26 दिसंबर 2021

असफल अभियान - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : असफल अभियान 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 182 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का नौवां अध्याय !!

उपन्यास "असफल अभियान" के आरंभ से लिया गया एक छोटा सा अंश:
इमारत में या उसके आसपास कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं थी। आसपास सैकड़ों गज तक कोई दूसरी इमारत भी नही दिखाई दे रही थी। 
विमल कई क्षण इमारत के सामने ठिठका सा खड़ा रहा था।
प्रत्यक्षत: उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि वह सही जगह पहुंच गया था या नहीं।
उस समय वह अपने फेमस हिप्पी परिधान में था।

                                     उपन्यास कवर

पिछले उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" के अंत में किस्मत से ही विमल की जान बचती है और वो अपना बहुरूप धारण करके आगरा से सुरक्षित निकल जाता है, हालांकि लूट का माल़ आखिरी मौके पर उसके हाथ से फिसल जाता है।

उपन्यास "असफल अभियान" की शुरुआत होती है सोनपुर की एक दोमंजिली इमारत से जहां द्वारकानाथ की कही एक बात को मानकर विमल डॉक्टर स्लेटर से मिलने आता है ताकि वो प्लास्टिक सर्जरी से एक नया चेहरा हासिल कर सके और अपनी पुरानी जिंदगी से छुटकारा पा सके। पर विमल के पास डॉक्टर स्लेटर की फीस भरने लायक धन नहीं होता अतः वो निराश होकर वापिस लौटता है। 

"छोड़िए ।" - विमल उठता हुआ बोला - "थैंक्यू फोर एवरीथिंग, डॉक्टर स्लेटर । 
"मतलब ?" डॉक्टर स्लेटर सकपकाया ।
"मतलब यह कि आपके अक्षत यौवन की मुझे जरूरत नहीं और आपसे हासिल होने वाला नया चेहरा शायद मेरी किस्मत में नही लिखा ।

वापिस लौटते समय सोनपुर के स्टेशन पर विमल की मुलाकात एक आदमी जगमोहन से होती है। जगमोहन भी इसी काम के लिए आया होता है और उसके साथ भी यही समस्या होती है। तुरंत धन प्राप्त करने का और कोई हल न होने के कारण विमल जगमोहन के साथ राजनगर चला जाता है क्योंकि उसके पास पैसे कमाने की एक तरीका होती है । 

"सॉरी । मैंने समझा था कि जब तुमने मेरा जयपुर वाला काम पकड़ा है तो मेरे कामों से मेल खाती कोई योजना भी तुम्हारे दिमाग में होगी।"
"यह बात नही है ।"
"तो फिर तुम्हारे दिमाग में क्या है ?"
"मेरे दिमाग में है.........."

जगमोहन की बात सुनने के बाद विमल को विचार अच्छा तो लगता है पर थोड़ा खतरनाक भी! विमल योजना बनाने के लिए और योजना पर पर काम करने के लिए मान जाता है । योजना बनाने के पश्चात विमल जगमोहन के साथ मिलकर तुरंत जरूरी तैयारियां करने और उपयुक्त साथियों की खोज करने में लग जाता है । 

"गुरु ।" - जगमोहन मंत्रमुग्ध स्वर में बोला - "तुम्हारे कहने के ढंग से तो यह मुझे चुटकियों में हो जाने वाला मामूली काम लग रहा है।" 
"अगर हमारी तकदीर ही हमें दगा न दे गई और हमने पूरी सावधानी और पूरी निष्ठा से काम किया" - विमल बोला - "तो यह काम मामूली ही साबित होगा। मेरी योजना की यही विशेषता है कि......"

साथियों, यहां आप सोच रहे होंगे कि राजनगर तो ब्लास्ट अखबार के खोजी रिपोर्टर सुनील का कार्यक्षेत्र है! ऊपर से विमल भी राजनगर में ही एक नए हंगामे की तैयारी कर रहा है। ऐसे में आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि जब 2 मुख्य नायक विमल और सुनील एक साथ इस उपन्यास में आएंगे तब कहानी में क्या होगा !

कौन था जगमोहन और क्या था उसका इतिहास ? 
क्या था जगमोहन का विचार जो विमल को योजना बनाने के लिए अच्छा लगा ? 
क्या विमल और जगमोहन अपनी योजना के लिए उपयुक्त साथियों को ढूंढ पाए ? 
क्या सुनील और विमल की आपस में भेंट हो सकी और फिर क्या हुआ उनके बीच ?  
क्या वास्तव में ही विमल और जगमोहन का अपनी योजना को फलीभूत करना इतना सीधा और सरल था? 
कौन था फोस्टर और क्या था उसका राज ? 
क्या सुनील को विमल की योजना के बारे में पता लग पाया? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा।

पिछले अधिकांश उपन्यासों में तो विमल को अक्सर दूसरे अपराधियों के दबाव में आकर डकैती या लूट में उनका सहयोगी बनना पड़ा था परंतु इस उपन्यास में विमल स्वयं अपनी इच्छा से योजना का लीडर बनता है। ये बात पिछले उपन्यासों से अलग लगी। साथ ही पिछले उपन्यास में द्वारकानाथ से सीख लेने के बाद इस उपन्यास में विमल पहले की अपेक्षा अधिक जागरूकता से निर्णय लेता है। 
सुनील अपने चिर-परिचित खोजी पत्रकार वाले अंदाज में ही काम करता नजर आता है। 
विमल, जगमोहन और सुनील के बाद इस उपन्यास में सहायक पात्रों की भरमार है। आप इस उपन्यास में डॉक्टर स्लेटर, सोलंकी, हेल्गा, मंगलू, रमाकांत, पोपली, महेंद्रनाथ, फोस्टर, डियाना, दाताराम, इंस्पेक्टर बंसल, एल्बुकर्क, रोज़ी एवं चार्ली आदि पात्रों से मिलेंगे। 
मुझे पोपली और जगमोहन के पात्र अच्छे लगे। महेंद्रनाथ को छोड़कर अन्य सहायक पात्र अपनी जगह पर अधिकतर सही लगे। महेंद्रनाथ का स्वभाव कहानी के हिसाब से थोड़ा-सा अनुपयुक्त लगा।

उपन्यास की कहानी मनोरंजक है, हालांकि कहानी कुछ ही जगहों पर रोचक मोड़ लेती है क्योंकि इस उपन्यास का अधिकतर भाग विमल और जगमोहन द्वारा योजना से जुड़ी तैयारियों में, उपयुक्त साथियों की खोज करने और कहानी के विभिन्न हिस्सों का आपस में संबंध स्थापित करने में ही चला जाता है। कहानी की गति सामान्य लगी।
 
मेरे विचार से यह उपन्यास पाठकों को एक बार पढ़ना चाहिए।

यह उपन्यास वर्ष 1981 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 
उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन में कुछ ही शाब्दिक त्रुटियां हैं।

                            टू इन वन उपन्यास कवर

पाठकों की जानकारी के लिए यहां बताना चाहता हूं कि यह कहानी दो उपन्यासों की श्रृंखला में लिखी गई है। कहानी "असफल अभियान" उपन्यास से शुरु होती है और "खाली वार" उपन्यास में समाप्त होती है। 

साथियों, हमेशा की तरह आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवगत करवा सकते हैं | हमें आपकी राय का इंतजार रहेगा ।
 
रेटिंग: 7/10

23 दिसंबर 2021

दिन दहाड़े डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : दिन दहाड़े डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 241 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का आठवां अध्याय !!

                               उपन्यास कवर

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" से लिया गया एक अंश:

विमल ने अपने समीप से गुजरते एक डिब्बे का हैंडल थाम लिया और साथ ही उसके पायदान पर छलांग लगा दी ।
उसके सारे जिस्म को एक जोर का झटका लगा, लेकिन उसने अपने हाथ से सूटकेस निकलने न दिया ।
तभी एकाएक गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई ।
विमल ने घूमकर पीछे देखा ।

पिछले उपन्यास "मौत का फरमान" के अंत में कंचन के कत्ल के इल्जाम से विमल बेगुनाह साबित होता है पर ठीक उसी समय पुलिस द्वारा बीकानेर बैंक रॉबरी वैन की बरामदगी की खबर उसे अखबार में पढ़ने को मिलती है ।

उपन्यास "दिन दहाड़े डकैती" की शुरुआत होती है उस दृश्य से, जहां विमल तुरंत जयपुर छोड़ने की तैयारी कर रहा है । अपना हिप्पी रूप धारण करके जैसे ही वो निकलता है, उसे एहसास होता है कि कोई उसके पीछे लगा है । उसका अंदेशा सही साबित होता है और बचने के लिए वो दिल्ली जा रही ट्रेन में चढ़ जाता है ।

मिर्जा इस्माइल रोड पर स्थित अपने गैरेज से निकलते ही विमल के मन में यह आशंका घर कर गई थी कि वह किसी की निगाहों में था ।
फुलेरा के पास से बीकानेर बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी बरामद होने की खबर पढते ही उसने फैसला कर लिया था कि अब उसका एक क्षण के लिए भी जयपुर में ठहरे रहना खतरनाक साबित हो सकता था ।

पर अफसोस ! विमल कुछ अनजान पर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों द्वारा धोखे से गुड़गांव के स्टेशन पर उतार लिया जाता है । इन लोगों का मुखिया अपना नाम द्वारकानाथ बताता है और बाकी लोगों से विमल का परिचय करवाता है । द्वारकानाथ उसे पुलिस के हवाले करने की धमकी देकर अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देता है । 

द्वारकानाथ ने साफ-साफ कुछ नहीं कहा था लेकिन विमल को उसमें किसी जयशंकर की, किसी अजीत की, किसी मायाराम बावा की, किसी ठाकुर शमशेरसिंह की साफ झलक मिल रही थी ।
नये शिकारी ! नया जाल !
दाता !

फिर द्वारकानाथ विमल को बताता है कि उसे विमल की जरूरत क्यों पड़ी और इस बात का भी खुलासा करता है कि वो विमल को लूट में साथ देने के लिए मजबूर नहीं करेगा पर अगर विमल उसका साथ देता है तो विमल का एक ऐसा बड़ा फायदा हो सकता है जो उसे जुर्म की जिंदगी और पुलिस के चक्कर से काफी हद तक छुटकारा दिला सकता है। 

“बिल्कुल । सरदार साहब, मैं तुम्हारा यही फायदा कर सकता हूं कि मैं तुम्हें ऐसा रास्ता सुझा सकता हूं, जिससे तुम अपने इस निश्चित अंजाम से बच सकोगे ।”
“ऐसा क्या कर सकते हो तुम ?”

