मैं इंतकाम लूंगा
39 षडयंत्र
40 कार में लाश
41 मौत ही मौत
42 टेलीफोन जासूस
43 मर्डर रिपोर्ट
44 साढ़े तीन मिनट
45 देवी दीदी
46 इकबाल-ए- जुर्म
47 मौत का व्यापार
48 थाने में डकैती
49 गोली और चीख
50 मजबूर कातिल
51 पाप का चक्रव्यूह

उपरोक्त जानकारी के अलावा किसी पाठक मित्र के पास कोई जानकारी हो तो कॉमेंट के जरिए हमारे साथ सांझा जरूर करे।।

15 अगस्त 2022

एम० एल० पाण्डेय हिंदी उपन्यासकार

हिंदी उपन्यास साहित्य में बाबू देवकीनंदन खत्री के बाद जिन लेखकों का नाम आता है उनमें अकरम इलाहबादी, इजहार असगर, आदिल रशीद,इब्ने शफी आदि का नाम आता है। इन्ही उपन्यासकारों में एक उपन्यासकार है श्री एम० एल० पाण्डेय...

एम० एल० पाण्डेय जी कौन थे कहा से थे इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है परंतु इनके उपन्यास तिलिस्मी जासूस कार्यालय न० १, कोफ्ता गिरा, इलाहाबाद ३ से मुख्य रूप से प्रकाशित होते रहे हैं। इसके अलावा मधुप जासूस नामक पत्रिका में भी इनकी रचनाएं प्रकाशित हुई है।
श्री एम० एल० पाण्डेय जी की उपन्यास सूची :-
१ रेतीला खज़ाना
२ काला नकाब पोश
३ हीरो की चोरी
४ इंसानी कुर्बानी
५ नाना पुत्र (सम्पूर्ण)
६ खूनी राजकुमारी
७ नीली छतरी (सम्पूर्ण)
८ सुबह का तारा
९ कैद न० ५५ (सम्पूर्ण)
१० मृत्युवाहक आँख
११ जयंत की फांसी
१२ प्रेतों का डेरा
१३ जादुई तलवार
१४ दो मुंहा शत्रु
१५ बर्मी गुंडे
१६ कैदी राजकुमार
१७ खजाने की खोज
१८ कबूतरी
१९ मांतेजुमा की बेटी
२० जाम्बासुर का नाती 
२१ तिलिस्म में हलचल
२२ भयानक चीख
२३ नारी की हत्या
२४ कुचली खोपड़ी
२५ तिलिस्मी दीवार
२६ तीन खून (सम्पूर्ण)
२७ काला मोती
२८ सात की गिनती
२९ फरार कैदी
३० सातवीं रात
३१ रत्नमय कुंए की लूट
३२ स्वर्ग लोक के हत्यारे
३३ बोलता हुआ मुर्दा
३४ तिलिस्मी लड़ाइयां
३५ सरकारी मेल की लूट
३६ दूसरा शिकार (सम्पूर्ण)
३७ फुयांचू के कारनामे
३८ ऐय्यारो का जाल
३९ जम्बासुरी चादर
४० पीताम्बर की प्रेमिका
४१ तिलिस्मी वन
४२ आनंदसिंह की रिहाई
४३ खूनी अदा
४४ निर्दोष अपराधिनी
४५ तूफान
४६ घातक संजीवनी
४७ बदमाशों का चक्कर
४८ शाही अंगूठी
४९ अजय का साहस
५० फुमांचू की वापसी
५१ हारी रोशनी
५२ पन्ता प्रेयसी
५३ भीरू भील (सम्पूर्ण)
५४ यूनानी गुंडा
५५ मृत्यु गुफ़ा
५६ मार्गिक भेड़िया
५७ चार चांडाल
५८ जिब्राल्टर का खूनी
५९ चित्रकार की लड़ाई
६० नजर की चोट
६१ सी-सूं की जागीर
६२ चार लाश
६३ हत्यारा
६४ खूनी हींग
६५ फुमांचु का प्रतिशोध
६६ दुष्ट फुमांचू
६७ जादुई दर्पण
६८ सुधा (सम्पूर्ण)
६९ दुष्टा का चंगुल
७० खूनी षडयंत्र
७१ मृत्यु संघर्ष
७२ दंतिले सर्पों वाला दल
७३ अदभुत मनुष्य
७५ अंतिम बलिदान

किसी भी पाठक मित्र के पास कोई जानकारी हो तो वो कॉमेंट के जरिए हमारे साथ सांझा करे...

03 अगस्त 2022

अनिल मोहन (प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार)

अनिल मोहन - हिंदी उपन्यास जगत में एक ऐसा नाम जिसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। 
                   अनिल मोहन जी

अनिल मोहन हिंदी उपन्यास जगत (लुगदी साहित्य) में एक बेहद प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। जासूसी, थ्रिलर एवं फैंटेसी पर आधारित उपन्यास लिखना इनकी विशेषता है। इनका पूरा नाम अनिल मोहन भारद्वाज है और ये दिल्ली में विकासपुरी क्षेत्र के निवासी हैं। 

हिंदी उपन्यास जगत में एक समय ऐसा भी था जब सिर्फ सुरेंदर मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा और अनिल मोहन की तिकड़ी ही मुख्यतः छाई हुई थी। उस समय मार्केट में बिकने वाले हिंदी उपन्यासों में अधिकांश उपन्यास इन तीनों के ही होते थे। उस दौरान अनिल मोहन के किसी भी उपन्यास की छपते ही 50,000 प्रतियां बिक जाती थीं। 

अनिल मोहन जी को लिखने का शगल तो शुरू से ही था परंतु कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते- होते उनका ये शगल उन्हें हिंदी उपन्यास लेखन के क्षेत्र में खींच लाया। परंतु उस समय किसी भी नए लेखक के लिए शुरुआत में ही स्वयं के नाम से उपन्यास प्रकाशित करवा पाना बहुत कठिन होता था। प्रकाशक पहले नए लेखक को प्रेत लेखन में अवसर देकर परखता था। फिर अगर लेखक की लेखनी में दम हो, उसकी किस्मत अच्छी हो और प्रकाशक भी बढ़िया हो तो कुछ वर्षों में लेखक का स्वंय के नाम से उपन्यास प्रकाशित हो जाता था। बहुत से लेखकों का तो अपना उपन्यास प्रकाशित करवाने का सपना अधूरा ही रह गया था।

हमारे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार अनिल जी ने भी अपने लेखन कैरियर के प्रथम 11 से 12 वर्षों तक प्रेत लेखन ही किया था और सिर्फ प्रेत लेखक के रूप में ही उन्होंने लगभग 300 से अधिक उपन्यास लिखे थे। उन्होंने अपना पहला उपन्यास इब्ने कफ़ी के नाम से लिखा, प्रेत लेखक के रूप में उन्होंने विभिन्न प्रकाशकों के लिए काम किया और कई ट्रेड नाम वाले लेखकों के नाम से प्रेत लेखन किया जैसे कि  नागपाल, राजवंश, मेजर बलवंत, मीनाक्षी माथुर कर्नल रंजीत इत्यादि। 

आखिरकार 1988 में वो समय भी आया जब अनिल जी का प्रथम उपन्यास "सबसे बड़ा हत्यारा" उनके नाम से प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास जब मार्केट में आया तो पाठकों ने इसे पसंद किया। इसके बाद अपने हर उपन्यास के प्रकाशन के साथ अनिल जी पाठकों के दिल में अपनी जगह बनाते गए और सफलता की सीढियां चढ़ते चले गए। अनिल जी के स्वयं के नाम से अब तक 250 से भी अधिक उपन्यास विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किये जा चुके हैं। इनके काफी उपन्यास रीप्रिंट हो चुके हैं तथा इन्होंने कई उपन्यास अमेजन की वेबसाइट पर किंडल एडिशन में भी रिलीज किए हैं। कुछ प्रकाशकों ने इनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए इनकी अनुमति के बिना इनके कुछ उपन्यासों के रीप्रिंट तथा ऑडियोबुक्स रिलीज करने की कोशिश भी की थी जिसे अनिल मोहन ने कानूनी कार्रवाई के माध्यम से रुकवा दिया था।

अनिल मोहन के पसंदीदा लेखक अंग्रेजी उपन्यासकार जेम्स हेडली चेस हैं। अनिल जी एक वर्ष में 9 से 10 उपन्यास तक लिख देते थे। काफी वर्षों तक उन्होंने उपन्यास लिखने की ऐसी गति बरकरार रखी जिस कारण उनके द्वारा लिखे उपन्यासों की संख्या अधिक है। 

विभिन्न पाठकों के साथ अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स (व्हाट्सएप, टेलीग्राम, फोन, मुलाकात इत्यादि) पर हुए वार्तालाप के दौरान हमने ये पाया कि कई पुराने पाठकों के अनुसार अनिल मोहन ने प्रेत लेखन सहित कुल मिलाकर लगभग 700 से ज्यादा उपन्यास लिखे हैं। हमारे लिए इस आंकड़े की पुष्टि करना कठिन है क्योंकि उस जमाने में हिंदी उपन्यासों का रिकॉर्ड अधिक गंभीरता से सहेजकर नही रखा जाता था। स्वयं अनिल जी के लिए भी उनके द्वारा लिखे गए उपन्यासों के नाम तथा उनकी संख्या की सही पुष्टि कर पाना कठिन होगा।

अनिल मोहन द्वारा रचे गए मुख्य पात्रों की लिस्ट में देवराज चौहान, मोना चौधरी, अर्जुन भारद्वाज, आर. डी. एक्स. (राघव धर्मा एक्स्ट्रा की तिकड़ी), विजय बेदी और जुगल किशोर के नाम उपस्थित हैं। साथ ही यादगार सहायक पात्रों की लिस्ट में सोहनलाल, जगमोहन, पारसनाथ, महाजन, महादेव, वानखेड़े, नगीना, गजाला, फकीर पेशीराम जैसे नाम शामिल हैं। 

अगर उपन्यास श्रृंखलाओं की बात करें तो अनिल मोहन ने देवराज चौहान, मोना चौधरी, अर्जुन भारद्वाज, आर डी एक्स, जुगल किशोर तथा विजय बेदी सीरीज के उपन्यास लिखे हैं। ये सब उपन्यास मुख्यत: जासूसी, थ्रिलर और फैंटेसी श्रेणी के हैं। इनमें से देवराज चौहान तथा मोना चौधरी सीरीज के उपन्यास पाठकों में सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं। अनिल जी ने सबसे अधिक उपन्यास देवराज चौहान श्रृंखला में लिखे हैं जो कि इनकी सबसे सफल श्रृंखला है। उपरोक्त लिखित उपन्यास श्रृंखलाओं के अलावा अनिल मोहन ने बिना किसी श्रृंखला वाले थ्रिलर उपन्यास भी लिखे हैं।

आपको अनिल मोहन द्वारा रचित काफी सारे उपन्यास ऐसे मिलेंगे जो पार्ट्स में लिखे गए हैं। एक ही कहानी 2, 3 या उससे भी ज्यादा उपन्यासों में जाकर पूरी होती है। उनकी ऐसी कई कहानियां अभी तक पूरी नहीं हो पाई क्योंकि बचे हुए पार्ट्स वाले उपन्यास या तो प्रकाशित नहीं हुए या फिर अनिल जी कहानी के बचे हुए पार्ट्स लिख ही नहीं पाए। इसका कारण चाहे जो भी रहा हो, अधूरी बची कहानियों को पूर्ण करने की उम्मीद आज भी कई पाठक अनिल मोहन से लगाए बैठे हैं।

पात्रों के अनुसार अनिल मोहन जी के उपन्यासों की लिस्ट निम्नलिखित हैं:

महादेव :-
घर का शेर
मोहरा
दौलत के खिलाड़ी
फायर
जहाज नंबर 302
लूटमार
दूसरा चेहरा
फिरौती

 वानखेडे:-
दिन दहाड़े लूट
जान के दुश्मन
खूंखार
जांबाज
डकैती
टक्कर
विधि का विधान
दौलत का ताज
आतंक का पहाड़
एक रुपये की डकैती
301 करोड़ की चाबी
डकैती के बाद
गिरोहबाज
पहरेदार
जालिम
विस्फोट
अंडरग्राउंड
हथियार
एक डकैती ऐसी भी
तबाही
दौलत मेरी मुठी में
एक दिन का हिटलर
फायर
बदमाशों की टोली
कमांडो
सरकारी शैतान
मिशन डकैती मास्टर
डकैती तेरे नाम की
ठेकेदार
यारी दौलत से
दौ लत मेरी माँ
गुर्गा
हैवान
आर.डी.एक्स 
गुरु का गुरु
हाईजैकर
संगीन डकैती
वर्दी का नशा
मुखबिर
बबूसा
डकैती का अलार्म
कॉन्ट्रैक्ट
लाइसेंस टू किल
मिशन प्राइम मिनिस्टर
हांगकांग में डकैती
किस्मत का सुलतान