साथ ही द्वारकानाथ विमल को समाज में पैसे वालों के रूतबे, पैसे की ताकत और दुनियादारी के कड़वे पर असली तरीकों के बारे में समझाता है । विमल से ऐसी बातें पहले कभी किसी ने नहीं की थी । द्वारकानाथ की बातें सुनकर विमल सोच में पड़ जाता है और प्रभावित होकर द्वारकानाथ का साथ देने का फैसला कर लेता है।

“शाबाश । देखकर खुशी हुई कि मैंने जो इतनी देर भाषण दिया है, उसका तुम पर कोई असर हुआ है ।”
“बहुत असर हुआ है ।”
“जानकर खुशी हुई ।”
“एक बात कहना चाहता हूं, द्वारका ।”
“क्या ?”
“मैंने तुम्हारे जैसा दादा नहीं देखा ।

फिर द्वारकानाथ विमल और अपने बाकी साथियों कूका, गंगाधर को स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी को लूटने की योजना विस्तार से समझाता है। विमल भी बारीकी से योजना का विश्लेषण करता है। लूट को अंजाम देने के लिए जरूरी सामान का इंतजाम कर लिया जाता है और लूट की बाकी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं। शीघ्र ही लूट के लिए निर्धारित किया हुआ दिन भी आ पहुंचता है।

क्या थी द्वारकानाथ की योजना? 
क्या स्टील मिल की कैश से भरी गाड़ी लूटी जा सकी? 
ऐसा क्या फायदा बताया द्वारकानाथ ने, जो विमल की जिंदगी बदल सकता था? 
क्या था वो सबक जिसे सुनकर विमल द्वारकानाथ से प्रभावित हो गया? 
क्या लूट का पैसा द्वारकानाथ और विमल के हाथ आया या फिर उसे कोई और ही उस पैसे पर हाथ साफ कर गया? 
ऐसा क्या खतरा था जिससे अपनी जान बचाना विमल के लिए भी मुश्किल था? 
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे |

यह उपन्यास वर्ष 1980 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 

उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन की प्रूफ रीडिंग पर अच्छा ध्यान दिया गया है।

इस उपन्यास में पहली बार विमल अपनी खुद की मर्जी से लूट की योजना का हिस्सा बनना स्वीकार करता है हालांकि आरंभ में उसे मजबूर किया जाता है।

विमल का किरदार इस उपन्यास में पसंद आया। द्वारकानाथ का किरदार भी कहानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विमल और द्वारकानाथ की जोड़ी बढ़िया बन पड़ी है। खासकर द्वारकानाथ का विमल को दुनियादारी का सबक देने वाला पार्ट बेहतरीन लगा। सहायक किरदारों के रूप में कूका, गंगाधर, राजेंद्र कुलश्रेष्ठ,  शैलजा और सरोज के किरदार पढ़ने को मिलते हैं। इनमे से कूका और सरोज का किरदार ही मुझे ज्यादा अच्छा लगा। 
कहानी की बात करें तो कुल मिलाकर कहानी मनोरंजक है । इस उपन्यास की कहानी में अधिक घुमाव नहीं है पर कहानी अपनी पकड़ बनाए रखती है और घटनाक्रम में हल्का-सा सस्पेंस भी बरकरार रहता है । कहानी सामान्य गति से ही आगे बढ़ती दिखी।

मेरी हिसाब से आप इस उपन्यास को एक बार पढ़ सकते हैं, आपको निराशा नहीं होगी।
 
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रेटिंग: 7/10

15 दिसंबर 2021

वर्दी वाला फरिश्ता - वेद प्रकाश शर्मा

प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं वेद प्रकाश शर्मा के अब तक अप्रकाशित उपन्यास " वर्दी वाला फरिश्ता " के बारे में ! 

                       उपन्यास वर्दी वाला फरिश्ता का विज्ञापन 

"वर्दी वाला फरिश्ता" उपन्यास का विज्ञापन वेद प्रकाश शर्मा जी के 157वें उपन्यास के तौर पर दिया गया था और विज्ञापन के अनुसार उपन्यास के तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित होने की संभावना थी। परंतु ये उपन्यास कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ!

इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आलेखों को चेक करने के पश्चात प्राप्त हुई संक्षिप्त जानकारी के अनुसार वेद जी "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास की भारी सफलता के बाद से ही एक ऐसा उपन्यास लिखना चाहते थे जिसमे पुलिस की अच्छी और नायक वाली छवि दिखाई जा सके। "वर्दी वाला गुंडा" उपन्यास में पुलिस की भूमिका अधिकांशत: नकारात्मक ही थी। 
अब ये जानकारी सही है या गलत - इस बारे में या तो वेद जी के परिवार का कोई सदस्य बता सकता है या फिर कोई पुराना प्रकाशक या फिर कोई पाठक जो इस बारे में कुछ जानता हो!

मेरी राय में अगर वेद जी पुलिस की अच्छी छवि और किसी पुलिस वाले को मुख्य सकारात्मक भूमिका में रखकर ये उपन्यास लिखते और उपन्यास प्रकाशित होता तो निश्चय ही पाठक इस उपन्यास को पढ़ने के प्रति अपनी दिलचस्पी प्रदर्शित करते!

क्या यह उपन्यास लिखा ही नहीं जा सका? 
क्या उपन्यास का लेखन कार्य किसी कारणवश अधूरा ही रह गया? 
अगर उपन्यास पूरा लिखा जा चुका था तो फिर प्रकाशित क्यों नहीं हो पाया? 
ये सब प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं।

अगर आपके पास इस बारे में कोई जानकारी हो तो कमेंट्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते हैं |

12 दिसंबर 2021

मौत का फरमान - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : मौत का फरमान
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 162 (किंडल)

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का सातवां अध्याय !!

                           नया उपन्यास कवर 

पिछले उपन्यास "बैंक वैन रॉबरी" के अंत में विमल इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और मीना से अपना हिसाब बराबर करने के बाद जयपुर में ही टिका रहता है और अपना गैराज का काम चालू रखता है | 

उपन्यास "मौत का फरमान" से लिया गया एक छोटा सा अंश:

हर आने वाले दिन मैं उस मोटर मैकेनिक गैरेज में अपने-आपको पहले से ज्यादा सुरक्षित पाता था ।
लेकिन मेरी जिन्दगी में सुरक्षा का क्या काम ! सुख, चैन और इत्मीनान का क्या काम ! वाहे गुरु अपने गुनहगार बन्दों को सुरक्षा, सुख, चैन और इत्मीनान का सांस कहां आने देता है !
इस बार तकदीर ने मुझे ऐसी पटखनी दी कि मेरे होश उड़ गये ।

उपन्यास "मौत का फरमान" की शुरुआत जयपुर में थाने के एक कमरे के दृश्य से होती है जहां पर पुलिस विमल से एक औरत कंचन के रेप और कत्ल के बारे में कड़ी पूछताछ कर रही है | विमल मना करता है पर पुलिस उस पर ये आरोप स्वीकार करने के लिए लगातार दबाव डाल रही है | कोई और चारा न चलता देखकर विमल गोवा में अलफांसो को सहायता के लिए फोन करता है | 

                             ओल्ड उपन्यास कवर

अल्फांसो से बात हो जाने के बाद न जाने क्यों मुझे राहत महसूस होने लगी थी ।
सारी दुनिया में केवल दो ही शख्स थे जिनसे मैं किसी मदद को कोई उम्मीद कर सकता था - गोवा में मैगुअल अल्फांसो और चण्डीगढ में नीलम ।

अलफांसो परिस्थिति की गंभीरता को समझ जाता है और उसी समय अल्बर्टो को विमल की सहायता हेतु जयपुर के लिए रवाना कर देता है | अल्बर्टो जयपुर पहुंचते ही विमल के पास जयपुर के सबसे अच्छे वकील को भेजता है | 

वह आदमी मेरी बगल में बैठ गया और मुस्कराता हुआ बोला - “मेरा नाम ठाकुर कृपालसिंह है । मैं जयपुर का सबसे नामी वकील माना जाता हूं । आपके दोस्त मिस्टर अल्बर्टो ने अदालत में आपके केस की पैरवी करने के लिए मुझे चुना है ।”

इसी बीच पुलिस विमल को वैन में कंचन के कत्ल वाली जगह पर लेकर जाती है पर रास्ते में ही एक खतरनाक अपराधी दिलावर विमल को पुलिस से छुड़वाकर ले जाता है | विमल सोचता है कि अल्बर्टो ने उसे छुड़वाया है पर दिलावर से परिचय होने पर वो हक्का बक्का रह जाता है | दिलावर उससे किसी माल़ के बारे में पूछता है पर विमल कहता है कि उसे कुछ नहीं पता | दिलावर क्रोधित हो उठता है और दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो जाते है | विमल घायल हो जाता है पर अपनी जान बचाकर निकल जाता है | 

अंधेरा होने तक मैं उन्हीं झाड़ियों में लेटा रहा ।
दिलावर सिंह फिर उस रास्ते वापस नहीं लौटा । लेकिन वह जंगल में कहीं भी हो सकता था । मेरे बहुत पास । मुझसे बहुत दूर ।
अन्त में मैं अपने स्थान से उठा ।

घायल और थका-हारा विमल किसी तरह अल्बर्टो से संपर्क साधता है और उससे मिलकर इस सारे बखेड़े से बाहर निकलने की योजना बनाना आरंभ करता है | जब विमल इस सारे मामले की गहराई में उतरने का प्रयास करता है, तब उसे एहसास होता है कि ये मामला जरूरत से ज्यादा ही खतरनाक है तथा कैसे मौत का साया हर घड़ी उसके और अल्बर्टो के सिर पर मंडरा रहा है | 

“तुमने कहा था, तुम मेरी मदद करोगी । मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है । सख्त जरूरत । फौरन ।”
“क्या हो गया है ?”
“मुझे... मुझे गोली लग गयी है ।” - मैं बड़ी मुश्किल से कह पाया - “और इस शहर में मेरा कोई मददगार नहीं ।”

एक तरफ पुलिस से पकड़े जाने का खतरा, दूसरी तरफ दिलावर, तीसरी तरफ कंचन के कत्ल की गुत्थी और उससे जुड़ा हुआ अनजाना खतरा - विमल इन सबमें उलझता ही चला जाता है |

कौन थी कंचन और क्यूं हुआ उसका कत्ल? 
विमल कैसे फंस गया कंचन के कत्ल के जुर्म में? 
क्या पुलिस को विमल की असलियत पता चल सकी? 
कौन था दिलावर और किस माल के लिए विमल के पीछे लगा था? 
कौनसा अनजाना खतरा विमल के सिर पर मंडरा रहा था? 
क्या अल्बर्टो विमल की कोई सहायता कर पाया या खुद भी उस अनजाने खतरे में फंस गया? 
इस सारे घटनाक्रम के लिए कौनसे लोग जिम्मेदार थे?
क्या विमल इन सारी गुत्थियों को सुलझा पाया? 
क्या इस बार विमल को कोई सच्ची सहायता प्राप्त हो सकी या वो अकेला ही इन सारे खतरों से जूझता रहा? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपके लिए इस उपन्यास में उपलब्ध हैं |

यह उपन्यास वर्ष 1978 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था । 
उपन्यास के रीप्रिंट एडिशन में शाब्दिक गलतियां बेहद कम हैं जिससे कहानी धाराप्रवाह बनी रहती है |

विमल का पात्र जहां पिछले उपन्यास में सामान्य ही लगा था वहीं इस उपन्यास में विमल जबरदस्त संघर्ष करता हुआ दिखाया गया है जो कि बढ़िया लगा | अन्य पात्रों में अल्बर्टो और शीतल महत्त्वपूर्ण और बेहद दिलचस्प लगे । दिलावर सिंह, कंचन, महिपालसिंह और रूप सिंह शेखावत के पात्र भी अच्छे बन पड़े हैं । 
एक चीज और इस उपन्यास में अलग लगी - पिछले अधिकांश उपन्यासों में विमल को मजबूरीवश लूट या डकैती में शामिल होना पड़ता था पर इस बार उपन्यास का कथानक अलग था ।
कहानी बढ़िया, मनोरंजक और घुमावों से परिपूर्ण है । कहानी में लगभग हर थोड़े अंतराल पर विमल लगातार नए हालातों से जूझता नजर आता है जिस कारण एक बार तो विमल से हमदर्दी का एहसास भी होने लगता है | 
पिछले उपन्यास के मुकाबले यह उपन्यास अधिक पठनीय और रोचक लगा | मेरी राय में इस उपन्यास को एक बार जरूर पढ़ें और कहानी का आनंद उठाएं ।
 
आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमें अवगत करवा सकते हैं |
 
रेटिंग: 7.5/10

06 दिसंबर 2021

बैंक वैन रॉबरी - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास: बैंक वैन रॉबरी
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या: 183 (किंडल)

                               उपन्यास कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का छठवां अध्याय!!

यह उपन्यास वर्ष 1978 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था | उपन्यास से लिया गया एक अंश :

वही स्कर्ट वाली युवती केबिन में बैठी थी ।
“हल्लो !” युवती मादक स्वर में बोली ।
“हल्लो !” प्रहलाद फंसे स्वर में बोला ।
युवती की आवाज में ऐसी खनक थी कि जैसे मन्दिर की
घण्टी खनखनाई हो, जैसे जलतरंग बजी हो, जैसे शीशे से
बर्फ टकराई हो । उसके होठों पर ऐसी दिलफरेब मुस्कुराहट
प्रकट हुई थी कि प्रहलाद सब भूल गया कि अभी एक क्षण
पहले कितनी मुश्किलें और दुश्वारियां उसके जहन में थी ।

पिछले उपन्यास "आज कत्ल होकर रहेगा" के अंत में विमल स्थानीय गैंगवार खत्म करके और अपनी जान बचाने के लिए नारंग का खात्मा करके अलफांसो की मदद से किसी तरह रातोंरात गोवा से बाहर निकल जाता है | 

                              ऑडियो बुक कवर 

इस उपन्यास "बैंक वैन रॉबरी" का पहला दृश्य पाठकों को जयपुर के एक गैराज में ले जाता है जहां पर प्रहलाद कुमार नाम का एक पढ़ा-लिखा ट्रक चालक अपने बिगड़ा हुआ ट्रक ठीक करवाने आता है | मैकेनिक तीरथ सिंह ट्रक की मरम्मत का खर्चा ज्यादा बताता है पर प्रहलाद के पास पैसे की तंगी होती है | तीरथ सिंह उसे मदद का आश्वासन देकर एक फोन करने चला जाता है |

“पुर्जे और मजदूरी दोनों मिलकर यही कोई ढाई-तीन हजार
रूपये ।”
“ढाई तीन हजार रूपये !” प्रहलादकुमार के छक्के छूट गये
“ओ भैया, मेरे पास तो सौ रूपये भी नहीं ।”

गोवा से निकलने के बाद ये गैराज ही अब विमल का नया ठिकाना बन चुका है | विमल शांतिपूर्वक 6 महीने से बसंत कुमार के नाम से जयपुर में ये गैराज चला रहा है जिसमे प्रहलाद अपना ट्रक ले के आया है |

लेकिन विमल उर्फ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल की जिंदगी में इत्मीनान कहां!! 

अचानक एक दिन एक इंस्पेक्टर ठाकुर शमशेर सिंह उसके गैराज में मोटरसाइकिल ठीक करवाने आता है और विमल की असलियत पहचान लेता है | इंस्पेक्टर शमशेर सिंह फांसी की सजा की धमकी देकर विमल को अपने साथ एक बैंक वैन को लूटने की योजना में शामिल होने के लिए मजबूर करता है ताकि रिटायरमेंट के बाद इंस्पेक्टर ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके | 'मरता क्या न करता' की तर्ज पर विमल उसका साथ देने के लिए मान जाता है | 

“तुम्हारे गैरेज में बीकानेर बैंक की रुपया होने वाली बख्तबन्द गाड़ी सर्विसिंग के लिये आती है न ?”
“हां, आती है, लेकिन...”
“उसी गाड़ी के सन्दर्भ में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“कैसी मदद ?”
“वक्त आने पर बता दिया जायेगा, लेकिन पहले यह बताओ
कि तुम मेरी मदद के लिये तैयार हो या नहीं ?”
“अगर मैं इन्कार करू तो ?”
“तो मैं अभी तुम्हें गिरफ्तार करके ले जाऊंगा | सरदार साहब, पलक झपकते ही अपने आपको फांसी के तख्ते पर
खड़ा पाओगे ।"

इंस्पेक्टर विमल को उसकी आंखों से ओझल न होने की धमकी देकर गैराज से चला जाता है | फिर इंस्पेक्टर अपनी योजना के अगले कदम के मुताबिक प्रहलाद को भी अपनी योजना में शामिल कर लेता है |  

“क्या तरीका है ?” प्रहलाद ने उत्सुक भाव से पूछा ।
फिर धीरे धीरे ठाकुर शमशेरसिंह, एस एच ओ मानक चौक
पुलिस स्टेशन, उसे समझाने लगा कि मालामाल होने को क्या
तरीका था ।"

थोड़े ही समय पश्चात इंस्पेक्टर एक सुरक्षित जगह पर एक मीटिंग रखता है जहां लूट की योजना में शामिल सब साथी एक दूसरे से मिलते है | यहां इंस्पेक्टर, विमल का परिचय राकेश, मीना, प्रहलाद और तीरथ सिंह से करवाता है | 

जी हां दोस्तो ! वही तीरथ सिंह जो विमल के गैराज में मैकेनिक था !!

इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और राकेश सबको बीकानेर बैंक वैन को लूटने की योजना के बारे में बताते हैं। साथ ही और किसको क्या करना है, ये भी समझाते हैं।

"डकैती के माल को घटनास्थल से फौरन दूर पहुंचा देने का पूरा प्रोग्राम भी हमने निर्धारित किया हुआ है ।”
”क्या प्रोग्राम है ?”
ठाकुर धीरे-धीरे उस सारी योजना का समझाने लगा ।"

लूट के दिन से पहले ही सारी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं और जल्दी ही वैन लूटने का दिन भी आ जाता है | 

विमल जयपुर में गैराज का मालिक कैसे बना? 
इंस्पेक्टर शमशेर सिंह को विमल के बारे में कैसे पता लगा? 
क्या थी बीकानेर बैंक वैन की लूट की योजना? 
क्या बीकानेर बैंक वैन की लूट सफल हो सकी? 
लूट के पैसे का क्या हुआ और किसको कितना हिस्सा मिला? 
क्या सब कुछ इतना ही सीधा और साफ था जितना सबको लग रहा था या परदे के पीछे कोई और खेल भी चल रहा था? 
क्या एक बार फिर विमल के साथ धोखा हुआ और उसे इस बार भी खून-खराबा करने पर उतारू होना पड़ा? 
क्या भाग्य ने एक बार फिर विमल को किसी नए ठिकाने की तलाश में भटकने के लिए अकेला और बेसहारा छोड़ दिया? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आपको ये उपन्यास पढ़ना होगा |

उपन्यास के रीप्रिंट की प्रूफ रीडिंग सही है इसलिए गलतियां बहुत ही कम हैं |
किरदारों की बात करें तो इंस्पेक्टर शमशेर सिंह और मीना के किरदार पढ़ने में अच्छे लगे | नीलम का किरदार इस उपन्यास में दुबारा देखने को मिलता है पर संक्षिप्त रूप से | विमल भी इस उपन्यास में कुछ खास नया या अलग हटकर नहीं करता है |
उपन्यास में अधिकतर किरदारों के संवाद सामान्य ही है | 
उपन्यास की कहानी की गति वैसे तो अच्छी है पर कुछ जगहों पर थोड़ी धीमी होती लगी | कहानी में घुमाव तो जरूर हैं परंतु कुछ नयापन नहीं है | उपन्यास का अंत अच्छा लगा | उपन्यास औसत से थोड़ा ही अधिक मनोरंजक लगा और एक बार पढ़ा जा सकता है |  
 
आप कमेंट्स के द्वारा अपनी राय से हमे अवगत करवा सकते हैं |
 
रेटिंग: 6.5/10

30 नवंबर 2021

आज कत्ल होकर रहेगा - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : आज क़त्ल होकर रहेगा 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 217

                          उपन्यास का पुराना कवर

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का पांचवा अध्याय !!

उपन्यास से लिया गया एक अंश: 
फिर नारंग गला फाड़कर चिल्लाया - “त्रिलोकीनाथ, मेरे साथ दगाबाजी करोगे तो मैं लाश का भी पता नहीं लगने दूंगा ।”
“यह गीदड़ धमकियां किसी और को देना ।” - त्रिलोकीनाथ भी चिल्लाया - “मैं कोई कल का पैदा हुआ लौंडा नहीं जो तुमसे डर जाऊंगा । तुमने मेरी ओर एक उंगली भी उठाई तो मैं तुम्हारी गर्दन कटवाने का सामान कर दूंगा ।” 

                         उपन्यास कवर

पिछले उपन्यास "पैंसठ लाख की डकैती" के अंत में विमल हरनाम ग्रेवाल और कौल को दिल्ली में किरण खन्ना के रहमोकरम पर छोड़कर वहां से निकल जाता है | इस उपन्यास में किस्मत विमल को दिल्ली से निकालकर वापिस एक बार फिर बम्बई ला पटकती है | 