सोहनलाल:-
पाप का घड़ा
बारूद का ढेर
डंके की चोट
दोलत के दांत
धोखाधड़ी
पहरेदार
हमला
जालिम
बादशाह
विस्फोट
अंडरग्राउंड
तबाही
एक दिन का हिटलर
जहाज नंबर 302
जीत का ताज
ताज के दावेदार
कमांडो
कौन लेगा ताज
रफ्तार
डाका
पहली चोट
सरकारी शैतान
दूसरी चोट
तीसरी चोट
महामाया की माया
चौकीदार
मिशन डकैती मास्टर
डकैती तेरे नाम की
ठेकेदार
यारी दौलत से
जुआरी
दोलत मेरी माँ
27 सेकंड
देवदासी
इच्छाधारी
हिस्सेदार
नागराज की हत्या
विष मानव
दौलत का जहाज
मास्टर
गुड्डी
मंत्र
गुर्गा
केकड़ा
गिरोह
आर.डी.एक्स 
गुरु का गुरु
माई का लाल
हाईजैकर
जथुरा
पोटेबाबा
यू टर्न
महाकाली
बंधक
सबसे बड़ा हमला
किस्मत का सुल्तान
नसीब के पत्ते
नागमणि
नरबलि
100 माइल्स
डॉन जी
नागिन
सबसे बड़ा गुंडा
वर्दी का नशा
मैं हूं देवराज चौहान
जिंदा आंखें
मुखबिर
मिस्ड कॉल
बबूसा
बबूसा और राजा देव
डकैती का जादूगर
लाइसेंस टू किल
वो कौन था
हांगकांग में डकैती

गजाला:-
ज्वालामुखी
खूंखार
जांबाज
आतंक का पहाड़
जिन्न
हाईजैकर


उनके श्रृंखलाबद्ध रूप में लिखे गए उपन्यासों की लिस्ट निम्नलिखित है :-

2 उपन्यास वाली श्रृंखलाएं:-
हमला, जालिम
ज्वालामुखी, खूंखार
100 माइल्स, डाॅन जी
सबसे बड़ा गुण्डा, मैं हूँ देवराज चौहान
एक रुपये की डकैती, डकैती के बाद
बारूद से मत खेलो, दौलत के दांत
अंडरवर्ल्ड, गैंगवार
अनोखी दुल्हन, दुल्हन मेरी मुट्ठी में
दौलत मेरी माँ, जीना इसी गली में
पहरेदार, सुलग उठा बारूद
फिक्स्ड गेम, डबल प्ला‌‌न
ऑपरेशन टू किल, ऑपेरशन 24 कैरेट
खबरी, अघोरी

3 उपन्यास वाली श्रृंखलाएं:-
दिल्ली का दादा, दरिंदे, हिंसक
जथूरा, पोतेबाबा, महाकाली
बंधक, सबसे बड़ा हमला, वांटेड अली
नागिन, नरबलि, नागमणि
डकैती का जादूगर, हांगकांग में डकैती, लाइसेंस टू किल
ताज के दावेदार, कौन लेगा ताज, जीत का ताज
पूर्वजन्म, यज्ञ, मायाजाल

4 उपन्यास वाली श्रृंखलाएं:-
पहली चोट, दूसरी चोट, तीसरी चोट, महामाया की माया
गोला बारूद, भूखा शेर, आदमखोर, निशानेबाज
सरगना, मास्टर, गुड्डी, मंत्र
देवदासी, इच्छाधारी, नागराज की हत्या, विष मानव
नब्बे करोड़, 36 दिन, सच का सिपाही, डमरू

6 उपन्यास वाली श्रृंखला:-
बबूसा, बबूसा और राजादेव, बबूसा खतरे में, बबूसा का चक्रव्यूह, बबूसा और सोमाथ, बबूसा और खुंबरी


अगर आपके पास अनिल मोहन जी के बारे में कोई और जानकारी उपलब्ध हो तो कॉमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर करें। हमेशा की तरह हमें आपके कॉमेंट्स की प्रतीक्षा रहेगी।

30 जुलाई 2022

उपन्यास प्रतियोगिता १ परिणाम

जैसे की इस महीने की १५ तारीख को हमने एक प्रतियोगिता रखी थी तो आज उनके उत्तर और प्रतिभागियों का नाम आप सभी के सामने प्रस्तुत करते हैं। प्रतियोगिता में चार प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है।

१ प्रश्न :- किस उपन्यास में देवराज ऐसे खजाने की लूट की कोशिश करता है जो इतना बड़ा है कि जिससे दूसरा हिंदुस्तान बसाया जा सके?
उत्तर : - २७ सैकेंड 

२ प्रश्न :- अगर यह रकम सीधे से मुझे हासिल न हुई तो आपका यह बम्बई शहर मौत का ऐसा नाच देखेगा जैसा कभी किसी ने कहीं न देखा होगा । मैं यहां जहन्नुम का वो नजारा पेश करूगा कि आपकी और आपकी समूची आर्गेनाइज़ेशन की आत्मा त्राहि-त्राहि कर उठेगी । मैं राजबहादुर बखिया की ईंट से ईंट बजा दूंगा। 
प्रस्तुत अंश किस लेखक के किस उपन्यास से लिया गया है लेखक और उपन्यास का नाम बताए?
उत्तर : - विमल का इंसाफ (सुरेंद्र मोहन पाठक)

३ प्रश्न :- लुगदी साहित्य के ऐसे दो किरदार का नाम बताइए जिनके नाम से घोस्ट लेखन से लिखी किताब भी बहुत पोपुलर हुई है?
उत्तर : - रीमा भारती, केशव पंडित, मेजर बलवंत, आशीर्वाद (इस प्रश्न के कई उत्तर हो सकते हैं)

४ प्रश्न :- बहु की आवाज़ किस उपन्यासकार के किस उपन्यास पर बनी है?
उत्तर : - वेद प्रकाश शर्मा (बहु मांगे इंसाफ)

५ प्रश्न :- नीचे दिखाया गया चित्र किस उपन्यासकार का है?
उत्तर : - राकेश पाठक

६ प्रश्न :- उस गैलरी के आखिरी कोने में वॉल्ट के स्ट्रॉन्ग रूम का दरवाजा था और दरवाजे तक पहुंचने के बीस फीट लंबे रास्ते पर बारूद भी बिछा था, जिस पर पैर रखते ही शरीर लोथड़ों में बदल जाना था और बीस फीट लंबे सुलगते बारूद को पार किए बिना वॉल्ट के दरवाजे तक पहुंचना असंभव था जिसके पार करोड़ों अरबों की अथाह दौलत मौजूद थी। जबकि उस दौलत को पाने के लिए देवराज चौहान अपना कदम आगे बढ़ा चुका था। आज उसे गोल्ड वॉल्ट में डकैती डालनी ही थी..
प्रस्तुत अंश किस उपन्यासकार के उपन्यास का है जो की सिर्फ एक विज्ञापन रह गया कभी प्रकाशित ना हो सका?
उत्तर : - सुलग उठा बारूद (अनिल मोहन)

७ प्रश्न :- हिंदी साहित्य में तिलस्मी उपन्यासों के जनक कौन थे, जिनके कारण लाखों लोगों ने हिन्दी सीखा?
उत्तर : - देवकीनंदन खत्री

८ प्रश्न :- बाल उपन्यासकार एस.सी.बेदी साहब का पूरा नाम क्या था?
उत्तर : - सुभाष चंद्र बेदी

९ प्रश्न :- उपन्यासकार जोड़ी धरम राकेश का पूरा नाम क्या है?
उत्तर : - धरम बारिया और राकेश मोहन गर्ग

१० प्रश्न :- निम्न फोटो को पहचाने किस उपन्यासकार का है और इनका वास्तविक नाम क्या है?
उत्तर : - एस कुमार के उपन्यास ( फोटो राजभारती के छोटे भाई किशन सिंह की है)

प्रतिभागी जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लिया है:-
१ - जय
२ - रतन चौधरी (संगरिया राजस्थान)
३ - तस्कीन अहमद (अलीगढ़)
४ - राकेश सिंह (कतर)

प्रतिभागियों के सही उत्तर
१ जय - 10

२ रतन चौधरी - 6 ( सवाल 1 5 8 का जवाब नही दिया गया सवाल का जवाब राजभारती गलत है जबकि राजभारती एस कुमार के नाम से लिखते थे)

३ तस्कीन अहमद - 8 ( सवाल एक का जवाब नही दिया गया है। सवाल दस का जवाब राजभारती गलत है हालाकि एस कुमार के नाम से राजभारती जी लिखा करते थे। vps की रचना का नाम नही बताया गया )

४ राकेश सिंह - 6 (सवाल 4,5 का जवाब नही दिया गया और 8 का बेदी है जबकि राय किया गया है सवाल 10 का जवाब गलत दिया गया है)

विजेता के नाम 
१ जय 
२ तस्कीन अहमद
३ रतन चौधरी
(तीनो विजेताओं को शुभकामनाएं। कल या परसो तक आपसे कॉन्टेक्ट करके आपकी पसंदीदा बुक आपको भेज दी जाएगी। भविष्य में भी आप प्रतियोगिता में भाग लेंगे तो हमे खुशी होगी...)

18 जुलाई 2022

उपन्यास प्रतियोगिता १

उपन्यास प्रतियोगिता २०२२
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए और उपन्यास जीतिए।
प्रतियोगिता समय अवधि - १८.०७.२०२२ से ३०.०७.२०२२

प्रतियोगिता के नियम अवश्य देखे।

१ प्रश्न :- किस उपन्यास में देवराज ऐसे खजाने की लूट की कोशिश करता है जो इतना बड़ा है कि जिससे दूसरा हिंदुस्तान बसाया जा सके?

२ प्रश्न :- अगर यह रकम सीधे से मुझे हासिल न हुई तो आपका यह बम्बई शहर मौत का ऐसा नाच देखेगा जैसा कभी किसी ने कहीं न देखा होगा । मैं यहां जहन्नुम का वो नजारा पेश करूगा कि आपकी और आपकी समूची आर्गेनाइज़ेशन की आत्मा त्राहि-त्राहि कर उठेगी । मैं राजबहादुर बखिया की ईंट से ईंट बजा दूंगा। 
प्रस्तुत अंश किस लेखक के किस उपन्यास से लिया गया है लेखक और उपन्यास का नाम बताए?

३ प्रश्न :- लुगदी साहित्य के ऐसे दो किरदार का नाम बताइए जिनके नाम से घोस्ट लेखन से लिखी किताब भी बहुत पोपुलर हुई है?

४ प्रश्न :- बहु की आवाज़ किस उपन्यासकार के किस उपन्यास पर बनी है?

५ प्रश्न :- नीचे दिखाया गया चित्र किस उपन्यासकार का है?
६ प्रश्न :- उस गैलरी के आखिरी कोने में वॉल्ट के स्ट्रॉन्ग रूम का दरवाजा था और दरवाजे तक पहुंचने के बीस फीट लंबे रास्ते पर बारूद भी बिछा था, जिस पर पैर रखते ही शरीर लोथड़ों में बदल जाना था और बीस फीट लंबे सुलगते बारूद को पार किए बिना वॉल्ट के दरवाजे तक पहुंचना असंभव था जिसके पार करोड़ों अरबों की अथाह दौलत मौजूद थी। जबकि उस दौलत को पाने के लिए देवराज चौहान अपना कदम आगे बढ़ा चुका था। आज उसे गोल्ड वॉल्ट में डकैती डालनी ही थी..
प्रस्तुत अंश किस उपन्यासकार के उपन्यास का है जो की सिर्फ एक विज्ञापन रह गया कभी प्रकाशित ना हो सका?

७ प्रश्न :- हिंदी साहित्य में तिलस्मी उपन्यासों के जनक कौन थे, जिनके कारण लाखों लोगों ने हिन्दी सीखा?

८ प्रश्न :- बाल उपन्यासकार एस.सी.बेदी साहब का पूरा नाम क्या था?

९ प्रश्न :- उपन्यासकार जोड़ी धरम राकेश का पूरा नाम क्या है?

१० प्रश्न :- निम्न फोटो को पहचाने किस उपन्यासकार का है और इनका वास्तविक नाम क्या है? 
११ आपने पसंदीदा किन्ही भी तीन उपन्यासकारो के नाम बताए?
(अनिवार्य नही है)

प्रतियोगिता के नियम:-
mybookshelf का निर्णय अंतिम व मान्य होगा।
प्रतियोगिता में आधार पहले उत्तर दो पहले इनाम पाओ।
प्रतिभागी को इस पोस्ट के नीचे एक कॉमेंट करना होगा की "मैं (अपना नाम और कॉन्टेक्ट नंबर) इस प्रतियोगिता में भाग ले रहा हूं।" ये नियम प्रतियोगिता के पारदर्शिता के लिए है।
सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाले प्रतिभागी को पुरस्कृत किया जाएगा। अगर कोई सभी प्रश्नों के उत्तर सही नही दे सकेगा तो सबसे ज्यादा सही जवाब वाले जवाब प्रदाता को विजेता घोषित किया जाएगा।
प्रतियोगिता से संबंधित जानकारी आपको समय समय पर ब्लॉग पर मिलती रहेगी।
प्रतियोगिता का निर्णय ३०.०७.२०२२ को दिया जाएगा।
समस्त प्रश्नों के उत्तर मेल करे या फिर आप कॉमेंट के माध्यम से भी दे सकते है -
मेल आईडी:- skbishnoi128@gmail.com
कॉन्टेक्ट :- 7497070299
प्रतियोगिता जितने वाले प्रतिभागी निम्न फोटो से कोई भी इनाम चुन सकते है।
         विजेता अपनी पसंद से उपन्यास चुन सकते हैं 

प्रथम प्रतिभागी कोई भी ३ उपन्यास
द्वितय प्रतिभागी कोई भी २ उपन्यास
तृतीय प्रतिभागी कोई भी २ उपन्यास
नोट :- प्रथम प्रतिभागी के चुनने के बाद जो भी उपन्यास होंगे उनमें से ही द्वितय प्रतिभागी को चुनने होंगे। ऐसे ही प्रथम और द्वितीय प्रतिभागी के उपन्यास चुनने के बाद जो उपन्यास बचेंगे उनमें से तृतीय प्रतिभागी को चुने होंगे।

16 मई 2022

महाआतंक - राजभारती

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम दिवंगत हिंदी उपन्यासकार राजभारती के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "महाआतंक" के बारे में आपको बताने जा रहे हैं! 

"महाआतंक" उपन्यास का एड राजभारती जी के उपन्यास महाकांड के अंतिम कवर पृष्ठ पर दिया गया था और एड के अनुसार उपन्यास के धीरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होने की संभावना थी। परंतु ये उपन्यास कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ!

इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आलेखों को चेक करने के पश्चात भी इस उपन्यास के प्रकाशित होने या ना होने के बारे में कही कोई जानकारी नहीं मिलती।
अब ये जानकारी सही है या गलत - इस बारे में या तो राजभारती जी के परिवार का कोई सदस्य बता सकता है या फिर कोई पुराना प्रकाशक या फिर कोई पाठक जो इस बारे में कुछ जानता हो!

मेरी राय में अगर राजभारती जी ये उपन्यास लिखते और उपन्यास प्रकाशित होता तो निश्चय ही पाठक इस उपन्यास को पढ़ने के प्रति अपनी दिलचस्पी प्रदर्शित करते!

क्या यह उपन्यास लिखा ही नहीं जा सका? 
क्या उपन्यास का लेखन कार्य किसी कारणवश अधूरा ही रह गया? 
अगर उपन्यास पूरा लिखा जा चुका था तो फिर प्रकाशित क्यों नहीं हो पाया? 
ये सब प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं।

उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर आपके पास इस बारे में कोई जानकारी हो तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते हैं |

14 मई 2022

एक साथ तीन प्रेत - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

लघु उपन्यास : एक साथ तीन प्रेत 
लेखक : जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा 
श्रेणी : जासूसी एंव भूत-प्रेत
पृष्ठ संख्या : 67
प्रकाशक : राधा पॉकेट बुक्स

यह लघु उपन्यास लेखक के "भाभी" उपन्यास में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के कथानक सूत्र के अनुसार जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा ने अपने एक पुराने रिटायर्ड मेजर मित्र सूरतवाला से सुनी हुई मेरठ छावनी की वर्षों पुरानी किवदंतियों के आधार पर इस लघु उपन्यास की रचना की है। 

उपन्यास के प्रारंभ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
 सुबह की सैनिक परेड छः बजे आरंभ होती थी और बिगुलवादक पहला बिगुल 5 बजे अपने घर की छत से ही बजाता था। फिर वह बिगुल सहित उस स्थान पर पहुंच जाता जहां बहुत पहले 1857 में उन अंग्रेजों के स्मारक थे और आज रेलवे लाइन पटरी है। 

कहानी कुछ इस प्रकार शुरू होती है कि एक सुबह एक जंगली भैंसा छावनी में अंग्रेज मेजर रॉबसन के बंगले के अहाते की दीवार तोड़कर फुलवारी को नष्ट करने लगता है। मेजर रॉबसन भैंसे को बंदूक से गोलियां मारकर खत्म कर देता है। अगली सुबह सैनिक परेड के निर्धारित समय पर बिगुलवादक बिगुल बजाकर परेड मैदान में बने अंग्रेजों के स्मारक वाले चबूतरे पर बैठ जाता है। अचानक एक पागल जंगली भैंसा उस पर आक्रमण कर देता है। बिगुलवादक घबराकर भागता है। तभी सामने से मेजर रॉबसन घोड़े पर आता है और जंगली भैंसे का सामना करता है। लड़ाई के दौरान क्रुद्ध भैंसा मेजर रॉबसन, बिगुलवादक और घोड़े को खत्म कर देता है। 

बिगुलवादक को रौंदते हुए भैंसे ने घोड़े पर अपने सींगों से वार करते हुए घोड़े का पेट फाड़ दिया। घोड़ा गिरा साथ ही रॉबसन भी।
और परिणाम...! 
तलवार के कुछ वार से भैंसा घायल तो अवश्य हुआ, परंतु उसने तीन जान ले लीं। 

मेजर रॉबसन की जवान और खूबसूरत पत्नी एवलिन यह समाचार सुनते ही बेहोश हो जाती है। छावनी का द्वितीय सीनियर अफसर कैप्टन नेल्सन पादरी को बुलाकर मेजर रॉबसन और बिगुलवादक को कब्र में दफनाने का प्रबंध करवाता है। परंतु अगली ही रात उनकी कब्रें हुई खुदी मिलती हैं। परेशान नेल्सन कब्रें ठीक करवाकर वहां 25 सैनिकों का पहरा लगा देता है। इधर अचानक एवलिन का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है और दिनोंदिन उसका चेहरा पीला पड़ने लगता है। डॉक्टर को एवलिन की बिगड़ती हालत का कारण समझ नहीं आ पाता। 

 ...साथ ही दवा के रूप में टानिक भी देता था। परंतु एवलिन पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था, डॉक्टर ने नोट किया कि उसके चेहरे का पीलापन कम नही हो रहा था और कम हो रहा था उसका वजन। 

दो माह बाद कलकत्ता से जॉर्ज साइमन मेरठ छावनी में मेजर रॉबसन का स्थान लेने के लिए आता है। साइमन मेजर रॉबसन का भाई होता है। छावनी का कार्यभार संभालते ही वो एवलिन से मिलता है। जब एवलिन साइमन को अपनी बुरी दशा का कारण बताती है तो वो हैरान रह जाता है। साइमन ये भी देखता है कि नेल्सन और छावनी के सारे सैनिक अक्सर थके-थके से रहते हैं। नेल्सन से इसका कारण जानकर उसका दिमाग घूम जाता है। उसे समझ ही नहीं आता कि किस बात को माने और किस बात को नहीं! वो तुरंत एवलिन की सुरक्षा का और साथ ही फादर जेफरसन को छावनी में बुलवाने का प्रबंध करता है। 

जंगली भैंसे ने मेजर रॉबसन, बिगुलवादक और घोड़े को कैसे मार गिराया? 
मेजर रॉबसन और बिगुलवादक की कब्रें किसने खोदीं? 
एवलिन का स्वास्थ्य दिनोंदिन कैसे बिगड़ने लगा?  
नेल्सन और छावनी के सारे सैनिक थके हुए क्यों रहते थे? 
एवलिन और नेल्सन ने ऐसा क्या बताया कि साइमन स्तब्ध रह गया? 
कौन थे फादर जेफरसन? 
साइमन ने फादर जेफरसन को छावनी क्यों बुलाया? 
आखिर क्या रहस्य था इस सारे घटनाक्रम के पीछे? 
क्या साइमन, नेल्सन और फादर जेफरसन मिलकर इस गुत्थी को सुलझा पाए? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर ही प्राप्त कर पाएंगे। 

पात्रों की बात करें तो इस उपन्यास में मेजर रॉबसन, एवलिन, बिगुलवादक, कैप्टन नेल्सन, डॉक्टर जेम्स, जॉर्ज साइमन, फादर जेफरसन, दुर्गा बाबू, रामचंद्र, शंकर सिंह, संन्यासी जैसे पात्र पढ़ने को मिलते हैं। 
साइमन, फादर जेफरसन, नेल्सन और संन्यासी के पात्र मुझे काफी अच्छे लगे। अन्य सहायक पात्र अपनी जगह सही रहे।

मुझे कहानी पढ़ने में बहुत रोचक लगी। कहानी में जासूसी और भूत-प्रेत धाराओं का सम्मिश्रण बढ़िया बन पड़ा है। पात्रों का ताल-मेल भी लेखक ने अच्छा बनाए रखा है। आप एक बार इस लघु उपन्यास को जरूर पढ़ें।

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

11 मई 2022

धमाकों का शहर - राज


उपन्यास: धमाकों का शहर
लेखक: राज
पेज संख्या: 272 
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स

हमारे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार "राज" नाम राजा पॉकेट बुक्स द्वारा रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क था। किसी प्रेत लेखक द्वारा ये उपन्यास लिखे जाते थे और फिर राजा पॉकेट बुक्स द्वारा "राज" नाम से प्रकाशित किए जाते थे। 

         उपन्यास का कवर 

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 

*कुछ मुल्कों की तो सरकारें तक उससे आतंकित थी। कहीं-कहीं उसने अपनी जड़ों को इतनी गहराई तक पहुंचा दिया था कि वहां की सरकारें उसके रहमोकरम पर थी।
वहीं कुख्यात हस्ती उस समय हिंदुस्तान में पड़ाव डाले हुए थी।
यहां भी उसके आपराधिक निजाम की जड़ें काफी गहराई तक पहुंची हुई थी।* 

उपन्यास का आरंभ होता है अंडरवर्ल्ड के बादशाह अम्बा और मंत्री जयंती प्रसाद की मुलाकात के दृश्य से जिसमे जयंती प्रसाद अपनी सेक्रेटरी अर्चना गोखले के साथ एक सहायता प्राप्त करने के लिए अम्बा के पास आता है। अम्बा उसे एक योजना बताता है जिससे उसका काम हो जाए। जयंती प्रसाद और अम्बा दोनों योजना के क्रियान्वन में लग जाते हैं। 

*उसके हाथ में एक रोल किया हुआ कागज था। 
*वह अम्बा के सामने सिर झुकाकर खड़ा हो गया।
"टोनी!"
"यस बॉस!"
"मंत्रीजी को अपनी स्कीम समझाओ।" अम्बा ने आदेश दिया।...*

इधर एक अन्य जगह पर विवेक नंदी नाम का एक कैश कलेक्टर अपने बॉस जसराज मथानी के पास रोज की तरह पैसा जमा करवाने आता है पर बीस हजार रुपए कम निकलने पर मथानी क्रोधित हो उठता है। मथानी उसे रुपया वापस करने के लिए 24 घंटे की अवधि देता है। डरा हुआ विवेक रुपया प्राप्त करने की कोशिशों में लग जाता है मगर इसी बीच कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे विवेक नंदी की दुनिया ही उजड़ जाती हैं। 

*...चारों ओर का काफी बड़ा इलाका मानवरहित हो चुका था और उस मानवरहित इलाके में विनोद नंदी अकेला था।
वह उस ओर ही दौड़ रहा था जहां साक्षात मौत तांडव कर रही थी। 
लोग उससे दहशत खाकर भाग रहे थे, वह उसी ओर जा रहा था।*

वहीं रिसर्च एनालिसिस विंग (रॉ) की स्पेशल ब्रांच के ऑफिस में डायरेक्टर जयंत रमन्ना को देश पर मंडरा रहे एक गंभीर खतरे की सूचना मिलती है। वो अपने सबसे विश्वसनीय और योग्य एजेंट अजीत विश्वकर्मा को उसी समय मीटिंग के लिए बुला डालते हैं। पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद रमन्ना और अजीत विश्वकर्मा मिलकर एक प्लान बनाते हैं। फिर अजीत विश्वकर्मा इस खतरे को समाप्त करने के लिए एक गुप्त मिशन पर तुरंत ही पाकिस्तान के लिए रवाना हो जाता है ताकि वो उस खतरे का खत्म कर सके। परंतु घटनाक्रम कुछ इस तरह से आगे बढ़ता है कि अजीत और रमन्ना के साथ-साथ बाकी सब लोग भी खतरे में पड़ जाते हैं और सबकी जान पर बन आती है । 