उपन्यास 'आज क़त्ल होकर रहेगा' वर्ष 1977 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था |
अब बात करते हैं इस उपन्यास की कहानी की | उपन्यास आरम्भ होता है बम्बई से कुछ दूर एक उजाड़ समुद्र तट के दृश्य से, जहां एक पुराना पर बर्बाद हो चूका विदेशी घड़ियों का स्मगलर दौलत सिंह छिपकर निजी दुश्मनी के चलते नारंग की निगरानी कर रहा है जो वहां अवैध सोने की डील करने आने वाला है | नारंग भारत का सबसे बड़ा स्मगलर और बम्बई का सबसे बड़ा डॉन है | दौलत सिंह और नारंग के टकराव के चलते परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती हैं कि नारंग को अपने पुराने दोस्त त्रिलोकीनाथ की मदद लेनी पड़ती है | त्रिलोकीनाथ नारंग का ख़ास दोस्त और हाई कोर्ट का वकील है जो नारंग की मुश्किल परिस्थितियों में जरूरत पड़ने पर अक्सर मदद करता है | 
विमल अब एक नए नाम कैलाश मल्होत्रा के साथ त्रिलोकीनाथ के यहां ही क्लर्क की नौकरी कर रहा है | ठीक इसी समयकाल में सरकार आपातकाल लागू कर देती है | बम्बई में जिसे आपातकालीन स्थिति का चीफ बनाया जाता है, वो और उसके चमचे आपातकालीन शक्तियों का उपयोग अपने विरोधियों के खिलाफ करने लगता है | 

"उन ढंके-छुपे जरायमपेशा लोगों के कलेजे कांपने लगे जो यह समझते थे कि उनकी इतनी ऊपर तक पहुंच थी, अपने-आपको कानून की पकड़ से बचाये रखने के उनके इतने साधन थे कि कोई उनकी ओर उंगली नहीं उठा सकता था । ऐसे लोगों में नारंग भी एक था ।
एमरजेंसी क्या आई उसके लिए तो कजा आ गई । पहले तो उसने यही समझा कि दिखावे की छोटी-मोटी धरपकड़ हो रही थी । उस जैसे ऊंचे और साधनसम्पन्न लोगों की तरफ सरकार आंख नहीं उठा सकती थी । लेकिन जब बखिया, हाजी मस्तान और पटेल जैसे टॉप के स्मगलर आन्तरिक सुरक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिए गये तो उसके छक्के छूट गये ।"

जब बम्बई के बड़े-बड़े लोग और अपराधी पकडे जाने लगते हैं तो नारंग भी चिंताग्रस्त हो जाता है और त्रिलोकीनाथ से मदद मांगता है | परन्तु त्रिलोकीनाथ ह्रदय परिवर्तन के कारण सरकार के खिलाफ जाने से मना कर देता है और नारंग की मदद नहीं करता | नारंग क्रोधित होकर बदला लेने की धमकी देता है | इन दोनों की लड़ाई में विमल भी बेवजह फंस जाता है | नारंग से बचने के लिए विमल बम्बई से निकलकर गोवा पहुँच जाता है | 

"उसने मन ही मन फैसला किया था कि जो पहली बस बम्बई से बाहर जाने वाली होगी, वह उस पर सवार हो जाएगा ।
वह बस स्टैण्ड पर पहुंचा तो मालूम हुआ कि पांच मिनट में गोवा की बस छूटने वाली थी ।"

गोवा पहुंचते ही संयोग कुछ इस प्रकार बनता है कि विमल को स्थानीय नाईट क्लब सोल्मर का मालिक अल्फांसो अपने क्लब में कैशियर की नौकरी पर रख लेता है | अँधा क्या चाहे दो आँखें - विमल तुरंत ही नौकरी शुरू कर देता है | 
पर उफ़ ये धोखेबाज किस्मत ! विमल को यहां भी चैन नहीं मिलता - मात्र कुछ ही दिनों में घटनाचक्र इतनी तीव्रता से घूमता है कि एक तरफ विमल को गोवा में पहले से ही चल रही गैंगवार की धुरी बनना पड़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ नारंग भी उसकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ा होता है |

विमल दिल्ली से निकलकर बम्बई कैसे आ पहुंचा ? 
नारंग और त्रिलोकीनाथ की लड़ाई में विमल कैसे फंस गया ? 
त्रिलोकीनाथ का क्या हुआ ?
विमल को गोवा में अल्फांसो के यहां नौकरी कैसे मिल गई ? 
विमल गोवा की गैंगवार में कैसे फंसा, न सिर्फ फंसा बल्कि धुरी कैसे बन गया ? 
कौन था अल्फांसो ? 
क्या कोहराम मचा गोवा में ?
नारंग से विमल अपनी जान कैसे बचा पाया ? 
इस सारे घटनाचक्र में विमल ने क्या खोया और क्या पाया ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको यह उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे |

उपन्यास की कहानी तेज गति से चलती है और नए मोड़ भी लेती है | कहानी मनोरंजक है और पाठकों की उपन्यास में रूचि बनाये रखती है | 
उपन्यास के रीप्रिंट की प्रूफ रीडिंग बढ़िया है | 
पाठकों को पिछले उपन्यासों के मुकाबले इस उपन्यास में काफी किरदारों की उपस्थिति देखने को मिलेगी | 
दौलत सिंह का किरदार कहानी की भूमिका बनाता है जहां से आगे कहानी गति पकड़ती है | अल्फांसो और अल्बर्टो के किरदार अच्छे बन पड़े हैं | विमल का व्यक्तित्व इस उपन्यास में और अधिक निखर कर सामने आता है | नारंग का किरदार भी बढ़िया लगा |
 
रेटिंग: 7.5/10

20 नवंबर 2021

65 लाख की डकैती - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास : 65 लाख की डकैती 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 256

                                  उपन्यास कवर 
                    
विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का चौथा अध्याय !!

उपन्यास "65 लाख की डकैती" विमल सीरीज के सबसे प्रसिद्ध और पाठकों द्वारा सर्वाधिक सराहे गए उपन्यासों में से एक है | यह उपन्यास वर्ष 1977 में प्रथम बार गाइड पॉकेट बुक्स, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ था और अब तक विभिन्न प्रकाशक इसे 17 बार हिंदी में और 1 बार इंग्लिश में भिन्न-भिन्न कवर (मुखपृष्ठों) के साथ रीप्रिंट कर चुके हैं | 

                          अंग्रेजी में प्रकाशित उपन्यास कवर

उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से लिया गया शुरूआती अंश : 

"मायाराम ने एक नया सिग्रेट सुलगाया और अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली। वक्त हो गया था।
वह यह बात पहले ही मालूम करके आया था कि करनैल सिंह की मेहता हाउस से किस वक्त छुट्टी होती थी।
मेहता हाउस लारेंस रोड पर स्थित एक विशाल चारमंजिला इमारत थी और उसमें वह बैंक स्थित था जिसके वाल्ट पर डाका डालने के असम्भव कृत्य को सफल बनाने के सपने मायाराम देख रहा था। वह उसकी जिंदगी का आखिरी दांव था। उसमें असफल होने का मतलब था कि उसकी मौत जेल में एड़‍ियां घिस-घिस कर ही होने वाली थी।"

                               उपन्यास कवर

अब बढ़ते हैं कहानी की ओर | पिछले उपन्यास "इश्तिहारी मुजरिम" में विमल मौत के मुंह से बाल-बाल बच कर निकलता है | इस उपन्यास में विमल अमृतसर में एक साल से शांतिपूर्वक रह रहा था और काफी व्यस्त रहने वाले धनवान सेठ लाला हवेलीराम के यहां ड्राइवर की नौकरी कर रहा है | सेठानी सेठ से आयु में बीस साल छोटी थी और विमल से कार ड्राइविंग के अलावा दूसरी सेवाएं भी प्राप्त करना चाहती थी इसलिए उसने अधेड़ या बूढ़े ड्राइवरों की जगह जवान खूबसूरत विमल की सिफारिश की थी | 
क्रूर किस्मत ने यहां भी विमल को नहीं बख्शा ! एक बार फिर जुर्म की दुनिया से वास्ता रखने वाले मायाराम ने उसे पहचान लिया और अपने साथियों द्वारा विमल की निगरानी करनी शुरू कर दी | जब तक विमल को ये बात पता लगी, तब तक देर हो चुकी थी और मायाराम उसके सर पर आ खड़ा हुआ था | न चाहते हुए भी विमल एक बार फिर अपराध की दलदल में उतरने को मजबूर था | 

“मैंने अर्ज किया था, सरदार साहब, कि तशरीफ ले जा रहे हैं?”
“सरदार साहब!” — वह होंठों में बुदबुदाया — “तुम पागल तो नहीं हो? मैं तुम्हें सरदार दिखायी देता हूं ?”
“हां। तुम मुझे सरदार दिखायी देते हो। मेरे ज्ञानचक्षु तुम्हें सरदार सुरेंद्र सिंह सोहल की सूरत में देख रहे हैं।”
उसने एक गहरी सांस ली।
“इधर आओ।” — वह बोला।
सिगरेट वाला उसके सामने आ खड़ा हुआ। वह अभी भी बड़े मैत्रीपूर्ण ढंग से मुस्कुरा रहा था।
“कौन हो तुम?”
“बंदे को मायाराम बावा कहते हैं लेकिन लोग मुझे उस्ताद के नाम से ज्यादा जानते हैं।"

जैसा कि उपन्यास के नाम से ही जाहिर है, मायाराम ने बैंक वॉल्ट से 65 लाख की डकैती की योजना बना रखी थी और योजना की बहुत सी गोटियां भी पहले ही सही जगहों पर फिट कर रखी थी | 

“ 'बल्ले, भई!' — विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला — 'नईं रीसां तेरियां।' 
अब उसे लगने लगा था कि मायाराम कुछ कर गुजरेगा।"

विमल जैसे अनुभवी इंसान के योजना में शामिल होने से अब मायाराम की योजना पूर्ण हो गयी थी और अब उसे अपनी योजना पूरी तरह से सफल होती दिखाई दे रही थी | 

क्या थी मायाराम की डकैती की योजना और विमल की क्या भूमिका थी उस योजना में ?  
बैंक वॉल्ट से 65 लाख लूटना क्या इतना ही आसान था ? 
जयशंकर के साथ पिछली बार की लूट के अनुभव से जो सबक विमल ने सीखे, इस बार क्या वो उन पर अमल कर पाया ?
क्या इस बार भी विमल की जान पर बन आयी ?
क्या कोई और भी रहस्य था जिससे विमल अनजान था? 
क्या पिछली बार की तरह इस बार भी विमल को खून से अपने हाथ रंगने पड़े ?
इस सारे घटनाक्रम में विमल और मायाराम को कहाँ-कहां धक्के खाने पड़े ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिल पाएंगे! 