*"मेरी भरसक कोशिश होगी सर कि" - विश्वकर्मा ने कहा - "मैं आपके विश्वास की रक्षा कर सकूं।"
"मगर यह काम उतना आसान नहीं है मिस्टर विश्वकर्मा" - रमन्ना ने गंभीर स्वर में कहा - "इसमें खतरे कदम-कदम पर तुम्हारा स्वागत करेंगे।"*

जयंती प्रसाद को ऐसी क्या सहायता चाहिए थी अम्बा से? 
क्या खतरनाक योजना थी अम्बा की? 
ऐसा क्या घटित हुआ था जिसने विवेक नंदी की दुनिया ही उजाड़ दी? 
डायरेक्टर जयंत रमन्ना को किस गंभीर खतरे की सूचना मिली थी? 
अजीत विश्वकर्मा को तुरंत किस मिशन पर निकलना पड़ा? 
क्या अजीत का मिशन सफल हो सका? 
ऐसा क्या हुआ कि सबकी जान खतरे में पड़ गई? 
क्या अजीत को किसी प्रकार की मदद प्राप्त हो पाई? 
इस सारे घटनाक्रम में कौन बचा और किसे अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी? 
क्या हुआ जयंती प्रसाद और अम्बा का? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं। 

इस उपन्यास में मुख्य पात्र अजीत विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा के अलावा अम्बा, जयंती प्रसाद, अर्चना गोखले, विनोद नंदी, मथानी, अखिलेश नंदी, स्वाति नंदी, सुलेमान कसूरी, दिलावर खान, चंपा, जयंत रमन्ना, कंचन जोशी, जाहिदा मालिक, डॉक्टर हैदर, असलम खान, मेजर अंसारी, रशीद, अजरा जैसे पात्र उपन्यास में मिलेंगे। 

मुझे मुख्य पात्र अजीत विश्वकर्मा की भूमिका ठीक-ठाक लगी। जयंत रमन्ना का किरदार अच्छा लगा। अन्य सहायक पात्रों में स्वाति नंदी, कंचन जोशी, सुलेमान कसूरी और जाहिदा सही लगे। 

उपन्यास की कहानी कुल मिलाकर साधारण ही लगी। लेखक ने कहानी को घुमावदार बनाने की कोशिश तो की है पर सफल नहीं हो पाए। कहानी नॉन-स्टॉप एक्शन से भरपूर है और कहीं-कहीं द्विअर्थी संवादों का भी उपयोग किया गया है। 
कुछ कमियां कहानी को कमजोर बना देती हैं जैसे कि पूरे शहर की संपूर्ण व्यवस्था को ही ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट और लाचार दिखा देना, पुलिस तथा सभी जांच एजेंसियों का बेखबर सोए रहना और फिर अचानक जाग उठना, घटनाओं के तालमेल में गड़बड़ इत्यादि! 

उपन्यास की प्रिंटिंग गुणवत्ता सही है और शाब्दिक गलतियां भी कम हैं।

अगर आपको अच्छी कहानी से अधिक रुचि नॉन-स्टॉप एक्शन एवं कुछ द्विअर्थी संवाद पढ़ने में है तो ये उपन्यास आपके लिए कुछ हद तक मनोरंजक हो सकता है अन्यथा निराशा होने की संभावना ही अधिक है।

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रेटिंग: 5/10

04 मई 2022

भाभी - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

उपन्यास : भाभी 
लेखक : जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा 
श्रेणी : सामाजिक / पारिवारिक
पृष्ठ संख्या : 173
प्रकाशक : राधा पॉकेट बुक्स

           राधा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित भाभी उपन्यास कवर

      हाल ही में नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित उपन्यास 

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
 प्रत्येक सांझ की भांति आज प्रभा के चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान नही थी। 
आज वह पूरी तरह गंभीर थी। 
मुस्कुराते हुए मोहन ने कहा - "एक शेर सुनाना चाहता हूं - हंसते खेलते महफिल में आए थे 'फिराक'।
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।"

उपन्यास का आरंभ गुलाब रेस्तरां के दृश्य से होता है जहां प्रेमी युगल मोहन और प्रभा अपनी शादी की तारीख निश्चित होने की खुशी मनाने के लिए मिलते हैं। बातचीत के दौरान मोहन अपनी भाभी पद्म, उनकी सादगी और उनके स्वभाव के बारे में प्रभा को बताता है। 

"भाभीजी क्या क्या जानती है, यह तो तुम तभी जानोगी जब इस घर में आ जाओगी। यह सही है कि घर बड़ा था और उसमें रसोई आदि के अतिरिक्त दस कमरे थे। परंतु साठ वर्ष पहले बना हुआ पुराने ढंग का घर था। धीरे-धीरे भाभीजी ने उसे एकदम आधुनिक ढंग का घर बनवा दिया है।"

मोहन अच्छी तनख्वाह पर दिल्ली में सरकारी नौकरी में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। मोहन के परिवार में उसका बड़ा भाई बलदेव, भाभी पद्म और उनकी छोटी सी बेटी मधु है। बलदेव की पुरानी दिल्ली में फैंसी कपड़ों की बड़ी दुकान है तथा घर पर फैंसी कपड़े बनाने का कारखाना है। 
मोहन की होने वाली पत्नी प्रभा एक बेहद संपन्न परिवार से है और बचपन से ही सुख-सुविधाओं में पली-बढ़ी है। प्रभा के परिवार में उसके माता-पिता, बड़ा भाई सुबोध, भाभी माया और उनके बच्चे हैं। 
शादी होने के बाद प्रभा मोहन के साथ घर आती है और पद्म प्रेमपूर्वक नई दुल्हन का स्वागत करती है। संपन्न परिवार की प्रभा पद्म और बलदेव की संतोषी प्रवृति और उनके सादगी भरे परिवार को देख एक बार तो विस्मित रह जाती है। 
रीति-रिवाज के अनुसार प्रभा पहला फेरा लगाने मायके जाती है और उसके बाद नियमित रूप से मायके जाने लगती है। परंतु मायके के हर चक्कर के साथ ही प्रभा के व्यवहार में कुछ बदलाव आने लगता है और शीघ्र ही परिस्थितियां अलग मोड़ लेने लगती हैं। 

परंतु क्या हमेशा ही वातावरण शांत रहना था?
कहा जाता है कि जब रेगिस्तान में जबरदस्त आंधी आने को होती है, उससे पूर्व साधारण हवा भी लगभग बंद हो जाती है। अगर कहा जाए कि कुछ ऐसा ही था तो गलत न होगा।

बढ़िया व्यापार होने के बावजूद बलदेव और पद्म संतोष और सादगी भरे जीवन में कैसे प्रसन्न थे? 
मायके के हर चक्कर के साथ ही प्रभा के व्यवहार में बदलाव क्यों और कैसे आने लगा? 
क्या परिणाम निकला प्रभा के व्यवहार में हो रहे निरंतर बदलाव का? 
कैसा था प्रभा का परिवार और कैसे थे उनके विचार? 
शादी के बाद क्या बदलाव आया मोहन की जिंदगी में? 
बदलती हुई परिस्थितियों का बलदेव और पद्म पर क्या असर पड़ा? 
फिर बलदेव और पद्म ने क्या किया? 
ऐसे हालात में क्या प्रभा का परिवार कुछ कर पाया?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आप इस उपन्यास को पढ़कर ही प्राप्त कर पाएंगे। 

पात्रों की बात करें तो इस उपन्यास में प्रभा, मोहन, बलदेव, पद्म, मधु, सुबोध, माया, नरेश कुमार सेन, सकलानी, यासीन, भोला पंडित, अनवर, मेहता, अजीज, थामस, बिशन सिंह, सोराबजी और डॉक्टर चाची जैसे पात्र पढ़ने को मिलेंगे। 
पद्म और बलदेव के किरदार बहुत अच्छे बन पड़े हैं। मोहन और प्रभा भी सही लगे। सहायक पात्रों में नरेश कुमार सेन, माया और सोराबजी बढ़िया लगे।

उपन्यास की कहानी अच्छी है और पारिवारिक मूल्यों के महत्त्व को समझाती है। लेखक ने कहानी में भावुकता को सही तथा नियंत्रित रूप से दर्शाया है। उपन्यास की कहानी यह संदेश भी देती है कि चाहे कोई खुद को कितना ही चतुर माने, गलती उससे भी हो ही जाती है। लेखक के संवादों ने कहानी में कसावट बनाए रखी है और पात्रों को मजबूती प्रदान की है। 

मनोरंजन की दृष्टि से सामाजिक और पारिवारिक उपन्यास पढ़ने वाले पाठकों को ये उपन्यास बिल्कुल निराश नहीं करेगा।

मुझे उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन सही लगा। उपन्यास की प्रिंटिंग गुणवत्ता ठीक है परंतु कहीं-कहीं पर शाब्दिक गलतियां हैं। 

इस उपन्यास के अंत में लेखक ने 67 पृष्ठों का एक लघु उपन्यास "एक साथ तीन प्रेत" भी प्रस्तुत किया है। हॉरर और जासूसी श्रेणी का ये उपन्यास भी पठनीय है। इसकी समीक्षा हम अगले पोस्ट में प्रस्तुत करेंगे।

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रेटिंग: 7.5/10

30 मार्च 2022

विष मानव - अनिल मोहन


उपन्यास: विष मानव
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 304

                   विष मानव उपन्यास कवर
'विष मानव' चार उपन्यासों की श्रृंखला का चतुर्थ एवं अंतिम भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम तीन भागों 'देवदासी समीक्षा', 'इच्छाधारी समीक्षा' तथा 'नागराज की हत्या' की समीक्षा हमारे ब्लॉग पर पहले से ही उपलब्ध है। 

'नागराज की हत्या' उपन्यास के अंत में सांपनाथ की बस्ती के सभी राक्षस झोंपड़ी में त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव के ठहाके को सुनकर और उसके काले-नीले शरीर को देखकर स्तब्ध रह जाते हैं।

विष मानव' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
**"मुझे बताइए आपको क्या परेशानी है ?" गंगू साथ चलते-चलते बोला "मैं आपको परेशान नहीं देख सकता। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी चिंता को दूर कर सकूं।" 
"बहुत बुरा हुआ!" वायुलाल अपनी ही सोचों में बड़बड़ा उठा।
"क्या ?"**

उपन्यास 'विष मानव' का प्रथम दृश्य वायुलाल और गंगू के वार्तालाप से आरंभ होता है। इस दौरान वायुलाल गंगू से कहता है कि ऐसा कौन है जो उसके द्वारा सैकड़ों वर्षों में प्राप्त की गई शक्तियों से टकराने का साहस कर रहा है। वायुलाल अपनी शक्तियों से इस बारे में पता लगाने के लिए गंगू के साथ एक विशेष कमरे की तरफ बढ़ जाता है। 

 **वायुलाल और गंगू दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गए।
बाहर खड़े सेवकों ने वो दरवाजा पुनः बंद कर दिया।
वो बहुत बड़ा हॉल कमरा था जहां अजीबों तरह का सामान पड़ा नजर आ रहा था। दीवारों पर समझ में न आने वाले चित्र बने हुए था।**

उधर दक्षिण दिशा में काला द्वार के पास मोना चौधरी, जगमोहन और महाजन रात में बारी-बारी से पहरा दे रहे थे ताकि नागराज से किए वादे के अनुसार जैसे ही सुबह हो जाए, वो लोग तुरंत अपना काम पूरा कर सकें। काला द्वार से कुछ ही दूरी पर मौजूद जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी भी अपनी योजना बना रहे होते हैं ताकि वो भी बिना किसी अड़चन के अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। 

**..... जगमोहन बोला "चालाकी इस्तेमाल करनी है।" 
"क्या मतलब ?"
"मुझे बता जग्गू !" जलेबी कह उठी।
जगमोहन धीमे स्वर में उन्हें बताने लगा।**

इधर बांके और नगीना के साथ क्रोध से भरी रानी देवराज चौहान के पास पहुंचने की कोशिश कर रही होती है। वहीं अपने पति को खोने से आहत नागरानी बदला लेने के लिए आतुर हो उठती है और सांपनाथ की बस्ती की ओर चल पड़ती है। 

**चंद क्षणों में ही नागरानी अपने खूबसूरत मानवीय रूप में उनके सामने खड़ी थी। परंतु इस वक्त वो क्रोध की आग में तप रही थी। गुस्से से उसका चेहरा धधक रहा था। आंखें लाल हो रही थी। शरीर आवेश से कांप कहा था। **

घटनाक्रम कुछ इस प्रकार से आगे बढ़ता है कि देवराज चौहान, रुस्तम राव, रानी और बाकी साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच एक ऐसे जानलेवा टकराव की स्थिति बन आती है जिसका परिणाम किसी एक पक्ष की पराजय से ही निकलना संभव था। 

"मैं जानता हूं कि वायुलाल मेरे रास्ते में ढेर सारी परेशानियां खड़ी करेगा।" रुस्तम राव ने देवराज चौहान को देखकर सिर हिलाया - "इस काम में वो अकेला नहीं होगा। उसके साथ मोना चौधरी भी अवश्य होगी। परंतु मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं ये ....."