इस उपन्यास में पृष्ठों की संख्या पिछले उपन्यासों से अधिक है | उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत ही कम हैं जो कि अच्छी प्रूफ रीडिंग का परिणाम है | लेखक ने उपन्यास में ज़रा सा हास्य रस भी डाला है खासकर किरदार लाभ सिंह का जगह जगह "लाभ सिंह मटर पनीर" के नाम से पुकारा जाना अनायास ही होंठों पे मुस्कान ला देता है | 
कहानी की गति सही है और पाठकों पर अधिकांश समय तक पकड़ बनाये रखती है | बीच-बीच में कहानी रोचक मोड़ भी लेती है | उपन्यास के सहायक पात्रों में से लाभ सिंह का पात्र ही मनोरंजक लगा, बाकी पात्रों की कुछ ख़ास भूमिका नहीं है | मायाराम और विमल दोनों का तालमेल और परिस्थितियों के साथ जूझने का जज्बा अच्छा बन पड़ा है |

उपन्यास में एक-दो जगह पर पाठकों को विमल का फिर से वही गलती दोहराना और इतने हादसों से बच निकलने के बाद भी अपना कोई बैकअप (बचाव का रास्ता) तैयार न रखना कुछ खल सकता है | हर बार विमल को मजबूर करके उसे लूट या डकैती में शामिल करना भी थोड़ा उबाऊ सा लगता है | 

कुल मिलाकर उपन्यास बढ़िया लिखा गया है और पाठकों को मनोरंजन की उम्दा खुराक देने में सक्षम है | 

चूंकि ये उपन्यास वर्ष 1977 में लिखा गया है अतः उपन्यास पढ़ते हुए समयधारा का ध्यान अवश्य रखें - खासकर तकनीक और उपकरण उस जमाने में इतने मॉडर्न (अत्याधुनिक) नहीं थे और 65 लाख रुपये की रकम आज के हिसाब से इतनी अधिक नहीं है पर उस समय एक बड़ी रकम मानी जाती थी | 

रेटिंग: 8.5/10

18 नवंबर 2021

नरपिशाच - देवेंद्र प्रसाद

पुस्तक : नरपिशाच 
लेखक : देवेंद्र प्रसाद 
पृष्ठ संख्या : 80 (इ-पब फॉर्मेट)

                           नरपिशाच कवर 

लेखक देवेंद्र प्रसाद ने हॉरर (भय, दहशत, भूत-प्रेत इत्यादि) श्रेणी में अपनी पहचान बनाई है | मेरे अनुमान से नरपिशाच हॉरर श्रेणी में लेखक द्वारा लिखी गयी तीसरी पुस्तक है | 

सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहूंगा कि नरपिशाच कोई नॉवल नहीं बल्कि एक कहानी संग्रह है जिसमे 5 भिन्न-भिन्न लघु कहानियाँ हैं | कहानियों के नाम निम्नलिखित है: 
नरपिशाच ,छलावा, आधी हकीकत आधा फ़साना, नन्ही चुड़ैल, शिमला का नरपिशाच | 

पुस्तक का शीर्षक थोड़ा सा भ्रामक है | नरपिशाच शीर्षक से ऐसा लगता है कि पूरी पुस्तक नरपिशाच को आधार बनाकर लिखी गयी है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | 

उपन्यास की प्रथम कहानी नरपिशाच से एक अंश : 
"साहब, धीमी-सी रोशनी थी लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैंने उस खौफ़नाक चेहरे को काफी करीब से देखा था और उसके नुकीले दाँतों को यहाँ चुभते हुए महसूस भी किया था। उसके लम्बे-लम्बे नाखून बनावटी नहीं हो सकते।
हाँ, साहब ! वह कोई और नहीं बल्कि वो... वो... वही था...एक- नरपिशाच !!!"

अब पुस्तक की बात करें तो 'नरपिशाच ' कहानी से पुस्तक की शुरुआत होती है | एक कस्बे के पुराने चर्च में एक आदमी विलियम लोहे के खम्भे से बंधा हुआ है | विलियम के आस-पास फादर एंथोनी, कस्बे के कुछ लोग और जेनीलिया नाम की कस्बे की ही एक लड़की खड़े हैं | विलियम पर नरपिशाच होने का इल्जाम है | 
दूसरी कहानी 'छलावा' में एक युवक कबीर अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए राजस्थान के एक छोटे से गाँव की ओर कार में ड्राइवर के साथ जाता है | ड्राइवर उसे रास्ते में पड़ने वाले एक सुनसान हिस्से और उस हिस्से में मिलने वाले जानलेवा छलावा की बहुप्रचलित कहानी सुनाता है | कबीर इसे मजाक में उड़ा देता है पर कुछ समय बाद उसी सुनसान हिस्से में उनकी कार खराब हो जाती है और दूर-दूर तक किसी इंसान या मदद की उम्मीद नहीं दिखाई देती |
तीसरी कहानी 'आधी हकीकत आधा फ़साना' में एक छात्र नीतीश लेट हो जाता है और बस स्टैंड से अपने गाँव की शाम की आखिरी बस उससे छूट जाती है | इस कारण उसे अकेले ही गाँव तक पांच किलोमीटर के सुनसान डरावने रास्ते की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है | 
चौथी कहानी 'नन्ही चुड़ैल' में एक लड़का पंकज आधी रात को सिनेमा में हॉरर फिल्म देखने के बाद रास्ते में पड़ने वाले शमशान घाट को पार करता है तो वहां एक अकेली बैठी छोटी सी लड़की से मिलता है | 
पांचवीं और अंतिम कहानी 'शिमला का नरपिशाच ' शिमला के पास कुफरी में अंग्रेजों के जमाने की एक पुरानी रहस्यमयी बिल्डिंग रिचर्डसन हाउस पर आधारित है | एक दिन रिचर्डसन हाउस की चारदीवारी के पास एक के बाद एक तीन लाशें पाई जाती हैं जिनकी गर्दन पर नाखूनों के ऐसे गहरे घाव मौजूद थे जैसे किसी राक्षस ने झपट्टा मारा हो | डिटेक्टिव मिथिलेश वर्मा इसकी जांच के लिए रिचर्डसन हाउस में आता है | मिथिलेश अब तक 49 केस सोल्व कर चुका है और ये उसका पचासवां केस है | 

क्या विलियम ही उस कस्बे का नरपिशाच था या कोई और ही रहस्य था वहाँ ?
क्या कबीर दोस्त की शादी में गाँव पहुँच पाया ? क्या छलावा और कबीर की मुलाकात हुई या छलावा सिर्फ एक भ्रम ही था ? 
क्या नीतीश रात में अकेला उस सुनसान डरावने रास्ते को पार करके गाँव पहुंच सका ?
कौन थी शमशान घाट में अकेली बैठी वो लड़की जिस से पंकज इतनी रात को मिला ? 
क्या डिटेक्टिव मिथिलेश वर्मा रिचर्डसन हाउस और उन तीन लाशों की गुत्थी को सुलझा पाया ? 
इन सब सवालों के जवाब आप पुस्तक पढ़कर प्राप्त कर सकते हैं ! 

पुस्तक में पृष्ठों की संख्या अधिक नहीं है इसलिए पुस्तक एक ही बार में आराम से पूरी पढ़ी जा सकती है | 
कुल मिलाकर पुस्तक औसत है | कहानियों के पात्रों में गहराई की थोड़ी कमी महसूस हुई | 
नरपिशाच कहानी औसत से थोड़ी अच्छी है | छलावा कहानी अच्छी लगी | बाकी तीनों कहानियां साधारण ही लगी | 
प्रूफ रीडिंग अच्छी है और शाब्दिक गलतियां नाम-मात्र ही हैं | 

रेटिंग: 6.5/10

15 नवंबर 2021

इश्तिहारी मुजरिम - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : इश्तिहारी मुजरिम 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज 
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पृष्ठ संख्या : 154 

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी दर-दर भटकती जिंदगी में सुकून और ठहराव की तलाश करते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की जीवन गाथा का तीसरा अध्याय!! 

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                         ओल्ड रिप्रिंट उपन्यास कवर 

                           ऑडियो बुक कवर 

पिछले उपन्यास "दौलत और खून" में विमल मद्रास (अब चेन्नई) में सत्तर लाख की सफल लूट कर लेता है पर वो लूट के इस माल को अपने पास नहीं रखता बल्कि इसकी जानकारी पुलिस को देने के बाद वो जयशंकर की कार में तुरंत मद्रास से दूर निकल जाता है | 

आगे की कहानी इस उपन्यास में शुरू होती है दिल्ली के चांदनी चौक से जहां पर एक तांगेवाला बनवारीलाल अपने तांगे में सवारी बिठाने के लिए आवाजें लगा रहा होता है | बनवारीलाल असल में विमल का ही नया रूप और नया नाम होता है जो कि वो मद्रास से किसी तरह दिल्ली आकर पुलिस से बचने के लिए रख लेता है और इसी बहुरूप में 6 महीने से दिल्ली में तांगा चला रहा होता है | 

"दिल्ली मैं इसलिए आया था क्योंकि मद्रास के बाद मुझे कहीं तो जाना ही था और किसी छोटी जगह के मुकाबले में महानगर मुझे ज्यादा सुरक्षित मालूम होते थे । दिल्ली की चालीस लाख से ज्यादा की आबादी में एक मामूली तांगे वाले की ओर ध्यान देने की किसे फुरसत थी ।"

एक बार फिर विमल का दुर्भाग्य कि न सिर्फ एक लड़की रश्मि उसकी असली हस्ती पहचान लेती है बल्कि धोखे से उसे अपने साथी अजीत से भी मिलवाती है |

“अब बनने से कोई फायदा नहीं होगा, सुरेन्द्रसिंह सोहल” - रिवॉल्वर वाला कर्कश स्वर से बोला - “तुम्हारी हकीकत हम पर खुल चुकी है ।”

अजीत ने अपने दो साथियों रश्मि और नासिर के साथ मिलकर डकैती की एक योजना बना रखी होती है और सारी तैयारी भी लगभग पूरी कर रखी होती हैं | योजना को अंजाम देने के लिए उन्हें एक और साथी की जरुरत होती है | विमल को पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर वो लोग विमल को अपने साथ काम करने के लिए मजबूर कर लेते हैं | अब तक विमल की खबर दो राज्यों से फरार इनामी मुजरिम के रूप में देश-भर के मुख्य अखबारों में छप चुकी होती है |

"तुम्हारी गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा की जा चुकी है । तुम आज तक बचे हुए हो केवल इसलिए कि पुलिस को तुम्हारे बिना दाढ़ी मूंछ और पगड़ी वाले हुलिए की जानकारी नहीं है । मैं अधिक देर तुम्हारी ‘बनवारीलाल तांगे वाले’ वाली रट नहीं सुनूंगा । तुमने फिर यही बात दोहराई तो मैं अभी तुम्हें ‘गिरफ्तार’ करवा दूंगा और इनाम की रकम हासिल कर लूंगा ।”

इस प्रकार विमल के रूप में अजीत, रश्मि और नासिर को डकैती की योजना के लिए अपना मनवाँछित चौथा साथी मिल जाता है | विमल की वक्ती तौर पे शांत चल रही  जिंदगी में दुबारा हलचल मच जाती है | ये हलचल इतनी जल्दी एक ऐसे भयानक तूफ़ान का रूप ले लेती है कि विमल को अंदाजा भी नहीं लग पाता और वो खुद को इस तूफ़ान में बुरी तरह से फंसा हुआ पाता है !

क्या योजना थी अजीत, रश्मि और नासिर की ?
क्या डकैती की योजना कामयाब हो पाई ?
कैसा तूफ़ान था वो जिसने विमल के होश उड़ाकर रख दिए ?
विमल कैसे उस तूफ़ान से बाहर निकल पाया ?
विमल के लिए क्या मुसीबत सिर्फ डकैती तक ही सीमित थी या कोई और पेंच भी फंसा हुआ था इस पूरे घटनाक्रम में ? 
अजीत, रश्मि और नासिर का क्या हुआ ? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए आप इस उपन्यास को पढ़ें !

मेरी राय में इस उपन्यास की कहानी की गति अच्छी रखी गई है और कहानी में कई रोचक घुमाव हैं | कहानी में हास्य रास लगभग न के बराबर है और कहानी बीच में २ या ३ जगहों पर गति भी खो देती है | कुल मिलकर मनोरंजन की दृष्टि से यह उपन्यास बेहतर बन पड़ा है | 
आपराधिक तत्वों के साथ काम करते हुए विमल की अनुभवहीनता साफ़ झलकती है जिस कारण वो कुछ गलतियां कर बैठता है - ये इस उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है | रश्मि का किरदार भी उपन्यास की कहानी में फिट बैठता है | इस उपन्यास में विमल को जिंदगी का एक कड़वा सबक भी सीखने को मिलता है | 

यह उपन्यास 1976 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था अतः उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए पढ़ें | ये उपन्यास इसी सीरीज के पिछले उपन्यास "दौलत और खून" के लगभग साढ़े चार से पांच वर्ष बाद प्रकाशित हुआ था जो कि एक ही सीरीज के दोनों उपन्यासों में एक लम्बा अंतराल है |

रेटिंग : 7/10

13 नवंबर 2021

अग्निकुंड - शगुन शर्मा



प्रिय साथियों ! अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज आपको इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं शगुन शर्मा के अब तक अप्रकाशित उपन्यास "अग्निकुंड" के बारे में ! 

                 चिंगारी उपन्यास के अंत में छपा विज्ञापन

शगुन शर्मा दिवंगत हिंदी उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा जी  के इकलौते पुत्र हैं | इनके अब तक ३० से अधिक उपन्यास तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित हो चुके हैं | इनका अंतिम प्रकाशित उपन्यास चिंगारी था | 

    चिंगारी उपन्यास में छपे लेखकीय से अग्निकुंड की झलक

चिंगारी उपन्यास के अंत में आगामी उपन्यास के तौर पर अग्निकुंड का एड दिया गया था | चिंगारी उपन्यास के लेखकीय में शगुन शर्मा ने अग्निकुंड उपन्यास की एक झलक कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की थी :-
अग्निकुंड अपराध की खूंखार दुनिया में सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठे एक ऐसे स्वयंभू न्यायाधीश की खूनी दास्तान है, जिसकी काली अदालत मात्र एक रुपये में इन्साफ बेचने के लिए जानी जाती थी | एक रुपया खर्च करके कोई भी उसकी अदालत से इन्साफ खरीद सकता था | उसकी अदालत का एक ही उसूल था - आँख के बदले आँख और सिर के बदले सिर | उस न्यायाधीश का दावा था कि उसकी अदालत में बेगुनाह को कभी सजा नहीं मिलेगी और गुनहगार को कभी माफ़ी नहीं मिलेगी, यहां तक कि उसकी अदालत के इन्साफ से यमराज भी नहीं बच सकता था !

अग्निकुंड उपन्यास अगर प्रकाशित होता तो उपन्यास की ये झलक जहां एक तरफ पाठक के मन में उत्सुकता जगाती वहीं सहज ही एक प्रश्न भी पैदा करती कि क्या शगुन शर्मा इस उपन्यास को उतना रोचक और मनोरंजक बना पाते जितना उन्होंने लेखकीय में दावा किया था | बहरहाल अब इस प्रश्न का उत्तर तो तभी मिल पायेगा जब अग्निकुंड उपन्यास प्रकाशित होगा ! इस उपन्यास के प्रकाशित न होने का कारण अब तक अज्ञात है |

अगर आपको इस बारे में कोई जानकारी हो तो हमें कमेंट्स के माध्यम से अवगत करवा सकते हैं |

10 नवंबर 2021

दौलत और खून - सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास : दौलत और खून 
उपन्यास सीरीज : विमल सीरीज
लेखक : सुरेंद्र मोहन पाठक 
पेज संख्या : 177

प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "दौलत और खून", विमल सीरीज का दूसरा उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और यह उपन्यास वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था |

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का दूसरा अध्याय !!

                               नया उपन्यास कवर

                            टू इन वन उपन्यास कवर

उपन्यास में से ही एक अंश : 
"जयशंकर ने उसके अभिवादन का उत्तर दिया और फिर बोला - “मिस्टर, मैं ज्यादा बोलना पसन्द नहीं करता इसलिये मैं अपनी बात फौरन और कम से कम शब्दों में कहने जा रहा हूं ।”
“क्या मतलब ?” - युवक हैरानी से बोला ।
“मतलब यह कि तुम्हारी हकीकत मुझ पर खुल चुकी है ।” - जयशंकर धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर में बोला - “तुम वही विमल कुमार खन्ना हो जिसकी बम्बई की पुलिस को लेडी शान्ता गोकुलदास की हत्या के सिलसिले में तलाश है । लेकिन तुम्हारा वास्तविक नाम विमल कुमार खन्ना भी नहीं है । तुम्हारा वास्तविक नाम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल है और तुम इलाहाबाद सैन्ट्रल जेल के फरार मुजरिम हो ।”
युवक फौरन अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ । उसने केबिन के द्वार की ओर कदम बढ़ाया ।
“चुपचाप अपनी जगह पर बैठ जाओ ।” - उसके कानों में जयशंकर का सांप की तरह फुंफकारता हुआ स्वर पड़ा । उसने देखा, जयशंकर के हाथ में एक साइलेन्सर लगी रिवॉल्वर चमक रही थी ।"

इस उपन्यास की कहानी पिछले उपन्यास "मौत का खेल" की कहानी से आगे बढती है और एक नया ही मोड़ ले लेती है | पिछले उपन्यास में विमल उर्फ़ सरदार सुरेंदर सिंह सोहल मोटरबोट के द्वारा बम्बई से बाहर निकल जाता है और इस उपन्यास में वो मद्रास (अब चेन्नई) जा पहुंचता है | 

मोटरबोट को ठिकाने लगाने के बाद वो कुछ दिन तक तो छिपा रहता है पर पैसा ख़त्म होने के कारण उसे बम्बई में सेठ गोकुलदास के घर से से चुराया हुआ मोतियों का हार बेचने के लिए बाहर निकलना पड़ता है | विमल, गिरीश कुमार वर्मा बनकर वीरप्पा से हार का सौदा करने के लिए मुलाकात करता है पर हाय रे विमल की किस्मत - वीरप्पा अपनी बम्बई की पुरानी जानकारी के आधार पर विमल को पहचान लेता है और झूठ बोलकर उसे जयशंकर नाम के एक आदमी से मिलवाता है | 

जयशंकर एक कुख्यात अपराधी है जो कई बार जेल जा चुका है | जयशंकर ने सत्तर लाख रूपये लूटने का एक मास्टर प्लान बनाया होता है जिसमें उसे कामयाबी की तो पूरी गारन्टी है पर लूट में साथ के लिए एक पांचवे साथी की जरुरत होती है । जयशंकर की मुलाकात जब विमल से होती है तो जैसे जयशंकर की मन की मुराद पूरी हो जाती है | जयशंकर पुलिस में गिरफ्तार करवाने की धमकी देकर विमल से हार छीन लेता है और विमल को अपने जुर्म में शामिल कर लेता है ।

जयशंकर उसे बाकी साथियों से मिलवाता है और अपने प्लान की जानकारी देता है | प्लान फाइनल होने के बाद जल्द ही वो दिन आ जाता है जब लूट करनी होती है | जयशंकर, विमल और बाकी साथी प्लान के अनुसार निर्धारित समय पर लूट की जगह पर पहुँचते है और अपना अपना काम शुरू कर देते हैं |

जयशंकर का मास्टर प्लान क्या था? 
क्या सत्तर लाख की ये लूट सफल हो सकी या उसमे कोई नया ही पेच फंस गया? 
क्या विमल की किस्मत ने उसका साथ दिया और उसे लूट के पैसे में से उसका हिस्सा मिल पाया? 
क्या विमल जयशंकर से अपना पीछा छुड़वा पाया? 
इस सारे चक्कर में विमल को क्या-क्या पापड बेलने पड़े? 
इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिल जायेंगे! 

उपन्यास के रीप्रिंट में शाब्दिक गलतियां बहुत कम है इसलिए कहानी के प्रवाह में कोई बाधा नहीं आती | 
लूट और डकैती को आधार बनाकर काफी उपन्यास लिखे जा चुके हैं इसलिए लूट से सम्बंधित कथानक में कुछ नया अनुभव होने की संभावना कम ही है ! परन्तु कहानी में जो घुमाव डाले गए हैं, वो रोचक हैं और उत्सुकता बनाये रखते हैं | 
उपन्यास के शुरुआत में जयशंकर की प्रधानता दिखाई गयी है और विमल का किरदार इस उपन्यास में बाद में उभर कर सामने आता है | ये भी इस उपन्यास का एक रोचक पहलू है |
इस उपन्यास की कहानी पिछले भाग "मौत का खेल" से बेहतर लगी | उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है |

ये उपन्यास वर्ष 1971 में लिखा गया है अतः पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास पढ़ते समय समयधारा का ध्यान अवश्य रखें | 

रेटिंग: 7/10

05 नवंबर 2021

मौत का खेल - सुरेंद्र मोहन पाठक


उपन्यास: मौत का खेल 
उपन्यास सीरीज: विमल सीरीज
लेखक: सुरेंद्र मोहन पाठक
पेज संख्या: 117 ( किंडल अनुसार )

                         किंडल संस्करण उपन्यास कवर

प्रख्यात हिंदी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक द्वारा लिखित उपन्यास "मौत का खेल", विमल सीरीज का पहला उपन्यास है | विमल सीरीज सुरेंद्र मोहन पाठक के लेखन कैरियर की सबसे प्रसिद्ध सीरीज मानी जाती है और इस उपन्यास का प्रथम एडिशन वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ था | 

विमल का विस्फोटक संसार - अपनी जिंदगी में ठहराव तलाशते सरदार सुरेंदर सिंह सोहल उर्फ विमल की विस्तृत दास्तान का प्रथम अध्याय!!