वायुलाल अपने विशेष कमरे में किन शक्तियों का आह्वान करने के लिए गया?
रुस्तम राव का शरीर काला-नीला कैसे हो गया? 
क्या सचमुच विश्व पुरुष "नागराज" की हत्या हुई थी? 
क्या मोना चौधरी देवराज चौहान से बदला ले सकी? 
क्या जगमोहन, सोहनलाल और जलेबी की चालाकी काम आई? 
जब क्रोध से भरी रानी का सामना देवराज चौहान से हुआ तो क्या हुआ? 
क्या नागरानी अपना प्रतिशोध ले पाई? 
देवराज चौहान, रानी, रुस्तम राव और उसके साथी तथा वायुलाल, मोना चौधरी और उसके साथियों के बीच हुए  जानलेवा टकराव का क्या परिणाम हुआ? 
बलसारा और हंसनी ने क्या चालें चली? 
क्या इस टकराव का परिणाम इतना ही सीधा और सरल था जितना दिख रहा था या अंदर कुछ और रहस्य भी छुपा हुआ था? 
क्या था वायुलाल की शक्तियों का केंद्र? 
आखिर किस प्रकार खत्म हुआ देवराज चौहान और मोना चौधरी का इस बार का पूर्व जन्म का सफर? 
रानी और जलेबी का क्या हुआ? 
कौन था वो चांदी का बना एक फुट का रहस्यमयी बौना मानव? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!

अब पात्रों के बारे में बात की जाए तो इस उपन्यास में देवराज चौहान, जगमोहन, वायुलाल और रुस्तम राव बढ़िया लगे हैं। बलसारा, हंसनी, नजूमी, नागरानी, रहस्यमयी विश्व पुरुष नागराज, इच्छाधारी और रानी के पात्र भी अच्छे लगे। जहां इच्छाधारी, पारसनाथ और महाजन सही लगे, वहीं मोना चौधरी, बांकेलाल और नगीना सामान्य ही लगे। जलेबी और सोहनलाल ने कहानी में कुछ मजाक-मस्ती का दौर भी बनाए रखा है। कुछ नए सहायक पात्र जैसे रामभजन, जंगली सरदार भी इस उपन्यास में पढ़ने को मिलते हैं परंतु उनकी भूमिका नगण्य ही है।

उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन ठीक-ठाक है। इस उपन्यास में मुख्य पात्र के रूप में देवराज चौहान की तुलना में मोना चौधरी का किरदार उतना दमदार नहीं लगा जितना इस शृंखला के पहले के उपन्यासों में था। 
साथ ही कुछ संवाद इस उपन्यास में भी अनावश्यक रूप से लंबे एवं खिंचे हुए लगे - खासकर देवराज, उसके साथियों की जंगलियों से हुई भेंट वाले प्रसंग में ।

कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है और कहानी पाठकों को बांधे रखती है। उपन्यास का अंत रोमांचक और उत्सुकता से भरा है तथा श्रृंखला का समापन भी बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। 

अंत में ये जरूर कहना चाहूंगा कि चार उपन्यासों की ये संपूर्ण श्रृंखला एक बार अवश्य पढ़ें। यह उपन्यास श्रृंखला अनिल मोहन द्वारा रचित यादगार उपन्यासों में से एक है।

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं।क्या आपने भी इन चारो उपन्यासों की श्रृंखला को पढ़ा है। हमेशा की तरह हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

27 मार्च 2022

महाशक्ति - राजभारती

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं राज भारती जी के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "महाशक्ति" के बारे में !

 महाशक्ति नामक उपन्यास का विज्ञापन जिसके अनुसार ये शिवा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होना था।

उपरोक्त विज्ञापन के अनुसार राज भारती जी द्वारा रचित अग्निपुत्र श्रृंखला का सिल्वर जुबली महाविशेषांक "महाशक्ति" शिवा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित होना था। परंतु जहां तक हमारी जानकारी है, राज भारती जी के अग्निपुत्र श्रृंखला के अधिकतर उपन्यास धीरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुए थे। कुछ उपन्यास मनोज पॉकेट बुक्स से भी प्रकाशित हुए थे जबकि शिवा पॉकेट बुक्स से उनका अग्निपुत्र श्रृंखला का एक भी उपन्यास प्रकाशित नहीं हुआ था।
और रही सिल्वर जुबली विशेषांक की बात! तो धीरज पॉकेट बुक्स से सिल्वर जुबली विशेषांक के तौर पर अग्निपुत्र श्रृंखला का "रक्त आहुति" नामक उपन्यास आया था।

अब ये पता लगाना काफी मुश्किल है कि सच में ऐसा कोई "महाशक्ति" नामक उपन्यास छपा था या नहीं! क्या ये विज्ञापन पूर्ण रूप से नकली अथवा भ्रामक था! 
क्योंकि अग्निपुत्र श्रृंखला के पूर्णतया सभी उपन्यास धीरज और मनोज पॉकेट बुक्स से ही प्रकाशित हुए थे।

सिल्वर जुबली विशेषांक रक्त आहुति उपन्यास का लेखकीय जिसके अंदर भी कही कोई चर्चा नहीं है महाशक्ति नाम से।

राजभारती जी ने "रक्त आहुति" के लेखकीय में भी इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया है कि अग्निपुत्र श्रृंखला का सिल्वर जुबली विशेषांक किसी और प्रकाशन संस्थान से छपना था या फिर इस उपन्यास का नाम बदला गया है।

अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।

22 मार्च 2022

नागराज की हत्या - अनिल मोहन


उपन्यास: नागराज की हत्या
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 303

'नागराज की हत्या' चार उपन्यासों की श्रृंखला का तृतीय भाग है। इस श्रृंखला के प्रथम भाग 'देवदासी समीक्षा' तथा द्वितीय भाग 'इच्छाधारी समीक्षा' की समीक्षा हम पहले ही ब्लॉग पर शेयर कर चुके हैं। 

'इच्छाधारी' उपन्यास के अंत में देवराज चौहान, नगीना, रानी और बांकेलाल राठौर  सांपनाथ की बस्ती में पहुंच जाते है परंतु वहां उनकी भेंट सांपनाथ के स्थान पर तूतका से होती है। तूतका उन्हें बंदी बनाने की कोशिश करता है।

'नागराज की हत्या' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
** "इधरो तो अपणो जाणो की खैर न दिखो। देवराज चौहान को किधर से अम बचायो?" 
चंद कदमों के फासले पर थे राक्षस जाति के वे लोग। 
वहशी इरादे थे उनके। 
तूतका का आदेश मिल चुका था उन्हें। **

उपन्यास 'नागराज की हत्या' के प्रथम दृश्य में तूतका और उसके संगी राक्षस देवराज और उसके साथियों को मारने की कोशिश करते हैं परंतु रानी बीच में आ जाती है। तूतका से बात करने के बाद देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल सुनेरा की बस्ती में तूतका के साथ जाने की योजना बनाते हैं। 

** तूतका ने कहा - "आइए, उधर झोंपड़े में चलते हैं। वहीं बातें होंगी। शायद आप लोगों के लिए कहवे का इंतजाम हो जाए।"
देवराज चौहान, रानी, नगीना और बांकेलाल राठौर तूतका के पीछे चल पड़े। परंतु वे सतर्क थे कि... **

उधर नागलोक में विश्व पुरुष 'नागराज' अपनी पत्नी नागरानी से एक गंभीर वार्तालाप में व्यस्त होता है। वार्तालाप के दौरान नागरानी एक ऐसी समस्या बताती है जिसे सुनकर नागराज व्यथित हो जाता है और अपनी शक्तियों द्वारा इसका हल निकालने का प्रयत्न करता है। परंतु नागराज की शक्तियां इस समस्या का जो समाधान बताती है, वो समाधान नागराज को भी दुविधा में डाल देता है। 

** "तुम अपना दिल छोटा न करो नागरानी।"
"आप मुझे झूठा दिलासा दे रहे... ।"
"मैं कुछ भी झूठ नहीं कह रहा। जग से लड़ने की भावना  तुममें पैदा कर रहा... ।"
"मैं कायर नहीं हूं जो.. ।" **

वहीं वायुलाल के महल में मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन आपस में मंत्रणा करने के पश्चात अपनी यात्रा आरंभ कर चुके होते हैं। वे जंगल के रास्ते से अपनी यात्रा शुरू करते हैं ताकि सुनेरा की बस्ती का कठिन सफर शीघ्र ही तय किया जा सके तथा देवराज और उसके साथियों तक पहुंचा जा सके। 

** गरमी से बुरा हाल था। शाम तक ऐसा ही रहना था। 
वे तीनों आगे बढ़ रहे थे। 
पीछे न देख सके। 
पीछे शीशे के समान चमकता, पारदर्शी बवंडर दिखा, जो कि पंद्रह फीट के व्यास में... **

उपरोक्त स्थानों पर चल रही गतिविधियों के समानांतर ही अन्य स्थानों (सांपनाथ की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती में, सुनेरा की बस्ती के बाहर, वायुलाल के महल में, नागराज  की घाटी में) पर भी घटनाचक्र तेजी से चलता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में ये सब घटनाएं एक दूसरे से जुड़ जाती हैं और हालात इस तरह उलझ जाते हैं कि लगभग सबकी जान खतरे में पड़ जाती हैं।

देवराज, रानी और उनके साथी सुनेरा की बस्ती में क्यों जाना चाहते थे?
कौन था विश्व पुरुष नागराज और क्या था उसका रहस्य?
नागरानी ने ऐसी क्या बात बताई जिसने नागराज को चिंतित कर दिया? 
क्या था वो समाधान जिस कारण नागराज भी दुविधा में पड़ गया? 
क्या योजना बनाई नागराज ने? 
क्या मोना चौधरी और देवराज चौहान का आमना-सामना हुआ? 
सुनेरा ने अपनी ओर से सुरक्षा के क्या प्रबंध कर रखे थे? 
नजूमी कौन था और क्या महत्त्व था उसका? 
कौन थे बलसारा और हंसनी तथा क्या थी उनकी भूमिका?
इच्छाधारी ने इस बार क्या गुल खिलाए? 
सुनेरा की बस्ती में फंसे सांपनाथ का क्या हुआ? 
जलेबी, जगमोहन और गुलचन्द के सामने क्या-क्या खतरे आए? 
क्या वायुलाल अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाया?  
देवराज, रानी, नगीना और बांकेलाल को किन-किन खतरों से जूझना पड़ा इस बार? 
त्रिवेणी उर्फ रुस्तम राव का क्या हुआ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे!

अब हम उपन्यास के पात्रों के बारे में बात करते हैं। मुख्य पात्रों और श्रृंखला के पिछले दोनों उपन्यासों में मौजूद अधिकांश सहायक पात्रों के अलावा आपको नजूमी, बलसारा, हंसनी, नगोरा, नागरानी जैसे नए सहायक पात्र पढ़ने को मिलेंगे। 
मुझे इस उपन्यास के सहायक पात्रों में सुनेरा, बलसारा और नागरानी अच्छे लगे। नागराज का किरदार सबसे अधिक प्रभावी लगा। जहां मुख्य पात्र देवराज चौहान, मोना चौधरी, वायुलाल और रानी अच्छे रहे, वहीं जगमोहन, गंगू और सोहनलाल भी पसंद आए। रुस्तम राव और इच्छाधारी के किरदार दिलचस्प रहे हैं। पारसनाथ, महाजन, नगीना और बांकेलाल की भूमिका इस उपन्यास में साधारण ही रही। सांपनाथ, नागनाथ, दुदका, तूतका इत्यादि पात्र अपनी-अपनी जगह ठीक लगे।

इस उपन्यास में आपको नागराज की वृहद शक्तियों का परिचय मिलेगा। सुनेरा और उसकी बस्ती के बारे में और अधिक जानकारी मिलेगी। मोना चौधरी, रानी, पेशीराम और वायुलाल की कुछ और शक्तियों के बारे में पता चलेगा। जलेबी और सोहनलाल का जगमोहन को खिजाना होठों पर स्वतः ही मुस्कान ला देता है। बीच में इच्छाधारी भी अपना जलवा बिखेरने में सफल रहा है। 

उपन्यास के मुखपृष्ठ (कवर) का डिजाइन सामान्य सा ही लगा। कुछ जगहों पर संवाद काफी लंबे लिखे गए है जिन्हे लेखक द्वारा आसानी से कम किया जा सकता था। इस कमी को हटा दें तो कुल मिलाकर उपन्यास बहुत अच्छा है और पूरी श्रृंखला को मनोरंजक बना देता है। उपन्यास का अंत रोमांचक बन पड़ा है और अनिल मोहन की लेखनी का असर पाठकों को अगला उपन्यास तुरंत पढ़ने के लिए उत्साहित कर देता है। 

कमेंट्स के द्वारा हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमेशा की तरह हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8.5/10

19 मार्च 2022

सुलग उठा बारूद - अनिल मोहन

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज एक बार फिर आपके समक्ष हाजिर हूं एक और अप्रकाशित उपन्यास के साथ। 

आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं एक और अप्रकाशित उपन्यास "सुलग उठा बारूद" के बारे में जो कि अनिल मोहन का है !

             उपन्यास सुलग उठा बारूद का विज्ञापन 

उस गैलरी के आखिरी कोने में वॉल्ट के स्ट्रॉन्ग रूम का दरवाजा था और दरवाजे तक पहुंचने के बीस फीट लंबे रास्ते पर बारूद भी बिछा था, जिस पर पैर रखते ही शरीर लोथड़ों में बदल जाना था और बीस फीट लंबे सुलगते बारूद को पार किए बिना वॉल्ट के दरवाजे तक पहुंचना असंभव था जिसके पार करोड़ों अरबों की अथाह दौलत मौजूद थी। जबकि उस दौलत को पाने के लिए देवराज चौहान अपना कदम आगे बढ़ा चुका था। आज उसे गोल्ड वॉल्ट में डकैती डालनी ही थी... और

उपरोक्त विज्ञापन के अनुसार अनिल मोहन का देवराज चौहान श्रृंखला का ये उपन्यास एक जबरदस्त डकैती को अंजाम देने पर आधारित है। विज्ञापन का आधार डकैती में मुख्य रुकावट बनी हुई बारूद बिछी बीस फीट की गैलरी रखा गया है जिसे पार कर पाना आसान काम नही था। वहीं पर देवराज चौहान अपना मन इस वॉल्ट को लूटने का बना चुका था। 

इस उपन्यास का पूर्व भाग "पहरेदार उपन्यास समीक्षा" था जिसके बारे में हम अपने विचार आपसे पहले ही सांझा कर चुके हैं । 

अगर ये उपन्यास प्रकाशित हुआ होता तो देवराज चौहान द्वारा इस बीस फीट की गैलरी को पार कर पाना और फिर गोल्ड वॉल्ट में डकैती करना अपने-आप में बेहद मजेदार और रोचक होता। साथ ही इतना तो स्पष्ट ही है कि उपन्यास में बारूद बिछी गैलरी के अलावा कुछ और कड़े सुरक्षा इंतजाम भी किए ही गए होंगे जिनका विज्ञापन में सस्पेंस बनाए रखने के लिए कोई जिक्र नहीं किया है। 

हालांकि ये उपन्यास प्रकाशित नही हो पाया परंतु इसका क्या कारण रहा, इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं है।

उपरोक्त लिखित जानकारी के अलावा हमारे पास इस उपन्यास के बारे में अन्य कोई जानकारी इस समय उपलब्ध नहीं है। 

अगर आप इस उपन्यास के बारे में कोई और जानकारी रखते हैं तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ जरूर शेयर करें।

14 मार्च 2022

तहकीकात पत्रिका - नीलम जासूस कार्यालय

पत्रिका: तहकीकात
श्रेणी: जासूसी तथा अपराध कथाएं
पेज संख्या: 150
मूल्य: 150 रुपए
प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय
प्रधान संपादक: सुबोध भारतीय
संपादक: राम पुजारी
                              तहकीकात पत्रिका

साथियों! बहुत वर्ष पूर्व जासूसी पत्रिकाएं बेहद प्रचलन में हुआ करती थी। लगभग सभी लेखकों की जासूसी कहानियां, अपराध कथाएं एवं उपन्यास इन पत्रिकाओं में छपा करते थे। पाठक भी इन पत्रिकाओं को खूब चाव से पढ़ा करते थे। एक ही पत्रिका में पाठकों को अलग-अलग कहानियों और उपन्यासों का आनंद मिल जाया करता था। समय बीतने के साथ ऐसी सभी पत्रिकाएं बंद हो गई। सिर्फ गिनी-चुनी अपराध कथाओं से जुड़ी पत्रिकाएं ही अपना वर्चस्व बचा पाईं हैं परंतु उनकी बिक्री भी क्रमशः घटती जा रही है।

आज इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी ही नई जासूसी पत्रिका 'तहकीकात' के बारे में जिसके प्रथम अंक (प्रवेशांक) को नीलम जासूस कार्यालय ने दिसंबर 2021 माह में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। संपादकीय परामर्शदाता के रूप में परशुराम शर्मा, वेद प्रकाश कांबोज, आबिद रिजवी, योगेश मित्तल और वीरेंद्र कुमार शर्मा जैसी अनुभवी हस्तियों ने पत्रिका में अपना योगदान दिया है।

चलिए, बात करें अब तहकीकात पत्रिका के प्रवेशांक तथा इसमें प्रस्तुत की गई लेखन सामग्री के बारे में! 
प्रवेशांक की शुरुआत सुबोध भारतीय ने "सुनहरे दौर की वापसी" नामक आलेख द्वारा की है। इसके पश्चात राम पुजारी का संपादकीय आता है। 
फिर आता है 'शुभकामना संदेश' जिसमे विभिन्न पाठकों और प्रख्यात उपन्यासकार अमित खान ने तहकीकात पत्रिका के लिए अपनी शुभकामनाएं दी हैं तथा इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। 
इसके बाद चार जासूसी-अपराध कथाएं पढ़ने को मिलती हैं:
1. चरित्रहीन (मौलिक कहानी अहमद यार खान द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
2. हत्यारा कौन (मौलिक कहानी मलिक सफदर हयात द्वारा उर्दू में रचित - इश्तियाक खां द्वारा हिंदी अनुवाद)
3. शराबी कातिल (वेद प्रकाश कंबोज द्वारा रचित)
4. रहस्यमयी खबरी (अंग्रेजी कहानी 'ए बर्गलर्स घोस्ट' - विकास नैनवाल द्वारा हिंदी अनुवाद)
कहानियों के मध्य पुराने दिग्गज उपन्यासकार श्री वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास "चीते की आंख" की समीक्षा प्रकाशित की गई है जिसे गुरप्रीत सिंह (गुरप्रीत जी साहित्य देश, विवेकानंद पुस्तकालय बगीचा नामक दो ब्लॉग चलाते है तथा उन पर पुस्तको की समीक्षा उनके बारे में जानकारी लेखकों की जानकारी इत्यादि उपलब्ध करवाते है) ने लिखा है।

फिर आता है पत्रिका का अंतिम भाग "सत्यबोध परिशिष्ट"। परिशिष्ट में पहले लेखक रोशनलाल सुरीरवाला की लघु कहानी "चील कौवे" प्रस्तुत की गई है। 
फिर हस्तीमल हस्ती, बशीर बद्र और राजेश रेड्डी जैसे शायरों की गजलों को स्थान दिया गया हैंl। 
इसके बाद सुबोध भारतीय की कहानी "अहसान का कर्ज" आती है। 
तत्पश्चात गोविंद गुंजन का आलेख "किताबों के दिन" है जिसमे उन्होंने अपनी यादों और लोकप्रिय साहित्य की किताबों के महत्त्व के बारे में बताया है। 
फिर डा. राकेश कुमार सिंह और जितेंद्र नाथ ने पुराने हिंदी उपन्यासकार जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के दो उपन्यासों "सांझ का सूरज" और "रुक जाओ निशा" की समीक्षा प्रस्तुत की है।
पत्रिका का समापन हास्य रस से होता है। बीच-बीच में एक-दो जगहों पर व्यंग्य का पुट भी दिया गया है।

कुल मिलाकर पत्रिका मनोरंजक लगी। प्रवेशांक की दृष्टि से लेखन सामग्री में विविधता देखने को मिलती है। चार कहानियां पुरानी हैं पर रोचक हैं। वेद प्रकाश कांबोज की कहानी उनकी लेखनी की याद ताजा कर देती है। 
सत्यबोध परिशिष्ट भी बढ़िया बन पड़ा है। "चील कौवे" कहानी न सिर्फ मार्मिक है बल्कि आज भी प्रासंगिक है। 'अहसान का कर्ज़' कहानी भी अच्छी लगी।

आज के इंटरनेट के युग में भी नीलम जासूस कार्यालय ने एक नई जासूसी पत्रिका को प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। नीलम जासूस कार्यालय का यह कदम सराहना योग्य है। फिलहाल नीलम जासूस कार्यालय की योजना इसे द्विमासिक पत्रिका के तौर पर प्रकाशित करने की है। 

यहां पर मैं दो बातें बताना चाहूंगा जो पत्रिका में ठीक की जाएं तो पत्रिका और भी बेहतर हो जायेगी। 
पहली बात - पत्रिका का मूल्य 150 रुपए मुझे अधिक लगा। पत्रिका में विज्ञापनों को प्रकाशित कर और पाठकों का आधार बढ़ाकर आगामी अंकों के मूल्य को कम किया जा सकता है। इससे आर्थिक लाभ में भी बढ़ोतरी होगी।
दूसरी बात - प्रवेशांक के कागज की गुणवत्ता साधारण ही लगी। आम पत्रिका में मुख्यत जो पेज होते हैं उसकी तरह पेज नही है जिसके कारण मुझे लगता है पत्रिका का मूल्य ज्यादा लगा। आगामी अंकों में गुणवत्ता को और अच्छा किया जाना चाहिए। 

उम्मीद हैं कि तहकीकात पत्रिका के आगामी अंक और भी मनोरंजक होंगे। हमारी कामना है कि पत्रिका को पाठकों का भरपूर प्यार मिले और पत्रिका भविष्य में भरपूर सफलता प्राप्त करे। हमारी शुभकामनाएं नीलम जासूस कार्यालय के साथ हैं।

अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 7.5/10

08 मार्च 2022

इच्छाधारी - अनिल मोहन

उपन्यास: इच्छाधारी
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 304

इच्छाधारी - देवराज चौहान और मोना चौधरी का पूर्व जन्म में खतरनाक हादसों का सफर!!