                               पुराना उपन्यास कवर

कहानी की शुरुआत बम्बई के विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन के रात के एक दृश्य से होती है जहां फटेहाल कपड़ों में दो दिनों से भूखा-प्यासा विमल कुमार खन्ना एक बेंच पर बैठा हुआ कोई तरकीब सोचने की कोशिश कर रहा था जिससे बिना भीख मांगे और बिना अपराध किये अपने पेट की आग बुझाई जा सके |
तभी एक आदमी आकर उसे कहता है कि अगर विमल रात से ही लाइन में लगकर सुबह टिकट विंडो खुलते ही उसके लिए रेलगाड़ी का टिकट ले ले तो वो उसे दो रुपये देगा | विमल दो रुपये एडवांस में मांगता है ताकि वो खाना खाकर आ सके और टिकट लाइन में लग जाये | आदमी मान जाता है और उसे दो रुपये दे देता है | विमल तुरंत एक सस्ते से होटल में जाकर खाने का आर्डर देता है और खाना आते ही उस पर टूट पड़ता है | 

                           टू इन वन उपन्यास कवर 

इसी बीच लाल हैंडबैग लिए एक खूबसूरत फैशनेबुल युवती उसी होटल के पीसीओ में फ़ोन करने आती है जिस पर विमल की निगाह भी टिक जाती है | जब वो पीसीओ से बाहर निकलती है तो विमल देखता है कि युवती के पास हैंडबैग नहीं है | खाना ख़त्म करते ही विमल उत्सुकतावश पीसीओ में जाता है और वहां पड़े लाल हैंडबैग को खोल कर देखता है | उसमे सौ सौ के नोटों की दस हजार रुपये की एक गड्डी पड़ी होती है | 

"दायें हाथ से मैंने हैंड बैग को खोला और टेलीफोन बूथ की छत पर लगी रोशनी के प्रकाश में मैंने हैंड बैग के भीतर झांका। मेरा मुंह सूख गया ।
किसी महिला के बैग में अपेक्षित साधारण सौन्दर्य प्रसाधनों के ऊपर सौ-सौ के नोटों की नई नकोर बैंक की अनखुली गड्डी मौजूद थी ।
मेरी सांस तेज हो गई । मेरा शरीर पसीने से नहा गया ।"

न चाहते हुए भी विमल लालचवश उस गड्डी को अपनी जेब में सरका लेता है | तभी युवती हैंडबैग ढूंढती हुई पीसीओ में वापिस आती है और विमल को पीसीओ मे खड़ा देखकर हैंडबैग के बारे में पूछती है | घबराया हुआ विमल हैंडबैग उसे दे देता है पर होटल का मालिक युवती को हैंडबैग चैक करने को कहता है क्यूंकि उसे विमल की फटेहाल हालत के कारण उस पर चोरी का शक होता है | विमल तब हक्का-बक्का रह जाता है जब युवती कहती है कि हैंडबैग में सब कुछ ठीक-ठाक है | 
युवती विमल को एक अच्छे होटल में ले जाती है | चोरी के अपराध से डरा हुआ विमल चुपचाप उसके साथ चला जाता है | बातचीत के दौरान युवती उसे बताती है कि उसका नाम शांता है और वो बम्बई के एक जाने-माने धनवान सेठ गोकुलदास की पत्नी है | शांता विमल को अपने यहां नौकरी करने का प्रस्ताव देती है | विमल मन ही मन हैरान होता है पर मान जाता है | शांता अपने घर का पता देती है और अगली सुबह उसे वहां पहुँचने का बोल कर चली जाती है | विमल स्टेशन वाले आदमी को उसके पैसे वापिस करता है | अगली सुबह विमल अपना हुलिया ठीक करके शांता के बताये हुए पते पर जाता है | 

"स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम में अटेण्डेण्ट को एक रुपया रिश्वत देकर मैं फर्स्ट क्लास वेटिंगरूम के बाथरूम में घुस गया । मैं मल-मलकर नहाया । कितने दिनों की मैल मेरे जिस्म से उतर रही थी। अन्त में मैं नये कपड़े पहनकर और बाकी का सामान एयरबैग में डालकर बाहर निकल आया ।
वेटिंगरूम के एक खम्भे के साथ एक आदमकद शीशा लगा हुआ था । मैंने उसमें अपनी सूरत देखी तो खुद मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । मेरा एकदम काया-पलट हो गया था । कौवा हंस बन गया था ।
महीनों से अपनी मनहूस सूरत, जो मैं कभी-कभार शीशे में देखता आया था, गायब हो गई थी।"

विमल को वहां ड्राइवर + सहायक की नौकरी मिल जाती है और साथ ही उसे बताया जाता है कि सेठ गोकुलदास एक गंभीर एक्सीडेंट के बाद से बिस्तर पर ही हैं और बहुत ही नाजुक हालत में हैं | एक डॉक्टर अक्सर सेठजी का चेकअप करने आता था और एक नर्स सेठजी की देखभाल के लिए घर में ही रोज ड्यूटी पर आती थी | विमल का मुख्य काम सेठजी की देखभाल करना, उनको उठाना-लिटाना, व्हील चेयर पे घुमाना, नर्स की सहायता करना और जरुरत पड़ने पर कार या मोटर बोट को ड्राइव करना होता है |
नौकरी के दौरान विमल को पता चलता है कि उससे पहले एक गोवानी आदमी बोस्को को इस नौकरी से निकाल दिया गया था क्यूंकि उसकी लापरवाही से सेठजी की जान जाते जाते बची थी | सेठ जी की एक बेटी माधुरी भी होती है जो सेठ जी से मिलने के लिए दशहरा की छुट्टी में घर आने वाली होती है |

जैसे-जैसे समय गुजरता जाता है, वैसे-वैसे घटनाएं कुछ इस प्रकार घटती हैं कि विमल को उस घर में षड़यंत्र की बू आने लगती है जिसकी कड़ियाँ शांता से जुडी होती हैं और ना चाहते हुए भी विमल को उस षड़यंत्र का एक हिस्सा बनना पड़ता है | 

आखिर कौन था विमल और इस फटेहाल हालत में क्यों था? 
शांता ने अचानक विमल को इस तरह नौकरी पर क्यों रख लिया? 
सेठ गोकुलदास की ऐसी हालत क्यों हो गयी थी? 
ऐसा क्या षड़यंत्र था जिसकी विमल को गंध मिल रही थी? 
क्या उस षड़यंत्र का पर्दाफाश हो पाया? 
विमल उस षड़यंत्र में कैसे फंस गया और क्या अंजाम हुआ विमल का? 
इन सब सवालों के जवाब आपको ये उपन्यास पढ़कर ही मिलेंगे !

कुल मिलाकर उपन्यास मनोरंजक है | कहानी में ज्यादा घुमाव तो नहीं हैं पर कहानी कसी हुई है | विमल के किरदार और उसकी मानसिक हालत को समझने में ये उपन्यास अच्छी भूमिका निभाता है | 

चूंकि उपन्यास 1971 में लिखा गया है इसलिए नए पाठकों से अनुरोध है कि उपन्यास को पुरानी समयधारा को ध्यान में रखते हुए ही पढ़ें | 

जिन पाठकों ने पहले से ही काफी सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास पढ़ रखे हैं, मेरे ख्याल से उन्हें ये उपन्यास औसत ही लगेगा |

रेटिंग :- 6.5/10

31 अक्तूबर 2021

नागपाल उपन्यासकार और उपन्यास सूची

नागपाल

नागपाल नाम से काफी उपन्यास प्रकाशित हुए हैं और अक्सर देखने को भी मिल जाते हैं। हालांकि जो उपन्यास हमें मिले हैं, उनमें ना तो कोई लेखकीय देखने को मिला और ना ही लेखक का कोई कॉन्टेक्ट नंबर या एड्रेस। 

                       नागपाल के उपन्यास 

अब ये लेखक कौन थे, कहाँ से थे, इनके बारे में कोई भी जानकारी कहीं पर उपलब्ध नहीं है। 
क्या नागपाल वास्तव में एक असली लेखक थे अथवा सिर्फ एक छदम नाम जिसकी आड़ में प्रकाशक ने अलग अलग लेखकों से अपनी सहूलियत के अनुसार लिखवाया! 

इनके उपन्यासों के बारे में जो थोड़ी-बहुत जानकारी हमें मिलती है, उनके अनुसार नागपाल नाम से अनिल मोहन भी बहुत घोस्ट राइटिंग (प्रेत लेखन) कर चुके हैं। नागपाल की त्रिकाल पांडे सीरीज के उपन्यासों को ही किरदार बदल कर देवराज चौहान सीरीज के उपन्यासों के तौर पर लिखा गया है। 

       राधा पॉकेट बुक्स में प्रकाशित कुछ उपन्यास की सूची

नागपाल के उपन्यास मुख्य रूप से राधा पॉकेट बुक्स, मेरठ से प्रकाशित हुए हैं। उपरोक्त उपन्यासकार के उपन्यासों की सूची निम्न है:- 
1 दौलत मेरी है ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
2 जुर्म की जंजीर ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
3 नकली चेहरा ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
4 चोरों का राजा ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
5 झूठ का जाल ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
6 धमाका ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
7 खतरनाक साज़िश ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
8 मौत का तांडव ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
9 चांडाल चौकड़ी ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
10 कौन लेगा दौलत ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
11 तबाही का रास्ता ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
12 पति की साजिश ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
13 काला कानून ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
14 हत्यारी बहु ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
15 बेगुनाह की मौत ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
16 मासूम की हत्या ( त्रिकाल पांडे सीरीज )
17 खून से रंगे हाथ ( थ्रिलर )
18 हत्यारी दौलत ( थ्रिलर )
19 खूनी फंदा ( थ्रिलर )
20 शोलो का तूफान ( थ्रिलर )
21 नर्क का बादशाह  
22 जुर्म का पहरेदार ( त्रिकाल पांडे सीरीज )

अगर आप में से किसी को भी इनके बारे में कोई जानकारी हो तो वह कॉमेंट के जरिए हमारे साथ जरूर सांझा करे या आप हमे मेल भी कर सकते हैं।

27 अक्तूबर 2021

चिड़ीमार - राज भारती (अप्रकाशित उपन्यास)

आज हम इस पोस्ट में बात कर रहे हैं दिवंगत प्रसिद्ध लेखक राज भारती जी के अब तक अप्रकाशित उपन्यास चिड़ीमार की!!

चिड़ीमार उपन्यास की पब्लिसिटी राज भारती जी द्वारा रचित किरदार कमलकांत की चक्रव्यूह सीरीज के 28वें उपन्यास के रूप में की गयी थी और इसका ad भी दिया गया था पर ये उपन्यास कभी प्रकाशित नहीं हो पाया


  

Ad में कहानी की भूमिका कुछ इस प्रकार दी गई है कि एक अनाम किरदार अपने आप को बड़ा सूरमा समझता है पर उसका टकराव कमलकांत से होता है और कमलकांत उसे नाम देता है "चिड़ीमार"!!

इस उपन्यास के बारे में अभी तक ये पता नहीं लग सका है कि इसका प्रकाशन किस कारण से रुका! 

क्या उपन्यास राज भारती जी के असामयिक निधन के कारण लिखा ही नहीं जा सका या लेखन अधूरा रह गया या फिर लेखन तो पूरा हुआ पर उपन्यास का प्रकाशन नहीं हो पाया? 