'इच्छाधारी' चार उपन्यासों की श्रृंखला का द्वितीय भाग है। इस श्रृंखला का प्रथम भाग 'देवदासी' है जिसकी समीक्षा हम कुछ समय पूर्व ब्लॉग पर शेयर कर चुके हैं। 

'देवदासी' उपन्यास में पेशीराम की भविष्यवाणी के अनुसार देवराज चौहान, मोना चौधरी और उनके साथी एक बार फिर पूर्व जन्म में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने-अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना करते हैं। मुख्यतः विष्णु सहाय नामक व्यक्ति इन सबके पूर्व जन्म में प्रवेश का माध्यम बनता है।

'इच्छाधारी' उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
** "ये बाग, ये नजारा सब कुछ उसी की विद्या के तिलिस्म की देन है। यहां कई जगह उसने अपनी पसंद के खतरे तैयार कर रखे हैं जो कि देखने में, समझ में नहीं आएंगे। उन खतरों में फंस जाने के बाद वहां से बच पाना आसान नहीं। अनजान आदमी को जान से हाथ धोना पड़ता है।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें बाग में दूर-दूर तक गईं। 
"यहां नजर आने वाले वृक्षों पर लटकते फल खाने वाला बच नहीं सकता" **

'देवदासी' उपन्यास के अंत से कहानी को आगे बढ़ाते हुए 'इच्छाधारी' उपन्यास का आरंभ होता है उस दृश्य से, जहां देवराज (पूर्व जन्म में देवा) और सवा सौ वर्ष बाद मंत्र कीलित कैद से आजाद हुई देवदासी रानी अपने पूर्व जन्म की यादों में चले जाते हैं। जगमोहन (पूर्व जन्म में जग्गू) को भी सब याद आ जाता है। तभी वायुलाल की आवाज वहां गूंजती है जो रानी के आजाद होने से बहुत गुस्से में है तथा देवा, रानी और जग्गू को उनके बुरे अंजाम की चेतावनी देता है। देवा और रानी वायुलाल की आवाज को उसकी चेतावनी का जवाब देते हैं और फिर रानी के कहे अनुसार सांपनाथ की बस्ती का रास्ता ढूंढने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। 

** "..... पता कर लूंगी मैं जल्दी ही। हमें यहां से सांपनाथ की बस्ती की तरफ चल देना चाहिए। अब हमारा एक-एक पल कीमती है।"
"चलेंगे कैसे?" 
जवाब में रानी की निगाह बाग में घूमने लगी। इस वक्त उसके चेहरे के भाव बदल गए थे। सतर्कता में लग रही थी वो कि तभी..... **

दूसरी तरफ एक अंधे कुएं में नगीना (पूर्व जन्म में बेला), रुस्तम राव (पूर्व जन्म में त्रिवेणी) और बांकेलाल राठौर को होश आता है जहां वो इच्छाधारी की करामात से आ पहुंचे थे। अचानक उन्हें समय नामक एक लड़के की आवाज आती है जो उन्हें अंधे कुएं से बाहर निकालता है। बाहर निकल कर तीनों को पता चलता है कि वो लोग एक वीरान से गांव में हैं जहां सिर्फ समय ही एक आखिरी मनुष्य बचा है और गांव के बाकी सब लोगों को राक्षस खा चुके हैं। जल्दी ही राक्षस समय को खाने के लिए भी आने वाला था। नगीना, रुस्तम और बांकेलाल डरे हुए समय को मदद का आश्वासन देते हैं। शीघ्र ही राक्षस समय को खाने के लिए आ पहुंचता है। समय जाकर झोंपड़ी में छुप जाता है जबकि नगीना, रुस्तम और बांकेलाल राक्षस का सामना करते हैं। परंतु उनके इस युद्ध का ऐसा दिल दहला देने वाला परिणाम निकलता है जिसकी कोई सपने में भी उम्मीद नहीं कर सकता था।

** उधर रुस्तम राव आहिस्ता से पेड़ से उतरा और तलवार संभाले शिकारी चीते की तरह उसे देखता दबे पांव उसकी तरफ बढ़ने लगा। कमर में उसने कटार फंसा रखी थी।
वो राक्षस बार बार चीखकर समय को सामने आने को कह रहा था। 
बांकेलाल राठौर और नगीना अपनी-अपनी जगहों पर छिपे राक्षस की हरकतों को पहचानने की चेष्टा कर रहे थे। **

तीसरी तरफ एक अन्य स्थान पर वायुलाल का पुराना सेवक गंगू अपनी नौका में मोना चौधरी (पूर्व जन्म में मिन्नो), पारसनाथ और महाजन (पूर्व जन्म में नीलसिंह) को नदी पार करवा रहा होता है। सोहनलाल (पूर्व जन्म में गुलचंद) भी इनके संग होता है। नौका के नदी किनारे पहुंचते ही वायुलाल मोना चौधरी और उसके साथियों से मिलता है। वायुलाल पहले उन्हें पूर्व जन्म की घटनाएं और ताजा हालात के बारे में बताता है तथा फिर उन सबको अपने महल में ले जाने का प्रस्ताव देता है। 

** कश्ती के बीचों-बीच लकड़ी का खिड़कियों वाला कमरा था जिसके भीतर मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन मौजूद थे। कश्ती उन सीढ़ियों के पास पहुंच चुकी थी। 
मिन्नो दुबारा जन्म लेकर, वायुलाल के पास सवा सौ बरस बाद पुनः आ पहुंची थी। **

देवराज चौहान पर वायुलाल के क्रोध की क्या वजह थी? 
क्या थी देवदासी रानी की पूर्व जन्म की कहानी? 
सांपनाथ कौन था और क्या उद्देश्य था उसका? 
देवराज, रानी और जगमोहन आखिर किस प्रयोजन से सांपनाथ की बस्ती की ओर बढ़ रहे थे? 
समय कौन था और वो राक्षस उसके पीछे क्यों पड़ा हुआ था? 
नगीना, रुस्तम, बांकेलाल तथा राक्षस के मध्य हुए युद्ध का ऐसा क्या दिल दहला देने वाला परिणाम निकला जिसने पूरे घटनाचक्र की दिशा ही बदल कर रख दी? 
वायुलाल मोना चौधरी और उसके साथियों को अपने महल में क्यों ले जाना चाहता था? 
आखिर इच्छाधारी का प्रयोजन क्या था? 
सांपनाथ किस तरह की दुविधा में फंस गया था? 
देवता मोमबांबा कौन था और क्या थी उसकी भूमिका? 
नागनाथ कौन था और क्या करने की फिराक में था? 
क्या देवराज, रानी, जगमोहन की मुलाकात नगीना, रुस्तम और बांकेलाल से हो सकी? 
देवराज, रानी और जगमोहन क्या सांपनाथ की बस्ती तक पहुंच सके? 
सुनेरा कौन था और ऐसी क्या विशिष्ट वस्तु रखी हुई थी उसके पास? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास में मिलेंगे!

पात्रों के बारे में बात की जाए तो पिछले उपन्यास के अधिकांश पात्रों के अलावा इस उपन्यास में आपको हुगली, मुंगेरा, सांपनाथ, दुदका, सुमित्रा, कुड़की, हुंडी, मुद्रानाथ, तूतका, छिंदड़ा, देवता मोमबांबा, सुनेरा, नागनाथ की उपस्थिति मिलेगी। 
उपन्यास के नए पात्रों में मुझे सांपनाथ, दुदका, कुड़की और हुंडी अच्छे लगे। देवता मोमबांबा थोड़े रहस्यमयी प्रतीत हुए। रानी का पूर्व जन्म का प्रसंग, बांकेलाल और रुस्तम का राक्षस से खतरनाक युद्ध, वायुलाल की विद्या, सांपनाथ का जानलेवा संघर्ष - ये सब पढ़ने में आनंद आया। जलेबी एक बार फिर इस उपन्यास में आपको नजर आएगी।

मेरे विचार से उपन्यास तेज रफ्तार, दिलचस्प और पठनीय है। उपन्यास में पात्रों की भूमिका तथा उनके संवादों के साथ-साथ माया, जादू और तिलिस्म का भरपूर उपयोग किया गया है जो पाठकों को बांधे रखता है। जिस प्रकार से कहानी में रहस्यों को परत-दर-परत पिरोया गया है और फिर एक-एक कर रहस्यों की परतें खुलती जाती हैं, यह बहुत मनोरंजक लगा। कहानी किस समय पर क्या मोड़ ले लेगी, इसका अनुमान लगा पाना भी काफी कठिन हो जाता है।

निःसंदेह कुछ रहस्य तो श्रृंखला के अगले उपन्यास "नागराज की हत्या" में ही खुलेंगे, वहीं आने वाले कुछ और रहस्य आगे की कहानी में रोचकता भी पैदा करेंगे! 

उपन्यास पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा कि उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर) कहानी के अनुसार डिजाइन नही किया गया है । 
मुझे इस उपन्यास की कहानी में दो कमियां लगीं:
प्रथम कमी - मुख्य पात्र देवराज चौहान और मोना चौधरी इस उपन्यास में अधिक एक्शन में नजर नहीं आते हैं। इस उपन्यास में दोनों अपने साथियों से ज्यादातर सिर्फ बातचीत ही करते रहते हैं। देवराज चौहान और मोना चौधरी को अक्सर एक्शन में देखने की उम्मीद रखने वाले पाठक यहां थोड़े निराश हो सकते हैं।
द्वितीय कमी - पारसनाथ, महाजन और मोना चौधरी बार-बार वायुलाल से एक ही तरह की बातें दोहराते रहते हैं जो कि थोड़ा उबाऊ लगा।

अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा हमें अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

02 मार्च 2022

देवदासी - अनिल मोहन

उपन्यास: देवदासी
लेखक: अनिल मोहन
श्रेणी: माया, जादू, तिलिस्म तथा रोमांच
पेज संख्या: 272
कदम कदम पर मौत से भरी दीवानगी! हर कोई सामने वाले का गला काटकर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधना चाहता था!

'देवदासी' चार उपन्यासों की श्रृंखला का प्रथम भाग है। इस उपन्यास से एक बार फिर देवराज चौहान और मोना चौधरी का पूर्व जन्म का सफर आरंभ हो रहा है जहां कदम-कदम पर नए जानलेवा हादसे उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

उपन्यास के मध्य से लिया गया एक अंश: 
** कोई और होता तो मन ही मन हिल जाता रात का ऐसा माहौल देखकर। 
देवराज चौहान की गंभीर निगाह हर तरफ जा रही थी। 
"कैसा लग रहा है देवा?" अब वो आवाज फुसफुसाहट की अपेक्षा स्पष्ट कानों में पड़ी। 
देवराज चौहान ने आवाज की दिशा की तरफ देखा तो कोई न दिखा। 
"तुम.. तुम यहां मुझे अपना रूप दिखाने...." **


उपन्यास के आरंभिक दृश्य में अचानक पेशीराम उर्फ फकीर बाबा की आवाज सुनकर कार चला रहा देवराज चौहान चौंक जाता है। पेशीराम उसे आने वाले खतरे की सूचना देकर अदृश्य हो जाता है। 

** "वक्त कम है देवा। सारे ग्रह केंद्रबिंदु पर पहुंचने शुरू हो चुके हैं। वो कभी भी अपना असर...।" 
"मैं जहां जा रहा हूं, वहां मेरा पहुंचना बहुत जरूरी...!"
"जिद ना कर देवा। तेरे को...!"
"अगर कोई और बात होती तो मैं एक दिन क्या, तेरे कहने पर दस दिन बंगले में बैठ जाता। लेकिन..." **

तभी देवराज की कार रास्ते में खराब हो जाती है। देवराज कार के इंजन की जांच में लग जाता है। उसी समय एक ट्रक बहुत तेज गति से देवराज की ओर आता है। विष्णु सहाय नाम का एक आदमी सही समय पर आकर देवराज को धक्का देकर ट्रक के रास्ते से हटा देता है। देवराज तो बच जाता है परंतु उसकी कार क्षतिग्रस्त हो जाती है। देवराज सहाय का आभार प्रकट करता है। सहाय उसे अपनी कार में साथ चलने का प्रस्ताव देता है जिसे देवराज मान लेता है। बातचीत के दौरान सहाय अपनी एक समस्या देवराज को बताता है कि उसकी गांव में पड़ी जमीन को कोई भी ठेकेदार समतल नही कर पा रहा। सहाय देवराज से पूछता है कि क्या वो उसकी कोई सहायता कर सकता है! देवराज फोन करने की बात कहकर कार से उतर जाता है। 

** "चलता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने दरवाजा खोला। 
"मतलब कि तुम इस मामले में मेरी कोई सहायता नहीं कर सकते?" विष्णु सहाय ने एकाएक कहा। 
"कल फोन करके बताऊंगा।" **

घर पहुंचने पर देवराज जगमोहन से विष्णु सहाय और पेशीराम की चेतावनी के बारे में विचार-विमर्श करता है। दूसरी तरफ बांकेलाल राठौर और रुस्तम को रास्ते में एक घायल सब-इंस्पेक्टर महेशपाल मिलता है। महेशपाल उन दोनों से अपनी जान बचाने की विनती करता है क्योंकि उसके पीछे कुछ गुंडे लगे होते है। बांके और रुस्तम पहले तो साफ मना कर देते हैं, फिर गुंडों को देखने के बाद महेशपाल को अपने साथ ले लेते हैं ताकि उसे कुछ समय के लिए एक सुरक्षित ठिकाना दे सकें। 

** वो तीनों जैसे गुस्से से भरे, किसी को ढूंढ रहे थे। 
"लफड़ा होएला बाप!" 
बांकेलाल राठौर ने सीट पर पड़े पुलिस वाले को देखा। 
"भयो खाकी वर्दी!" बांकेलाल राठौर ने... **

इधर एक अन्य समानांतर दृश्य में बाजार में एक चोर मोना चौधरी का पर्स छीनकर भाग जाता है। मोना उसका पीछा करती है। रास्ते में एक हवलदार वीरेंद्र चोर को पकड़ लेता है। मोना अपना पर्स वापस मांगती है पर उसकी वीरेंद्र से बहस हो जाती है और वीरेंद्र उन दोनों को पुलिस स्टेशन ले जाता है। वहां इंस्पेक्टर लोकनाथ मोना को पहचान लेता है और एक प्रस्ताव देता है कि वो मोना को जाने देगा अगर मोना उसकी एक समस्या हल कर दे। मोना किसी तरह वहां से निकल आती है। 

** "जाओ।" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में कहा - "मैं तुम्हे रोकूंगा नही।" 
मोना चौधरी ने दरवाजे की तरफ हाथ बढ़ाया कि लोकनाथ कह उठा।
"इंस्पेक्टर लोकनाथ कहते है मुझे। मन करे तो फोन कर देना।..." **

सब घटनाओं के तार कुछ इस प्रकार से आपस में जुड़ते हैं कि देवराज, जगमोहन, बांके, रुस्तम, सोहनलाल, नगीना और मोना, पारसनाथ, महाजन एक-दूसरे के सामने आ जाते हैं और घटनाओं के चक्र में बुरी तरह उलझ जाते हैं। सब उसी रास्ते पर आगे बढ़ते चले जाते हैं जो उनके पूर्व जन्म की ओर जाता है।

विष्णु सहाय की गांव में खरीदी हुई जमीन समतल क्यों नही हो पा रही थी? 
क्या देवराज चौहान ने विष्णु सहाय की मदद की? 
इस बार देवराज, मोना और इनके साथियों के रास्ते एक कैसे हुए? 
कहां से आई प्रेमा और उसने क्या हरकतें की? 
पूर्व जन्म का रास्ता कैसे खुला और किसने खोला? 
कौन थी रानी और क्या इच्छा थी उसकी? 
वायुलाल कौन था और क्या उद्देश्य था उसका? 
जलेबी की क्या भूमिका थी और वो क्या चक्कर चला रही थी? 
सत्तू कौन था, कहां से आया और क्या चाहता था? 
इस बार पूर्व जन्म में देवराज और मोना का टकराव किस तरह के खतरों से होने वाला था? 
किस प्रकार देवराज, मोना और इनके साथी पूर्व जन्म में आने वाले खतरों का सामना कर सके? 
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा!