कारण चाहे जो भी रहा हो, पाठकों को आज भी इस उपन्यास का इन्तजार है कमलकांत की चक्रव्यूह सीरीज अभी भी अधूरी है चिड़ीमार उपन्यास का प्रकाशन न सिर्फ इस अधूरेपन को भर सकता है बल्कि पाठकों को एक बार फिर कमलकांत की हैरतअंगेज दुनिया में जाने का अवसर दे सकता है


अगर आपके पास इस सन्दर्भ में कोई भी जानकारी हो तो हमें कमैंट्स के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं


लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के अप्रकाशित उपन्यास - पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

ब्लॉग के इस सेक्शन में हम आपको लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के उन उपन्यासों की जानकारी देने का प्रयास करेंगे जो अब तक प्रकाशित ही नहीं हो पाए | साथ ही कोशिश करेंगे कि उपन्यास प्रकाशित न हो पाने के कारणों की जानकारी भी दे सकें| 

अप्रकाशित उपन्यासों के बारे में जानकारी के लिए लेबल "अप्रकाशित उपन्यास" पर क्लिक/टैप करे या फिर ब्लॉग के पेज "लोकप्रिय (लुगदी) साहित्य के अप्रकाशित उपन्यास - पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति" पर जाएँ |


अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करें| अगर जानकारी उपयुक्त हुई तो हम इसे अपने ब्लॉग पर आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे|

जानकारी देने के लिए आप हमसे निम्न ई-मेल एड्रेस या फ़ोन पर संपर्क कर सकते हैं :

E-mail address: skbishnoi128@gmail.com

Mobile: +91-74970-70299

धन्यवाद


21 अक्तूबर 2021

गनमैन - अनिल मोहन

उपन्यास 📖 - गनमैन
लेखक 📝 - अनिल मोहन
पृष्ठ 📃 - २५६

                               पुराना कवर

                                नया कवर

गनमैन - अनिल मोहन द्वारा रचित एक्शन से भरपूर उपन्यास जिसमे मशहूर डकैती मास्टर देवराज चौहान एक बार फिर आपके सामने हाजिर है तूफानी स्टाइल और अपने ख़ास दरिंदगी भरे अंदाज में।

उपन्यास के मुख्य पात्र कुछ इस प्रकार हैं:

देवराज चौहान - आपका अपना मशहूर डकैती मास्टर।

मोहनलाल - कनपटियों के पूरे बाल सफेद अलबत्ता सिर के बाल सिर्फ बीस प्रतिशत ही सफेद थे। पचपन साल की उम्र में भी वह चुस्त समझदार और सुलझा हुआ इंसान लग रहा था।

भगवान दास ठकराल - मुंबई की मुख्य हस्ती, खरबों की दौलत का इकलौता मालिक। कभी ठकराल फैक्ट्री में काम करने वाला बेहद मामूली इंसान हुआ करता था। कुछ करने की ललक थी उसमे, उसने किया और आज एक खरबपति था।

गौतम चंद - पचास वर्षीय सख्तजान व्यक्ति, सिर पर छोटे छोटे बाल, छोटी मूंछें, साढ़े पांच फुट लम्बाई बला का फुर्तीला। अपराध की दुनिया में अपना करियर शुरू किया। काबिल इतना कि जब भगवान दास ठकराल को सिक्योरिटी चीफ की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने गौतम चंद को अपना सिक्योरिटी चीफ बनाया। गौतम चंद ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और भगवान दास को कई बार मौत से बाल-बाल बचाया।

ममता कालिया - जवान खूबसूरत हसीना जो दिल्ली से मुंबई फिल्मो में अपनी शर्तों पर काम करने आई थी। मोहनलाल उस पे अपना दिल हार बैठा था और वो भी मोहनलाल को पसंद करती थी। 

इसके अलावा नगीना और रंजन भाटिया का किरदार भी देखने को मिलता है पर इनकी भूमिका कुछ संवादों तक ही सीमित है। किरदार कम है जिसके कारण कहानी पर अच्छी पकड़ बनती है। 

कहानी की शुरुआत होती है देवराज चौहान और नगीना के वार्तालाप से:

"क्या सोचने लगे?" नगीना ने देवराज चौहान को निहारते हुए पूछा।
"नगीना!" सोचों से बाहर आकर देवराज चौहान ने नगीना की चेहरे पे निगाह टिका दी "जगमोहन के पास मौजूद सारा पैसा अब तक प्रयोगशाला पर लग चुका होगा या फिर समाप्त होने वाला होगा। मैं अपने अरबों रूपया प्रयोगशाला पर लगा चुका हूँ। उधर प्रयोगशाला के लिए जगमोहन को पैसों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है। मैं नहीं चाहता की प्रयोगशाला की प्रगति का काम रुके। मैं जल्द-से-जल्द प्रयोगशाला को चालू हालत में देखना चाहता हूँ और इसके लिए हमें अभी बहुत ज्यादा दौलत चाहिए।"
नगीना की आँखों में व्याकुलता के भाव उभरे..

 देवराज चौहान किसी टापू पर एक वैज्ञानिक लैब का निर्माण करवा रहा है जो आने वाले समय में गजाला से टक्कर लेने के लिए बनवाई जा रही थी। गजाला वैज्ञानिक शक्तियों के सहारे विश्वसाम्राज्ञी बनना चाहती है। इसीलिए देवराज चौहान जगमोहन को लैब का काम सौंपता है। 
जगमोहन को टापू पर काफी समय हो जाता है और इधर देवराज को चिंता होती है कि कैसे भी करके काम नही रुकना चाहिए। इसलिए देवराज चौहान सोचता है कि  कोई बड़ा हाथ मारे। वह तलाश करता है कि किस जगह पर डकैती डाले। पर अचानक एक दिन उसे एक सुपारी मिलती है जो कोई मोहनलाल नाम का व्यक्ति देता है। 

"पच्चीस करोड़ रुपये.." 
क्षण भर के लिए देवराज चौहान जड़-सा रह गया।
टकटकी बांधे वह मोहनलाल को देखता रह गया। मस्तिष्क में हैरानी का बवंडर उठ खड़ा हुआ था। एक हत्या की कीमत पच्चीस करोड़। देवराज चौहान को भारी गड़बड़ का अहसास हुआ।

आप सोच सकते हैं कि आखिर एक मर्डर के लिए कोई कितनी रकम दे सकता है - 10 लाख, 50 लाख या 1 करोड़! पर यहां तो एक मर्डर के 25 करोड़ मिल रहे थे।
 
देवराज चौहान जब ये सुनता है तो उस सुपारी के लिए हाँ कर देता है पर इसके साथ ही मोहन लाल से कहता है कि कोई भी काम हाथ में लेने से पहले, मैं जिसके लिए काम कर रहा हूं, उसके बारे में जानकारी लेता हूं। यहां पर मोहनलाल फिर देवराज चौहान को एक ऑफर देता है कि तुम मुझसे या अपने किसी भी तरीके से मेरे बारे में पता नही करोगे, बदले में 25 करोड़ और यानी कि कुल 50 करोड़ रुपये तुम्हारे। देवराज चौहान इसके लिए मंजूरी दे देता है और फिर शुरू होता है ठकराल की सुपारी का खेल!


क्या देवराज चौहान ठकराल को खत्म कर पाया ?
क्या सच में मोहनलाल देवराज चौहान के साथ कोई खेल खेल रहा था ?
सिर्फ एक मर्डर के लिए 25 करोड़ की सुपारी क्यों मिली देवराज चौहान को ?
क्या देवराज चौहान अपनी कोशिश में कामयाब हो सका या इस बार उसे नाकामी का मुंह देखना पड़ा ? 
ऐसे ही और भी काफी सवाल है जिनके जवाब आपको मिलेंगे सिर्फ गनमैन को पढ़ कर!


उपन्यास तेज रफ़्तार और एक्शन थ्रिलर से भरपूर है। एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म किए बिना नहीं छोड़ा जाता। जैसे कि अनिल मोहन जी के अधिकतर उपन्यास यादगार होते है, ये भी वैसा ही एक उपन्यास है - काफी समय तक याद रहने वाला।
अगर कवर के बारे में बात करे तो कवर अच्छा है। पुराने कवर अच्छे रहते थे। अगर उपन्यास कभी रिप्रिंट हुआ तो उम्मीद है कवर काफी आकर्षक और बढ़िया बनाया जा सकता है।

रेटिंग :- 7/10

09 अक्तूबर 2021

तहकीकात पत्रिका

कुछ समय पहले आप सभी ने हमारे ब्लॉग पर नीलम जासूस कार्यालय का साक्षात्कार पढ़ा था। जिन्होंने ये साक्षात्कार नही पढ़ा वो इसे यहां से पढ़ सकते हैं। नीलम जासूस कार्यालय साक्षात्कार



जैसा कि उस समय नीलम जासूस कार्यालय ने आपने साक्षात्कार में कहा था कि भविष्य में वह नए लेखकों को भी मौका देंगे, तो अब काफी सारे नए लेखकों के पास मौका है अपनी कहानी प्रकाशित करवाने का।

अब नीलम जासूस कार्यालय ने एक नई द्विमासिक पत्रिका शुरू की है। कोई भी नए और पुराने लेखक अपनी रचनाएं इस पत्रिका में प्रकाशित करवाने के लिए उन्हे भेज सकते हैं । 

आपकी रचना निम्नलिखित मापदंडो के अनुसार होनी चाहिए:-

1 :- नई द्विमासिक पत्रिका “तहक़ीक़ात” के लिए थ्रिल, सस्पेन्स और जासूसी कहानियाँ / रचनाएँ आमंत्रित हैं।
2 :- रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हों।
3 :- यूनिकोड हिन्दी फॉन्ट में टाइप की गई हों (साफ पठनीय हस्तलिखित रचनाएँ भी स्वीकार्य हैं।)।
4 :- शब्द-सीमा : कम से कम 3500 .
5 :- संपादक मण्डल द्वारा चयनित रचनाओं को प्रकाशित किया जाएगा।
6 :- लेखक अपना परिचय, मोबाइल न., ईमेल व अपनी नवीनतम फोटो साथ भेजें।
7 :- संपादक मण्डल का निर्णय अंतिम होगा।


उदाहरण के लिए तहकीकात पत्रिका का प्रथम भाग यहां आपके सामने है। इसका मूल्य 150 रुपए है और पेज संख्या 150 से ज्यादा है। जैसे पहले के समय में जासूसी पत्रिका, सत्यकथा, इत्यादि पत्रिकाएं आती थी, तहकीकात भी उन्ही की तरह है।

अपनी रचनाएँ निम्न ईमेल आई डी और व्हाट्सएप्प न. पर भेजें। ज्यादा जानकारी के लिए आप निम्न आईडी पर संपर्क कर सकते है। चयनित रचनाओं के लेखकों से नीलम जासूस कार्यालय आपके दिए हुए एड्रेस और कॉन्टेक्ट न. से आपको संपर्क करेंगे।

Email: tehkikatnjk@gmail.com
Whatsapp (सुबोध भारतीय): 9311377466