चलिए, अब कहानी की बात की जाए! उपन्यास में पूर्व जन्म की कहानी की शुरुआत बढ़िया हुई है। कहानी घुमावदार होने के साथ-साथ तेज रफ्तार भी है। पूर्व जन्म के खतरों और रहस्यों के बारे में पढ़ना रोचक रहा। देवदासी उपन्यास का अंत अगले भाग "इच्छाधारी" को पढ़ने के प्रति एक उत्सुकता सी जगाता है।
इस उपन्यास में आपको दोनों मुख्य पात्रों देवराज चौहान, मोना चौधरी के अतिरिक्त जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना, पारसनाथ, महाजन, विष्णु सहाय, जमींदार, सत्तू, प्रेमा, रानी, जलेबी, वायुलाल इत्यादि पात्र भी पढ़ने को मिलेंगे। 
देवराज और जगमोहन ने कहानी में बेहतरीन मनोरंजन किया है। मोना चौधरी अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखी। उपन्यास में अधिकतर पात्रों के संवाद और उनकी भूमिका अच्छी बन पड़ी है खासकर बांकेलाल राठौर के संवाद, नगीना की एंट्री, रानी की बातें, सत्तू के तेवर और जलेबी का चक्कर। 

मुझे कहानी में एक कमी ये महसूस हुई कि लेखक ने देवराज और मोना को एक साथ पूर्वजन्म के रास्ते पर लाने के लिए जिस तरह से घटनाओं का आपस में तालमेल बिठाया, वो कुछ कमजोर लगा। 

उपन्यास का मुखपृष्ठ (कवर पेज) सामान्य ही लगा। उपन्यास में शाब्दिक गलतियां काफी कम हैं जिस कारण उपन्यास पढ़ते समय और भी अच्छा महसूस होता है। 

मेरे अनुसार अनिल मोहन के प्रशंसकों के लिए तो ये उपन्यास पठनीय है ही। अगर माया, जादू और तिलिस्म में रुचि है तो अन्य पाठक भी इस उपन्यास को पढ़कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

हमें अपने विचारों से कमेंट्स के द्वारा अवश्य अवगत करवाएं। आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 8/10

22 फ़रवरी 2022

लौट आया नरपिशाच - देवेंद्र प्रसाद

उपन्यास: लौट आया नरपिशाच 
श्रेणी: हॉरर (डर, भूत-प्रेत-पिशाच)
लेखक: देवेंद्र प्रसाद 
पेज संख्या: 194 (किंडल)

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लेखक देवेंद्र प्रसाद ने वर्ष 2020 में "हॉरर/डर" श्रेणी में "नरपिशाच समीक्षा" नामक पुस्तक (कहानी संग्रह) लिखी थी जिसकी समीक्षा हम पहले ही पोस्ट कर चुके हैं। "लौट आया नरपिशाच" इसी कहानी संग्रह को और अधिक विस्तार देते हुए लेखक द्वारा उपन्यास के रूप में लिखा गया है।

उपन्यास से लिया गया एक छोटा सा अंश: 
रात के बारह बज चुके थे। कोहरा शाम से ही छाने लगा था। अंधेरे ने काली चादर फैलाकर अपना साम्राज्य कायम कर लिया था। चर्च के कब्रिस्तान के साथ-साथ पूरा इलाका अंधेरे में डूब चुका था। हवाओं का उग्र रूप इस कदर हावी था , जैसे वह आज कोई बड़ी अनहोनी का न्योता दे रहा हो। 
वह उस वीराने में जो इकलौता चर्च था, वो उस कब्रिस्तान में पड़ता था... 

इस उपन्यास का आरंभ होता है वर्ष 1995 में कब्रिस्तान के साथ बने एक जर्जर चर्च के दृश्य से जहां फादर डिकोस्टा अपने बच्चे एंथनी के साथ रहते हैं और चर्च की सेवा में नियुक्त है। अमावस्या की रात में बेहद खराब मौसम के मध्य अचानक दरवाजे पर तेज थपथपाहट सुनकर फादर डिकोस्टा दरवाजा खोलता है पर सामने किसी को न पाकर हैरान हो जाता है। अचानक दूर कहीं रोने की आवाज सुनकर मन ही मन थोड़ा डरा हुआ फादर डिकोस्टा उस दिशा में आगे जाता है। रोने की आवाज वाली जगह पर पहुंचते ही फादर डिकोस्टा के साथ एक ऐसा वीभत्स मंजर घटित होता है कि उनकी जान पर बन आती है। 

क्षण भर में ही वह दृश्य उनकी आँखों में कैद हो चुका था। उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं और उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि जैसे उसके प्राण हलक में आकर फँस गए हों। उसने जो देखा था, उस पर विश्वास करना किसी के लिए भी आसान नहीं था। इसी वजह से उसके पाँव वहीं के वहीं जम गए थे। 

24 साल बाद वर्ष 2019 में एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी का मालिक विश्वनाथ सिंह पाटिल, केविन मार्टिन नाम के एक डिटेक्टिव को चौहड़पुर नामक जगह पर एक गुप्त मिशन पर भेजता है। केविन का मिशन चौहड़पुर में एक भयानक नरपिशाच के बारे में फैली हुई अफवाहों की सच्चाई का पता लगाना है जो कि अनेक वर्षों से वहां डर और आतंक का कारण माना जाता है। 

विश्वनाथ सिंह पाटिल बोला, “लुक केविन , तुम्हें अब सबसे बड़ी चुनौती देने जा रहा हूँ। बात यह है कि तुम्हें जहाँ भेजा जा रहा है , उस जगह तुम्हारी जान जाने का भी खतरा भी हो सकता है क्योंकि वहाँ के आस-पास के कई गाँवों तक किसी नरपिशाच का साया है। 

अब तक 49 केस हल कर चुका केविन एक आत्मविश्वास से परिपूर्ण और आधुनिक विज्ञान में विश्वास करने वाला डिटेक्टिव है। केविन चौहड़पुर के लिए ड्राइवर लखविंदर सिंह की टैक्सी बुक करता है। चौहड़पुर पहुंचकर नकली नाम मार्टिन डिसूजा का इस्तेमाल कर चौहड़पुर के भव्य सेंट पॉल चर्च के फादर से मिलता है। फादर उसका परिचय एक युवती जेनेलिया से करवाते हैं जो चर्च की सार-संभाल में फादर की सहायता करती है। 

वहाँ फ़ादर एंथनी डिकोस्टा और केविन के सिवा कोई भी नहीं था। उन सभी के जाने के साथ ही एक युवती ने वहाँ प्रार्थना भवन में प्रवेश किया। उसे देखते ही फ़ादर एंथनी डिकोस्टा बोले, “केविन! इनका नाम जेनेलिया है और यहाँ इसी चर्च में पहली मंजिल पर ही रहती हैं।" 

यहीं से केविन अपनी जांच पड़ताल शुरू कर देता है ताकि इन सब अफवाहों की जड़ तक जल्दी से जल्दी पहुंच सके। जैसे-जैसे केविन इस मामले को समझने और हल करने की कोशिश करता है, वैसे-वैसे ही वो और अधिक उलझता चला जाता है और उसे एक अनजाने खतरे का आभास होने लगता है । जहां कुछ लोग उसके शक के दायरे में आते हैं, वही कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं जो उसका दिमाग घुमाकर रख देती हैं।

उन्होंने उसकी नब्ज टटोली तो उसमें भी कोई हलचल नहीं पाई। वह काफी चिंतित हो गए। वह लगभग आश्चर्य और डर के मिश्रित स्वर में बोला , “इसका हर अंग किसी मुर्दे की तरह बिल्कुल ही सुन्न है। यह संभव नहीं हो सकता , बिल्कुल भी नहीं।” 

आखिर क्या हुआ था फादर डिकोस्टा के साथ उस रात? 
फादर डिकोस्टा के बच्चे एंथनी का क्या हुआ? 
केविन की चौहड़पुर तक की यात्रा में क्या-क्या घटित हुआ? 
चौहड़पुर में इस मिशन पर काम करते समय ऐसा क्या हुआ जिसने केविन को उलझाकर रख दिया? 
क्या था सेंट पॉल चर्च का इतिहास? 
क्या रहस्य था काली बिल्ली का? 
क्या था वो अनजान खतरा जिसका आभास तो केविन को हो रहा था पर वो उसे समझ नही पा रहा था? 
कौन थी जेनेलिया और क्या थी उसकी कहानी? 
क्या वास्तव में चौहड़पुर में कोई नरपिशाच आतंक मचा रहा था या फिर ये मात्र एक अफवाह थी? 
अगर वास्तव में कोई नरपिशाच था तो क्या केविन उस नरपिशाच का खात्मा कर सका?
क्या चौहड़पुर जैसी अंजान जगह पर केविन को कहीं से कोई सहायता प्राप्त हो पाई? 
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा!

आप इस उपन्यास में मुख्य पात्र केविन मार्टिन के अलावा कई और पात्रों से रूबरू होंगे जैसे कि फादर डिकोस्टा, एंथनी, विश्वनाथ पाटिल, लखविंदर सिंह, विजय, आलिया, थॉमस, जेनेलिया, जॉनी, विलियम तथा साथ ही कुछ और रहस्मयी पात्रों से भी। उपन्यास में मुझे केविन, लखविंदर सिंह और फादर के पात्र बढ़िया लगे। जेनेलिया तथा थॉमस के पात्र भी कहानी के हिसाब से उपयुक्त लगे। अन्य पात्र सामान्य लगे।

अब उपन्यास की बात करें तो हॉरर श्रेणी में यह एक बढ़िया उपन्यास है। कहानी अच्छी है और कई अलग-अलग मोड़ों से गुजरती हुई रोमांचक तरीके से समाप्त होती है। खासकर कहानी की शुरुआत, कहानी में केविन की लखविंदर सिंह के साथ टैक्सी में यात्रा वाला भाग तथा कहानी का अंतिम भाग तो मजेदार बन पड़ा है। उपन्यास का लेखकीय भी पठनीय है। 

उपन्यास में मुझे सिर्फ एक ही कमी लगी कि कुशाग्र बुद्धि केविन चौहड़पुर में केस की जांच-पड़ताल करने में कई महीनों का समय लगा देता है, जिस कारण कहानी का ये प्रसंग कुछ खिंच सा जाता है। ये जरा सही नहीं लगा। इसके अलावा कहानी कहीं भी अपनी पकड़ नही खोती है।

यह उपन्यास वर्ष 2021 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के किंडल एडिशन की गुणवत्ता अच्छी है और शाब्दिक गलतियां भी बेहद कम हैं। 

मेरा विश्वास है कि हॉरर उपन्यासों के प्रेमी पाठक इस उपन्यास को पढ़कर निराश नहीं होंगे। 

कमेंट्स के द्वारा अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं। हमे आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

रेटिंग: 7.5/10